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55वीं वर्षगाँठ समारोह (वीडियो)
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55वीं वर्षगाँठ समारोह (वीडियो)
पचपन वर्ष पूर्व जुलाई में, प्रेम रावत जी ने, मानवता तक आत्मज्ञान पहुँचाने के अपने पिता के दृष्टिकोण का उत्तरदायित्व स्वीकार किया था। उनके अथक प्रयासों के सुखद प्रभावों की सराहना करते हुए, 23 जुलाई, 2021 को हिंदी में प्रेम रावत जी के संबोधन का सीधा प्रसारण किया गया।
ऐप्प और वेबसाइट के माध्यम से टाइमलेस टुडे क्लासिक या प्रीमियर सदस्यता के साथ इस पुनः प्रसारण का आनंद लें।
एक अंश:
आज गुरु पूर्णिमा का दिन है। आज के दिन और भी फर्ज़ बनता है मेरा कि मैं सभी लोगों को जो मेरी बात सुनना चाहते हैं, मैं उनको एक ऐसी बात सुनाऊं, उनको एक ऐसी बात समझाऊं जिससे उनका भला हो। तो मैं ऐसी बात सभी लोगों को समझाना चाहता हूं और वो यह है कि तुम किसकी नौकरी कर रहे हो ? अपनी ? अपनी ? क्योंकि अगर तुम अपने मालिक हो, तो कुछ मिलेगा नहीं। न यहां मिलेगा न वहां मिलेगा। कहीं नहीं मिलेगा। अगर इस दुनिया की नौकरी कर रहे हो, अगर कुछ मिल भी गया तब भी कुछ नहीं मिलेगा। जैसे, सिकंदर ने कहा, "खाली हाथ आया था, खाली हाथ जा रहा हूँ।" खाली हाथ आया था, खाली हाथ जा रहा हूँ। तो किसकी नौकरी कर रहे हो ? किसका चिंतन करते हो ? अपना ? माया का ? अगर माया का चिंतन करते हो, कुछ नहीं मिलने वाला। न अब, न बाद में, न रिटायरमेंट में, कुछ नहीं। अगर, अगर तुम उस सतनाम की चिंता करते हो, उस सतनाम की नौकरी कर रहे हो, तो तुम्हारे पास इतनी जगह नहीं है जितना तुमको मिल रहा है। मिलने वाला नहीं, मिल रहा है। उसको तुम बटोर नहीं सकते। पर उसकी, उस करेंसी की एक ही पहचान है और वह है 'परमानन्द — आनंद।' अभी मैंने सुनाया था परमानैंट (Permanent) — परमानंद। बहुत नजदीक-नजदीक हैं। और वही एक चीज है जो परमानैंट है, परमानन्द।...
—प्रेम रावत