
एक झलक:
प्रश्नकर्त्ता : तो सर! मेरा सवाल है, आपने बोला था कि मोमबत्ती वाला जो example दिया है कि एक जलती मोमबत्ती दूसरी को जलाएगी। लेकिन ये प्रैक्टिकली हम देखें तो वैसा नहीं होता। जैसे अगर घर में बाहर या ऑफिस में हम कहीं भी कोई गलत काम कर रहा है। जैसे, मान लो मैं — example, मैं रोकता हूं उसको तो झगड़े का chances हैं। पता उसको भी है, वह गलत काम कर रहा है। और झगड़े के बाद मेरे साथी मुझे बोलते हैं कि —
यार! तेरे को क्या प्रॉब्लम थी ? तू क्यों बोल रहा है उसके बीच में ?
और दूसरा, सर! एक — मैं जैसे नार्मली, सभी फैमिली में, घर में सिखाया जाता है कि दूसरे के पचड़े से बच के रहो! तो वो कैसे सर, हम शांति के लिए जा सकते हैं ? जब हम दूसरे के पचड़े में पड़ेंगे नहीं तो शांति कहां से आएगी ?
प्रेम रावत जी : देखिए! जिस मटके में छेद है, उसमें आप कितना पानी डाल सकते हैं ?
प्रश्नकर्त्ता : डलेगा ही नहीं सर! जितना डालेंगे, सर! निकल जाएगा!
प्रेम रावत जी : मतलब, सारे समुद्र जितने भी हैं इस पृथ्वी पर, उसका सारा पानी उसके पास डाल सकते हैं, पर उसमें एक बूंद नहीं टिकेगी।
ठीक है न जी ?
उसमें कुछ नहीं टिकेगा। छेद है। ...

एक झलक:
जबतक तुम अपने आपको नहीं जानोगे कि तुम कौन हो, तुम्हारी क्या शक्तियां हैं, ‘‘भगवान! मेरे लिए ये कर दे! भगवान! मेरे लिए ये कर दे! भगवान! मेरे लिए ये कर दे!’’ इनसे नहीं। ये जानो, उस भगवान ने तुम्हारे लिए पहले से ही क्या कर दिया है। तुमको ये स्वांस दिया है।
अपने आपको कभी ये मत समझना कि तुम भाग्यशाली नहीं हो, क्योंकि वो स्वांस — जबतक तुम्हारे अंदर वो स्वांस आ रहा है, जा रहा है, उस परमेश्वर की तुम पर कृपा है! और तबतक, जबतक ये स्वांस आ रहा है, जा रहा है, यम भी तुम्हारा बाल बांका नहीं कर सकता।
- प्रेम रावत - रांची, झारखण्ड

31 जुलाई 1966 को प्रेम रावत जी ने अपने दिवंगत पिता के शांति प्रयास को जारी रखने की जिम्मेदारी संभाली। इस ऐतिहासिक अवसर की 53वीं वर्षगांठ पर इंदिरा गाँधी इंडोर स्टेडियम, दिल्ली में हुए प्रोग्राम की वीडियो एवं ऑडियो रिकॉर्डिंग का आनंद लें। जन्म और मृत्यु के बीच जीवनदायनी अनमोल स्वांस के बारे में प्रेम रावत जी का अद्वितीय दृष्टिकोण सुनें।

31 जुलाई 1966 को प्रेम रावत जी ने अपने दिवंगत पिता के शांति प्रयास को जारी रखने की जिम्मेदारी संभाली। इस ऐतिहासिक अवसर की 53वीं वर्षगांठ पर इंदिरा गाँधी इंडोर स्टेडियम, दिल्ली में हुए प्रोग्राम की वीडियो एवं ऑडियो रिकॉर्डिंग का आनंद लें। जन्म और मृत्यु के बीच जीवनदायनी अनमोल स्वांस के बारे में प्रेम रावत जी का अद्वितीय दृष्टिकोण सुनें।

एक झलक:
लोग समझते हैं कि अगर लड़ाइयां बंद हो गयी तो शांति हो जायेगी।
कौन सी लड़ाई ?
कितनी लड़ाइयां हैं ?
आप जानते हैं कितनी लड़ाइयां हैं ?
अरे! देश लड़ते हैं, यह भी लड़ाई है। परिवार लड़ते हैं, यह भी लड़ाई है। एक और भी लड़ाई है। अभी तक तो आपने देखा होगा और आप समझते होंगे कि लड़ने के लिए दो चाहिए। यह बात बिल्कुल गलत है, लड़ने के लिए एक ही बहुत है। क्योंकि मनुष्य ऐसा है कि वह अपने आप से लड़ सकता है। और जो लड़ाई मनुष्य अपने आप से लड़ता है, वो बहुत ही गंभीर लड़ाई है। वो सबसे बुरी लड़ाई है। उस लड़ाई से जीतना बहुत मुश्किल है।
बताऊं क्यों ?
क्योंकि जब खुद ही से लड़ रहे हैं तो जीतोगे तो दूसरा हारेगा। तुम्हीं जीतोगे और तुम्हीं हारोगे। वो लड़ाई जिसमें जीतना मुश्किल नहीं है, क्योंकि अगर तुम्हीं जीत गये तो तुम्हीं हार जाओगे। तुम्हीं हो।
और वो लड़ाई चलती है कब ?
दिन और रात! दिन और रात वो लड़ाई चलती है।
और उसमें क्या मारा जा रहा है ?
ये स्वांस मारा जा रहा है। जो स्वांस, जो सबसे, सबसे, सबसे बड़ा प्रसाद है, बड़ा आर्शीवाद है, वो मारा जा रहा है।
- प्रेम रावत, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, नई दिल्ली

एक झलक:
जबतक तुम अपने आपको नहीं जानोगे कि तुम कौन हो, तुम्हारी क्या शक्तियां हैं, ‘‘भगवान! मेरे लिए ये कर दे! भगवान! मेरे लिए ये कर दे! भगवान! मेरे लिए ये कर दे!’’ इनसे नहीं। ये जानो, उस भगवान ने तुम्हारे लिए पहले से ही क्या कर दिया है। तुमको ये स्वांस दिया है।
अपने आपको कभी ये मत समझना कि तुम भाग्यशाली नहीं हो, क्योंकि वो स्वांस — जबतक तुम्हारे अंदर वो स्वांस आ रहा है, जा रहा है, उस परमेश्वर की तुम पर कृपा है! और तबतक, जबतक ये स्वांस आ रहा है, जा रहा है, यम भी तुम्हारा बाल बांका नहीं कर सकता।
- प्रेम रावत - रांची, झारखण्ड