
आज बहुत ही पावन दिन है कि हमलोग यहाँ एकत्रित हुए हैं। आप लोग हिन्दुस्तान में या कहीं भी जो एकत्रित हुए हैं हंस जयंती के इस मौके पर। हंस जयंती एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रोग्राम है, क्योंकि जब श्री महाराज जी का शरीर पूरा हुआ, उससे पहले यह प्रोग्राम रखा गया था। और जब मैं — मेरे को यह गद्दी मिली, तब सबसे पहला प्रोग्राम मैंने यही किया — mainly जो, कुछ हरिद्वार में हुए, पर जो मेन प्रोग्राम था। तो इसका अपना एक अलग महत्त्व है। और सन्देश वही है जो हमेशा आता रहा है कि जिस चीज की तुमको तलाश है, वो तुम्हारे अंदर है। पर किस चीज की तलाश है तुमको ? किसको तलाश रहे हो ? क्या तलाश रहे हो ?
अभी मैंने जो सुनाया अंग्रेजी में, वो यही सुनाया कि तुम सपने देखते हो, तो तुम्हारा एक तरीके से जो कुछ भी तुम हो, तुम अपने आपको समझो कि तुम एक सपने देखने की मशीन हो और सपने देखते हो। अब सपना देखने के लिए ये नहीं जरूरी है कि तुम सोये हुए हो। नहीं! तुम जीते-जागते भी सपने देखते हो। खाना बनाते वक़्त भी सपने देखते हो, घोड़ी की सवारी करते हो तब भी सपना देखते हो। अपने घर में बैठे रहते हो तब भी सपना देखते हो, बाहर जाते हो तब भी सपना देखते हो।
सपना देख रहे हो! क्या सपना है ? कौन नहीं देखता है सपने! क्या सपने देखते हो ?
तुम ऐसे हो जाओ, तुम ऐसे हो जाओ, तुम्हारे साथ ये हो जाए, तुम्हारे साथ ये हो जाए, तुम्हारे को खूब पैसे मिल जाएं, तुम्हारे को — तुम्हारी प्रमोशन हो जाए, तुम्हारा टेस्ट पास हो जाए, ये कर लो, वो कर लो, वो कर लो। यही सब सपने देखते हैं। कौन नहीं देखता है ?
पर सबसे बड़ी चीज ये है कि तुम्हारा एक सपना हो और वो ऐसा सपना हो जो दुनिया का सपना न हो, जो तुम्हारा हो। सिर्फ तुम्हारा, सिर्फ तुम्हारा! वो एक सपना, जो अगर संभव हो जाए, अगर साक्षात् हो जाए, तुम्हारे जीवन के अंदर आनंद ही आनंद हो। स्वर्ग वाला सपना नहीं, नरक वाला सपना नहीं, बिज़नेस वाला सपना नहीं, पर ऐसा सपना जिसके साकार होते ही तुम्हारे जीवन में आनंद हो। तुम अपने अंदर जाकर के उस चीज को समझ पाओ कि तुम यहाँ हो क्यों ?
क्योंकि सपने के बारे में अगर कहा जाए, तो जैसे ही तुम उठे, जगे सपना खत्म। अगर उस तरीके से देखा जाए तो एक दिन जो भी सपना तुम देखते हो, कोई भी हो इस संसार के अंदर बड़े से बड़ा संत हो, महंत हो, कोई भी हो बड़े से बड़ा ऑफिसर हो, पॉलिटिशियन हो, विद्वान हो, बिज़नेसमैन हो, किसान हो, कोई भी हो, कुछ भी करे। जितने भी सपने किसान देखता है, जितने भी सपने कोई भी देखता है राजा देखता है, रंक देखता है। एक दिन जब पृथ्वी ही नहीं रहेगी तो वो सारे सपने अपने-आप ही खत्म ना हो जाएंगे। क्या बचेगा ? कुछ नहीं बचेगा!
जिस दिन तुम चले जाओगे तुम्हारे सारे के सारे सपने तुम्हारे, तुम्हारे साथ ही चले जाएंगे। और अभी तक तुमने क्या देखा है ? वही देखा जो किसी और ने देखा है, किसी और का सपना है, किसी और का सपना है, किसी और का सपना है और मैं यही कह रहा हूँ कि तुम्हारा अपना सपना क्या है ? और जब तक तुम उसको नहीं समझोगे कि जो तुम्हारा अपना सपना है, पैसे का नहीं, विद्वानता का नहीं, चीजों का नहीं, पर अपने जीवन का जो सपना है तब तक तुम समझ नहीं पाओगे कि ये सपने क्या हैं ? आते रहेंगे , जाते रहेंगे तुम इनके पीछे लगे रहोगे। सपने हैं! पर जब तुम्हारा ये सपना जो तुम्हारा अपना है, निजी सपना है जब तक ये पूरा नहीं होगा, तब तक आगे बात चलेगी नहीं। यही मैं कहना चाहता था।
जैसे ही मौका मिलेगा मेरे को मैं हिन्दुस्तान आऊंगा। अभी तो काफी कुछ यहाँ हो रहा है। और मैं आऊं या ना आऊं सबसे बड़ी बात ये है कि तुम अपने जीवन के अंदर उस परम आनंद की अनुभूति करो। जो ज्ञान मिला है उसका सेवन करो, उसका भजन करो, उसका अभ्यास करो, क्योंकि जब तक हम वो नहीं करेंगे, जिस चीज के लिए हम हैं और सिर्फ वही करते रहेंगे जिस चीज के लिए हम नहीं हैं और उस हालात में अगर हम आनंद की अनुभूति चाहते हैं तो कैसे अनुभूति होगी ? कैसे अनुभूति होगी ?
चक्की में अगर कपड़े धोना शुरू कर देंगे, सारे बटन उसके टूट कर आएंगे, फटी — कुर्ता अगर उसमें डाला तो फटा हुआ आएगा, तो दुःख नहीं होगा। क्यों नहीं होगा ? चक्की में अगर पैंट डाल दें, आटा तो नहीं बनेगा उसका पर टूट-टाट जायेगी। सब कुछ टूट जाएगा, फट जायेगी।
अब मुनष्य भी तो और क्या कर रहा है ? समय की चक्की में क्या डाल रहा है ?
अपने आप को डाल रहा है, उसे दुःख होता है, दर्द होता है फिर वो चिल्लाता है कि मेरे साथ ही ये क्यों हो रहा है, और डाला किसने ? खुद ही कूदता है। कोई अगर यह कहे भी कि मत जा, मत कूद, तो कहेगा — नहीं, मेरे को तो कूदना है। फिर जब दर्द होता है, जब दुःख होता है तो वो फिर सबको कोसता है। मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है, मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है, मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है ?
समझें, विचारें और इस जीवन के अंदर जो असली आनंद है, उसका सेवन करें।

एक झलक:
भगवान ने तुमको दी है ये गाड़ी, ये मनुष्य शरीर, ये जीवन। इस गाड़ी में इंजन है। है कि नहीं ? और इस गाड़ी को फ्यूल चाहिए, पेट्रोल चाहिए, रोटी चाहिए, दाल चाहिए, चावल चाहिए यही तो उसका फ्यूल है। इसी से चलती है ये। इसमें ब्रेक भी है। ब्रेक है यहां (दिमाग की तरफ इशारा) और एक्सीलरेटर भी है। वो कहां है ? वो भी यहां है (दिमाग की तरफ इशारा)। ब्रेक और एक्सीलरेटर पास-पास होते हैं। ब्रेक भी है, एक्सीलरेटर भी है। पेट्रोल भी भगवान ने बनाया। नहीं ? अच्छा इसमें पानी भी पड़ता है। पानी भी भगवान ने बनाया है। इंजन भी है इसका यहां। एक चीज स्टीयरिंग भी होगा। स्टीयरिंग भी होगा। वो किसके हाथ है ? .... वो स्टीयरिंग जो है इस गाड़ी का वो किसके हाथ है?
- श्री प्रेम रावत

इस सप्ताह के शुरुआत में आप एक खामोशी सुन सकते हैं, जब प्रेम ने इस जिंदगी के प्रदर्शन के बारे में पासाडेना सिविक ऑडिटोरियम कैलिफ़ोर्निया में बात की, और जीवन के मंच पर आपके द्वारा उठाए गए हर कदम को गिनना - इससे पहले कि आप अंतिम पर्दे पर पहुंचें।
एम. सी. और करियर कोच ऐश्ली स्टाल के साथ प्रेम रावत जी की पूरी बातचीत का आनंद लें। उनकी नव-प्रकाशित पुस्तक "पीस इज पॉसिबल" में विषयों के बारे में सुनें।

एक झलक:
बात करेंगे शांति की — हम बात करते हैं — चलिए! आप अपनी family से चालू करिए! वहां से चालू करिये, जहां वो लोग हैं, जिनसे आपको स्नेह है, जिनसे आपको प्यार है! Those people who you love, start with that.
दुनिया भर के लिए टाइम है, परंतु अपनी family के लिए टाइम नहीं है — मैं लेट हो गया! मैं लेट हो गया, मैं लेट हो गया, मैं लेट हो गया, मैं लेट हो गया। मैं लेट हो गया। और काहे के लिए लेट हो गये ? क्या लेट हो गए ? ताकि और लोगों के साथ बैठ के गपशप मार सकें।
अगर आपके पास सिर्फ गपशप के लिए टाइम है, अगर आपकी priority में — आपके जीवन की priority में गपशप है सिर्फ, तो यह स्पष्ट है कि आप वहां कार के steering wheelके पीछे बैठे तो जरूर हैं, पर गाड़ी कोई चला नहीं रहा है। और यह गाड़ी किसी चीज के साथ जरूर जाकर टकरायेगी और उसको कहते हैं — गुस्सा आना! क्योंकि कोई चला नहीं रहा है।
- प्रेम रावत

एक झलक:
भगवान ने तुमको दी है ये गाड़ी, ये मनुष्य शरीर, ये जीवन। इस गाड़ी में इंजन है। है कि नहीं ? और इस गाड़ी को फ्यूल चाहिए, पेट्रोल चाहिए, रोटी चाहिए, दाल चाहिए, चावल चाहिए यही तो उसका फ्यूल है। इसी से चलती है ये। इसमें ब्रेक भी है। ब्रेक है यहां (दिमाग की तरफ इशारा) और एक्सीलरेटर भी है। वो कहां है ? वो भी यहां है (दिमाग की तरफ इशारा)। ब्रेक और एक्सीलरेटर पास-पास होते हैं। ब्रेक भी है, एक्सीलरेटर भी है। पेट्रोल भी भगवान ने बनाया। नहीं ? अच्छा इसमें पानी भी पड़ता है। पानी भी भगवान ने बनाया है। इंजन भी है इसका यहां। एक चीज स्टीयरिंग भी होगा। स्टीयरिंग भी होगा। वो किसके हाथ है ? .... वो स्टीयरिंग जो है इस गाड़ी का वो किसके हाथ है?
- श्री प्रेम रावत

एक झलक:
अंगूठी कई बार डब्बे में आती है। नहीं ? लाल जैसा डब्बा होता है, उसमें आती है। नहीं ? अच्छा! आपकी समझ में अंगूठी की कीमत ज्यादा है या डब्बे की कीमत ज्यादा है ? अंगूठी! तो बिना अंगूठी के डब्बा क्या है ? कुछ नहीं है। पर जबतक उस डब्बे में अंगूठी है, तबतक आप उस डब्बे की भी देखभाल करेंगे। नहीं ? उसको ठीक ढंग से रखेंगे। जबतक उसमें अंगूठी है। और जब उसमें से अंगूठी निकल गई......। जबतक इस डब्बे में {शरीर की तरफ इशारा करते हुए} ये स्वांस आ रहा है, जा रहा है, आपको इस डब्बे की कीमत समझनी है। और जिस दिन इसमें से ये स्वांस आना-जाना बंद हो जाएगा, इस डब्बे की कोई कीमत नहीं रहेगी। पर जबतक है, तबतक इस डब्बे की कीमत उतनी ही है, जितनी उस अंगूठी की है।
- प्रेम रावत