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लॉकडाउन 48 00:16:29 लॉकडाउन 48 Video Duration : 00:16:29 पीस एजुकेशन प्रोग्राम की ओर अग्रसर (12 मई, 2020)

ऐंकर : आज मेरा सौभाग्य है कि इस कार्यक्रम में मैं शांतिदूत, लेखक और मानवतावादी श्री प्रेम रावत जी का स्वागत करने जा रही हूं और साथ ही साथ उनसे बातचीत करने का मौका मिला है।

आपको बता दें कि प्रेम रावत जी ने अपना पूरा जीवन मनुष्यों के जीवन में सुख-शांति लाने के लिए समर्पित किया है। प्रेम रावत जी हमारे साथ हैं। आपका बहुत-बहुत स्वागत है। नमस्कार।

प्रेम रावत जी : आपको भी नमस्कार। आपके श्रोताओं को भी नमस्कार।

ऐंकर : तो ये आपको हजारों लोग, लाखों लोग सुनने आते हैं और आप उनको शांति का, प्रेम का, मानवता का संदेश दे रहे हैं। क्या कुछ ऐसे उदाहरण आप हमारे सामने रख सकते हैं कि आपकी बात से, आपकी सोच के कारण कई लोगों के जीवन में बदलाव आया ?

प्रेम रावत जी : देखिए! मैं अपनी प्रशंसा अपने मुंह से नहीं करना चाहता हूं। पर मैं आपको एक बात बताता हूं, जो मैंने देखा है कि बहुत सारे जेलों में हमारे वीडियोज़ जाते हैं और ‘पीस एजुकेशन प्रोग्राम’ एक हमारा है, जो कि जेलों में दिखाया जाता है।

ऐंकर : अच्छा!

प्रेम रावत जी : अब ये क्यों ?

ऐंकर : जी!

प्रेम रावत जी : हम धर्म की बात नहीं करते हैं। हम कर्म की बात नहीं करते हैं। हम विचारने की बात करते हैं, क्योंकि एक बार आप सोचें, फिर क्या करना है, ये आप अपने जीवन में निर्णय ले सकेंगे और सही निर्णय ले सकेंगे। अब अगर उसको देखा जाए, जेलों को देखा जाए कि वो भी एक रणभूमि है, जिसमें लोग अंदर — क्योंकि उन्होंने कुछ गलत किया, उसकी वजह से वो बंद हैं। अब उनके जीवन में आशा कहां से आयेगी ? क्योंकि अगर एक दिन वो निकलेंगे बाहर और फिर सोसाइटी में आएंगे तो वो किस तरीके से आएंगे ? और क्या फिर वो दुबारा दोहराएंगे उन्हीं गलतियों को और फिर वापस जाएंगे ?

ऐंकर : जी!

प्रेम रावत जी : और विदेश में कई जगह — हिन्दुस्तान में भी यही होता है। लोग जेल से बाहर निकलते हैं और दोष तो वो सभी को दे रहे हैं। अपने को तो देते नहीं हैं, सभी को दे रहे हैं। अपने को तो देखते नहीं हैं, सभी को देख रहे हैं। "उसकी वजह से मैं जेल गया। उसकी वजह से मैं जेल गया।"

जेल से बाहर निकलते हैं और उसके बाद फिर गलत करते हैं...

ऐंकर : फिर और बदला लेने की प्रवृत्ति।

प्रेम रावत जी : और फिर वापिस जाते हैं।

ऐंकर : जी, जी!

प्रेम रावत जी : तो यूनिवर्सिटी ऑफ सैन एन्टोनियो, टेक्सस में एक डिपार्टमेन्ट है, जो मॉनिटर करता है कि ये जो प्रोग्राम, जितने भी जेलों में आ रहे हैं, ये कितने सक्सेसफुल हैं।

ऐंकर : जी, जी, जी!

प्रेम रावत जी : तो उनकी स्टडी में ये आया कि यह जो प्रोग्राम है, जो हमारा प्रोग्राम है — "पीस एजुकेशन प्रोग्राम", यह सबसे सक्सेसफुल है।

ऐंकर : क्या बात है!

प्रेम रावत जी : जो लोग इस प्रोग्राम को देखते हैं, उसमें से सबसे कम लोग जेल में वापिस आते हैं।

ऐंकर : वापिस आते हैं। मतलब, एक सकारात्मक परिवर्तन...

प्रेम रावत जी : बिलकुल।

ऐंकर : ...उनकी सोच में, उनके जीवन-शैली में!

प्रेम रावत जी : हां!

ऐंकर : जी!

प्रेम रावत जी : तो जब उनके जीवन के अंदर परिवर्तन हो सकता है और वो शांति का अनुभव जेल के अंदर रहते हुए कर सकते हैं...

ऐंकर : जी, जी, जी! बिल्कुल!

प्रेम रावत जी : तो आप, ये ज़रा सोचिए कि जो लोग स्वतंत्र हैं, उनके जीवन में कितना और बड़ा परिवर्तन आ सकता है! और वो परिवर्तन, जो परिवर्तन स्वाभाविक है। मतलब, मैं नहीं कह रहा हूं कि तुमको मनुष्य नहीं होना चाहिए।

ऐंकर : हां, हां, हां!

प्रेम रावत जी : मैं नहीं कह रहा हूं कि तुम 110 प्रतिशत अपने जीवन में चीजों को दो। ना, ना, ना, ना, ना! मैं कह रहा हूं कि तुम मनुष्य हो! सबसे पहले तुम जो हो, उसको जानो, उसको सीखो!

ऐंकर : बिल्कुल!

प्रेम रावत जी : क्योंकि तुम्हारी जो सक्सेस है, वहां से शुरू होती है।

ऐंकर : बिल्कुल सही बात है। मतलब, अपने अंदर की जो भावना है, मानवता का जो संदेश आप देते हैं, खुद मनुष्य होने का जो एक हमें गर्व है, वो मनुष्यता को हम बनाएं रखें।

प्रेम रावत जी : बिल्कुल!

ऐंकर : प्रेम जी! एक और सवाल मेरे जे़हन में आ रहा है कि आप पिछले 51 वर्षों से भी अधिक समय से लोगों के बीच शांति का संदेश पहुंचा रहे हैं। जबकि हम सभी जानते हैं कि हमारे आस-पास का जो वातावरण है, उसमें हिंसा है, अज्ञानता है — अहिंसा कहीं है, लेकिन अधिकतर जगह पर हिंसा देखने में आता है। तो कैसे आप अपने इस मिशन को लेकर आगे बढ़ रहे हैं, इसमें सफलता हासिल कर रहे हैं जबकि हम देखते हैं अगर इसके मार्ग को, तो भारी बाधाएं दिखाई पड़ती हैं ?

प्रेम रावत जी : बाधाएं तो हैं, पर देखिए! ये जो कुछ भी इस संसार के अंदर हो रहा है — लड़ाइयां हो रही हैं। जो कुछ भी हो रहा है, ये बनाया हुआ किसका है ? मैं उदाहरण देता हूं कि पपीता तो बम बनाता नहीं है।

ऐंकर : जी!

प्रेम रावत जी : आम का पेड़ तो बम बनाता नहीं है।

ऐंकर : बिल्कुल!

प्रेम रावत जी : आम का पेड़ बंदूक नहीं बनाता है। कोई कोयल कहीं से आके, बैठकर के कभी ये नहीं कहती है कि उसके साथ लड़ाई करो, उसके साथ लड़ाई करो! चक्कर ये है कि हम ये नहीं देखते हैं कि ये जो कुछ भी हो रहा है इस संसार में, ये सब मनुष्य का बनाया हुआ है। रोड भी मनुष्य की बनाई हुई है, कार भी मनुष्य की बनाई हुई है, ट्रैफिक जाम भी मनुष्य का बनाया हुआ है और ट्रैफिक जाम को कोसने वाला भी मनुष्य है।

ऐंकर : जी, बिल्कुल!

प्रेम रावत जी : ये सब मनुष्य की लीला है। एक तो भगवान की लीला की बात होती है। ये मनुष्य की लीला है। पॉल्यूशन होता है, प्रदूषण होता है, उससे लोग बीमार होते हैं, परंतु ये प्रदूषण बनाया हुआ किसका है ? ये भी मनुष्य का बनाया हुआ है। और इस प्रदूषण से जो दुःखी होता है, वो कौन होता है ? वो भी मनुष्य ही होता है।

भगवान ने तो — प्रकृति ने तो साफ पानी बनाया और उसको गंदा करने वाला कौन है ? वो भी मनुष्य है। और फिर गंदे पानी को पीने के बाद जो उसकी दशा होती है, उससे जो उसको दुःख होता है, वो भी मनुष्य ही है। तो ये सारा साइकल जो है, इसको समझना है, क्योंकि ये सब मनुष्य का ही बनाया हुआ है। और इसको तोड़ा जा सकता है क्योंकि ये मनुष्य का बनाया हुआ है। अब लोग समझते हैं कि ये भगवान की देन है। ना! ये भगवान की देन नहीं है।

ऐंकर : मतलब, प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं तो वो भगवान की देन है।

प्रेम रावत जी : भगवान ने जो बनाया है, वो मनुष्य की भलाई के लिए बनाया है।

ऐंकर : जी, बिल्कुल!

प्रेम रावत जी : अगर नहीं बनाया होता तो मनुष्य इस पृथ्वी पर जी नहीं सकता। जैसे चन्द्रमा पर नहीं जी सकता है, जैसे सूरज पर नहीं जी सकता है, उसी प्रकार वो मनुष्य, इस पृथ्वी पर नहीं जी सकता। परंतु इस प्रकृति ने उन सब चीजों का प्रबंध किया है। पानी का प्रबंध किया है, भोजन का प्रबंध किया है, हवा का प्रबंध किया है। और गरमी चाहिए मनुष्य को, नहीं तो हाइपोथर्मिया हो जाएगा। उसका भी प्रबंध किया है। सब चीजों का प्रबंध है। इसीलिए मनुष्य इस पृथ्वी के ऊपर जीवित है। परंतु उसी को बिगाड़ने में लगा हुआ है और अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है।

ऐंकर : बिल्कुल! तो इन सबसे मतलब, कैसे आप निकल पाते हैं ? लोगों को क्या समझाते हैं ? आप लोगों को क्या दे रहे हैं कि कैसे हम करें, ताकि हम जो ये शांति का मिशन लेकर चलें हैं, वो अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे ? कैसे इसका तोड़ निकाल रहे हैं आप?

प्रेम रावत जी : चार बातें हैं मूल में।

ऐंकर : जी!

प्रेम रावत जी : एक तो आप अपने आपको जानो! अगर आप अपने आपको नहीं जानते हैं तो ये समझिए कि आपके पास नक्शा है, जहां जाना है वो जगह आपको मालूम है, पर आप कहां हैं उस नक्शे में, ये आपको नहीं मालूम। अगर ये नहीं मालूम है कि आप कहां हैं, तो जहां जाना है, वहां तक कैसे पहुंचेंगे ? कौन-सा मार्ग लेंगे ? कब दायें मुड़ेंगे ? कब बायें मुड़ेंगे ? ये बहुत जरूरी है मालूम होना कि आप उस नक्शे पर कहां हैं! तो पहले, अपने आपको जानो!

ऐंकर : बिल्कुल!

प्रेम रावत जी : और दूसरी चीज कि जब आप अपने जीवन के अंदर उस परमानन्द के आनंद को महसूस करें तो आपका हृदय आभार से भरेगा। आपके जीवन में आभार होना बहुत जरूरी है।

ऐंकर : जी, बिल्कुल!

प्रेम रावत जी : आभार होना चाहिए। अगर नहीं है आभार — अब जैसे लालच है। सारी दुनिया को लालच खाए जा रहा है।

ऐंकर : बिल्कुल!

प्रेम रावत जी : पर जो लालच नाम का जो रोग है, उसकी एक दवाई है।

ऐंकर : जरूर! आप बताइए उसको।

प्रेम रावत जी : और वो दवाई है — किसी चीज को इन्जॉय करना। उसका आनंद लेना। क्योंकि जो लालची है, वो किसी चीज का आनंद नहीं ले सकता।

ऐंकर : अच्छा ?

प्रेम रावत जी : आनंद अगर लेने लगेगा वो, तो जैसे होता है न — अगर कोई चीज आपको पसंद आई, जैसे अगर रेडियो पर ही कोई गाना चल रहा है, आपको पसंद आया तो क्या करेंगे आप ? उस रेडियो का वॉल्यूम बढ़ा देते हैं।

ऐंकर : बढ़ा देते हैं।

प्रेम रावत जी : बढ़ा देते हैं, ताकि और लोग भी सुनें। अगर आप खाना बना रहे हैं और कोई ऐसा पदार्थ आपने बनाया, जो कि आपको बहुत अच्छा लगा तो आप क्या कहेंगे ? ‘‘आओ! चखो!’’

ऐंकर : चखो! जी, जी! बिल्कुल!

प्रेम रावत जी : ये स्वयं बात है। और जहां मनुष्य अपने जीवन का आनंद लेने लगे तो वो लालच नहीं रहेगा। तो एक तो अपने आपको जानो! एक, आपके जीवन में आभार होना चाहिए। और ये बहुत जरूरी बातें हैं। और एक ये कि एक तो आवाज दुनिया की जो है, बाहर की आवाज है। और वो आपके कानों तक आ रही है। आप उस आवाज से बच सकते हैं। कानों में इयर-प्लग लगा सकते हैं या कोई ऐसी जगह चले गए, जहां वो आवाज न हो। परंतु आपके कानों के बीच में जो आवाज है, उसके लिए कौन-सा इयर-प्लग लगाएंगे ?

ऐंकर : बिल्कुल! उससे कैसे बचेंगे ?

प्रेम रावत जी : उससे कैसे बचेंगे ? उससे बचना है। क्योंकि वो आवाज, आपकी आवाज नहीं है। जो कुछ भी आपको सिखाया गया है, वो आवाज है।

और वो कहती है, ‘‘तुम ऐसा करो! तुम वैसा करो!’’

क्यों करो ? ये किसी को नहीं मालूम। पर करो।

ऐंकर : कई बार जो बहुत लालची हो जाते हैं, उनके बीच रहते हुए भी — जिनके पास कुछ नहीं होता है, तो क्या उनकी ये प्रवृत्ति जो है, वो यही कारण है उसका ? यही वजह है उसकी ?

प्रेम रावत जी : यही जब लालच होने लगता है क्योंकि आदमी कहता है, ‘‘मेरे को चाहिए, मेरे को चाहिए, मेरे को चाहिए, मेरे को चाहिए।’’ और कभी भी खुश नहीं है। जितना भी उसके पास है, उसका वो आनंद नहीं उठा सकता। क्योंकि वो उसके लिए हमेशा कम है। उसको और चाहिए। यही तो लालच है!

ऐंकर : यही लालच है!

प्रेम रावत जी : यही लालच है कि और चाहिए! और चाहिए! और मिलता है, फिर और चाहिए। फिर और मिलता है, फिर और चाहिए। और ऐसे मनुष्य रह जाता है, इसी लालच में। परंतु उसका आनंद लेना, वो नहीं जानता है। अपने जीवन का आनंद लेना मनुष्य नहीं जानता है। सबेरे-सबेरे उठता है और चिंता में पड़ता है, ‘‘मैं लेट हो गया, मैं लेट हो गया, मैं लेट हो गया।’’

ऐंकर : सुबह से शाम तक और शाम से सुबह तक।

प्रेम रावत जी : चिंता, चिंता, चिंता, चिंता, चिंता, और आगे कैसे बढ़ूं, और आगे कैसे बढ़ूं ? और जो है, जो तुमको मिला हुआ है, तुम्हारे अंदर स्वांस आ रही है, जा रही है, जिसका कोई मोल नहीं है। अनमोल है! जिसको आप किसी को बेच नहीं सकते हैं। अगर हम अपनी स्वांस को बेच सकते तो करोड़पति, जो इस संसार में हैं, वो स्वांस खरीदने के लिए आ जाते और इस संसार में गरीब कोई नहीं रहता।

ऐंकर : बिल्कुल, बिल्कुल! सही बात आप बोल रहे हैं।

प्रेम रावत जी : परंतु हम बेच नहीं सकते हैं। यह एक ऐसी चीज है, इतनी प्राइसलेस है, अनमोल है, परंतु उसको नहीं जानते हैं। है! फिर भी नहीं जानते हैं।

ऐंकर : बिल्कुल! और आज के समय में हमारी युवा पीढ़ी भी इस शांति से दूर होती जा रही है। अशांति का दौर-सा आ गया है। आपको क्या लगता है कि जीवन में ऐसा क्या है, जो मनुष्य खोता जा रहा है ?

प्रेम रावत जी : अपने आपको! अपने आपको खोता जा रहा है। और जब से ये खोता जा रहा है मनुष्य अपने आपको, तब से ये समझ नहीं पा रहा है कि मैं क्या हूं ? मैं कौन हूं ? इसीलिए मैं कहता हूं, पहले अपने आपको जानो! और अपने जीवन के अंदर आभार प्रकट करो! और तीसरी चीज, जो आवाज है तुम्हारे कानों के बीच में...

ऐंकर : अपने अंदर की आवाज ?

प्रेम रावत जी : कानों के बीच में।

ऐंकर : कानों के बीच की आवाज!

प्रेम रावत जी : ‘‘तू लेट हो गयी, ये हो गया, वो हो गया, अब नहीं होगा, तू पास नहीं होगी, ये नहीं होगा, वो नहीं’’ — ये सारी जो आवाज गरजती रहती है — ‘‘तू गया’’!

ऐंकर : हां, हां, हां!

प्रेम रावत जी : ये कहां से आयी ? और ये हर दिन मनुष्य को डिस्ट्रॉय कर रही है, खत्म कर रही है और उसको अपने से ही दूर ले जा रही है। परंतु इसका कोई इलाज नहीं है लोगों के पास। पर इसका इलाज है।

ऐंकर : जी!

प्रेम रावत जी : अपने अंदर जो हृदय में स्थित बात है, उसको सुनो! वो कहती है कि तुम शांति में हो और अपने जीवन का पूरा-पूरा लाभ उठाओ! और चौथी चीज जो है, जो मैं लोगों से कहता हूं कि अगर तुम जिंदगी के अंदर फेल भी हो गये तो फेलियर को कभी मत एक्सेप्ट करो!

ऐंकर : कई लोग निराश हो जाते हैं।

प्रेम रावत जी : हां! एक तो फेल होना और एक उस फेलियर को एक्सेप्ट करना, उस फेलियर को लेना। वो कभी नहीं होना चाहिए। क्योंकि जब हम बच्चे थे तो हम चलने की कोशिश करते थे और कई बार फेल होते थे। क्योंकि खड़े हुए और फिर गिर गये।

ऐंकर : फिर गिर गये।

प्रेम रावत जी : पर कभी निराश नहीं हुए। फिर उठे और फिर चल दिये। परंतु आज क्या होता है कि अगर थोड़ी भी हमको ये भनक पड़ जाए कि हम हो सकता है कि पास न हों या सक्सेसफुल न हों, तो पहले ही उसको छोड़ देते हैं।

ऐंकर : कई लोग तो आजकल आत्महत्या तक कर रहे हैं। बच्चे बहुत छोटी उम्र में हताश, निराश होकर।

प्रेम रावत जी : बिल्कुल! यही तो कारण है। यही तो कारण है। पर ये कभी अपने जीवन के अंदर फेलियर को नहीं एक्सेप्ट करना चाहिए।

ऐंकर : बस, एक और सवाल जो मेरे ज़ेहन में आ रहा है, वो है कि दूसरों के — जो भी आपका संदेश हमने सुना, मैंने भी सुना अभी, तो दूसरों के अंदर दया का, प्रेम का जो संदेश आप पहुंचाना चाहते हैं, वो बहुत जरूरी है। और आप क्या समझते हैं कि ये जो दोनों गुण हैं, वो कितना जरूरी है हमारे लिए ?

प्रेम रावत जी : बहुत ही जरूरी है। इसीलिए जो-जो चीज — देखिए! हमारे अंदर गुस्सा भी है और दया भी है। दोनों ही हैं। हमारे अंदर ज्ञान भी है और अज्ञान भी है। और हमारे अंदर दया है, पर उसको हम उभरने का मौका नहीं देते हैं।

ऐंकर : नहीं देते हैं।

प्रेम रावत जी : ‘‘अपने आपको जानो’’ — इसलिए जरूरी है, ताकि आपको पता लगे कि आपके अंदर दया की खान है।

ऐंकर : ...जिसको हम पहचान नहीं पा रहे हैं।

प्रेम रावत जी : जिसको — क्योंकि खुद को नहीं जानते हैं, क्या है ? ‘‘मैं कौन हूं’’, नहीं जानते हैं। जब नहीं जानते हैं तो ये नहीं मालूम कि मेरे पास क्या-क्या है ? मेरे औजार क्या हैं ? इस लड़ाई को लड़ने के लिए, जो मैं अपने जीवन की लड़ाई को समझ रहा हूं, मेरे पास पहले ही क्या-क्या औजार हैं ?

क्योंकि लोग तो ये है कि ‘‘नहीं, हमको तो सरेंडर कर देना चाहिए। हमको तो पहले ही — हमारे पास कुछ नहीं है लड़ने के लिए।’’ हैं! आपके पास ज्ञान है लड़ने के लिए। आपके पास इस अंधेरे को दूर करने के लिए आपके हृदय के अंदर प्रकाश है। जो कुछ भी आपको चाहिए, वो आपके अंदर है। परंतु अगर आप अपने को नहीं जानते हैं तो आपको नहीं मालूम कि आपके पास क्या-क्या है!

ऐंकर : बहुत अच्छी बात आपने बताई कि सबसे बड़ी बात है कि खुद को जानना बहुत जरूरी है। हमारे अंदर की क्या क्वालिटीज़ हैं, क्या गुण हैं, उसको जानकर ही अपने जीवन में हमें आगे कदम बढ़ाते रहना चाहिए। तो बहुत अच्छी जानकारी आपने दी है। फिर से एक बार हम आपको बहुत-बहुत धन्यवाद देते हैं। नमस्कार!

प्रेम रावत जी : नमस्कार!

लॉकडाउन 47 00:16:39 लॉकडाउन 47 Video Duration : 00:16:39 पीस एजुकेशन प्रोग्राम की ओर अग्रसर (11 मई, 2020)

94.3 माई एफ एम, जयपुर

ऐंकर : 94.3 माई एफ एम से मैं हूं आर.जे. मोहित और आज मेरे स्टूडियो में कोई बॉलीवुड स्टार नहीं है। लेकिन मुझे लगता है पूरे वर्ल्ड की सैर कर चुके हैं, बहुत-सारे लोगों से मिल चुके हैं। पिछले 10 दिन में मैंने उनके बहुत सारे वीडियोज़ देखें हैं और उनके बारे में बता सकता हूं कि उनके चेहरे पर जो एक स्माइल है, वह हमेशा बरकरार रहती है।

स्वागत करते हैं प्रेम रावत जी का। सर! बहुत-बहुत स्वागत है आपका, हमारे स्टूडियो में।

प्रेम रावत जी : Thank you very much और आपके श्रोताओं को मेरा नमस्कार!

ऐंकर : मेरा सबसे पहला सवाल! जैसा कि मैंने जिक्र किया कि आपके चेहरे पर स्माइल, तेज, इतनी चमक कैसे ?

प्रेम रावत जी : बात ये है कि चमक मनुष्य के अंदर से आती है। असली चमक!

ऐंकर : हूं!

प्रेम रावत जी : बाहर से हम लोग मलहम लगाते हैं, ये सब क्रीम लगाते हैं, ये सबकुछ करने की कोशिश करते हैं। क्योंकि आज का जो माहौल है, वो इसी प्रकार का है कि अगर आदमी बाहर से अच्छा दिखता है तो अच्छा आदमी है। ये सबकुछ है। परंतु अंदर की तरफ कोई ध्यान नहीं देता है। और असली सुंदरता मनुष्य की उसके अंदर से आती है। जो असली श्रृंगार है मनुष्य का या किसी भी, किसी भी व्यक्ति का, वो श्रृंगार जो शांति में है, तो वो श्रृंगार जो है, वो अलग श्रृंगार है।

ऐंकर : जैसे कि आप बात करते हैं शांति की। कई सारे मैंने गुरुओं को, बहुत सारी बुक्स भी पढ़ीं हैं। इसे पाने का तरीका हर कोई अलग-अलग बताता है।

प्रेम रावत जी : बिल्कुल! क्योंकि परिभाषा ही अलग है।

ऐंकर : अलग है। कोई कहता है कि आप मेडिटेशन करो। कोई कहता है कि आप अलग हो जाओ। कोई कहता है कि आप छुट्टी पर चले जाओ। ये शांति पाने का आपका क्या तरीका है ? मैं वो जानना चाहूंगा।

प्रेम रावत जी : बात ये है कि आजकल की हालत ये है कि शांति के बारे में अगर जानना चाहें आप और रिसर्च करना शुरू करें तो आप इतने अशांत हो जाएंगे, इतने अशांत हो जाएंगे, पूछिए मत! क्योंकि पहले जितने प्रश्न थे आपके, उससे कई गुना ज्यादा बढ़ जाएंगे कि भाई! ये है या ये है या ये है या ये है ? अब दो बातें हैं। एक ये है कि — बेसिकली दो फिलॉसफीज़ हैं। और उसमें भी थोड़ा-बहुत अंतर है। पर एक फिलॉसफी ये है कि खाओ, पीओ, मौज करो! तुमको एक दिन मरना है।

ऐंकर : ओके!

प्रेम रावत जी : और दूसरी है कि नहीं, नहीं, नहीं! तुमको मरना तो है, पर मरने से पहले अच्छा काम करो, ताकि तुम स्वर्ग पहुंच पाओगे। इसमें सारी दुनिया बंटी हुई है।

ऐंकर : बिल्कुल! कई लोग खौफ के कारण जीते हैं, कई लोग इसलिए जी रहे हैं कि मुझे स्वर्ग मिलेगा। पुण्य कर रहे हैं, व्रत कर रहे हैं, भूखे हैं। आसपास में ऐसे लोगों को देखता ही हूं। तो ये स्वर्ग-नरक का concept भी जो हमारे पिछले कई सारे लोगों ने बोला है। हमारे ग्रंथों में है, जैसा भी है। हम आधी जिंदगी उसी को follow करके अपने end over में आते हैं और फिर हम out हो जाते हैं।

प्रेम रावत जी : बिल्कुल!

ऐंकर :- तो ये जो पूरी जिंदगी का फॉर्मेट हमारा सेट हो गया है — पुण्य, पाप, कर्म, दान! ये सब हमारा सेट हो गया है। इसके अलावा हम कुछ नहीं जानते हैं। हमें लगता है कि हमें perform करना है स्वर्ग के लिए।

प्रेम रावत जी : बिल्कुल ठीक कहा आपने और बात ये है कि ऐसा नहीं हुआ कि आप जब छोटे थे तो आपने एक दरवाजा खोला और आपको नरक दिखाई दिया और आपने कहा कि ‘‘ये क्या है ?’’ पापा से ‘‘पापा! ये क्या है ?’’ ‘‘बेटा! ये नरक है!’’ फिर दूसरा दरवाजा खोला, स्वर्ग था। तो ये जो नरक और स्वर्ग की बात है, ये आपका अनुभव नहीं है। scripted है।

ऐंकर : Scripted है!

प्रेम रावत जी : परंतु नरक है और स्वर्ग भी है। नरक कहां है ? यहां है। स्वर्ग कहां है ? यहां है। स्वर्ग भी यहां है, नरक भी यहां है। नरक क्या है ? जब आप स्वर्ग में नहीं हैं तो आप कहां हैं ? नरक में हैं। और जहां तक बात है शांति की। शांति परिभाषाओं की नहीं है, शांति महसूस करने की चीज है। सबसे पहले मैं लोगों को ये चुनौती देता हूं — भूल जाइए आप सारी परिभाषाओं को। जितनी भी परिभाषाएं हैं, सबको भूल जाइए। सिर्फ एक बात आप अगर स्वीकार कर सकते हैं तो करिए कि शांति आपके अंदर है। ये इतना बड़ा चैलेंज है लोगों के लिए कि जिस चीज को मैं ढूढ़ रहा हूं, वो मेरे अंदर है। संत-महात्मा तो कह कर चले गए।

मृग नाभि कुंडल बसे, मृग ढूंढ़े बन माहिं।

ऐसे घट घट ब्रह्म हैं, दुनिया जानत नाहिं।।

परंतु इसका क्या मतलब हुआ ? टेस्ट के लिए, टेस्ट के लिए बता दिया पेपर पर ।

ऐंकर : थ्योरी तो थी, पर प्रैक्टिकल नहीं था।

प्रेम रावत जी : जिस चीज की आपको तलाश है, वो आपके अंदर है। अगर आप इसको स्वीकार कर सकते हैं तो आप शांति के रास्ते पर चल दिए हैं।

ऐंकर : ओके!

प्रेम रावत जी : इसको स्वीकार नहीं कर सकते हैं तो फिर परिभाषाओं में ही अटके रहेंगे।

ऐंकर : पर मेरे को — जैसा आप बोलते हैं, शांति अंदर है। पर कई बार ऐसा होता है कि आप शांति की खोज में हैं, आप शांत ....... प्रेम रावत जी : काहे के लिए खोज कर रहे हैं आप ? जो आपके पास पहले से ही है, उसकी खोज कर रहे हैं ? आपको कहां मिलेगी वो ?

ऐंकर : हूं!

प्रेम रावत जी : वो तो आपके अंदर है! वो तो पहले से ही आपके पास है।

ऐंकर : उसको महसूस कैसे किया जाए ?

प्रेम रावत जी : महसूस करने के लिए एक दूसरी चीज है। देखिए! जब आपकी घड़ी खो जाती है, जो आपकी कलाई में नहीं बंधी है। जब आप अपनी कलाई को देखते हैं और आप देखते हैं कि आपकी घड़ी वहां नहीं है तो आप कैसे खोजेंगे ? और अगर आपको घड़ी की जरूरत है और घड़ी — आप देखते हैं कि आपकी अभी भी कलाई में बंधी हुई है तो क्या उसको खोजेंगे आप ?

ऐंकर : नहीं खोजूंगा। बिल्कुल नहीं खोजूंगा।

प्रेम रावत जी : उसको ऐसे करके देखेंगे कि टाइम क्या है ? {हँसते हुए}

ऐंकर : टाइम देख लूंगा।

प्रेम रावत जी : बस! तो इसमें कितना अंतर है! तो एक तरफ लोग कहते हैं, ‘‘खोजिए!’’ और मैं लोगों से कहता हूं कि कैसे खोजोगे ? जब वो चीज पहले से ही तुम्हारे अंदर है तो खोजने की क्या जरूरत है ? अपना टाइम बरबाद मत करो! महसूस करना शुरू करो!

ऐंकर : But वो महसूस करने का क्या तरीका है ? क्या इसका कोई फॉर्मूला है ? या फिर कुछ ऐसा मंथन है।

प्रेम रावत जी : सब लोगों को मालूम है फॉर्मूला। सब लोगों को मालूम है! अगर आप एक कमरे में हैं और वहां दस आदमी बोल रहे हैं, बात कर रहे हैं। जोर-जोर से बात कर रहे हैं! खूब हल्ला हो रहा है! और कोई एक व्यक्ति आता है, जिसको आप आदर-सत्कार, जिसका आप आदर-सत्कार करते हैं, वो आपसे कुछ कहना चाहता है। तो आप करेंगे क्या ?

ऐंकर : मैं लोगों को शांत करने की कोशिश करूंगा!

प्रेम रावत जी : वो जो दस लोग हैं आपके कमरे में, आपके जीवन में, जो बक-बक, बक-बक कर रहे हैं हमेशा — ऐसा बनो, ऐसा बनो, ऐसा करो, ऐसा करो, ये कर लो, ये पा लो, ये हो लो! ये हो जाएगा, वो हो जाएगा! उनको तो शांत करोगे ? तब आपको पता लगेगा कि आपका हृदय आपसे क्या कहना चाहता है ? पर इसकी जरूरत तो समझनी पड़ती है पहले! वो जो दस लोग हैं, उनको आप कभी सट-अप नहीं कर सकते हैं।

ऐंकर : बिल्कुल, उनका ऑन-ऑफ का बटन नहीं है।

प्रेम रावत जी : उनका ऑन-ऑफ का बटन नहीं है, वो बोलते रहेंगे। परंतु उनको थोड़ी देर के लिए भी अगर आप कह सकें, ‘‘एक मिनट! एक चीज और है, जिसको मैं सुनना चाहता हूं। ......’’

ऐंकर : ओके!

प्रेम रावत जी : ‘‘ ........फिर जब मैं सुन लूंगा, आप चालू कर दीजिए!’’ ये वही वाली बात है। आपके कानों में हेडफोन लगे हुए हैं .......

ऐंकर : बिल्कुल!

प्रेम रावत जी : .... और कोई आपसे आकर बात करना चाहता है तो आप क्या करते हैं ?

ऐंकर : मैं हेडफोन उतारूंगा।

प्रेम रावत जी : और फिर जब बात खत्म हो गयी तो फिर पहनूंगा। इतनी आसान बात है।

ऐंकर : But ये easy है उनको शांत कराना कि शांत हो जाओ, मुझे दूसरे की बात सुननी है ?

प्रेम रावत जी : कितना difficult है हेडफोन निकालना अपने कानों से और... ?

ऐंकर : बहुत ही इजी है!

प्रेम रावत जी : फिर लगा देना। Philosophically तो वही चीज है।

ऐंकर : But मुझमें वो शायद वो लगता नहीं है कि इतनी easy हो जाती है कि मैंने उतारे और मैं अभी तुम्हारी बात सुनता हूं। ये तो ये हो गया कि हां! मैं तुम पर कंट्रोल कर रहा हूं। तुम शांत रहो! वो शायद प्रैक्टिस से आयेगा।

प्रेम रावत जी : आपने एक शब्द कहा — कंट्रोल!

ऐंकर : हूं!

प्रेम रावत जी : आपकी जिंदगी है! कोई कंट्रोल है आपको इस पर ? ये गाड़ी चल रही है आपकी तो स्टेयरिंग ह्वील किसके हाथ में है ? ड्राइवर की सीट पर आप बैठे हैं — ड्राइवर की सीट पर तो आप बैठे हैं! भगवान ने क्या दिया है ? भगवान ने आपको दी गाड़ी!

ऐंकर : जीवन!

प्रेम रावत जी : भगवान — हां! जीवन रूपी गाड़ी दी और उसमें दिया फ्यूल......!

ऐंकर : वक्त का!

प्रेम रावत जी : वक्त का और दिया रोड — ये संसार, ये धरती! इतनी सुंदर धरती और कहा, ‘‘चलाओ गाड़ी!’’ अब लोग हैं, कह रहे हैं - ‘‘नहीं, नहीं, नहीं! खुदा चलाएगा! खुदा स्टियर करेगा मेरी गाड़ी को!’’ बाप रे बाप! हाईवे पर बिना — किसी ने स्टियरिंग पकड़ा हुआ ही नहीं है। आजकल की गाड़ियां हैं, जो ऑटो स्टियर करती हैं, परंतु वो भी जब देखती हैं कि पांच-छः सेकेंड के साथ किसी ने स्टियरिंग ह्वील नहीं पकड़ा है तो हॉर्न बजाती हैं, फिर दोबारा उसको grab करो। तो, क्या आपकी जिंदगी में किसी भी चीज पर कंट्रोल है या नहीं ? यह आपकी जिंदगी है! कौन आपको दुःखी करता है ?

ऐंकर : परिस्थितियां!

प्रेम रावत जी : तो आप — तो कंट्रोल क्या है आपका ? जो कुछ होगा — मतलब, ये तूफान है!

ऐंकर : ये तो आएगा ही!

प्रेम रावत जी : बस! यही है सबकुछ या थोड़ा-बहुत कंट्रोल भी कर सकते हैं हम ? अपने जीवन पर थोड़ा-सा कंट्रोल भी जरूरी है — ये मेरी जिंदगी है, मेरे को आगे बढ़ना है। मैं चाहता हूं कि मेरे जीवन में भी सुकून हो, मेरे जीवन में भी शांति हो! बस! इतनी कंट्रोल की बात कर रहा हूं!

ऐंकर : बिल्कुल ठीक कहा आपने। लेकिन कई बार हम दो चीजें देखते हैं। मैं एक देश में रहता हूं। भारत देश में रहता हूं। आपके लिए क्या जरूरी है ? देशभक्ति या मानवता पहले ?

प्रेम रावत जी : देखिए! जहां तक जमीन की बात है, जमीन तो जमीन है। किसी ने यहां बॉर्डर बना दिया, किसी ने वहां बॉर्डर बना दिया। बॉर्डर जो हिन्दुस्तान का आज बॉर्डर है, वो पहले नहीं हुआ करता था। 1947 से पहले बॉर्डर कहीं और था। अब बॉर्डर बन गया है। कुछ होता रहता है, कुछ होता रहता है। स्टेट्स हैं, वो बदलते रहते हैं। वो divide होते रहते हैं। तो जब आप भारतवर्ष की बात करते हैं तो आप भारत में रहने वालों की बात कर रहे हैं या जमीन की बात कर रहे हैं ?

ऐंकर : मैं शायद भारतवासियों की नहीं, मनुष्यों की बात कर रहा हूं।

प्रेम रावत जी : हां! मनुष्यों की अगर आप बात कर रहे हैं तो मानवता पहले होनी चाहिए।

ऐंकर : ओके!

प्रेम रावत जी : क्योंकि अगर हमने सबसे सुंदर घर भी बना लिया। मतलब, मार्बल लगा हुआ है, ग्रैनेट लगा हुआ है। आलीशानदार मकान है, परंतु जितने लोग उस घर में रहते हैं, एक-दूसरे से लड़ते रहते हैं।

ऐंकर : फायदा ही नहीं है ऐसे घर का।

प्रेम रावत जी : ऐसे घर में कौन रहेगा ? आग लगी है, कैसे रहेगा ? सबसे पहले .... और भारतवर्ष एक ऐसी जगह है। क्योंकि जब मैं छोटा था और जब मैं स्कूल जाता था। मैंने देखा। मेरा सबसे करीब एक दोस्त था। उसका शरीर पूरा हो गया अब। वो क्रिश्चियन था। कई लोग मेरे से बोलते थे कि आप इससे क्यों दोस्ती करते हैं ?

ऐंकर : ओके!

प्रेम रावत जी : ये तो क्रिश्चियन है! मैंने कहा, नहीं, मेरा दोस्त है! मैं दोस्ती देखता हूं। मेरा एक और भी दोस्त था। किसी और धर्म का था वो। और जहां मैं स्कूल जाता था तो वहां हर एक धर्म के लोग थे और कभी ये किसी के अंदर ये भाव नहीं था कि नहीं, तू इस्लाम धर्म को मानता है, तू क्रिश्चियन धर्म को मानता है, तू सिख धर्म को मानता है, तू हिन्दु धर्म को मानता है, तू बुद्धिस्ट धर्म को मानता है। बच्चों में ये नहीं होता है। ये सिखाया जाता है।

ऐंकर : script किया जाता है।

प्रेम रावत जी : Script किया जाता है। तो ये तो वही वाली बात है न कि —

आए एक ही देश से, उतरे एक ही घाट।

हवा लगी संसार की, हो गए बारह बाट।।

ऐंकर : हूं!

प्रेम रावत जी : कबीरा कुआं एक है, पानी भरें अनेक।

भांडे का ही भेद है, पानी सबमें एक।।

ऐंकर : नाइस!

प्रेम रावत जी : तो ये आप जब सुनते हैं या कोई और सुनता है तो, बड़ी अच्छी बात है। पर ये उनको मालूम है। उनको मालूम है कि ये सब एक ही हैं।

ऐंकर : एक ही हैं। एक ही हैं!

प्रेम रावत जी : तो ये भारतवर्ष को एकता की जरूरत है।

ऐंकर : हूं।

प्रेम रावत जी : और जैसे-जैसे एक होंगे लोग, ये देश कहीं का कहीं पहुंच जाएगा। कहीं का कहीं पहुंच जाएगा और पहुंच रहा है।

ऐंकर : पहुंच रहा है।

प्रेम रावत जी : पहुंच रहा है!

ऐंकर : मैं इससे एक बात जोड़ना चाहूंगा। मेरे बाबा जी थे, उनके दो मित्र थे — मोहम्डन थे और वो हमारे घर आते भी थे। वो era था और उसके बाद से सब बंद हो गया। मतलब, मेरे बाबा उर्दू में लिखते थे, हिन्दी में भी लिखते थे। वो टीचर थे। आज मैं — मेरे मित्र हैं। इतने मोहम्डन मित्र नहीं हैं या फिर उनके इतने हिन्दु मित्र नहीं हैं। ये जो गैप आया है, मुझे लगता है कि हम वक्त के साथ-साथ दूर होते गए हैं। ये वक्त के साथ हमें तरक्की — कहते हैं न कि वक्त के साथ कोई भी देश तरक्की करता है। तो ये कैसी तरक्की है ?

प्रेम रावत जी : ये तरक्की नहीं है। ये तरक्की नहीं है, ये विभाजन है! क्योंकि ब्रिटिश का एक फंडामेंटल रूल रहा है और ये चाणक्य ने भी ये बात — उन्होंने भी ये बात कही है। क्योंकि साम, दाम, दंड, भेद। और आखिरी वाला है — भेद! पहले तो समझाओ! अगर समझ में नहीं आए — साम, दाम तो पैसे-वैसे का प्रबंध करो। अगर उससे भी नहीं हो तो दंड दो। और अगर दंड भी काम न करे — समझौता भी काम न करे, पैसा भी काम न करे और दंड भी काम न करे तो विभाजन कर दो। जो लोग लोगों का विभाजन कर रहे हैं, वो सचमुच में नहीं समझ रहे हैं कि वो कितनी बड़ी गलती कर रहे हैं और कितनी बड़ी मानवता के खिलाफ गलती कर रहे हैं। और वो — उससे सतर्क रहना चाहिए लोगों को। क्योंकि अगर वो करें भी कोशिश, परंतु कोई विभाजन को नहीं एक्सेप्ट करे, स्वीकार करे तो वो करेंगे क्या ?

ऐंकर : उनका काम ही नहीं है कुछ।

प्रेम रावत जी : वो स्क्रिप्ट में लिख देते हैं न ?

ऐंकर : हां!

प्रेम रावत जी : और हमको स्क्रिप्ट पढ़नी है।

ऐंकर : पढ़नी है हमें।

प्रेम रावत जी : तो इसमें सब लोग खो जाते हैं कई बार। क्योंकि जो पोटेंशियल है हिन्दुस्तान की। ये देखिए! हिन्दुस्तान में ऐसी-ऐसी चीजें बनी हैं, ऐसी-ऐसी चीजों का आविष्कार हुआ है। जीरो का आविष्कार हुआ है। ऐसे-ऐसे मैथेमेटिशियन्स थे। यहां किसी चीज की कमी नहीं है। किसी चीज की कमी नहीं है।

ऐंकर : वो भी देखना है। Thank you so much sir, हमारे साथ स्टूडियो में आने के लिए! तो ये थे प्रेम रावत जी, जिनके कई सारे उत्तर से आप जान पाएं होंगे कि शांति क्या है। और उसे ढूंढ़ने की जरूरत नहीं है, वो आप ही के अंदर है। अगर आप कहीं ढूंढ़ने जा रहे हैं तो आप अपनी ही चीज को कहीं खोज रहे हैं, जो आपकी जेब में है, जो आपके अंदर है।

तो शांति खोजिए मत! उसे महसूस कीजिए!

लॉकडाउन 46 00:14:15 लॉकडाउन 46 Video Duration : 00:14:15 पीस एजुकेशन प्रोग्राम की ओर अग्रसर (10 मई, 2020)

प्रेम रावत जी:

हमारे श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

मुझे आशा है आप सभी लोग कुशल-मंगल होंगे। इन परिस्थितियों को देखते हुए काफी कुछ जो हो रहा है — कभी कुछ होता है, कभी कुछ होता है और अखबार में, न्यूज़ में जो देखने के लिए मिलता है, पर सबसे बड़ी चीज यह है कि कोई भी स्थिति हो सामने आप उस स्थिति को किस तरीके से हैंडल करेंगे ? आप क्या करेंगे ? जो भी परिस्थिति है किसी भी तरीके से अगर उस परिस्थिति को देखा जाए, अच्छी है; बुरी है। परंतु बात परिस्थिति की नहीं है — अच्छा है, बुरा है यह है; वह है, बात है कि आप उस परिस्थिति को — उसके साथ कैसा व्यवहार करेंगे, उस परिस्थिति में कैसा व्यवहार करेंगे ?

कई लोग हैं — अब हिंदुस्तान में अगर देखा जाए या भारतवर्ष में देखा जाए कई लोग हैं जिनको "कोई बात नहीं ठीक है।" परंतु कई लोग हैं जो "भाई! यह क्या हो रहा है, कैसे होगा!" चिंता करते हैं, पर चिंता करने से कुछ होगा नहीं। सबसे बड़ी चीज है कि जो ताकत आपको चाहिए इस परिस्थिति से निकलने के लिए वह आप में है। वह कहीं दूसरे आदमी से नहीं आएगी, दूसरे व्यक्ति से नहीं आएगी वह आपके अंदर है, वह आपसे ही आएगी। परन्तु उसके लिए आपको अपनी तरफ देखना पड़ेगा, औरों की तरफ नहीं। और एक बहुत बड़ी बीमारी है लोगों में वो यह है कि वह देखते हैं दूसरों की तरफ कि "तुम हमारे बारे में क्या सोच रहे हो?" यह बीमारी बहुत बड़ी बीमारी है — "और लोग हमारी तरफ क्या सोच रहे हैं, हमारे बारे में क्या सोच रहे हैं!"

अगर किसी को सोचना चाहिए तुम्हारे बारे में तो वह तुम हो, कोई दूसरा नहीं, वह तुम हो! तुम अपने बारे में क्या सोच रहे हो ? तुम अपने से खुश हो या नहीं! तुम अपने से खुश हो या नहीं ? जब तुम सवेरे-सवेरे उठते हो तो तुम अपनी चिंता करते हो कि "आज मेरा दिन अच्छी तरीके से बीते या औरों की चिंता करते हो और चीजों की चिंता करते हो — इसका क्या होगा, इसका क्या होगा, इसका क्या होगा, मेरे को यह करना है, मेरे को यह करना है, मैं यह कैसे करूंगा, मैं वह कैसे करूंगा!" क्योंकि जो व्यक्ति, जो व्यक्ति अपने से दूर तो जा सकता है, परन्तु नजदीक आने में उसको नहीं मालूम कैसे मैं अपने-अपने पास आऊं, अपने नजदीक आऊं। तो उसका तो एक ही परिणाम होगा जो व्यक्ति अपने घर से बाहर तो जा सकता है पर बाहर जाने के उपरांत अपने घर कैसे वापस आएं यह उसको नहीं मालूम तो उसके साथ क्या होगा ? क्या सोचेंगे आप, क्या होगा उसके साथ ? उसके साथ एक ही चीज होगी और वह चीज है कि वह खोया रहेगा, क्योंकि वह जा तो सकता है, पर वापस कैसे आये यह उसको नहीं मालूम। मनुष्य के साथ आज यही हाल है। वह इस दुनिया में तो चला जाता है, परन्तु अपनी तरफ कैसे वापिस आएं यह उसको नहीं मालूम। क्योंकि यह उसको नहीं मालूम है, सारे चक्करों में पड़ा रहता है, दुखी होता है। क्यों, क्यों दुखी होता है ? क्योंकि उसको यह नहीं मालूम कि मैं घर कैसे जाऊं।

एक चुटकुला है। एक व्यक्ति था तो वह एक दिन रोड के किनारे बैठा हुआ रो रहा था। देखने में तो सबकुछ ठीक था — उसके पास टाई भी थी, सूट भी थी और ऐसा लग रहा था कि काफी अच्छा खाने-पीने वाला आदमी है, पर रो रहा है। तो कोई आया उसके पास, उसने उससे पूछा कि "भाई! तुम रो क्यों रहे हो ? क्या दुःख है तुमको ?"

उसने कहा, "भाई! क्या बताऊँ मेरी अभी नई-नई शादी हुई है। मैं 70 साल का हूं, पर मेरी अभी नई-नई शादी हुई है और मेरी बीवी जो है वह 22 साल की लड़की है और बहुत ही, बहुत ही खूबसूरत है, देखने में वह लाजवाब है।"

तो उस आदमी ने कहा "भाई! यह तो अच्छी बात है। यह हुआ है तेरे साथ, तेरी बीवी है, तेरे को उससे प्यार है, देखने में वह अच्छी है तो तू रो क्यों रहा है ?"

उसने कहा — यही नहीं "मैंने अभी नया-नया घर लिया है और सबसे सुंदर घर है वह, संगमरमर का काम है उसमें, बहुत बड़ा घर है और हर एक चीज का प्रबंध है उस घर में।"

उस आदमी ने पूछा "भाई! इतना सबकुछ तेरे पास है — तेरे पास घर है, तेरी अभी-अभी नई-नई शादी हुई है तो रो क्यों रहा है ?"

उसने कहा — "मैं इसलिए रो रहा हूँ कि मेरे को मालूम नहीं कि मेरा घर कहाँ है, तो मैं कैसे जाऊं वापिस ?"

यह तो हुआ चुटकुला। अब कई लोग हैं जो यह भी समझें कि यह मज़ाकिया बात है। इतना सबकुछ है उसके पास पर उसको यह नहीं मालूम कि वह कहां है, पर इस चुटकुले को जरा आप अपनी तरफ भी तो देखिए “क्या हो सकता है यह आपके साथ भी हो रहा है कि सबकुछ है आपके पास पर आपको यह मालूम नहीं कि वह कहां है ?” जब मैं लोगों से कहता हूं कि "भाई जिस शांति की तुमको तलाश है, काहे के लिए तलाश रहे हो तुम, वह तो तुम्हारे पास है। वह तो पहले से ही तुम्हारे पास है।" तो लोगों का यह है कि "जी! तो कैसे मिलेगी?" कैसे क्या मिलेगी! पहले सबसे छोटी-सी चीज तो यह जानने की है कि “जिस चीज की तुमको तलाश है वह तुम्हारे अंदर है क्या तुम इस बात को स्वीकार करते हो या नहीं ?” जब स्वीकार ही नहीं करते हो इसके बारे में, सोच तो सकते हो इसके बारे में, पर स्वीकार नहीं करते हो। तो जब स्वीकार ही नहीं कर रहे हो, तो तुम्हारी आशाएं किस चीज पर बंधी हुई है कि “बाहर से आएगी, कुछ करना पड़ेगा” और यही लोग चाहते हैं। “मुझे क्या करना पड़ेगा शांति ढूंढने के लिए ? कहां से मिलेगी, कौन-सी चीज पढ़नी पड़ेगी, किस तीर्थ में जाना पड़ेगा, क्या व्रत रखना पड़ेगा ?” इन सारी चीजों में लोग लगे रहते हैं।

पर इन चीजों से नहीं, पहले तो यह स्वीकार करना है कि "जिस चीज की तुमको तलाश है, वह चीज तुम्हारे अंदर है।" जब यह मनुष्य जान लेता है, जो अच्छा — जैसे कई लोग हैं, यह तो उनको मालूम है कि "वह उससे खुश नहीं है, उससे खुश नहीं है, उससे खुश नहीं है, उससे खुश नहीं है।" उनमें तो जो नुक्स है वह एक सेकेंड के अंदर निकालने के लिए सब लोग तैयार हैं — "वह यह करती है, वह यह करता है, वह यह करता है, वह यह करता है, वह यह करता है, मेरे को यह पसंद नहीं है, मेरे को यह पसंद नहीं है।" परन्तु अपनी तरफ कोई नहीं देखता। अपनी तरफ कोई नहीं देखता कि तुममें क्या नुक्स है! किस तरीके से तुम इन सारी चीजों में, जो गड़बड़ हो रहा है, आसपास जिससे तुम बचना चाहते हो उसमें तुम्हारा क्या योगदान है ? तुम्हारा भी तो योगदान होगा उसमें, तुम्हारा क्या योगदान है ? यह कोई नहीं देखना चाहता। सिर्फ ऊँगली उधर करना चाहते हैं कि "वह यह कर रहा है, वह यह कर रहा है, वह यह कर रहा है, वह यह कर रहा है।" तो इससे किसी का फायदा नहीं होना है। इससे किसी को कुछ मिलेगा नहीं।

सबसे पहली चीज, कई चीजें हैं जो तुमको पसंद नहीं हैं। अगर कहीं तुम बैठे हुए हो और कोई कीड़ा यहां चल रहा है और तुम्हारा ध्यान, तुम देखते हो, तुम्हारा ध्यान जाता है वहां, तुम देखते हो कि ऐसे-ऐसे करके कीड़ा आ रहा है ऊपर, क्या करोगे ? क्या करोगे ? छोटी-सी चीज बस! यह थोड़े ही है कि "ओह! कीड़ा आ गया, कीड़ा आ गया, कीड़ा आ गया, कीड़ा आ गया, कीड़ा आ गया, कीड़ा आ गया, कीड़ा आ गया!" नहीं! मैंने देखा है लोगों को सांप दिखाई देता है कहीं और जिनको सांप से डर लगता है, सांप है उधर और वो भाग रहे हैं उधर दूसरी तरफ। यह नहीं कि सांप है, सांप है, सांप है चिल्ला भी रहे हैं, उनको डर भी लग रहा है और सांप को पकड़ने जा रहे हैं, ना! उल्टा भागते हैं, यही बात होती है। जो चीज तुमको पसंद नहीं है, जिस चीज से तुमको नफरत है उस चीज की तरफ क्यों भाग रहे हो ? उल्टा भागो और जब उल्टा भागोगे तुम तो निकलोगे। यह करना भूल जाते हैं लोग। "मेरे को यह पसंद नहीं है, मेरे को वह पसंद नहीं है, अब यह मेरे साथ हो रहा है, मेरे साथ वह हो रहा है।"

पर यह नहीं करते हैं उनको लगता है कि यह करेंगे तो फिर गड़बड़ हो जायेगी। गड़बड़ नहीं होगी, क्योंकि जो चीज है, जो सहानुभूति तुमको चाहिए वह भी तुम्हारे अंदर है, जो शांति तुमको चाहिए वह भी तुम्हारे अंदर है, धीरज भी तुम्हारे अंदर है और तुमको बचाने वाला भी तुम्हारे अंदर है, वह सारी चीजें भी तुम्हारे अंदर है। जैसे क्रोध कहां से आता है कोई टंकी बनी हुई है क्रोध की ? ना! क्रोध तुम्हारे अंदर है और तुम्हारे अंदर से ही आता है। जब तुम खुश होते हो तो वह खुशी कहां से आती है ? किसी टैंक से आती है ? नहीं, वह भी तुम्हारे अंदर से आती है। ठीक उसी प्रकार, ठीक उसी प्रकार जिस आनंद की तुमको तलाश है, जिस चैन की तुमको तलाश है, यह सारी चीजें तुम्हारे अंदर हैं। बाहर से कहीं इनका आना-जाना नहीं है और जबतक यह हम जानेंगे नहीं कि इस तरफ भागना है, जब मुसीबत आती है तो अंदर की तरफ भागना है। तब तक मुसीबत आएगी और हम लड़खड़ायेंगे, हमको पता नहीं लगेगा, हम हैरान होंगे और हमको लगेगा कि यह नहीं है ठीक, वह नहीं है ठीक, तो भाई! ऐसे कुछ नहीं होगा। अंदर की तरफ तुम जा सकते हो, तुम्हारे अंदर वह शक्ति है चाहे कोई भी मुसीबत तुम्हारे जीवन के अंदर आए तुम्हारे अंदर शक्ति है कि तुम उस मुसीबत का सामना कर सको और करो। कोई भी मुसीबत हो। डरने से कुछ नहीं होगा, मुसीबत कोई भी हो तुम्हारे अंदर वह हौसला होना चाहिए, क्योंकि तुम्हारे अंदर वह शक्ति है कि तुम उससे मुकाबला कर सकते हो। आनंद लो अपने जीवन के अंदर।

हां एक बात और है कि विदेश के अंदर "मदर्स डे" है, "मां का दिन" जिसे कहते हैं। हिंदुस्तान में पता नहीं मनाते हैं — कुछ लोग मनाते होंगें, कुछ लोग नहीं मनाते होंगें, पर जितनी भी माताएं हैं उनको मैं मुबारक देता हूँ इस मदर्स डे के लिए, माँ के दिन के लिए और आनंद लो अपने जीवन में।

जो पीस एजुकेशन प्रोग्राम की बात है, ट्रेनिंग की बात है उस पर काम हो रहा है और समय लगेगा क्योंकि जो था वह दूसरा प्रोग्राम है और हम चाहते हैं कि हिंदी में हो यह (जो हिंदी समझते हैं, उनके लिए हो) जो भारत में भी रहते हैं या कहीं भी रहते हैं और अंग्रेजी समझते हैं तो अंग्रेजी में तो होगा ही पीस एजुकेशन प्रोग्राम, उसका नाम अलग होगा, पर होगा। और जो हिंदी में करना चाहते हैं उनको थोड़ी-सी सब्र और रखनी पड़ेगी फिर हिंदी में भी वह होगा।

सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

लॉकडाउन 45 00:14:35 लॉकडाउन 45 Video Duration : 00:14:35 पीस एजुकेशन प्रोग्राम की ओर अग्रसर (9 मई, 2020)

प्रेम रावत जी:

यह जीवन है। अगर हमारी इच्छाओं की पूर्ति न भी हो, फिर भी हमको यह जीवन मिला हुआ है। हम कौन हैं, हम क्या हैं, हम भूल चुके हैं। एक आदमी कैनेडा से, जिसने कभी हाथी नहीं देखा था। उसकी एक दिन इच्छा हुई कि वह हाथी देखना चाहता है। तो उसने मालूम करने की कोशिश की कि कहां वह अच्छी तरीके से हाथी को देख सकेगा ? उसको किसी ने कहा कि ‘‘तू हिन्दुस्तान जा! साउथ में जा, वहां बड़े-बड़े हाथी हैं। वहां गांव हैं, जहां हाथियों को पाला जाता है और वहां जा करके तू हाथी देख सकता है।’’ तो उसने ठान ली और गया साउथ में। एक गांव में गया, वहां उसने देखा कि बहुत सारे हाथी एक जगह खड़े हुए हैं और साथ में, बगल में गांव का प्रधान बैठा हुक्का पी रहा है। तो उसने हाथियों को देखा, पहले कभी अपने जीवन में हाथियों को देखा नहीं था। उसको बड़ा अचम्भा हुआ कि ऐसे होते हैं हाथी! इतनी बड़ी सूंड है, इतने बड़े उनके कान हैं, इतना बड़ा वह जानवर है! इतने बड़े उसके दांत हैं। और वह यह पहचान सका कि हाथी बहुत ही शक्तिमान है! बहुत ही बलवान है!

फिर उसने देखा कि हाथी एक ही जगह हैं। हिल नहीं रहे हैं वहां से। कहीं जा नहीं रहे हैं। तो उसके मन में प्रश्न हुआ कि ‘‘यह भाग क्यों नहीं जाते ? यहां यह क्यों खड़े हुए हैं ?’’ तो उसने देखा कि एक बहुत पतली-सी रस्सी उनकी टांगों में बंधी हुई है और उसको पेड़ के साथ बांध रखा है और हाथी कहीं नहीं जा रहे हैं। तो उसके मन में प्रश्न आया कि ‘‘यह हाथी इतना बलवान जानवर है, यह डोर जो बांधी हुई है इसके पैर में, यह तो बहुत ही पतली है! इसको तो यह तोड़ सकता है!’’

तो वह प्रधान के पास गया। कहा, ‘‘प्रधान जी! क्या सचमुच में यह हाथी बलवान हैं ?’’

कहा, ‘‘बिल्कुल! यह तो बड़े-बड़े पेड़ उठा सकते हैं! पता नहीं, क्या-क्या यह कर सकते हैं! बहुत ही बलवान हैं!’’

तो कहा, ‘‘यह भाग क्यों नहीं जाते ? वह जो डोर, पतली-सी डोरी बांधी हुई है इनके टांगों पर, इसको तो यह तोड़ सकते हैं, नहीं ?’’

प्रधान ने कहा, ‘‘ हां बिल्कुल!’’

‘‘फिर क्यों नहीं तोड़ते हैं ?’’

कहा, ‘‘जब यह बच्चे थे तो इन्हीं डोरियों से इनको बांधा जाता था और जब यह बच्चे थे, तब यह इतने शक्तिशाली नहीं थे कि इस डोर को तोड़ सकें। धीरे-धीरे करके इसी डोर से बंधे रहना, इनको अहसास हो गया कि इस डोर को हम नहीं तोड़ सकते हैं। अब यह बड़े हो गये, बड़े हो गये, शक्तिशाली हैं, पर इन्हें यही अहसास होता है कि इस डोर को तोड़ नहीं पाएंगे। और इसलिए ये यहां बंधे हुए हैं।’’ हो गयी न बात ?

यही हाल हमलोगों का है। हम अपनी शक्ति को नहीं जानते हैं। हम अपनी शक्ति को नहीं पहचान पाते हैं, क्योंकि वह जो डोर, कल्पना की डोर, संस्कार की डोर, जो हमारे पर डाली हुई है, जब हम छोटे थे तो उसे तोड़ नहीं सकते थे, परंतु आज तोड़ सकते हैं, पर हमको ऐसा लगता है कि हम नहीं तोड़ पाएंगे, इसीलिए बंधे रहते हैं, बंधे रहते हैं, बंधे रहते हैं और गुलाम की तरह यह जिंदगी बिताते हैं। गुलामी किसकी ? उसकी नहीं, जिसकी गुलामी करनी चाहिए पर उसकी, जिसकी गुलामी करके कुछ नहीं मिलेगा। कुछ नहीं मिलेगा! जिसके पास न देने को कभी था, और न है और न रहेगा, उसकी गुलामी करते हैं।

मो सो कौन कुटिल खल कामी।

या तन दियो, ताहि बिसरायो, ऐसो नमक हरामी।।

भरि भरि उदर विषयों को ध्यावै, जैसे सूकर ग्रामी।।

सूर पतित को ठौर कहां है, सुनिये श्रीपति स्वामी।।

कहां जाऊं ? क्या करूं ? चक्की चल रही है समय की, इसको मैं रोक नहीं सकता। चक्की चल रही है समय की, इसको मैं रोक नहीं सकता। मैं कोशिश करता हूं, इसको धीमा करने की, पर यह धीमी होती नहीं है। चक्की चल रही है, चक्की चल रही है, चक्की चल रही है, चक्की चल रही है, चक्की चल रही है और मुझे मालूम है कि घुन की तरह एक दिन मुझे पीसना है। परंतु घुन, जो गेहूं में है — उसके बारे में कभी सोचा आपने ? गेहूं रखते हैं न बोरी में — यहां चक्की है, यहां बोरी है। उसमें गेहूं रखा हुआ है और घुन उसमें है। घुन की हालत के बारे में कभी आपने सोचा है ? कितना प्रसन्न है वह घुन! एक पूरी बोरी गेहूं की उसकी है! और वह जितना खाना चाहे, खा सकता है और खा रहा है। उसको नहीं मालूम कि क्या हो रहा है! क्या होने वाला है, उसको वह भूल गया है।

एक समय था कि तुममें वह हिम्मत थी, वह साहस था, जिसकी जितनी दाद दो, उतना ही कम होगा। एक ऐसा तुमने कुछ किया अपने जीवन के अंदर, जो इतने साहस का काम था कि पूछो मत! और वह सबने किया हुआ है। सबने! क्या है ? क्या था ? जब तुमने चलना सीखा। सिर्फ एक चाह थी और उठे तुम। और जैसे उठे, अपने पैरों पर खड़े होने की कोशिश की, तुम लड़खड़ा गए। क्योंकि तुम्हारे पैर इतने मजबूत नहीं थे कि तुम्हारा वजन उठा सकें। गिर गए। गिर गए! गिरे नहीं ? गिर गए! नाकामयाब रहे!

फिर क्या किया ? फिर उठे। फिर उठे! फिर कोशिश की। फिर नाकामयाब रहे और गिर गए! उसके बाद फिर क्या किया ? फिर उठे। ऐसा करते-करते-करते तुम्हारी टांगें मजबूत होती गयीं, मजबूत होती गयीं, मजबूत होती गयीं, मजबूत होती गयीं। क्योंकि तुम नाकाम होते तो जरूर रहे। नाकामयाब होते तो जरूर रहे, परंतु तुमने उस बात को कभी स्वीकार नहीं किया कि ‘‘मैं नाकाम रहा, मैं नाकामयाब रहा!’’ उठते रहे साहस के साथ। फेल होते रहे, पर फेलियर को कभी अपने दिल तक नहीं आने दिया। अपने तक नहीं पहुंचने दिया। और एक दिन क्या हुआ ? तुमने पहला कदम लिया, फिर दूसरा, फिर तीसरा, फिर चौथा और तुम चलने लगे। और जब चलने लगे तो तुमने एक ऐसा ताला अपने लिए खोल दिया कि ‘‘अब तुम इस सारी दुनिया में कहीं भी जा सकते हो!’’

दीवालें टूट गयीं! फाटक खुल गये! रस्सियां गिर गयीं! वह जो रस्सियां — चल पाएगा, नहीं चल पाएगा, कभी यह नहीं रहा। साहस! आज उसी की हालत कैसी है ? छोटे-से काम में फेल होते हैं! सिर पकड़ लेते हैं — ‘‘हमसे नहीं होगा! हम नहीं कर पाएंगे! हमारे भाग्य — भाग्य, हमारे कर्म, हमारे कर्म — हमारा दुर्भाग्य है। हमारे जीवन के अंदर बहुत ही दुर्भाग्य है! इसलिए यह नहीं हो रहा है। हम सफल नहीं हो पाएंगे।’’ ना। गिरे, फिर खड़े हुए! यह तो नाम ही नहीं लेना है कि हो नहीं सकता।

अब लोग आते हैं हमारे पास कि ‘‘जी! हमारी यह समस्या है। हम क्या करें ?’’

मैंने कहा, पहले तुम अपनी समस्या को समझो! तुम नये हो, समस्या पुरानी है। यह समस्या बहुत समय से है यहां। यह पता नहीं, कितने आदमियों को, कितने लोगों को इस समस्या ने सताया हुआ है! समस्या नई नहीं है, तुम नये हो। और तुम्हारे जाने के बाद यह किसी और को पकड़ेगी। तुम समस्या का हल नहीं — समस्या से दूर रहो। अपने पास मत आने दो उसको! क्यों ?

जो कुछ भी तुम्हारी निराशा है अपने जीवन के अंदर, जिसको छोड़ने के लिए तैयार हो। सिर्फ वही बात है।

तुम वह हाथी हो, तुम वही हाथी हो, जो इतना शक्तिशाली है कि अगर वह सचमुच में अपना कदम बढ़ाए आगे तो वह रस्सी की कोई ऐसी शक्ति नहीं है उसके अंदर कि वह तुमको रोक पाए। परंतु वह जो संस्कार तुमने अपने में डाले हुए हैं, ‘‘इसको मैं कभी तोड़ नहीं पाऊंगा’’, जिस दिन तुम वह जो असली साहस है, जो तुम्हारे पास एक समय था, जब तुम उस साहस को आगे लाओगे और उस कदम को बढ़ाओगे, उस दिन तुम्हारी जिंदगी बिल्कुल बदल जाएगी क्योंकि उस दिन — उस दिन तुम उसके हो जाओगे, जो तुम्हारे मन के मंदिर में है। उस दिन उस मंदिर के दरवाजे खुल जाएंगे। किसी और के लिए नहीं, तुम्हारे लिए। तुम्हारे लिए!

तो सबसे बड़ी बात है कि जो कुछ भी हो रहा है, होगा। यह मेरे जीवन की बात नहीं है, तुम्हारे जीवन की बात है। तुम्हारी खुशी! मेरी खुशी का जिम्मेवार मैं हूं! तुम्हारी खुशी के जिम्मेवार तुम हो! मेरे जीवन का जिम्मेवार मैं हूं, तुम्हारे जीवन के जिम्मेवार तुम हो, और कोई नहीं। और यह किसने बनाया है कानून ? उसी ने, जिसने तुमको बनाया, मुझे बनाया और इस सारी पृथ्वी को बनाया। समझो और अपने जीवन को सफल करो!

लॉकडाउन 44 00:23:35 लॉकडाउन 44 Video Duration : 00:23:35 पीस एजुकेशन प्रोग्राम की ओर अग्रसर (8 मई, 2020)

संवाद : पी.टी.सी. न्यूज के साथ

ऐंकर : एक पंजाबी में ये कहावत है — "पेट ना देइयां रोटियां, त सबे गलां खोटियां।" इसका मतलब यह है कि आपके पास खाना नहीं है, आपके पास रोजगार नहीं है, आपके पास एजुकेशन नहीं है, आपके पास घर नहीं है तो आप जितनी मर्जी शांति की बातें, पीस की बातें, प्यार-मोहब्बत की बातें करो, वो उसको बेमायने सी लगेंगी। क्योंकि जो मुझे चाहिए — आज मुझे भूख लगी है, मुझे रोटी चाहिए। अगर मेरे को बोलो कि तुम शांत रहो, अंदर से शांत हो जाओ, वो कैसे हो सकता है ? How is it possible?

प्रेम रावत जी : देखिए! कुछ चीजें हैं, जो शरीर की जरूरत है। जो शरीर की जरूरत है। एक तो है स्वांस। बिना हवा के आप ज्यादा मिनटों में यहां से चल बसेंगे। खाने की जरूरत है, पानी की जरूरत है, गर्मी की जरूरत है — ये तो हैं जरूरतें। और इन जरूरतों को पूरा होना बहुत जरूरी है। परंतु एक और जरूरत है। अब मैं जरूरत की बात कर रहा हूं, अपने सपनों की बात नहीं कर रहा हूं। क्योंकि अगर आपके पास — अगर आप एक रेगिस्तान में खो गए और आपको प्यास लगी है। प्यास तो लगेगी! पानी की आपको जरूरत है। और आपके पास सोने की घड़ी है। तो वह सोने की घड़ी करेगी क्या ? वह तो पानी देने से रही! तो जो जरूरतें हैं मनुष्य की, वह पूरी होनी चाहिए।

परंतु मनुष्य — आज का जो मनुष्य है, उसकी जरूरतें क्या हैं और उसकी चाहत क्या है ? इसमें वो फर्क नहीं देख रहा है। वो अपनी चाहतों को अपनी जरूरत समझ रहा है। परंतु जो चाहत हैं, वो पूरी हों या न हों, जीवित रहने के लिए वो चीजें, जो बिल्कुल जरूरी हैं, वो चाहिए। और इस पृथ्वी पर हमारा जन्म इसीलिए मुनासिब हुआ, क्योंकि वो जो चीजें, जिनकी हमको सख्त जरूरत है, वो सब उपलब्ध हैं।

ऐंकर : हूं! शांति का पैमाना क्या है ? मतलब, for example, हम कहते हैं न कि यह बंदा बहुत शांत स्वभाव का है। मौन रहना या आप चुपकर के बैठे हो, किसी की बात सुन रहे हो। उसके अंदर जो खलबली मच रही है, वह कोई नहीं देख रहा, "यह बंदा बहुत शांत स्वभाव का है।"

मतलब, वह अंदर से मर रहा है, कुछ भी हो रहा है उसको। शक्ल से लगता है कि ‘‘यह तो बंदा बहुत गऊ है जी! यह तो बहुत शांत है।’’ वह पैमाना कौन सेट करता है या क्या पैमाना है वो ?

प्रेम रावत जी : ये समाज ने सेट किया है। ये मनुष्य सेट करेगा तब, जब वो अपनी तरफ देखना शुरू करेगा। जब मनुष्य अपने आपको ही नहीं जानता है तो फिर वो इन्हीं चीजों की तरफ जाएगा कि "ये ज्यादा बोलता नहीं है। बड़ा शांत प्रवृत्ति का आदमी है!"

पर उसके मन में क्या हो रहा है ? उसके मन में क्या चल रहा है ? वहां होती है न अशांति! क्योंकि जब अंदर सब — उसको मालूम है! उसको मालूम है कि क्या उसकी चाहतें हैं, क्या पूरी नहीं हुईं हैं ? और वह ये बता नहीं पा रहा है कि चाहत क्या है और जरूरत क्या है कि मैं क्या चाहता हूं अपनी जिंदगी में ?

मैं चाहता हूं कि मेरी जिंदगी में सुकून हो। मेरी जिंदगी में चैन हो! मैं — जो मेरे अंदर चीज है — जिसके लिए कहा —

मृग नाभि कुंडल बसे, मृग ढूंढ़े बन माहिं।

ऐसे घट घट ब्रह्म हैं, दुनिया जानत नाहिं।।

तो मेरे अंदर वो जो चीज बैठी है, जो इस स्वांस को चला रही है, उसको मैं जानना चाहता हूं। उसको मैं समझना चाहता हूं। क्योंकि अगर मैं उसको समझूंगा, उसको जानूंगा तो मुझे सचमुच में सुकून आएगा। अब इसका मतलब यह नहीं है कि मेरे को — मेरी जरूरतें पूरी नहीं होनी चाहिए। वो तो होनी चाहिए।

ऐंकर : बिल्कुल ठीक है!

प्रेम रावत जी : चाहत बदलती रहती है।

मन के बहुतक रंग हैं, छिन छिन बदले सोय।

एक ही रंग में जो रहै, ऐसा बिरला कोय।।

तो मन तो कभी इधर भागता है, कभी इधर भागता है। इसीलिए तो हमारे घर में इतनी सारी चीजें पड़ी हुई हैं और जिनको हम चाहते भी नहीं हैं, वो भी पड़ी हुई हैं।

ऐंकर : वो भी पड़ी हैं!

प्रेम रावत जी : क्योंकि एक समय था, "नहीं, नहीं! ये बड़ा अच्छा रहेगा, ये बड़ा अच्छा रहेगा, बड़ा अच्छा रहेगा", और अब उनसे चाहत खत्म हो गई।

तो ये तो हुआ खिलौना। बच्चा बाजार में जाता है, अपनी मां के साथ जाता है। खिलौनों को देखता है, खिलौनों की तरफ आकर्षित होता है। परंतु उसको खिलौने चाहिए या मां चाहिए ? मां है........

ऐंकर : तो खिलौना अच्छा लग रहा है।

प्रेम रावत जी : .........तो खिलौना ठीक है। मां हटा दो, तो रोने लगेगा, खिलौना भी काम नहीं करेगा। तो ये मनुष्य ने जो बाहर खिलौने बना रखे हैं, जिनके पीछे वो आज भाग रहा है। यह भी नहीं समझ रहा है कि मैं कहां हूं, किधर जाऊं, क्या करूं ? सपने बढ़ रहे हैं और उन्हीं के पीछे वो लगा हुआ है।

ऐंकर : अक्सर ये भी देखने और सुनने में मिलता है। आमतौर पर यह बात बोली जाती है कि यह अभी young है। इसकी बड़ी उम्र है। इसके अंदर बहुत बुलबुले हैं। अभी इससे शांति की बात मत करो। एक उम्र का पड़ाव आएगा, जब यह शांत हो जाएगा। मगर जिंदगी का तज़ुर्बा मेरा भी 14-15 साल हो गए मीडिया में, आज भी 80 साल के बुजुर्ग के अंदर भी शांति नहीं मैंने देखी कभी। तो ये उम्र का तकाज़ा और अंदर शांति लेकर आना और ये पदार्थवादी चीजें — Materialism से, इनका कोई लेना-देना होता है ?

प्रेम रावत जी : देखिए! जवान हैं, बुड्ढा है। अगर किसी के पैर के नीचे ऐसी कोई तारीख लिखी हुई है कि उसने इस दिन जाना है तो उस हिसाब से उसको जवान कहा जा सकता है।

ऐंकर : वो प्लान कर ले अपना फिर।

प्रेम रावत जी : फिर वो अपना प्लानिंग कर ले! तो किसके पैर के ऊपर या पैर के नीचे वो तारीख लिखी हुई है ? तो जवान क्या हुआ ? जब कोई लड़का है 18 साल का है, किसी वजह से चले गया। सब लोगों को दुःख होता है। ‘‘वो तो बहुत जवान था!’’

भाई! बात ये है कि इसी चीज के बारे में, महाभारत में भी यही बात हुई कि जब युधिष्ठिर — उनको प्यास लगी। युधिष्ठिर ने भेजा तो नकुल गया, सहदेव गया। फिर उसके बाद भीम गया। उसके बाद अर्जुन गया। ये सब गए।

तो युधिष्ठिर ने पूछा अपने से कि "कहां गए वो लोग ? पानी अब तक लेकर नहीं आए ?"

प्यास से बहुत व्याकुल हो रहा था वह पानी के बिना। तो जब वह गया तो उसने देखा कि वहां एक तालाब है और उसमें बड़ा अच्छा पानी है। और सारे उसके भाई मरे पड़े हैं। तब युधिष्ठिर पानी की तरफ गया पहले। उसको इतनी प्यास लगी थी कि पानी की तरफ गया पहले। तो जैसे ही वह पानी को छूने लगा तो उसका जो देवता था उस तालाब का, वह बाहर निकला।

उसने कहा कि "पानी को हाथ मत लगा। तू अगर यह पानी पीएगा तो मर जाएगा। तेरा यही हाल होगा, जो तेरे भाइयों के साथ हुआ है। पहले मेरे प्रश्नों का जवाब दे।"

तो उसने खूब सारे प्रश्न पूछे। पर एक प्रश्न उसने पूछा युधिष्ठिर से कि "सबसे विचित्र चीज क्या है ?"

युधिष्ठिर जवाब देता है, "सबसे विचित्र चीज है कि मनुष्य को मालूम है कि एक दिन उसको जाना है, पर वो जीता ऐसे है, जैसे कभी मरेगा नहीं। यही सबसे बड़ा चक्कर है।"

जो चीज — अगर आप हवाई जहाज में बैठे हैं, आराम से बैठे हैं, सबकुछ ठीक है। और हवाई जहाज अपनी मंजिल पर जाकर उतर जाता है तो आप उसमें बैठे रहेंगे ?

ऐंकर : उतरेंगे।

प्रेम रावत जी : पर मनुष्य के साथ यही चक्कर है। वो बैठना चाहता है। अब उसको निकालने — कहा जा रहा है कि "भाई! चलो यहां से, तुमको जहां पहुंचना है, तुम पहुंच गए।"

तो जहां तक कोई वृद्ध हो, कोई जवान हो, इसका जीवन से कुछ लेना-देना नहीं है।

ऐंकर : जो यूथ है आज का, उसमें पोटेंशियल है, वो एग्रेसिव भी है, उसके पास स्किल्स भी हैं, मगर कुछ कारणों की वजह से न उसके पास जॉब है, न उसके पास कुछ ढंग का घर-बार है, तो उसको आप कैसे कह पाएंगे कि आप अभी भी शांत रहो ?

प्रेम रावत जी : शांति का मतलब यह नहीं हुआ कि वह एक बैंगन का भरता बन जाए या सरसों का साग बन जाए। बस पड़ा है तो जहां पड़ा हुआ है। जिनके पास शांति है, उनके पास भी वो डाइनैमिक्स है। वो भी उत्साह से इस जीवन को जी सकते हैं। जो जवान हैं, वो चाहते हैं ये सबकुछ उनकी जिंदगी में हो, परंतु उनकी असली शक्ति — ताकि ये सबकुछ संभव हो सके — तभी आएगी, जब वो अंदर से शांत हों। क्योंकि देखिए! जब कोई भी दुःख आता है हमारे जीवन में तो वह ऐलान करके नहीं आता है।

ऐंकर : बिल्कुल ठीक!

प्रेम रावत जी : हम जब उसको expect ही नहीं कर रहे होते हैं, तब आ जाता है।

ऐंकर : तब आ जाता है।

प्रेम रावत जी : तो उसके लिए क्या चाहिए ? उसके लिए चाहिए — अंदर से शक्ति! जिसके पास अंदर से शक्ति नहीं है, वो हिल जाता है। जब उसके सपने पूरे नहीं होते हैं, वो हिल जाता है।

अब आप enthusiasm की बात कर रहे हैं, जवानों की बात कर रहे हैं और ये अखबार में भी आता है कि उस जवान ने अपनी जान ले ली। क्या हुआ ?

जिस परिस्थिति से वो हिला, वह अंदर तक हिल गया। तो अगर अंदर तक हिल गया तो इसका मतलब है कि अंदर की जो शक्ति है, उसके पास नहीं थी और वो होनी चाहिए।

ऐंकर : मैंने कहीं पढ़ा है कि आप सुधार-घर, जो जेल होती हैं, वहां पर भी जाते हैं। कैदियों के साथ भी आप विचार-विमर्श करते हैं। तो आमतौर पर भी आप seminars वगैरह लगाते हैं। क्या फर्क आपको दिखता है ? क्योंकि वो आपसे बात भी करते होंगे, communication भी होता है। जो अंदर लोग हैं उनमें और जो बाहर लोग हैं उनमें — अंदर की परिस्थिति का क्या अंतर है ?

प्रेम रावत जी : देखिए जी! बड़ी गलतफहमी है कि जो लोग बाहर हैं, वो समझते हैं कि वो स्वतंत्र हैं.....

ऐंकर : मैंने इसीलिए सवाल ये पूछा।

प्रेम रावत जी : ....बहुत ही बड़ी गलतफहमी है। क्योंकि बात यह है कि अगर हमारे घर में, बाहर जाली नहीं लगी हुई है ढंग की तो, हम सो नहीं सकेंगे रात को कि कोई चोर आ जाएगा। बस, इतनी बात है.......

ऐंकर : अंदर वाले को तो पता ही नहीं, कौन आ गया ?

प्रेम रावत जी : हां! उनके पास तो गार्ड भी हैं। मैं तो कहता हूं उनसे कि तुम्हारे पास तो गार्ड भी हैं, तुम्हारे पास तो जाली भी है। तुम्हारे पास प्रोटेक्शन है।

पर वो खुश क्यों नहीं हैं ? वो भी खुश नहीं हैं और जो बाहर वाले हैं, वो भी खुश नहीं हैं। वो समझ रहे हैं कि —

‘‘हम जेल में हैं, ये कितनी बुरी बात है!’’

और जो बाहर वाले हैं, वो समझ रहे हैं कि ‘‘मेरे पास ये नहीं है, ये नहीं है, ये नहीं है, ये कितनी बुरी बात है!’’ और बात यह है कि जब कोई जेल में जाता है, किसी वजह से कुछ हुआ, कोई हादसा हुआ उसके साथ, जेल में जाता है। तो वह पुलिस को blame करता है। दोष पुलिस ने — अगर पुलिस नहीं होती तो मैं यहां नहीं होता। वह अपने दोस्तों को दोष देता है, अपने परिवार को दोष देता है, जज को दोष देता है, गवर्नमेंट को दोष देता है। परंतु अपने से वह कुछ नहीं कहता है।

ऐंकर : बिल्कुल ठीक।

प्रेम रावत जी : और जब मैं जाता हूं और उनको सुनाता हूं कि तुम अपने बारे में जानो! और जब वो जानते हैं — जब जानने लगते हैं अपने बारे में, तब उनको सही में अहसास आता है कि —

‘‘नहीं, ये उनका दोष नहीं है, ये मैंने किया। और सबसे बड़ी बात कि जब मैंने किया तो मैं तो अपने आपको बदल सकता हूं। मैं गवर्नमेंट को नहीं बदल सकता, मैं पुलिस वालों को नहीं बदल सकता, मैं जज को नहीं बदल सकता। पर मैं अपने आपको बदल सकता हूं।’’

और जिस दिन ये होता है, उस दिन उनकी सारी — जो समय वहां पर है — सारी कहानी उनकी बदलने लगती है। अपने आपको जानने लगते हैं। और यही हालत बाहर वालों की भी है कि ‘‘ये हो, तब अच्छा होगा। ये हो, तब अच्छा होगा। ये हो, तब अच्छा होगा।’’

ऐंकर : उसके पास है, मेरे पास नहीं है ये। वो इसलिए अच्छा है।

प्रेम रावत जी : तो जिस दिन उनको पता लगने लगता है कि ‘‘नहीं, मैं, मैं कौन हूं ?’’ यही नहीं मालूम कि मैं कौन हूं ?

अभी मैं सुना रहा था कि किसी से पूछा जाए कि तुम कहां से आए ? कहां जाओगे ? तुम हो कौन ? और अगर तीनों प्रश्नों का जवाब मिले, ‘‘पता नहीं, मैं कहां से आया! पता नहीं, मैं कहां जा रहा हूं! और पता नहीं, मैं हूं कौन!’’

तो हम तो सोचेंगे, ‘‘ये पागल है।’’

परंतु हमारे साथ भी तो यही हो रहा है ?

‘‘कहां से आए?’’ किसी को नहीं मालूम।

‘‘कहां जाएंगे ?’’ किसी को नहीं मालूम।

‘‘कौन हो ?’’ ये भी नहीं मालूम।

तो इसलिए ये बहुत जरूरी है कि हम अपने आपको जानें! और ये है शांति की सबसे पहली सीढ़ी। जो शांति की पहली सीढ़ी है, वो यहां से शुरू होती है।

ऐंकर : ठीक है! बिल्कुल ठीक है! एक आखिरी question! मैं थोड़ा-सा पर्सनल आपसे पूछूंगा। ये हमारे समाज की एक प्रवृत्ति बन गई है कि कोई भी बंदा कुछ अच्छा काम कर रहा है या कोई noble cause कर रहा है तो दिमाग automatically पूछने लगता है — ‘‘ये प्रेम रावत जी क्यों ऐसा कर रहे हैं ? ये प्रेम रावत जी शांति के दूत क्यों बने हुए हैं ?’’

ऐसा phenomena हमारे दिमाग में जरूर आता है। इसके पीछे उनकी क्या मंशा हो सकती है ? मैं डाइरेक्ट आपसे पूछ लेता हूं।

प्रेम रावत जी : बात यह है कि जब मैं छोटा था तो मैंने देखा कि लोग, जो उनके जीवन में असली चीज थी — असली चीज, जिसके लिए कहा है कि —

भीखा भूखा कोई नहीं, सबकी गठरी लाल।

गठरी खोलना भूल गए, इस विधि भए कंगाल।।

तो मैं देख रहा था कि सारा संसार कंगाल हो रहा है, परंतु उसके अंदर की जो गठरी है, वो कोई नहीं खोल रहा है। मैं आपको एक बात बताऊं। जब मैं लोगों को यह बात सुनाता हूं, उन लोगों को मेरी बात समझ में आती है। उनके मुंह में मुस्कान आती है, उनको होंठों पर मुस्कान आती है।

ऐंकर : इससे अच्छी कमाई कोई हो नहीं सकती।

प्रेम रावत जी : तो उससे आपको जो मिलता है न! आपको जो मिलता है, वो एक ऐसा उपहार है कि पूछिए मत! और ये मैं करता रहूंगा। जबतक ये स्वांस मेरे अंदर आ रहा है, जा रहा है, मैं करता रहूंगा।

ऐंकर : हूं! जिंदगी का कोई गोल, जहां पर लगे कि बस! अब ठीक है ?

प्रेम रावत जी : नहीं। जबतक आनंद है, तबतक आनंद है। उसके बाद...

ऐंकर : हमारा भी कोई पता नहीं।

प्रेम रावत जी : किसी का नहीं पता।

ऐंकर : बहुत-बहुत धन्यवाद प्रेम रावत जी! हमसे बातचीत करने के लिए।

लॉकडाउन 43 00:26:43 लॉकडाउन 43 Video Duration : 00:26:43 पीस एजुकेशन प्रोग्राम की ओर अग्रसर (7 मई, 2020)

प्रेम रावत:

दरिया सोया सकल जग, जागत नहीं है कोय।

जागे में फिर जागना, जागा कहिये सोय।।

दरिया सोया सकल जग — कोई exception नहीं है। यह नहीं है कि यहां का समाज नहीं सोया हुआ है या वहां का समाज नहीं सोया हुआ है।

दरिया सोया सकल जग, जागत नहीं है कोय।

और जागे में फिर जागना, जागा कहिये सोय।।

सोचने की बात है कि जो कुछ भी इस संसार के अंदर हो रहा है, क्या सचमुच में उसमें लोग फिर भी सोये हुए हैं ? All the things that are happening, all the technology, all the creations of things. यहसब सोने में हो रहा है ?

ज्यों तिल माहीं तेल है, ज्यों चकमक में आग।

तेरा सांई तुझ में, जाग सके तो जाग।

फिर सोने की बात हो गयी कि इस फैक्ट्स से हम वाकिफ़ नहीं हैं कि जिस चीज की हमको तलाश है, वह हमारे अंदर है। अगर इस संसार की हालत को देखते हुए अगर कोई प्रश्न उठता है तो वह यह प्रश्न उठता है कि ठीक है, और चीजों के लिए हम खूब कोशिश करते हैं — जगह-जगह बैंक्स हैं और एक नहीं है, हजारों-लाखों बैंक्स हैं इस संसार में और उनकी लाखों-लाखों शाखाएं हैं इस संसार के अंदर।

पर यह सारी चीजें होने के बावजूद हम शांति के लिए क्या कर रहे हैं ? शांति क्यों नहीं है हमारे पास ? क्यों आज लड़ाईयां हो रही हैं ? हम बैठ करके यहां क्यों नहीं चर्चा कर रहे हैं कि कितनी सुंदर बात है कि इस संसार के अंदर लोगों ने अपने जीवन में शांति को सलेक्ट किया है, शांति को चूज़ किया है। आज जो बातें होती हैं लोगों के बीच में, वो यह होती हैं कि यह लड़ाईयां कब खत्म होंगी ? लड़ाई अगर खत्म भी हो जाये तो लड़ाई के इफेक्ट्स खत्म नहीं होते हैं।

So who is going to ask the question ? कौन पूछेगा यह प्रश्न कि जिस दिशा में हम जा रहे हैं, क्या वह दिशा ठीक है ? क्या सचमुच में उससे मानव समाज का कल्याण होगा ? क्योंकि आज यह देखना जरूरी है कि मनुष्य को क्या चाहिए ? What are the needs of human beings? What are we need? क्या हमारी जरूरत है ? स्वांस लेने के लिए हवा की जरूरत है। स्वांस लेने के लिए हवा की जरूरत है। और अगर यह गवर्नमेंटों के दायरे में आ गया किसी दिन तो उस पर भी टैक्स लग जाएगा। कोई मरना अपनी — मतलब, अपनी इच्छा से थोड़े ही जाता है, पर मृत्यु टैक्स भी है। तो हवा की जरूरत है। भोजन की जरूरत है। सिर पर छत की जरूरत है। पानी की जरूरत है। और एक चीज और! शांति की जरूरत है। अशांत मनुष्य किसी भी हालत में संतुष्ट नहीं हो सकता, कोई भी हालत हो। अगर उसके अंदर असंतुष्टता है तो वह किसी भी हालत में संतुष्ट नहीं होगा।

गुस्सा जो हमारे में है, यह थोड़े ही है कि हम घर छोड़ देते हैं उसको, जब दिन में चलते हैं ? गुस्सा हमारे साथ हमेशा चलता है। हँसी हमारे साथ हमेशा चलती है। गुस्सा हमारे साथ हमेशा चलता है। ईर्ष्या-द्वेष, प्यार, kindness, compassion ये सारी चीजें अच्छी और बुरी हमारे साथ हमेशा चलती हैं। जहां हम जाते हैं, इनके बिना नहीं जा सकते। यह गुस्सा कोई ऐसी चीज नहीं है कि इसको निकाल करके रख दिया कि अब मैं गुस्सा नहीं होऊंगा। मैं गुस्सा घर में — अगर यह होता तो फिर तो वाह-वाह होती। फिर तो traffic lights की जरूरत नहीं होती, सिपाहियों की जरूरत नहीं होती बाहर! मतलब, कोई गुस्सा ही नहीं करेगा — सब नम्रता से। पर नहीं। क्या होता है ? रोड रेज़! क्यों ? वह गुस्सा है साथ में। दरवाजा बंद किया। औरों को तो आपने कह दिया कि अंदर तुम नहीं आ सकते हो, परंतु तुम्हारे साथ अंदर क्या-क्या आ गया है, क्या तुमको मालूम है ? जब अपने कमरे में रात को सोने के लिए जाते हो आप, दरवाजा बंद कर देते हो, ताकि stranger कोई अंदर न आए, आपको disturb न करे कोई। नहीं ? इसीलिए तो बंद करते हो दरवाजा बंद ? कोई disturb न करे। आपकी private space है।

कोई disturb न करे। पर असली में disturb करने वाले तो सब आ गये आपके साथ! Fear वह तो आ गये अंदर! भूत आया या नहीं, यह नहीं मालूम, पर भूत का डर तो आ गया साथ में! वह तो साथ में ही सोयेगा! Modesty के लिए कपड़े पहनते हैं, ताकि हमको कोई देख न ले। जिस हालत में हम नहीं दिखाना चाहते हैं अपने को। गुस्से से modesty क्या उठायेंगे आप ? जब आप गुस्सा होते हैं you are naked! नंगे हैं आप! उस समय आपके पास कोई barrier नहीं है। आप वह कह रहे हैं, जो आप कहना नहीं चाहते हैं। आप उस तरीके से behave कर रहे हैं, जिस तरीके से आप नहीं चाहते हैं कि कोई आपको देखे, फिर भी हो रहा है। क्योंकि यह गुस्सा साथ में ही गया। तो जब दरिया महाराज ने कहा कि -

दरिया सोया सकल जग, जागत नहीं है कोय।

हम सब सो रहे हैं एक नींद में। और सिर्फ हमारे पास इसका एक excuse है कि नहीं जी, मेरी तो आँखें खुली हुई हैं। मैं सो थोड़े ही रहा हूं ? मैं तो बैठा हुआ हूं, अपनी कुर्सी पर बैठा हूं, मेरी आँख खुली हुई है, मैं सुन रहा हूं, मैं देख रहा हूं। आप कैसे कह सकते हैं कि सो रहा हूं ? और जब आप सो रहे होते हैं तो क्या-क्या नहीं होता है! हवाई जहाज में उड़ रहे हैं। अपनी girlfriend के साथ पार्टी में हैं और girlfriend है ही नहीं! boyfriend के साथ बात हो रही है — न cellphone है, न boyfriend है।

“दरिया सोया सकल जग” — क्या सपना है, क्या सपना नहीं है ? क्या सपना है, क्या सपना नहीं है, यह हमको नहीं मालूम। इतना हमको मालूम है कि आपका जन्म हुआ। यह कैसे मालूम है हमको ? भला बताइये। देखिए! एक-दूसरे को देखिए, जो आपके आसपास हैं। वह इसलिए बैठे हैं यहां कुर्सी पर, आपको इसलिए दिखाई दे रहे हैं वह, क्योंकि उनका जन्म हुआ। जन्म नहीं होता और फिर दिखाई देते तो फिर वह बात problematic है। फिर आप hallucinate कर रहे हैं। तो जन्म हुआ और आज आप जीवित हैं। आज आप जीवित हैं। और क्योंकि आप जवान हैं, आपको यह बात पसंद नहीं आयेगी कि एक दिन आप जीवित नहीं होंगे। तो यह fact है। यह fiction नहीं है। कितने दिन के लिए आप जीवित हैं ? उसके ऊपर जरा ध्यान दीजिए।

Even if you live for hundred years, hundred years. बहुत होता है सौ साल! hundred years कितने दिन हुए ? 36 thousand 500 not 3 hundred & 65 thousand. जवान लोग यही जवाब देते हैं, 3 hundred & 65 thousand (wishful thinking) 3 hundred & 65 नहीं thousand, 36 thousand 500 days. यह पर्याप्त हैं ? ज्यादा नहीं हैं। थोड़े हैं। आज हिन्दुस्तान में 36 thousand 500 rupees का आप क्या खरीद सकेंगे ? बड़े रेस्टोरेंट में आधा खाना — क्या खरीद सकेंगे ? ज्यादा कुछ नहीं!

36 thousand ज्यादा नहीं हैं। 36 thousand 500 hundred! और हमको तो हमेशा ही अचंभा होता है। जब हिन्दुस्तान में थे हम पहले, तो पांच रुपये में पूरा खाना खा लो! अब पांच रुपये में coffee नहीं मिलेगी। और वह उस जमाने की बात कर रहे हैं, जब 10 पैसे में चाय का गिलास मिल जाता था। पर 36 thousand 500 ज्यादा नहीं होते हैं तो — अगर ज्यादा नहीं हैं तो आप क्या करना चाहते हैं अपनी जिंदगी के अंदर ? क्या ऐसी चीज है ?

आप उन्नति करना चाहते हैं। आप bright future चाहते हैं। आप चाहते हैं कि इस institution से आप graduate हों। अगर in a with honors, उतना ही बढ़िया रहेगा और आपको अच्छी नौकरी मिले। और आपको अच्छा jobs मिले, ताकि आप खूब धन कमा सकें, फिर मज़ा ही मज़ा होगा, क्योंकि पैसा ही पैसा होगा! पर होता क्या है ? क्या आपको मालूम है, क्या होता है ? असली में क्या होता है ? क्योंकि हम उन लोगों से भी बात करते हैं, उन लोगों को भी हम सुनाते हैं, उन लोगों से भी हम चर्चा करते हैं तो होता क्या है ?

एक आदमी है, graduate किया, अच्छी job, नौकरी ढूंढ़ी, company के पास गये तो company ने सारी qualification देखी और कहा कि ठीक है, आप हमको अपनी expertise offer कीजिए। हम आपको पैसा offer करेंगे। क्योंकि trade यह है कि आपके हैं सपने, जो आप पूरा करना चाहते हैं। अब उस सपने में क्या-क्या है ? बीच-बंगला है, बढ़िया apartment है, गाड़ी है, wife है, children हैं — जो भी आपका सपना है। है! और यह बात भी निश्चित है कि bolly-holly organisation जो है — bollywood और hollywood! उसको मैं ‘‘bolly-holly dreams” कहता हूं। “bolly-holly dreams” का काफी कुछ योगदान है आपके सपने में। bolly-holly] bolly-holly dreams! जो bolly-holly में नकली हैं, जो bolly-holly में नकली हैं, sets हैं, सिर्फ sets! और आजकल तो green screen चालू कर दिया है तो उसमें तो सारा computer animation है। उससे बनते हैं आपके सपने और आपके लिए — आप लगे रहेंगे उनको साकार करने के लिए और सपने चालू कहां से हुए ? उनमें कोई असलियत नहीं है। ठीक है, trade है, आप अपना समय, अपना दिमाग, अपना effort उस company को देंगे और वह company आपको देगी पैसा, ताकि आप अपने dreams को पूरा कर सकें। contract signed! आपके मुंह में smile! Yes!!

होता क्या है ? असलियत में क्या होता है ? यह तेल गरम हो गया। अब इसमें पकौड़े तलेंगे। और होगा यह, कि company कहेगी, ‘‘आप हमको अपना hundred percent दीजिए!’’ किसी ने मैथ पढ़ी है ? अगर hundred percent गया कम्पनी के पास, तो आपके लिए क्या बचा ? और कब से hundred and one percent चालू हो गया जी ? आपको physics का लॉ तोड़ना पड़ेगा hundred and one percent बनाने के लिए। और पहली seminar, जो आप अपनी company के लिए attend करेंगे, उसमें आपको यही समझाया जायेगा, you must give a hundred percent. आप अपने dreams के पीछे लगे रहेंगे, company आपके पीछे लगी रहेगी। Dreams — यह तो हो गया, race हो रही है turn around में। round about में। एक गाड़ी आगे, एक गाड़ी पीछे। अब चलने लगे चक्कर में, तब कौन-सी गाड़ी आगे है, कौन-सी गाड़ी पीछे है ? कौन-सी गाड़ी बीच में है ? क्या पता लगेगा ? क्या पता लगेगा ? कुछ नहीं पता लगेगा। और होता क्या है ? आदमी tired होता रहता है, tired होता रहता है, tired होता रहता है, tired होता रहता है और company कहती रहती है, ‘‘hundred percent please, hundred percent please, hundred percent please, hundred percent please!’’ अब उसके पास सिर्फ निन्यानबे बचा है देने के लिए, उसके बाद फिर अस्सी बचा है देने के लिए, उसके बाद फिर सत्तर बचा है देने के लिए और family के लिए zero! और family उससे अलग होने लगती है, alienate होने लगती है। वह अपने से alienate होने लगता है और फिर company को क्या जरूरत है ऐसे आदमी की ? उनको सिर्फ एक कागज का टुकड़ा फाड़ना है and the contract is finished! और वह कागज का टुकड़ा आपकी जिंदगी को represent करता है। तो क्या मेरा मतलब है कहने का कि आपको पढ़ाई नहीं करनी चाहिए ? नहीं, मैं यह नहीं कह रहा हूं।

मैं कह रहा हूं, Be armed for reality. सच्चाई के लिए तैयार हो करके जाना। उस मैदान में, लड़ाई के मैदान में अच्छी बात नहीं है कि सिर्फ — ‘‘अजी! मैं तो देखने के लिए निकला था।’’ नहीं। तैयार होकर जाना। तैयार होने का क्या मतलब है ? Yes, you need education, education होनी चाहिए साथ में But you also need you and you need the wisdom. क्या wisdom कि मैं सोऊंगा नहीं, मेरे को जगना जरूरी है। मेरे को जगना जरूरी है, मेरे को यह पहचानना जरूरी है कि मेरी — मेरी needs क्या हैं ? मेरा हृदय, मेरा heart मेरे से क्या मांगता है ? हृदय सुना होगा न आपने ? heart! कभी पूछा आपने ? कभी पूछा आपने, heart होता क्या है ? यह जो धुक-धुक करता है ? यही heart है ? अगर यह heart है तो गड़बड़ है! क्योंकि यह तो कई बार रुक जाता है। Cardiac infections! फिर उसको start करना पड़ता है।

Heart है क्या ? मैं आपको बताता हूं। Heart is the place, where the courage in you resides. हृदय वह जगह है, जहां मनुष्य का असली साहस बसता है। बजता नहीं है, बसता है Heart is the place, where the clarity resides, Heart is the place where the goodness in you resides, Heart is the place, where the kindness in you resides. That’s your heart और उस हृदय को अपने साथ लेकर चलें। bolly-holly dreams change होते रहेंगे। यह तो इनकी प्रकृति है। नये dreams आयेंगे। आज cellphone लेकर सब लोग चलते हैं। नहीं ? मैं भी। मैं नहीं कह रहा हूं कि मैं cellphone नहीं रखता। मैं भी cellphone इस्तेमाल करता हूं। एक दिन होगा, cellphone नहीं होंगे। लोग देखेंगे, photo देखेंगे लोगों की cellphone के साथ और हँसेंगे।

परंतु ये सारी चीजें बदलती रहती हैं। आपकी जो जिंदगी है, 36 thousand 500 days की, इसमें आप एक भी दिन बर्बाद नहीं कर सकते हैं। और यह मैं लोगों से पूछता हूं कि जब आपने इस — सबेरे-सबेरे जब आप उठे तो आप तैयार थे इस दिन के लिए ? आप तैयार थे इस दिन के लिए ? मैं एक ऐसा जीवन जीना — एक ऐसा दिन जीने के लिए जा रहा हूं, जो कभी वापिस नहीं आयेगा। अगर यह होता तो alarm clocks में snooze button नहीं होता। snooze button होता है न alarm clock में ? पांच मिनट और! पांच मिनट और! थोड़ा-सा, थोड़ा-सा! और जो cellphone में भी alarm clock लगाया, उसमें भी snooze! क्योंकि उठने के लिए तैयार नहीं हैं। जब इस तरीके से हम अपना जीवन जीयेंगे, तो फिर होगा क्या ?

असली technology शांति के लिए आपके हृदय में है। असली technology शांति के लिए हर एक मनुष्य के अंदर है, पर उसको opportunity चाहिए कि वह technology आगे आये और हम clarity के साथ वह steps अपनी जिंदगी के अंदर लेना शुरू करें, जिसमें कि एक-दूसरे के लिए जगह हो, लोग शांति से रह सकें। यह नहीं कि जो हमारी abilities हैं, उनको हम ऐसी चीजों के लिए इस्तेमाल करें कि हम एक-दूसरे को मारने के लिए तैयार हैं और मारने में trillions and trillions of dollars खर्च करने के लिए तैयार हैं, पर शांति की तरफ एक पैसा नहीं। Luckily, fortunately लड़ाई के लिए तैयारी करनी पड़ती है, शांति के लिए कुछ करना नहीं पड़ता है। लड़ाई के लिए लड़ना पड़ता है, शांति के लिए सिर्फ आनंद में रहने की जरूरत है — शांति तुम्हारे अंदर है।

So, it was very generous of this university, this Institute to invite me. मेरे को यहां जो निमंत्रण मिला मेरे को आने का और आप लोग जो आए और आप लोगों ने जो मेरी बात सुनी, मेरे को यही आशा है कि आपको अच्छी लगी होगी। और कुछ नहीं करें तो कम से कम इस पर जरा दो मिनट का thought दीजिए। दो मिनट के लिए इस पर जरा अमल कीजिए। क्योंकि शांति आपके अंदर है, अंदर थी, अंदर रहेगी और इसके अंदर जा करके अपने अंदर इस बात को समझ करके सोचिए, विचारिये, आप मनुष्य हैं!

अभी मैं एक प्रोग्राम कर रहा था कलकत्ता में मैंने कहा कि भैंस नहीं बदलेगी। 1970 में भैंस वैसी थी, जैसी आज है। 1930 में भी भैंस वैसी थी, जैसी आज है। पर आदमी बदल गया। जो कपड़े पहनता है, जैसा लगता है, जैसा hairdo है, जैसा यह है, जैसा वह है, cellphone है, ये सारी चीजें बदल गयीं। भैंस, भैंस ही है। और हम लोग अपनी जिंदगी के अंदर अगर अपनी मानवता को खो बैठें तो फिर हम मनुष्य नहीं रहेंगे। अपनी मानवता को हम नहीं खो सकते हैं।

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