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जो आप हैं, जैसे आप हैं, इस पृथ्वी पर ऐसा न कभी कोई था और न कभी कोई होगा। आप जिस प्रकार रोते हैं वह आपका रोना है। जब आप हंसते हैं तो जिस प्रकार आप हंसते हैं, वह आपका हंसना है। ये जो सिग्नेचर आप हैं यह फिर कभी नहीं होगा। आप जैसे बहुत हैं, पर आप जैसा कोई नहीं है।
(प्रेम रावत) हमारे सभी श्रोताओं को हमारा नमस्कार। काफी दिनों के बाद यह मौका मिला है। मैं काफी सारे देशों में भ्रमण करके आ रहा हूं। और यह मौका मिला है मेरे को कि आपके साथ बात करूं, कुछ आपके आगे एक बात रखूं। और सबसे बड़ी बात तो यही है कि जो कुछ यह है, जो कुछ हो रहा है, आपको अपनी जिंदगी कुछ इस तरीके से जीनी है कि यह हो रहा है या नहीं हो रहा है, इसका कोई महत्व आपके ऊपर ज्यादा नहीं होना चाहिए। क्योंकि सबसे बड़ी बात तो यह है कि आप जीवित हैं।
तो भगवान राम की कहानी आप सब लोगों ने सुनी है। उसमें काफी सारे कैरेक्टर थे, पर मेन कैरेक्टर उनको देखा जाये, मेन कैरेक्टर तो एक तरफ तो रावण है और एक तरफ है हनुमान। अब देखिए, रावण क्या बनना चाहता है ? रावण परफेक्ट बनना चाहता है, संपूर्ण बनना चाहता है। क्या मांगता है वो ? जब ब्रह्मा की उन्होंने तपस्या की, ब्रह्मा ने खुश होकर के — मांगो, क्या मांगते हो ? क्या मांगा कि मेरे को कोई दानव नहीं मार सकता है, कोई पशु नहीं मार सकता है, सब, ये सबकुछ मांगा ताकि मेरे को मारने वाला ही न हो। हां, इतनी बेवकूफी उसने की कि वो मनुष्य को भूल गया, उसने मनुष्य के बारे में, उसने सोचा कि मनुष्य तो बहुत कमजोर है, वो क्या मेरे को मारेंगे ? और यही चीज उसका कारण बनी मौत का।
तो एक तरफ तो है रावण, जो संपूर्ण बनना चाहता है। और दूसरी तरफ है हनुमान और हनुमान क्या चाहते हैं ? वो जो संपूर्ण है उसको महसूस करना चाहते हैं। उसका अनुभव करना चाहते हैं। उसकी सेवा करना चाहते हैं। रावण नहीं। रावण तो बनना चाहता है। सबसे शक्तिशाली बनना चाहता है। सबसे परफेक्ट बनना चाहता है जो कोई गलती कर ही नहीं सकता। तीनों लोकों का वो राजा बनना चाहता है। सारे प्लैनेट्स जो हैं, सूर्य है, चंद्रमा है, सब उसके अधीन हों। ये सब चाहता है वो। एक तरफ से अगर आप पूर्ण को भी नहीं समझते हैं, संपूर्ण को भी नहीं समझते हैं, तो हिन्दी भाषा में बहुत सरल रूप से अगर इस बात को रखा जाये तो जो घट में विराजमान है, कौन, वही जिसके लिए कहा है कि —
विधि हरि हर जाको ध्यान करत हैं, मुनिजन सहस अठासी।
सोई हंस तेरे घट माहिं, अलख पुरुष अविनाशी।।
तो वो जो अविनाशी है, रावण उस अविनाशी जैसा बनना चाहता है।
और हनुमान, हनुमान उस अविनाशी का दर्शन करना चाहता है, उस अविनाशी का अनुभव करना चाहता है, उस अविनाशी की सेवा करना चाहता है। ये दोनों में फर्क है। दोनों महापण्डित हैं। दोनों शक्तिशाली हैं। दोनों ही महापण्डित हैं, दोनों ही बहुत शक्तिशाली हैं।
बल्कि जब हनुमान की माताजी ने, अंजनि ने पूछा हनुमान से कि “भाई, तुम अगर चाहते तो तुममें तो इतनी शक्ति है, तुम तो, ये पुल-वुल बनाने की क्या जरूरत थी, ये वानरों की सेना की क्या जरूरत थी, इन सारी चीजों की क्या जरूरत थी, अगर तुम चाहते तो वहां तुम खुद ही जाकर के सारी रावण की सेना को नष्ट कर सकते थे, रावण को मार सकते थे, रावण के भाइयों को मार सकते थे, रावण के बेटों को मार सकते थे और सीता को वापिस ला सकते थे। तो तुमने ऐसा क्यों नहीं किया ?”
तो हनुमान जी बोलते हैं — ये मेरी कहानी नहीं है। ये मेरी कहानी नहीं है। ये कहानी भगवान राम की है। इतना शक्तिशाली होने के बावजूद भी वो क्या करना चाहते हैं ? जब कहा, मांगा गया कि मांगों क्या मांगते हो तो —
भक्तिदान मोहे दीजिये।
क्या, भक्ति का दान। सेवा करना चाहता है। समझना चाहता है। अनुभव करना चाहता है। इसी में आनंद है।
आज हम क्या कर रहे हैं ? हम जो इस दुनिया के लोग हैं, क्या कर रहे हैं ? पूछता हूं मैं यह सवाल। आपसे पूछता हूं। क्या हम भी रावण की तरह संपूर्ण नहीं होना चाहते हैं अपने काम में, अपनी नौकरी में ? क्या बच्चा इम्तिहान के समय यह ख़्वाब नहीं देखता है कि मेरे को सौ में से सौ मिल जाएं। परफेक्ट! इतना आसान हो मेरा पेपर कि सौ में से सौ मिल जाएं। मैं पास हो जाऊं। जब शादी का समय आता है, मेकअप लगाया जाता है, आहा! कितने घंटे लगते हैं मेकअप लगाने में। ये लगाना है, वो लगाना है, परफेक्ट करना है, परफेक्ट करना है, परफेक्ट करना है, परफेक्ट करना है। संपूर्ण करना है, संपूर्ण करना है, संपूर्ण करना है। सबकुछ ऐसा होना चाहिए, सबकुछ बढ़िया होना चाहिए। सबकुछ अच्छा होना चाहिए।
हमारा देश परफेक्ट होना चाहिए। हमारे शहर परफेक्ट होने चाहिए। और यही सारे सपने लोग देख रहे हैं। सब लोग पीछा कर रहे हैं उस परफेक्शन का, उस संपूर्णता का, जो संपूर्ण है उसका पीछा कर रहे हैं, हम भी ऐसे बनें, हम भी ऐसे बनेंगे, हम भी ऐसे बनेंगे, हमारा भी ये होना चाहिए, हमारा भी ये होना चाहिए, हमारा भी ये होना चाहिए।
और जीते कैसे हैं ? क्योंकि जब वो जो पहला वाला दायरा है, जब वो निकाल दिया अपने मन से, अपने दिमाग से, तो पड़े हुए हैं सब छोटे-छोटे दायरों के पीछे। मेरी फैमिली परफेक्ट होनी चाहिए, मेरी बीवी परफेक्ट होनी चाहिए। मेरा जॉब परफेक्ट होना चाहिए। मेरी कार परफेक्ट होनी चाहिए। मेरी मोटरसाइकिल परफेक्ट होनी चाहिए। मेरा स्कूटर परफेक्ट होना चाहिए। मेरे दोस्त परफेक्ट होने चाहिए। मेरा खाना परफेक्ट होना चाहिए।
एक बार मैं यूट्यूब देख रहा था। अब तो हमारी भी चैनल हो गयी है यूट्यूब में। तो एक दिन मैं देख रहा था यूट्यूब, भोजन के बारे में। तो उसमें एक आदमी खाना बना रहा है, वो कह रहा है कि आप ये डिश अपना घर में बना सकते हैं बिलकुल रेस्टोरेंट जैसा। तब मेरे को ख्याल आया, एक जमाना था कि रेस्टोरेंट में कहा करते थे कि एकदम घर के जैसा खाना है। आपको यहां घर जैसा खाना मिलेगा। अब वो समय गया, अब क्या समय आया है ? अब घर में रेस्टोरेंट जैसा वाला खा लो। उलटी गंगा। अब जिन्होंने वो समय देखा है, उनके लिए तो ये उलटी गंगा हो गयी। जो नये, नौजवान लोग हैं उनके लिए और क्या है ? घर में बहुत भद्दा बनता है, क्योंकि किसी के पास टाइम तो है नहीं। तो खराब बनता है, तो इसलिए जो रेस्टोरेंट में बनता है वो बढ़िया बनता है।
क्योंकि ये धारणाएं बना रखी हैं मनुष्य ने कि जब ऐसा होगा तो बढ़िया होगा, अब ऐसा होगा तो बढ़िया होगा, अब ऐसा होगा तो… कामधेनु गऊ थी न, जो इच्छा हो वो पूरी कर देती थी। तो सबको कामधेनु गऊ चाहिए। और अगर कामधेनु गऊ नहीं मिल रही है, तो कोई बात नहीं, हम ऐसा प्रबंध करेंगे टेक्नोलॉजी के द्वारा, एडवरटाइजमेंट के द्वारा ऐसी चीजों का आविष्कार करेंगे कि जो हमारी इच्छा हो वो हम पूरी कर सकें। तो हमारे सारे लोगों से मांगना, क्या मांगना ? बड़े-बड़े लोगों के पास जाते हैं और वो कहते हैं — “हां, भाई, क्या मांगना चाहते हो ?” “अजी, हमारी मनोकामना पूरी हो।” परंतु मनोकामना तो, वो तो तो तो तो, राम के समय तो तो तो तो तो तो रावण पूरी करता था। आहा! वो भक्ति का क्या हुआ भाई ? वो अनुभव करने का क्या हुआ भाई कि वो जो छोटे-छोटे दायरे हैं, उन पर ज्यादा ध्यान नहीं देना है, जो बड़ा वाला दायरा है, उस पर ध्यान देना है कि यहां हैं, अब नहीं हैं, अब नहीं रहेंगे, परंतु जबतक हैं, तबतक इस जीवन के अंदर उस सुंदर चीज का अभ्यास करें, उस सुंदर चीज का अनुभव करें और अपने जीवन को सफल करें।

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जो आप हैं, जैसे आप हैं, इस पृथ्वी पर ऐसा न कभी कोई था और न कभी कोई होगा। आप जिस प्रकार रोते हैं वह आपका रोना है। जब आप हंसते हैं तो जिस प्रकार आप हंसते हैं, वह आपका हंसना है। ये जो सिग्नेचर आप हैं यह फिर कभी नहीं होगा। आप जैसे बहुत हैं, पर आप जैसा कोई नहीं है।
(प्रेम रावत) हमारे सभी श्रोताओं को हमारा नमस्कार। धीरे-धीरे चीजों में परिवर्तन आ रहा है। धीरे-धीरे मौसम में परिवर्तन आ रहा है। कल मैंने देखा कि यहां हवा में थोड़ी-थोड़ी ठंडी चालू हो गयी है। और ये सारे परिवर्तन आयेंगे। पहले भी आये थे। अब भी आ रहे हैं। और आगे भी आयेंगे। मैं एक चीज की चर्चा कर रहा हूं आजकल। और बात यह है कि कोई भी चीज है उसको हमारे देखने का तरीका, हमारा नज़रिया कैसा है! हम उस चीज को किस प्रकार देखते हैं। क्या, कोई भी चीज होती है
कबीरा कुंआ एक है, पानी भरे अनेक। भांडे का ही भेद है, पानी सबमें एक।
एक ही कुंआ है। एक ही कुंए के पास आते हैं। एक ही कुंए से सब लोग पानी भरते हैं। पानी वही है। हां, भांडे अलग-अलग हैं। किसी ने किसी तरीके से सजाया हुआ है। किसी ने किसी तरीके से सजाया हुआ है। किसी ने किसी तरीके से सजाया हुआ है। सबके अलग-अलग हैं, पर पानी सबमें एक ही है। यही बात है समझने की कि ये जो है, ये भांडा ये सब अलग-अलग हैं। पर इसके अंदर जो बैठा है वो एक ही है। वो सबके लिए एक है। और बात उसी से शुरू होती है, उसी से शुरू होती है।
अब लोग हैं घबरा जाते हैं। अभी मैं पढ़ रहा था किसी ने चिट्ठी लिखी कि “मेरा भाई भी बीमार है। मेरा दूसरा भाई भी बीमार है और मैं क्या करूं ?”
तो देखिये, दुखी होने की बात तो ये है। परंतु दुख से ही सारा काम नहीं होगा। दुख से ही सारा काम नहीं होगा, हिम्मत से भी काम लेना है। तो दुखी होना कि “हां, ये अच्छा नहीं हो रहा है कि मेरा भाई बीमार है या मेरा दूसरा भाई भी बीमार है।” परंतु अगर तुम भी बैठ जाओगे, तुम भी रोने लगोगे तो उनका क्या होगा ? क्योंकि जब किसी के जीवन के अंदर दिक्कत आती है तो उसको और दिक्कत वाले नहीं चाहिए। उसको ऐसा व्यक्ति चाहिए जो खुद परेशान न हो ताकि वो उनको हिम्मत दे सके, उनकी मदद कर सके। और जो मदद कर सकता है उसकी उनको जरूरत है। समझने की बात है।
तो लोगों के सामने समस्याएं आती हैं लोग घबराने लगते हैं अब क्या होगा ? पर एक के साथ तुमने अपना तार नहीं जोड़ा, वो क्या ? जो था, जो है, जो रहेगा। और जो वो है, क्या वो भी ये सोचता है कि आगे क्या होगा ? उसके लिए तो सबकुछ है। तुम्हारे लिए, अगर तुम उसको पहचान लो अपने जीवन में तो तुम्हारे लिए भी सबकुछ है। क्योंकि तुम्हारे लिए वो है चौबीसों घंटे तुम्हारे अंदर वो है। क्योंकि वो है तुम जीवित हो और जिस दिन वो नहीं रहेगा तुम भी नहीं रहोगे। क्या उससे नाता जोड़ा ? क्या उससे जो नाता जुड़ना है, क्या उस नाते को तुम समझे ?
तीन चीजें हैं। और इनके बारे में मैं आगे वीडियो में आपसे चर्चा करूंगा। एक तो वो है जो अनंत है — जो था, जो है, जो रहेगा। दूसरे हैं आप — जो नहीं थे, अब हैं और आगे नहीं रहेंगे। नहीं थे, हैं और आगे नहीं रहेंगे। अब लोग हैं “हां जी हम तो, हम तो थे, पहले थे हम, थे!”
आपने कभी अखबार पढ़ा है ? अखबार में एक हिस्सा होता है उसे कहते हैं — Obituaries तो उसमें लिखा जाता है कि फलां-फलां चले गये। फलां-फलां चले गये। फलां-फलां चले गये। श्री राम दयाल शर्मा हमको छोड़कर चले गये। श्री पंकज श्रीवास्तव चले गये। फलां-फलां के बारे में हम आपके परिवार आपको बहुत मिस कर रहे हैं। चले गये। चले गये। चले गये। चले गये। चले गये। तो जाने वालों का तो सारा एक वो बना हुआ है, पेज। फलां-फलां चले गये। फलां-फलां चले गये। फलां-फलां चले गये। फलां-फलां चले गये। पर कभी आपने अखबार में वो वाला पेज देखा है कि वो फलां-फलां वापस आ गये। वो फलां-फलां वापस आ गये। वो फलां-फलां वापस आ गये। श्रीवास्तव जी वापस आ गये। अब उनका नाम ये है। वो नहीं मिलेगा आपको। क्यों ? क्यों नहीं मिलेगा ? गये। कहां गये ? किसी को नहीं मालूम। कहां गये, किसी को नहीं मालूम। पर इन तीन चीजों के बारे में चर्चा करना चाहता हूं मैं। और इसके बारे में और भी चर्चा करूंगा — जो था, जो है, जो रहेगा।
पहला — था, है, रहेगा। उसका कभी नाश नहीं होता है। एक आप हैं — जो नहीं थे, हैं, हैं पर आगे नहीं रहेंगे। ये भी समझने की बात है। और तीसरा, तीसरी बात है इस माया की। जिसके पीछे आप लगे हुए हैं — देखिये तीन चीजें जो हो गयीं। एक तरफ तो वो है जो था, जो है, जो रहेगा। और बीच में हैं आप — जो नहीं थे, हैं, नहीं रहेंगे। और तीसरी चीज क्या है इसके बीच में आप हैं — जो नहीं थी, जो नहीं थी। और संत महात्माओं का कहना है — जो नहीं है। सबसे बड़ी बात — जो नहीं है। और तीसरी — नहीं रहेगी। और आप पड़े हुए हैं उसके पीछे जो नहीं थी, जो नहीं है, जो नहीं रहेगी। और पड़ना चाहिए आपको किसके पीछे — जो था, जो है, जो रहेगा। क्योंकि आप नहीं थे, अब हैं और आगे नहीं रहेंगे। पर उसके पीछे नहीं पड़े। पड़े किसके पीछे? जो नहीं थी, नहीं है, और नहीं रहेगी। इसीलिए उसको माया कहा। ये माया है। ये सब माया का खेल है।
तिजोरी में सोना पड़ा है। लाला क्या सोचता है कि “ये मेरा है।” ये तुमसे पहले किसी और का था, आज तुम्हारा है, कल तुम्हारा नहीं रहेगा। नहीं रहेगा। सारी चीजों के बारे में अगर देखा जाये। यही सब जगह हो रहा है। ये तुम्हारा था! नहीं, ये तुम्हारा नहीं था, इससे पहले किसी और का था, अब तुम्हारा है और आगे नहीं रहेगा। जबतक तुम हो तुम्हारा असली में है क्या ? ये माया या वो जो था, है और रहेगा। और उसको जान लो, उसको समझ लो, तो तुम्हारे जीवन में आनंद ही आनंद है। और उसको नहीं समझ पाए, उसको नहीं समझ पाए तो भटकते रहोगे। खोजते रहोगे क्या चीज तुमको खुशी लाती है ? क्या चीज तुम्हारे जीवन के अंदर तुमको खुश करेगी ? और तुम लग जाओगे पीछे जैसे रोमांस होता है और जब उम्र हो जायेगी तो कैसा रोमांस! तुम समझते हो जब यम आता है लेने के लिए तो वो भी देखेगा कि “हां, दोनों रोमांटिक हैं जरा बीस मिनट और छोड़ देते हैं।” ना, उसके लिए तो एक भजन है —
हंसा निकल गया पिंजरे से, खाली पड़ी रही तस्वीर।
और यमदूत के लिए क्या है —
जब यमदूत लेन को आवे, तनिक धरे नहीं धीर।
मार-मार के प्राण निकाले, बहे नैन से नीर।
हंसा निकल गया पिंजरे से खाली पड़ी रही तस्वीर।
वो थोड़ी देखेगा। ये है, वो है, ये रिश्ता है, वो रिश्ता है, ये नाता है, वो नाता है। ना, कुछ नहीं।
तो समझने की बात है। हिम्मत लेने की बात है। हिम्मत से काम करने की बात है। और उसको पहचानने की बात है — जो था, जो है, और जो रहेगा।
अपना ख्याल रखें, आनंद से रहें। इस कोरोना वायरस बीमारी से बचें।
और सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!