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संगम (ऑडियो) 00:09:18 संगम (ऑडियो) Audio Duration : 00:09:18 ये कहानी तुम्हारी है, ये कहानी हमारी है। जब तक हम जीवित हैं, इस कहानी को हम समझे...

प्रेम रावत:

 

आप कौन हैं ? आप कौन हैं ? जब तुम मां के गर्भ से निकले, तब तुम्हारा नाम क्या था ? कुछ भी नहीं था। अभी रखा नहीं गया था। अभी कागज पर नहीं लिखा गया था। अभी किसी ने सोचा भी नहीं था। अभी लोगों को हो सकता है, ये भी नहीं मालूम था कि तुम लड़के हो या लड़की हो, तो नाम पहले रखने से क्या फायदा ? अगर तुम जीवित थे और तुम्हारा कोई नाम नहीं था और फिर भी तुम जीवित थे ? बिना नाम के जीवित थे ? तो तुम्हारा जो नाम है उससे और तुम्हारे से क्या लेना-देना ? कुछ लेना-देना नहीं।

 

दूसरी चीज, ये शरीर किसका है ? ये तुम्हारा है ? ये तुम्हारा है ? किसका है ? बनाने वाले का है ?

 

मतलब, अपने आपको समझना — मैं कौन हूं, क्या हूं। ये शरीर इन तत्वों का बना है, उन्हीं चीजों का बना हुआ है, जिसको तुम सबेरे-सबरे धोने की कोशिश करते हो। उसी मिट्टी का बना हुआ है, जिससे तुमको इतनी नफरत है। उन्हीं चीजों का बना हुआ है और जब ये शरीर खत्म होगा तो उन्हीं चीजों में जाकर के मिल जायेगा।

 

लोग कहते हैं न, ‘‘हां! फिर जब आदमी मरता है तो फिर ऊपर जाता है। अच्छा कर्म किया है तो ऊपर जाता है, बुरा कर्म किया है तो नीचे जाता है।’’

 

तो मैं पूछता हूं कि जब तुम्हारा जन्म हुआ तो तुम्हारा वजन अगर पांच पाउंड का था, सात पाउंड का था तो इस पृथ्वी का वजन सात पाउंड बढ़ा ? और अगर तुम्हारा वजन दो सौ पाउंड है और जब तुम मरोगे तो इस पृथ्वी का वजन दो सौ पाउंड कम होगा ? हां या नहीं ?

 

बात यह है, तुमने पहले कभी सोचा नहीं इस बारे में। तो अगर इसका वजन वैसे का वैसे ही रहेगा — मतलब, मनुष्यों के आने-जाने से नहीं बदलेगा तो क्या हो रहा है ? कोई कहीं से आ नहीं रहा है और कोई कहीं जा नहीं रहा है। सब यहीं अटके हैं। और उसी से लौकी बनती है, उसी से कद्दू बनता है, उसी से तुम बनते हो! ये है सच्चाई!

 

चक्कर क्या है ?

 

चक्कर है कि यह एक संगम है। हर एक व्यक्ति जो यहां बैठा है, यह एक संगम है। इस संगम में, इस संगम में एक वो यंत्र है, जो अनुभव कर सकता है और इसी यंत्र में बैठा है वो, जो अविनाशी है। तो, एक तो तुम अनुभव कर सकते हो और एक, इस यंत्र में बैठा है अविनाशी! यंत्र का नाश होगा, अविनाशी का नाश नहीं होगा। परंतु ये दोनों एक जगह, एक समय में आए हुए हैं। इसका क्या मतलब हो सकता है ? क्या यह संभव है कि इसका मतलब ये हो कि इस यंत्र के द्वारा तुम उस अविनाशी का अनुभव कर सको। इसलिए तुम हो! और अगर तुमने उसका अनुभव किया तो स्वर्ग तुम्हारे लिए यहीं बन जाएगा।

 

एक बार एक कछुए का बाप और कछुए की माँ दोनों खड़े हुए थे और अपने बच्चे — छोटे-से कछुए को देख रहे थे। वो छोटा-सा कछुआ पेड़ के ऊपर चढ़ता, बड़ी मेहनत से, बड़ी कोशिश से और टहनी के ऊपर जाता, बड़ी कोशिश से, बड़ी मेहनत से और फिर कूदता। और जैसे ही कूदता तो धक! जाकर जमीन पर गिरता। फिर वो जाता, फिर पेड़ पर चढ़ता, बड़ी मेहनत से —छोटा कछुआ, छोटा-छोटा कछुआ! फिर जाता है, टहनी के ऊपर जाता, जाता, जाता, जाता बड़ी कोशिश, बड़ी मेहनत से और फिर टहनी से कूदता और धक!

 

माँ, बाप कछुए से बोलती है, ‘‘मेरे ख्याल से इसको बता देना चाहिए कि ये चिड़िया नहीं है।’’

 

क्योंकि वो छोटा कछुआ यही सोच रहा था कि वह चिड़िया है। उड़ने की कोशिश कर रहा था, परंतु वो उड़ नहीं पायेगा।

 

क्या मनुष्य को भी ये बताना पड़ेगा, बताना चाहिए कि वो ये संगम है ? और क्या वो यह समझे कि वो ये संगम है और स्वर्ग यहां है ?

 

लोग लगे रहते हैं — कोई दान कर रहा है, कोई पुण्य कर रहा है। कोई कुछ कर रहा है, कोई कुछ कर रहा है। कोई कुछ कर रहा है, कोई कुछ कर रहा है। सब स्वर्ग जाने के लिए कर रहे हैं। कहां जाएंगे ?

 

‘‘स्वर्ग जाएंगे जी! स्वर्ग जाएंगे जी! स्वर्ग जाएंगे जी...!’’

 

हम उन लोगों को एक advice देते हैं, एक सलाह देते हैं। जब तुमको इतनी लगी हुई है जाने की — जाओ! मतलब, इंतजार क्यों कर रहे हो ?

 

इसीलिए कहा है कि अगर अपने आपका ज्ञान नहीं है, आत्मज्ञान नहीं है —

 

आतमज्ञान बिना नर भटके, भटकते रहोगे। तुम क्या हो, तुम समझ नहीं पाओगे। तुम संगम हो, ये नहीं समझ पाओगे। तुम्हारे अंदर वो अविनाशी बैठा है, ये समझ नहीं पाओगे। समझ नहीं पाओगे। लगे रहोगे खुश होने में और खुशी का भंडार तुम्हारे अंदर है। खुशी का भंडार तुम्हारे अंदर है।

 

कितनी सुंदर बात है कि जगह-जगह जाकर मैं जब लोगों को ये बात सुनाता हूं, लोगों को बड़ी अच्छी लगती है, क्योंकि ये बात सरल है, साधारण है और ये कहानी तुम्हारी है, ये कहानी हमारी है। जब तक हम जीवित हैं, इस कहानी को हम समझें, इस मिलन को, इस संगम को हम समझें। ये कहानी तुम्हारी ऐसी हो सकती है कि आनंदमय हो और तुम्हारा जीवन सफल हो सकता है। जीवन सफल करना, उसी को कहते हैं। और जिस दिन जीवन सफल होगा, उस दिन तुम्हारे लिए स्वर्ग ही स्वर्ग है। नरक भी यहां है, स्वर्ग भी यहां है।

 

पहला कदम (ऑडियो) 00:02:48 पहला कदम (ऑडियो) Audio Duration : 00:02:48 सबसे पहला कदम — इस बात को आप जानिए कि आपके अंदर शांति है।

अगर मैं आपको कहूं कि पहला कदम आपका आगे नहीं होगा।

 

ये सब सोच रहे हैं कि आगे कदम लेना है। आगे कैसे बढ़ेंगे ?

 

आगे नहीं लेना है, अंदर की तरफ लेना है। क्योंकि Peace — जो शांति आपको चाहिए, वह आपके अंदर है। अभी भी है। और जब आप गुस्सा होते हैं न, तब भी है और जब आप अपने को कोसते हैं किसी वज़ह से, तब भी है। और जब आप खुश होते हैं, तब भी है। जब आप दुःखी होते हैं, तब भी है और आपके अंदर है।

 

और पहला कदम है, सबसे पहला कदम है कि — इस बात को आप जानिए कि आपके अंदर शांति है। क्योंकि अभी तक जो कुछ सिखाया गया है आपको, वो ये है कि जो आप — जिस चीज की आपको जरूरत है, वह आपके पास नहीं है।

 

खिलौना जो आपको चाहिए था, वो कहां है ?

 

बाजार में है। वो तो जाकर लेना पड़ेगा।

 

एज़ुकेशन जो आपको चाहिए थी, वो कहां है ?

 

वो स्कूल में है। स्कूल में आपको जाना पड़ेगा।

परंतु शांति की जहां बात है, वो बाहर नहीं है, वह आपके अंदर है। और जिस दिन आप यह जान जाएंगे कि — एक, शांति आपके अंदर है और दूसरी, शांति आपकी जरूरत है, चाहत नहीं। क्योंकि चाहत आपकी बदलती रहती है। इसीलिए आपके क्लॉज़ेट में ऐसी चीजें हैं, जो एक दिन आपने खरीदी और आज आप उनको इस्तेमाल नहीं करते हैं। क्योंकि आपकी चाहत बदलती रहेंगी। परंतु जिस दिन आप पता कर लेंगे कि शांति आपकी जरूरत है, उस दिन...

 

क्योंकि आज लोग यही कर रहे हैं, "मैं खोज रहा हूं। मैं शांति को खोज रहा हूं।"

 

तो ये रूमाल मेरे जेब में है। अब ये रूमाल को कहां ढूंढ़ूं मैं ? और कितना ढूंढूं ? कहां ढूंढ़ूं ?

 

मैं चाहे सारे संसार की यात्रा कर लूं, परंतु ये नहीं मिलेगा मेरे को संसार में। क्योंकि मेरी जेब में है और जेब में ढूंढ़ूंगा तो तुरंत मिलेगा। तो यही बात है। तो लोग खोज रहे हैं। मैं कह रहा हूं, खोज रहे हो तो खोजते रहो। खोज लो! आज तक किसी को मिली नहीं खोजने से, क्योंकि वो  तुम्हारे अंदर है।

 

- प्रेम रावत

कौन हूं मैं (ऑडियो) 00:09:27 कौन हूं मैं (ऑडियो) Audio Duration : 00:09:27 हम अपने बारे में भूल जाते हैं कि हम कौन हैं और क्या हासिल कर सकते हैं अपने जीवन...

मैं कौन हूं ? मैं हूं, ये मेरे को मालूम है, क्योंकि मैं स्वांस लेता हूं, मैं सोच सकता हूं, मैं देख सकता हूं। सुख और दुःख का मैं अनुभव कर सकता हूं।

 

ये सारी चीजें जो मेरी जिंदगी के अन्दर होती रहती हैं, ये क्यों ? क्योंकि मैं जीवित हूं। मुझे मालूम है कि अगर मैं जीवित नहीं रहता तो न मेरे को सुख का अनुभव होगा, न दुःख का अनुभव होगा।

 

हम अपने बारे में भूल जाते हैं कि हम कौन हैं ? मैं यहां क्यों हूं ? क्या कर रहा हूं ? क्या मैं हासिल कर सकता हूं अपने जीवन के अन्दर ?

 

ये है स्टेज। ये है स्टेज और स्टेज में — स्टेज के ऊपर आप हैं। और आप क्या करेंगे, क्या है आपका हिस्सा ? नाचने का है ? गाने का है ? एक्टिंग करने का है ? नहीं, एक्टिंग करने का है ? क्या करने का है ? audience कौन-सी है ? कौन हैं audience में बैठे लोग ? दुनिया कहेगी कि दुनिया है। संसार बैठा हुआ है। संसार नहीं बैठा है। कुछ लोग समझते हैं कि संसार बैठा है audience में और संसार को please करना है। संसार clap करेगा। अगर हम अच्छी एक्टिंग करें, अच्छा गाना गाएं तो संसार clap करेगा। संसार रूपी अगर कोई है तो वो अंधा है, वो कुछ नहीं देख सकता। और बहरा है, कुछ नहीं सुन सकता। और गूंगा है, कुछ नहीं बोल सकता। और न उसके हाथ हैं।

 

तो कौन बैठा है audience में ?

 

मैं आपको बताता हूं, कौन बैठा है audience में। audience में बैठा है आपका हृदय। आपका अपना हृदय जिसको प्यास है अपने बनाने वाले को देखने की। अपने अन्दर स्थित, अपने अंदर स्थित जो परमात्मा है उसको जानने की, उसका अनुभव करने की। और अगर वो प्रकट हो जाए इस show में तो आपका हृदय आपको applaud करेगा।

 

घट घट मोरा सांइया, सूनी सेज ना कोय।

बलिहारी उस घट की, जिस घट प्रगट होय।।

 

जब इस ड्रामे में जिसमें tragedy भी है — मैं नहीं कहता tragedy नहीं है, tragedy है, अज्ञान है, crises है, रोना है, सबकुछ है। पर एक possibility, एक संभावना और है। और वो संभावना है कि इस play में वो, जो अविनाशी हंस हमारे अन्दर बैठा है वो प्रकट हो। अगर वो हो गया, आपने जान लिया, आपने पहचान लिया तो बात ही दूसरी है।

 

एक joke है, चुटकुला है कि एक बुड्ढा आदमी रोड के पास बैठा हुआ रो रहा था। रो रहा था, रो रहा था, रो रहा था, किसी ने पूछा — क्यों रो रहा है ?

 

कहा कि मेरी अभी-अभी नई शादी हुई है और वो भी बहुत जवान लड़की से और बहुत खूबसूरत है वो।

 

तो आदमी ने कहा — भाई इसमें रोने की क्या बात है ? तेरे को तो खुश होना चाहिए।

 

कहा — भाई, यही नहीं, मेरा अभी नया-नया घर बना है और बहुत ही अच्छा घर है, बहुत ही सुन्दर घर है। सब जगह marble है, granite है, air-conditioned है। बहुत ही सुन्दर घर बना है।

 

कहा — तेरे को तो खुश होना चाहिए।

 

कहा — यही नहीं, मैंने अभी-अभी नई कार खरीदी है और बहुत ही बढ़िया कार है।

 

तो आदमी ने कहा कि भाई, ये सारी चीजें तेरे पास हैं, तो तेरे को बहुत ही खुशी होनी चाहिए। तू रो क्यों रहा है ?

 

तो बुड्ढा कहने लगा कि मेरे को मालूम नहीं कि मैं रहता कहां हूं। मैं ये भूल गया कि मैं रहता कहां हूं।

 

ये तो वो वाली बात हो गयी कि कोई आकर कहे कि मेरी याददाश्त बहुत तेज है, ये तो एक बात मेरे को मालूम है और दूसरी चीज मैं भूल गया।

 

तो क्या याद रखा ? क्या याद है कि तुम भी कुछ हो ?

 

सारी technologies हैं, जहां technology की बात है, technology से हमको बहुत प्रेम है। I love technology, latest, greatest everything, read up magazines हैं। परन्तु एक ऐसी भी तो technology होगी, जो मेरे को मेरे तक पहुंचाए। जिस technologies की मैं आज बात कर रहा हूं, जो बाहर की technologies हैं, ये तो बदलती रहेंगी। ये तो बदलती रहेंगी।

 

एक technology जो इस स्वांस तक मिला दे। एक technology जो उस चीज तक मिला दे, जो हमारी जिंदगी के अन्दर सबसे जरूरी है। जिसके बिना हमको नहीं मालूम कि हम रहते कहां हैं। सबकुछ होने के बावजूद भी हम भूल गए कि हम रहते कहां हैं। हम हैं कौन। और अगर यही होता रहेगा हमारी जिंदगी के अन्दर, तो हम अपनी जिंदगी के अन्दर दिशा कैसे पा सकेंगे ?

 

तो इस जीवन के अन्दर — इस जीवन के अन्दर, अगर हम किसी चीज को समझ सकते हैं, तो उस चीज को समझें कि हमको उस बनाने वाले ने क्या दिया है। इस स्वांस के अन्दर क्या छिपा है। इस जीवन के अन्दर क्या छिपा है।

 

बहुत सारे जवान लोग हैं वो कहते हैं कि हमारा टाइम नहीं है अभी। हमारा टाइम है, मस्ती लेने का। जब बुड्ढे होंगे, तब इन चीजों के बारे में सोचेंगे। ये आपका प्लान है या उसका प्लान है ? ये आपका प्लान है ? आपके प्लान में — इतने समय से इतने समय तक आप ये करेंगे, इतने समय से इतने समय तक आप मस्ती करेंगे, इतने समय से इतने समय तक आप ये करेंगे। इसके बाद आप वृद्ध होंगे। इसके बाद आप retirement लेंगे। इसके बाद आप इस संसार से जाएंगे। ये आपका प्लान है, क्योंकि वहां एक department है और उसका अपना प्लान है और जो उसका प्लान है, वही होता है। जो आपका प्लान है वो नहीं होगा। अरे! मस्ती करनी है अगर इस संसार के अन्दर, तो करो पर ऐसी मस्ती करो कि जिसमें सचमुच मस्त हो जाओ। सचमुच मस्त हो जाओ। और वो मस्ती बाहर की नहीं है। वो मस्ती है तुम्हारे अन्दर! वो सुख!

 

      राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय।

      जो सुख साधु संग में, वो बैंकुंठ न होय।।

 

ये है! ये है वो बात! असली सुख की बात कर रहे हैं। असली आनन्द की बात कर रहे हैं।

 

- प्रेम रावत:

पारिवारिक समस्याओं के बीच शांति कैसे मिलेगी? 00:05:29 पारिवारिक समस्याओं के बीच शांति कैसे मिलेगी? Video Duration : 00:05:29 आप क्या योगदान करते हैं, अपनी फैमिली की हैप्पीनेस के लिए ?

प्रश्नकर्ता : सर! मैं पूछना चाहता हूं कि परिवार की समस्याओं के साथ शांति कैसे लाई जा सके। चूंकि हमारी जिम्मेदारी परिवार के प्रति बहुत होती है और कोशिश भी करते हैं, फिर भी उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाते। तो कृपया मार्गदर्शन करें!

 

प्रेम रावत जी : देखिए! जहां तक परिवार की बात है — मैं एक चीज आपको याद दिलाऊं कि — आप जानते हैं कि चेन क्या होती है। जैसे बाइसिकिल की चेन होती है। तो उसमें छोटे-छोटे, छोटे-छोटे लिंक्स होते हैं। आपको अच्छी तरीके से मालूम है कि एक — अगर उसमें सौ लिंक भी हैं और एक लिंक निकाल दिया जाए और 99 हैं तो वो चेन, चेन नहीं रहेगी। अब उसका वो लिंक टूट गया है।

 

सबसे पहले आप यह मालूम करिए अपने आप में कि आप क्या योगदान करते हैं, अपनी फैमिली की happiness के लिए ?

 

मैं खाने की बात नहीं कर रहा हूं, मैं घर की बात नहीं कर रहा हूं! देखिए! फैमिली एक ऐसी चीज है कि वो भूखे हैं, आप हैं, प्यार है तो वो भूखे भी चलेगा, फैमिली रहेगी! बारिश भी हो रही है, छत नहीं है, फैमिली है, आप सब साथ हैं, तो भी चलेगा। फैमिली चीज ही एक ऐसी है। तो आप अपनी फैमिली को क्या योगदान कर रहे हैं ? आप उनके problems solver बन गए हैं या अभी भी आप वो फैमिली के हिस्से हैं, जो कि उस फैमिली में सुकून, चैन, happiness, joy ला सकते हैं। और वो, जब आपकी फैमिली है तो वो रहेगा।

 

अब लोग क्या हैं! लोगों को फैमिली में भी — अभी ये बात मेरे से दो-तीन साल पहले किसी ने पूछी थी कि हमारे फैमिली में ये सब चुगली होती रहती है, ये सबकुछ होता रहता है और disharmony होती रहती है।

 

तो मैंने कहा कि "आपका क्या योगदान है उसमें ?"

 

तो पहले तो उनको लगा कि "ऐं ? मेरा क्या योगदान है ?" फिर उनको समझ में आया कि मैं क्या कह रहा हूं और उनका वो योगदान था।

 

देखिए! आप घर आते हैं अपनी नौकरी से। थके-मांदे आते हैं। और आपको ये है कि थोड़ा-सा चैन मिल जाए। और घर आते हैं तो कई बार ये होता है कि "मेरे को ये चाहिए, पापा! ये चाहिए, पापा! ये चाहिए, मेरे को ये कर दो! मेरे को ये कर दो, ये कर दो!" ये एक दिन में नहीं बदलेगी बात। क्योंकि ये माहौल आपने बनाया, इसमें मदद किया आपने इस माहौल को बनाने में। क्योंकि जब वो छोटे ही छोटे, छोटे, छोटे, छोटे थे — "वो! बहुत प्यारा है! हां! मैं ऑफिस से आया हूं, ये है, वो है!" पर धीरे-धीरे वो बड़े हो रहे हैं। ये तो वही वाली बात है, जैसे शेर पाल रखा है न ? जब वो छोटा है तो म्याऊं-म्याऊं करता है। और जब बड़ा हो जाता है तो वही शेर "हाऽऽऽऽऽऽ' करके आता है। इस माहौल को भी आप बदल सकते हैं। इस माहौल को भी आप बदल सकते हैं कि "आओ! बैठो! दो बात करो! दो बात! डिमांड नहीं।"

 

देखिए! अब मैं यहां इसलिए नहीं आया हूं कि मैं दुनिया की सारी समस्याएं solve करूं। परंतु सबसे बड़ी चक्कर — सबसे बड़ा चक्कर क्या है इस दुनिया के अंदर आप जानते हैं ? लोग एक-दूसरे की बात नहीं सुनते हैं। लोग एक-दूसरे की बात नहीं सुनते हैं। विद्यार्थी, टीचर की बात नहीं सुनते हैं। और कई बार — विद्यार्थी तो यही कहेंगे, टीचर हमारी बात नहीं सुनते हैं। नागरिक politician की बात नहीं सुनते हैं, politician नागरिक की बात नहीं सुनते हैं। पुलिस वाले यही कहेंगे, वो हमारी बात नहीं सुनते हैं और नागरिक यही कहेंगे, वो हमारी बात नहीं सुनते हैं। दो बात सुनने के लिए क्या लगेगा ? कुछ नहीं। कुछ नहीं! कुछ नहीं! कुछ नहीं। परंतु दो बात सुन लीजिए अपनी फैमिली से। और मैं सच कहता हूं कि वो दो बात अगर आप सुनना शुरू करें तो वो एक दिन तीन शब्दों में बदल जायेगी —  I love you!

बलवान कौन (ऑडियो) 00:09:28 बलवान कौन (ऑडियो) Audio Duration : 00:09:28

प्रेम रावत:

एक आदमी था। बहुत मेहनत करता था, पत्थर का काम करता था। वो हर रोज अपने घर से चल के पहाड़ पर जाता था। एक बड़ा-सा टुकड़ा जो वह अपने घर तक ले जा सके, इतना बड़ा पत्थर का तोड़ता था, घर ले जाता था और उसको फिर छेनी से, हथौड़े से उसकी तरह-तरह की चीजें बनाता था — मूर्ति बनाता था, सिलबट्टा बनाता था — ये सारी चीजें बनाता था।

सारे दिन उसको काम करना पड़ता था। धूल उड़ती थी, पसीने का काम था, मेहनत का काम था। हर रोज, चाहे इतवार हो, चाहे शनिचर हो, चाहे शुक्र हो, कोई भी त्योहार हो, उसको तो जाना था। क्योंकि जो कुछ भी थोड़ा-बहुत बनाकर के वो बाजार में बेचता था, उससे उसका पेट चलता था। अब उसको ऐसा लगता था हमेशा कि जो उसके साथ हो रहा है, वो ठीक नहीं है कि वह शक्तिशाली क्यों नहीं है ? वह इतना गरीब क्यों है ? शक्तिशाली होना चाहिए उसको ।

एक दिन वो सड़क से जा रहा था। एक बहुत बढ़िया आलीशान कोठी थी, वहां पार्टी हो रही थी। तो उसने रुककर के, दीवाल के ऊपर से देखा तो उस घर में — बहुत रईस आदमी का घर था वो। उसके नौकर-चाकर और उसमें उसके गेस्ट आ रखे थे, पार्टी हो रही थी। सब बढ़िया चल रहा था। लोग उसको बधाई दे रहे थे। उसको लगा कि ‘मेरे को तो ये चाहिए!’

तो वो भगवान की तरफ उसने चेहरा किया, ‘‘हे भगवान! मेरे को ऐसा क्यों नहीं बनाया ? ऐसा बना दे!’’

उस दिन भगवान अच्छे मूड में थे। देख रहे थे नीचे की तरफ, उसकी तरफ! चुटकी बजाई और वो रईस बन गया। अब रईस बन गया, उसके नौकर-चाकर सब ‘‘जी हुजूर! जी हुजूर! जी हुजूर!’’ और उसके दोस्त आ रहे हैं, उससे मिलना चाहते हैं। बड़ा ही वो ‘जरूरी आदमी’ बन गया। उसको अच्छा लगा कि ‘‘हां! ये है न जिंदगी! वो पत्थर वाली जिंदगी नहीं, जहां हर रोज पत्थर घसीटना पड़ता है। हर रोज काम करना पड़ता है। अब मेरी कितनी इज्जत है। मैं कितना शक्तिमान हूं।’’

ऐसे-ऐसे करके कुछ दिन निकल गए। तो एक दिन काफी आवाज आ रही थी सड़क से तो उसने जाकर देखा तो वहां सब — सारे शहर के अमीर लोग वहां खड़े हुए और जो आ रहा है, जैसे ही जैसे उसकी सवारी आए, सभी लोग उसके सामने झुक रहे हैं।

उसने पूछा किसी से कि ‘‘ये कौन है, जो मेरे से भी ज्यादा शक्तिशाली है ?’’

तो कहा ‘‘ये राजा है।’’

‘‘राजा तो मेरे से भी शक्तिशाली है! हे भगवान! मुझे राजा बना दे!’’

उस दिन भी भगवान अच्छे मूड में थे और उसकी तरफ देखा, चुटकी बजाई और वो राजा बन गया। अब राजा बन गया तो उसको लगा कि ‘‘यह तो बहुत ही बढ़िया है! अब यहां तो सभी लोग मेरे को — मेरे सामने झुकते हैं। कितनी मेरी शान है!’’

ऐसे करते-करते कुछ दिन बीते तो एक दिन वो सबेरे-सबेरे उठकर के अपने बरांडे में, बाहर खड़ा-खड़ा चाय पी रहा था और उसने देखा कि इतना बड़ा सूरज उगने लगा, उदय होने लगा। और जैसे सूरज उदय होने लगा, सारी चिड़ियां, सारे जानवर जगने लगे, लोग उठने लगे। सबकुछ होने लगा।

उसने कहा, ‘‘बाप रे बाप! ये सूरज कितना बलवान है! ये तो मेरे से भी ज्यादा बलवान है। इसके उदय होने से सारी पृथ्वी जागने लगी है। हे भगवान! मेरे को सूरज बना दो!’’

उस दिन भी भगवान कुछ अच्छे मूड में थे, सूरज बना दिया। अब वो जहां जाए, चमके और लोग उसकी तरफ देखें और सारी सृष्टि, सारी चिड़िया, सारे जानवर — जब वो उदय हो, तब वो चलने लगें। लोग उठने लगें। ‘‘यह तो बहुत ही बढ़िया है!’’

एक दिन वो आकाश में चमक रहा था। चमक रहा था। जहां देखो, चमक रहा था। देखा उसने पृथ्वी पर एक जगह थी, जहां वो चमक नहीं पा रहा था। पता नहीं क्या है ये ? मेरी चमक वहां तक क्यों नहीं पहुंच रही है ? तो उसने देखा, एक बादल! अब वो जितनी कोशिश करे उस बादल से चमकने की, वो चमका ही नहीं, उसकी रोशनी पृथ्वी तक पहुंचे ही नहीं।

‘‘ये बादल तो सूरज से भी बलवान है! ये तो सूरज को भी रोक देता है! हे भगवान! मुझे बादल बना दे!’’

अब वो बादल बन गया। और जहां सूरज चमक रहा है, वहां वो आए और सूरज की रोशनी को रोक दे। ऐसा करते-करते, करते-करते उसको लगा कि, ‘‘मैं कितना बलवान हो गया हूं!’’

एक दिन वो अपने बलवानपने पर खूब सोच रहा था, उसके बारे में खुश हो रहा था कि उसने देखा कि वो चल रहा है। एक जगह नहीं है। चल रहा है वो! ‘‘बादल को कौन चला रहा है ? बादल को कौन चला रहा है ? मैं तो सबसे शक्तिमान हूं! मैं तो सूरज से शक्तिमान हूं। जो राजा से शक्तिमान है, जो साहूकार से शक्तिमान है। कौन ऐसी चीज है, जो इस बादल को चला रही है ?’’

उसने देखा, तो हवा! हवा उस बादल को चला रही है। ‘‘हवा मेरे से भी शक्तिमान है ? हवा तो मेरे से भी ज्यादा शक्तिमान है! मैं बादल हूं। बादल सूरज से भी ज्यादा शक्तिमान है। सूरज राजा से भी ज्यादा शक्तिमान है। और राजा साहूकार से ज्यादा शक्तिमान है। और ये हवा तो मेरे से भी ज्यादा शक्तिमान है। हे भगवान! मेरे को हवा बना दे!’’

हवा बन गया वो। जहां जाए, जहां जाए, बहे। सारी टहनियां उसके आगे हिलें, धूल चले, सबकुछ हो रहा है। जा रहा है, जा रहा है, बह रहा है। कभी इधर जाता है, कभी उधर जाता है। बह रहा है, बह रहा है। खूब गति से बह रहा है। बादलों को इधर से उधर कर रहा है। सबकुछ कर रहा है। चल रहा है, चल रहा है। एक दिन आकर के धड़ाक — रुक गया!

‘‘हवा को किसने रोक दिया ? हवा, जो बादल से ज्यादा बलवान है। बादल, जो सूरज से ज्यादा बलवान है। सूरज, जो राजा से ज्यादा बलवान है। राजा, जो साहूकार से ज्यादा बलवान है। किस चीज ने रोक दिया ? देखा तो पहाड़! अब जितनी भी कोशिश करना चाहे हवा पहाड़ के पार नहीं हो सकती।’’

‘‘हे भगवान! मेरे को पहाड़ बना दे!’’ {चुटकी बजाई} पहाड़ बन गया।

सचमुच में सबसे बलवान! खड़ा-खड़ा वहां, ‘‘मैं अब सबसे बलवान हूं!’’

एक दिन वह अपनी शक्ति पर खूब गौर कर रहा था। नीचे से एक आवाज आयी और उसको लगा कि कोई इस पहाड़ को काटने में लगा हुआ है। उसने कहा, ‘‘इस पहाड़ से कौन बलवान हो सकता है ? ज्यादा बलवान, जो पहाड़ को काट रहा है ? क्योंकि पहाड़ हवा से ज्यादा बलवान है। हवा बादल से ज्यादा बलवान है। बादल सूरज से ज्यादा बलवान है। सूरज राजा से ज्यादा बलवान है। राजा साहूकार से ज्यादा बलवान है। पहाड़ तो सबसे बलवान है। फिर उसको कौन काट रहा है ? इससे बलवान कौन हो सकता है ?’’

नीचे देखा तो उसी की तरह एक पत्थर को काटने वाला — उसी की तरह एक पत्थर को काटने वाला उस पहाड़ को काट रहा था। तो सबसे बलवान तो वो पहले से ही था पर उसको नहीं मालूम था कि वो बलवान है। पर वो था। ठीक उसी प्रकार से, तुम्हारे जीवन में सब आशीर्वाद हैं।

सपने और हकीकत (ऑडियो) 00:09:34 सपने और हकीकत (ऑडियो) Audio Duration : 00:09:34 मेरे को आनंद से मतलब है, मेरे को शांति से मतलब है, मेरे को संतोष से मतलब है। मेर...

प्रेम रावत:

एक बार एक राजा ने अपने माली को कहा कि महल के पास यह जगह है और यहां मैं चाहता हूं कि बहुत सुंदर एक बाग लगाओ। तो महल ऊपर पहाड़ी पर बना हुआ था। रोज माली एक बांस बड़ा और आगे एक मटका और पीछे एक मटका, उसको लेकर नीचे रास्ते से जाता था और जो नीचे, पहाड़ के नीचे जो नदी थी, उससे पानी, अपने मटके में भर के और फिर ऊपर तक, अपने बाग तक उसको ले जाता था। ऐसे करते-करते, करते-करते, काफी समय बीता। हरियाली होने लगी बाग में। फूल लगने लगे। बाग अच्छा लगने लगा।

एक दिन माली ने जैसे ही मटके को रखा तो एक मटका, जो पीछे वाला मटका था, उसमें छेद हो गया। फिर भी माली ने उस मटके को फेंका नहीं। और न ही अपने बांस से निकाला। वो रोज उन्हीं दो मटकों को नीचे तक ले जाता था, पानी से भरता था, फिर ऊपर लाता था। चलता रहा ये।

एक दिन आगे वाला मटका, पीछे वाले मटके से बोलता है, ‘‘तू किसी काम का नहीं रहा! तेरे में तो छेद है।’’

जो पीछे वाला मटका था, उसको अहसास हुआ कि सचमुच में किसी काम का नहीं हूं मैं।

आगे वाले मटके ने कहा कि ‘‘ये माली इतनी मेहनत करके नीचे ले जाता है, दोनों मटकों को भरता है और जब तक वो ऊपर, इस बाग में पहुंचता है, तेरे में तो एक बूंद पानी नहीं रहता है। और ये जो बाग — हरियाली इस बाग की जो दिखाई दे रही है, वो तो सिर्फ मेरे कारण है। तेरे कारण तो है नहीं! तू तो किसी काम का नहीं है।’’

मटके को बड़ा बुरा लगा। एक दिन पीछे वाला जो मटका था, वो रोने लगा।

माली आया। माली ने दोनों मटकों को देखा। पीछे वाले मटके को देखकर कहता है, ‘‘तू रो क्यों रहा है ?’’

कहा, ‘‘मैं किसी काम का नहीं रहा। तुम इतनी मेहनत करते हो, नीचे दोनों मटकों को भरते हो, ऊपर लाते हो और जबतक ऊपर लाते हो, मेरे में तो एक बूंद पानी नहीं रहता है। मैं तो किसी काम का नहीं।’’

माली ने कहा, ‘‘ऐसी बात नहीं है। मुझे मालूम है, जिस दिन तेरे में छेद हुआ। मुझे मालूम है। पर मैं तेरे को फिर भी भरता रहा और ऊपर तक लाता रहा। इस बाग में जो हरियाली है, वो तो आगे वाले मटके की वजह से है। परंतु तैंने देखा, जो रास्ता नदी से इस बाग तक आता है, उसमें कितनी हरियाली है! और वो तेरी वजह से है। इस बाग में सब कोई नहीं आ सकता। और उस रोड पर सब लोग आते हैं, जाते हैं और वो उन फूलों को देखकर खुश होते हैं। आगे वाला मटका तो एक ही आदमी को खुश करता है और तू दिन में हजारों लोगों को खुश करता है।’’

क्योंकि सोचने की बात है हम अपने को अभागा समझते हैं। क्योंकि हमारी जो धारणाएं हैं, हमारी जो सोच है — ऐसा होना चाहिए। हमारे जो सपने हैं, ऐसा होना चाहिए, ऐसा होना चाहिए। हम ये चाहते हैं, हम ये चाहते हैं, ये साकार नहीं होते हैं और जब साकार नहीं होते हैं तो हमको दुःख होता है। हम कहते हैं, ‘‘हमारे साथ ये क्यों हो रहा है ? उसके साथ ये क्यों हो रहा है ? उसके साथ सबकुछ अच्छा है, हमारे साथ सबकुछ बुरा है।’’ अपने कर्मों को कोसते हैं। जब दुःख आता है, ‘‘मेरे कर्मों का फल है। मैंने क्या कर्म किए होंगे पिछले जन्म में ?"

मतलब, सारी बात दिमाग में ऐसे-ऐसे घुसेड़ते हैं कि पूछो मत! और घुसेड़ने वाले भी एक नहीं हैं, अनेक हैं। ‘‘जो कुछ आज हो रहा है, वह तेरे कर्मों का फल है।’’ तो मुझे याद क्यों नहीं है ? मैंने क्या कर्म किए थे ? अगर याद होता कि ये-ये कर्म करने से मेरे को अच्छा फल मिल रहा है तो दुबारा करता! याद तो है नहीं! अब क्या करूं ? पर चक्कर है — कर्मों का नहीं, तुम्हारे सपने पूरे न होने का। चक्कर ये है! चक्कर कर्मों का नहीं है। चक्कर कर्मों का नहीं है! चक्कर है — तुमने जो धारणाएं बना रखी हैं कि मेरे सपने ये हैं, मेरे सपने ये हैं और दुनिया तुमको दिखाती है सपने।

क्यों ? ये है मनुष्य इस कलयुग का और भूल गया है मनुष्य अपनी ही प्रकृति को। भूल गया है मनुष्य कि वो सचमुच में वो क्या है, वो कौन है ?

और लोग लगे हुए हैं, ‘‘हां! हां, हां!!’’

देखो! जो तुमको समझ में न आए, वो कूड़ा है। जो तुमको समझ में न आए! अगर वो, जो समझ में नहीं आता है, उसको निकाल दो तो तुम जानते हो, तुम्हारे कंधों का बोझ कितना हल्का होगा ? कर्मों के चक्कर से निकल के तुम किस चक्कर में पड़ोगे कि मेरे को अपने जीवन में शांति चाहिए। मैं आनंदमय — हर दिन मैं आनंदमय होना चाहता हूं। बस! अब ये पैसे से आए तो फिर पैसा कमाऊंगा और पैसे से न आए, जैसे आए, मेरे को आनंद से मतलब है, मेरे को शांति से मतलब है, मेरे को संतोष से मतलब है। मेरे को उस चीज से मतलब है, जो मेरे हृदय में है। और चीजों से मेरे को मतलब नहीं है।

तुम्हारी प्रकृति है ये कि तुम्हें लगी है असली प्यास और असली प्यास है उस परमानन्द की, अपने आपको जानने की। क्योंकि अगर तुम अपने आपको जानते तो तुमको पता लगता कि तुम्हारे में कितना बल है! तुम अगर अपने आपको जानते तो और चीजों के पीछे न लगकर के, अपने पीछे लगते। अपने अंदर स्थित जो मंदिर तुम्हारे हृदय के अंदर है, वहां जाकर तुम दर्शन करते। वहां जाकर के उस भगवान का पूजन करते, जो असली भगवान, जो था, है और रहेगा, तुम्हारे अंदर जो है। 

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