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खुशी असल में है क्या ? 00:04:52 खुशी असल में है क्या ? वीडियो अवधि : 00:04:52 असली खुशी, असली हैपीनेस अंदर से आती है।

Title on screen: खुशी असल में है क्या ?

ऐंकर: हैपिनेस की बात होती है। शांति की, पीस की बात होती है। और इसीलिए शायद हमारे देश में कुछ स्टेट के गवर्नमेंट भी आगे आते हैं।

हैपिनेस डिपार्टमेंट तक बना दिया। डिपार्टमेंट बना देने से क्या कोई खुश हो सकता है ? या उसके लिए कुछ और करने की जरूरत है हमको ?
प्रेम रावत जी: बात यह है कि हम हैपीनेस को समझते ही नहीं हैं। अब बना दिया डिपार्टमेंट। हैपीनेस डिपार्टमेंट बना दिया। वो एक्शन लेगा। कुछ करेगा। सबसे पहले यह बात समझने की होनी चाहिए कि हैपीनेस सब्जेक्टिव है या ऑब्जक्टिव है ? सब्जेक्टिव का मतलब — ये आपके एहसास करने की बात है। ऑब्जेक्टिव है — नहीं, इसका एक फॉर्मूला है। तो अगर हम हैपीनेस को ऑब्जेक्टिव बना दें, जबकि वो सब्जेक्टिव है। कोई आदमी है, वो खुश है या नहीं है ? उसके पास पैसे नहीं हैं। वो खुश है या नहीं है ? कैसे पूछेंगे आप?

मैंने देखा है छोटे बच्चों को रोड पर, उनके — जूते नहीं हैं उनके पास और एक बाइसिकल का चक्का लेकर के एक लकड़ी के साथ — उसको चला रहे हैं और उनकी स्माइल है इतनी बड़ी। वो हैपी हैं या नहीं ? खुश हैं या नहीं ? तो हमारे दिमाग में एक बात डाल दी गई है कि तुम तब खुश होगे, जब तुम्हारे पास जॉब होगा, जब तुम्हारे पास पैसा होगा, जब तुम्हारे पास कार होगी, जब तुम्हारे पास ये होगा, वो होगा। अब लोग हैं, कई लोग हैं, जो बड़े खुशी से शादी करते हैं। इतनी बड़ी स्माइल! बैंड बज रहा है, बाजा बज रहा है। सब नाच रहे हैं। चार महीने के बाद, पांच महीने के बाद वो स्माइल जो है, यहां आ गई।

ऐंकर: स्क्वीज़ हो जाती है।

प्रेम रावत जी: क्या हुआ ? क्या हुआ ? अगर आप अपनी खुशी और चीजों पर निर्भर रखेंगे तो यही होगा। यही होगा! क्योंकि खुशी, असली खुशी, असली हैपीनेस अंदर से आती है। जब कोई चीज सेट हो, जब कोई चीज ठीक हो अंदर से तो ये बहुत जरूरी है इस बात को जानना कि एक तो हमारे जीवन के अंदर हमको आभार का अहसास होना चाहिए।

और दूसरी चीज, हम ये न सोचें कि दूसरा मेरे बारे में क्या सोच रहा है। एक, फिर तीसरी चीज, हम अपने आपको जानें। अपने आपको पहचानें। और हमारे जीवन के अंदर हमेशा आशा रहनी चाहिए। ये हैं बेसिक फंडामेंटल्स! और गवर्नमेंट इसके बारे में क्या कर सकती है ? नहीं। मनुष्य को करना पड़ेगा। हमारी रिलॉयबिलिटी कि गवर्नमेंट हमारी प्रॉब्लम्स सॉल्व करेगी, इतनी हो गई है, इतनी हो गई है और अगर हम रिपोर्ट-कार्ड देखें — देखिए! अगर आपका बच्चा स्कूल जाता है तो वो कैसा पढ़ रहा है ? पास हो रहा है या नहीं हो रहा है ? ये आप रिपोर्ट-कार्ड से देखते हैं। उसके दिमाग में आया भी है या नहीं आया? हम गवर्नमेंट का रिपोर्ट-कार्ड बनाते हैं ?

ऐंकर: ना।

प्रेम रावत: कितनी प्रोमिसेज़ की और कितनी प्रोमिसेज़ रखीं।

ऐंकर: नो चेकिंग बैलेंस।

प्रेम रावत: कहां है रिपोर्ट-कार्ड ? सोसाइटी ने कहा, हम तुमको ये देंगे, ये देंगे, ये देंगे, ये देंगे! कहां है रिपोर्ट-कार्ड ? और अगर रिपोर्ट-कार्ड आज बनाया जाये तो मैं आपको गारंटी देता हूं कि सारीकी सारी चीजें फेल होंगी। एक भी पास नहीं होगा उसमें से।

क्योंकि वर्ल्ड-लीडर्स आते हैं, उन पर हम रिलॉय करते हैं कि ये शांति लाएंगे। लाया कोई ? तो कब छोड़ेंगे हम ये आदत ? उन पर रिलॉय मत करें, अपने पर रिलॉय करें। अगर आपको सचमुच में सफाई चाहिए अपने देश में तो यह आप पर निर्भर है। आप गंदा न करें। क्योंकि मैं देखता हूं। देखता हूं! लोग जो सोचते भी नहीं हैं और कूड़ा फेंकते हैं। सोचा भी नहीं। मतलब, एक सेकेंड भी नहीं सोचा। ये कहां जाएगा ? मैनुफैक्चर्स बना रहे हैं चीजें, उनको पैकेजेज़ में डाल रहे हैं और कूड़ा इकट्ठा हो रहा है। कहां ? कब लेगा मनुष्य अपनी जिम्मेवारी अपने पर ? और जबतक ये नहीं होगा, कोई खुश नहीं हो सकता।

बात है अनुभव की 00:01:02 बात है अनुभव की वीडियो अवधि : 00:01:02 आपके हृदय के अंदर जो शांति बसी हुई है, उसका अनुभव कीजिए।

प्रेम रावत:

जो आपके अंदर है, उसको आप समझिए। जो आपके हृदय के अंदर शांति बसी हुई है, उसको एक्सपीरियंस कीजिए, उसका अनुभव कीजिए।

अगर अंदर मजबूती है, आपके अंदर मजबूती है तो बाहर चाहे तूफान आये, न आये — क्योंकि तूफान तो जरूर आएगा, पर आपका घर भूसे का बना है या सीमेंट का बना है ?

अगर भूसे का बना है तो हवा आएगी, उड़ा के ले जाएगी। और जिसने अपने अंदर शांति का अनुभव किया है, जिसने अपने अंदर दया का अनुभव किया है, जिसने अपने अंदर समझ का अनुभव किया है, उसका घर भूसे का नहीं है। उसका घर कोई भी तूफान आए, वो कहीं नहीं जाएगा।

जीवन में सकारात्मक सोंच कैसे लायें 00:05:51 जीवन में सकारात्मक सोंच कैसे लायें वीडियो अवधि : 00:05:51 जबतक तुम अपने आपको नहीं जानोगे, यह जीवन किस तरीके से चलना चाहिए, कौन समझायेगा तु...

कनुप्रिया:

यही सवाल लोगों के भी हैं कि विचार जो चल रहे हैं, चलते जाते हैं, चलते जाते हैं। पॉज़िटिव भी आता है, सही भी आता है, सकारात्मक भी और साथ ही साथ नकारात्मक भी, नेगेटिव भी उतना ही आ जाता है। ये जो लगातार चलती एक बातचीत है हमारे दिमाग में विचारों की, उसको उस सकारात्मक तक फोकस कैसे करें ? क्योंकि वह तो एक आएगा और जो नेगेटिव थॉट है, उसकी तादाद बहुत तेजी से आती है।

प्रेम रावत:

बिल्कुल! ये तो — इसको संशय कहते हैं। संशय जब आने लगता है मनुष्य के अंदर, क्योंकि वो जब कमजोर पड़ने लगता है तो उसके अंदर संशय आने लगता है।

आपने देखा होगा, माता-बहनें चक्की चलाती हैं। चक्की चल रही है, चल रही है, चल रही है।

अब कहीं वो — जो माताएं या बहनें हैं, कोई भी चक्की चला रहा है, वो कहे, ‘‘ये इधर क्यों घूम रही है ? इसको ऐसे क्यों नहीं घुमाते हैं ?’’

और फिर इधर से करने लगे, ‘‘नहीं, इसको ऐसे ठीक रहेगा। नहीं, ये ऐसे ठीक रहेगा। नहीं, ये ऐसे ठीक रहेगा।’’ तो ऐसे करते रहेंगे तो आटा तो मिलेगा नहीं। जब भूख लगेगी, आटा तो मिलेगा नहीं।

यही हाल इस दुनिया का है। कोई कहता है, ‘‘ऐसे करो!’’ कोई कहता है, "ऐसे करो!" कोई कहता है, "ऐसे करो!" कोई कहता है, "ऐसे करो!"

और लोग हैं, जो कहते हैं, "कैसे करें ? ऐसे करे ? ऐसे करें ? कैसे करें ?"

"ऐसे नहीं होना चाहिए! नहीं, ऐसे करो! नहीं, ऐसे करो! नहीं, ऐसा करो! नहीं, ऐसा करो!"

जबतक तुम अपने आपको नहीं जानोगे, यह चक्की किस तरीके से चलनी चाहिए, कौन समझाएगा तुमको ?

यह तुम्हारे ऊपर निर्भर करता है कि यह तुम्हारे — संभावना यह है कि तुम्हारा यह जो जीवन है, इसको तुम सुख और शांति से बिता सकते हो। यह संभावना है और इसका पहला फैसला तुमको लेना पड़ेगा। कोई और नहीं ले सकता।

क्या चाहते हो तुम ? जलन करते हो, ईर्ष्या करते हो ? करते हो ?

तुम्हारे जीवन के अंदर महाभारत हो न हो, छोटी-छोटी महाभारत तुम्हारे परिवार में होती रहती है। क्या परिवार का यही मतलब होता है ?

"बुजुर्ग हो। बुजुर्ग हो तो बात करना सीखो, हुक्म चलाना नहीं — तू ऐसा नहीं करेगा!"

अरे! बात करना सीखो! बैठाओ! पहले समझाओ! बात करो! उसकी सुनो! अपनी कहो, फिर उसकी सुनो!

कई लोग आते हैं मेरे पास कि "जी! परिवार में ये सारी चीजें — झगड़ा बना रहता है। कैसे सुलझाया जाए ?"

मैं सोच रहा था इसके बारे में। जब लड़का-लड़की में प्यार होता है — पहला-पहला प्यार! पहला-पहला प्यार!

क्या करते हैं ?

बात करते हैं। तत...तत...तत..तत...तत! उससे — आइसक्रीम से पहले, कुल्फी से पहले बात होती है।

"कैसे हो ? क्या है ? कैसा रहा तुम्हारा दिन ?"

और अगर लड़की कहे, ‘‘मैं तो परेशान हूं।"

"क्या परेशानी है ?"

नहीं ? मैं गलत कह रहा हूं ? शादी के बाद ? बात-वात सब खत्म!

"मेरी रोटी कहां है ? तैंने — मेरे को करारी रोटी नहीं चाहिए थी, तैंने ज्यादा सेंक दी। इसमें नमक ज्यादा डाल दिया।"

अगर यही बात तुम तब करते तो तुम्हारा आगे झंझट ही नहीं चलता। वो तुम्हारी गर्ल-फ्रैण्ड कब का तुमको छोड़-छाड़ के भाग जाती। परंतु तुम भी ऐसे निकले — मीठी-मीठी बात! अपना उल्लू सीधा करने के लिए और अब शादी हो गयी और मीठी बात सब खत्म।

अरे! वो मीठी बात लाओ!

पति घर आता है। छः घंटे, सात घंटे की नौकरी करके, उसको लिस्ट मत थमाओ!

उससे पूछो, "‘उसका दिन कैसे गया ?"

तुमको कुछ करने की जरूरत नहीं है। सिर्फ सुनने की जरूरत है। सुनने की ताकत लोगों में खत्म हो गयी है। सुनो! तुमको हां मिलाने की जरूरत नहीं है। तुमको हां कहने की जरूरत नहीं है। तुमको ना कहने की जरूरत नहीं है। सिर्फ सुनने की जरूरत है।

Text on screen:

जब तक तुम अपने आपको नहीं जानोगे,

यह जीवन किस तरीके से चलना चाहिए,

कौन समझायेगा ?

 

जीवन की सरलता (Jeevan ki Saralta) 00:03:16 जीवन की सरलता (Jeevan ki Saralta) वीडियो अवधि : 00:03:16 क्रिएटिव सबसे ज्यादा आप तभी बनेंगे, जब आप सरल होंगे।

Text on screen:

क्या हम लाइफ की सिम्पलिसिटी को भूल गये हैं ?

प्रेम रावत:

क्रिएटिव सबसे ज्यादा आप तभी बनेंगे जब आप सिम्पल होंगे। क्योंकि हम सिम्पल नहीं हैं — क्योंकि हम सिम्पल नहीं हैं, तो यह समझिए कि दो चीजें हैं जो आपस में रगड़ रही हैं — एक तो हृदय है जो जीना चाहता है, जो आनंद लेना चाहता है, जो शांति का अनुभव...। और दूसरी तरफ — ये सारा कूड़ा जो हमारे कमरे में पड़ा हुआ है, जो सड़ रहा है, बास आ रही है। तो एक तरफ तो इच्छा है कि मैं इस कमरे में रहूं और दूसरी तरफ जो बास है वो कह रही है बाहर निकल। तो रगड़ रहा है आदमी, अपने से ही रगड़ रहा है।

साधारणता में, सरलता में, जिसको चित्र नहीं बनाना आता, वो कोशिश करेगा, कोशिश करेगा, कोशिश करेगा। देखिए! एक चीज मैंने, इसको मैंने देखा है। अगर आप छोटे बच्चे को कहो कि तुम ऐक्टिंग करो कि तुम सो रहे हो। तो वो जानते हैं क्या करेंगे ? अपनी आंख को बड़ी जोर से बंद करेंगे कि वो सो नहीं रहे हैं। उनको अहसास नहीं है कि मैं कैसा दिख रहा हूं। तो अपनी आंख को बंद करेंगे — ऐसे-ऐसे-ऐसे करेंगे। परंतु जो सो रहा है, बच्चा भी सो रहा है, तो वो ऐसा-ऐसा नहीं करेगा। उसकी आंख स्वाभाविक तरीके से बंद होगी। एक तरफ हम कोशिश कर रहे हैं अच्छा बनने के लिए। पर उसमें सरलता नहीं है। सरलता जब होगी, इसका मतलब है जो होना है वो हो रहा है। हम उस चीज को जान रहे हैं। सच में हमको नींद आ रही है, हम सोने की एक्टिंग नहीं कर रहे हैं। तो वो होना चाहिए। ये जीवन एक्टिंग के लिए नहीं है। अब फिल्म स्टार को एक्टिंग करनी है वो तो करनी है।

एंकर : ये उसका प्रोफेशन है।

प्रेम रावत : उसका प्रोफेशन है। परंतु ये एक्टिंग के लिए नहीं है। हमको एक्ट नहीं करना है कि हम इंटेलीजेंट हैं — या तो हैं या नहीं हैं। अब अगर एक्टिंग करने लगेंगे कि हम इंटेलीजेंट हैं जब हम इंटेलीजेंट नहीं हैं, तो फिर गड़बड़ होगी। तो इसलिए जीवन को स्वीकार करना सीखो।

एंकर : सहजता में जीना सीखो।

प्रेम रावत : सहजता में जीना सीखो। स्वीकार करना सीखो। तो इसमें आपको एक सहजता मिलेगी, एक सरलता मिलेगी। एक सिम्पलिसिटी मिलेगी। और यह आपके जीवन के अंदर एक अनोखा आनंद लायेगी, क्योंकि आप जिसको इम्प्रेस करने की कोशिश कर रहे हो, वो कभी इम्प्रेस होगा नहीं।

एंकर : जी।

प्रेम रावत : उसको — जैसे ही वह इम्प्रेस होने लगेगा उसको ईर्ष्या होगी। और जैसे ही ईर्ष्या होने लगेगी, वो फिर आपसे द्वेष करना शुरू कर देगा, बजाय आपको स्वीकार करने के। किसी को इम्प्रेस करने की जरूरत नहीं है। अगर किसी को इम्प्रेस करना है तो अपने आपको इम्प्रेस करना है।

Text on screen:

क्रिएटिव सबसे ज्यादा आप तभी बनेंगे, जब आप सिम्पिल होंगे।

उपहार (Uphaar) 00:01:49 उपहार (Uphaar) वीडियो अवधि : 00:01:49 अगर कोई आपको उपहार दे और आप उसे स्वीकार न करें तो वो उपहार किसका हुआ ?

प्रेम रावत:

मैं एक सवाल पूछता हूं आपसे। अगर कोई आपको गिफ्ट दे — अगर कोई आपको उपहार दे और आप उस उपहार को स्वीकार न करें तो वह उपहार किसका हुआ ? देने वाले का या लेने वाले का ?

उसी का है, जिसने दिया। आपका नहीं है। वो उपहार तभी आपका होगा, जब आप उसको स्वीकार करेंगे।
तो आपको बनाने वाले ने यह जिंदगी दी। अगर आपने स्वीकार नहीं की तो यह किसकी हुई ?

उसी की हुई। आपकी नहीं हुई। अपनी जिंदगी को जीने के लिए इस जिंदगी को स्वीकार करना बहुत जरूरी है।
किसकी है यह जिंदगी ?

अगर स्वीकार किया, तुम्हारी है। पहले जिंदगी स्वीकार करो, क्योंकि वो देने वाला दे रहा है। उसका नाम ही दाता है, वो सबको देता है। वो तुमको स्वांस रूपी ये चीज दे रहा है, इससे बड़ा धन कोई नहीं है। इससे बड़ा धन कोई नहीं है!

दुःख (Dukh) 00:06:35 दुःख (Dukh) वीडियो अवधि : 00:06:35 जो दुःख का कारण है, मेरे इर्द-गिर्द की जो परिस्थितियां हैं, उनको हम कैसे नियंत्र...

प्रश्नकर्ता:

मैं अपने आप में तो खुश रह सकता हूं, क्योंकि मुझे अपने आपसे — और मैं अपने आपको समझता हूं, अपने आपको जानता हूं और अपने आपसे कैसा व्यवहार करना है यह भी मुझे मालूम है। लेकिन जो दूसरा कारण, जब दुःख का बनता है और वो दुःख का कारण है, मेरे इर्द-गिर्द की जो परिस्थितियां हैं, उनको हम कैसे नियंत्रित करें ? जो दुःख मुझे एक्सर्टनल या सोसाइटी या अन्य किसी स्रोत से या अन्य किसी जगह से प्रभावित करता है या किसी क्षण तक प्रभावित करता है, उसका समाधान कैसे होगा ?

प्रेम रावत:

आपके घर में मच्छर आ रहे हैं, मक्खियां आ रही हैं। तो आप सबसे पहले क्या देखेंगे ? आपका घर है, दीवाल हैं, किवाड़ हैं, खिड़कियां हैं। सबसे पहले आप क्या देखेंगे ? अगर मक्खियां आ रही हैं — दरवाजा बंद है या नहीं ? खिड़कियां बद हैं या नहीं ? अगर खिड़कियां खुली हुई हैं सारी तो मक्खी मच्छर तो आएंगे। हो सकता है, खिड़की हमने खोली हो कि फ्रेश हवा, शुद्ध हवा हमारे कमरे में आए। परंतु उसका एक कॉन्सीक्वेन्स भी है कि हवा भी आएगी तो मक्खी भी आएगी, मच्छर भी आएंगे और धूल भी आएगी।

तो सबसे पहले हमको ये देखना है कि हम क्या चाहते हैं ? अगर हम उन मक्खी और मच्छरों से बचना चाहते हैं और वो मक्खी-मच्छर हैं — ‘समस्याएं’। जो थोड़ी-थोड़ी समस्याएं आती हैं या कोई ऐसी चीज कर देता है, जिससे कि हमको दुःख होता है या हम किसी का दुःख नहीं सहन कर पा रहे हैं — ये हैं वो मक्खी और मच्छर! खिड़की बंद करने की जरूरत है।

क्योंकि कोई भी मनुष्य अपने जीवन में एक दीया हो। दीया उजाला देता है। दीया यह नहीं देखता है कि मैं किस पर उजाला दे रहा हूं। उसके पास अगर चोर आएगा, उसके लिए भी उजाला हो जाएगा और अगर कोई संत आएगा, उसके लिए भी उजाला हो जाएगा। ये जितने हमारे फ़र्क हमने बनाए हुए हैं, दीये का इससे कोई लेना-देना नहीं है। उसका काम है — प्रकाश देना।

जैसे सूर्य उदय होता है और वो सारे संसार के अंदर उजाला पैदा करता है। वो यह नहीं देखता है, यह चोर है, यह अच्छा आदमी नहीं है, यह नहीं करूंगा, यह नहीं करूंगा। ये सब हम करते हैं। जबतक हम अपने में यह नहीं जान लेंगे कि मेरा स्रोत, मेरे शांति का स्रोत मेरे अंदर है और जब वो स्रोत, उससे मैं अपना कनैक्शन जोड़ूंगा और वो बाहर आएगा तो मैं — सबके लिए एक ऐसा मेरा माहौल हो जाएगा कि मैं सबमें खुशी बांटने के लिए तैयार हो जाऊंगा।

देखिए! दो प्रकार के लोग होते हैं — एक तो वो, जिनके साथ आप एक मिनट भी नहीं बिता सकते हैं और एक वो, जो आपके जीवन में थोड़ी स्माइल ले आते हैं, थोड़ी खुशी ले आते हैं। हां, अगर हम वैसे होने लगें, हर एक व्यक्ति वैसे होने लगे कि वो थोड़ा-सा सुकून ले आए, थोड़ी-सी मुस्कान ले आए। अब ये नहीं है कि वो सारा माहौल बदल देगा, ये नहीं है कि सारी जो समस्याएं हैं, उनको अपने कंधों पर ले लेगा। नहीं। वो सिर्फ एक छोटी-सी चीज करे।

अब एक दिन मैं जा रहा था कार से तो मैंने देखा कि एक बस, जो खड़ी हुई थी, वो चलने लगी। एक बेचारा बहुत ही वृद्ध आदमी उस बस के पीछे धीरे-धीरे भागने लगा। और वो बस उसकी थी, परंतु वह छूट गया। और बस धीरे-धीरे तेज़ चलने लगी और उस बेचारे ने भागने की कोशिश की, पर बहुत ही वृद्ध था, वो भाग नहीं सका। मैं सोच रहा था कि मैं ड्राइवर से कहूं कि वो बस के ड्राइवर के पास जाए और उससे कहें। इतने में एक व्यक्ति अपनी मोटर साइकिल से आया और उसने बस को थपथपाया और ड्राइवर से कहा — ‘‘तेरा एक पैसेंजर छूट गया है!’’

ड्राइवर ने बस रोकी और वो वृद्ध आदमी उस पर चढ़ गया। और मैंने देखा कि मोटर साइकिल वाले ने अपनी मोटर साइकिल को रोककर के, बस में चढ़कर के उस वृद्ध आदमी से ये नहीं कहा कि ‘‘तूने थैंक्यू नहीं कहा ?’’ ना। वो चला गया।

मैंने सोचा कि हम एंजेल्स की बात करते हैं। मैंने अभी-अभी एक एंजेल को मोटर साइकिल में देखा और उसने... अब बेचारा वो कहां जा रहा था ? लोग उसकी इंतजार करेंगे। कितने लोगों के लिए उसने एक बहुत ही मुश्किल बात को सरल बना दिया। वो आया। कहां से आया ? पता नहीं। और कहां गया ? मैं देखता रहा, कहां गया ? कहीं चला गया वो। उसके पर नहीं थे और वो देखने में भी कोई ऐसा नहीं लगता था कि विशेष आदमी हो। परंतु वो मनुष्य था। और उस मनुष्य के रूप में वो एंजेल आई — वो था और उसने एक बहुत छोटा-सा काम किया — ‘‘ठक-ठक! तेरा पैसेंजर छूट गया।’’ और चला गया।

ये हम सब कर सकते हैं। हम ये सब कर सकते हैं। यह मानवता है। और जब मनुष्य अपने आपको ही नहीं जानता है तो उसकी मानवता क्या है, वो नहीं समझ पाता है। और ये समझना बहुत जरूरी है।

- प्रेम रावत

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