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हीरे का हार (The Diamond Necklace) 00:03:31 हीरे का हार (The Diamond Necklace) वीडियो अवधि : 00:03:31

The Diamond Necklace

Oftentimes, we tend to anguish over acquiring what we don't have and forget to appreciate the things we do have.

मैं समाज में कैसे कंट्रीब्यूट करूं 00:04:38 मैं समाज में कैसे कंट्रीब्यूट करूं वीडियो अवधि : 00:04:38 अब समय आ गया है दरारों को बंद करने का। सब मिलकर के जब करेंगे, नई सीढ़ी बनेगी और इ...

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एक मनुष्य होने के नाते, मैं समाज में कैसे कंट्रीब्यूट कर सकता हूं ?

कनुप्रिया:

एक भारतीय होने के नाते, आज मैं अगर अवेयर हूं, मैं अगर थोड़ा-सा जागरूक हो रहा हूं — आपने कहा कि, मैं कितना कूल हूं, खुद ही पहचान लूं अगर मैं जान रहा हूं ये तो मुझे क्या कंट्रीब्यूट करना है कि वो सीढ़ी मैं बना पाऊंगा। ये कुछ जरूर पूछना चाहूंगी मैं ।

प्रेम रावत जी:

देखिए! यह तो बहुत सरल-सी बात है। यह बात है — अगर हम यह जान जाएं कि हमारे पास भी कुछ देने के लिए है और हमारे पास गुंज़ाइश है कुछ लेने के लिए। कुछ लें, कुछ दें। बस!

यह नहीं है कि ‘‘बस, हम तो सिर्फ देंगे, हम लेंगे नहीं! हमको कोई चीज विदेश की नहीं चाहिए।’’

अच्छा, यह आपका फाउंटेन पेन कहां से आया ? आपका फोन कहां से आया ? आपकी बस कहां से आयी ? आपका हवाई जहाज कहां से आया ? आपकी पैंट कहां से आयी ? आपकी शर्ट कहां से आयी ? आपके चश्में कहां से आए ? आपका टूथपेस्ट कहां से आया ?

कोई जवाब नहीं दे रहा है।

कनुप्रिया: बिल्कुल! तो जो अच्छाई हमारे पास है...

प्रेम रावत जी:

नीम की बात नहीं कह रहा हूं मैं, टूथपेस्ट की बात कर रहा हूं। नीम तो आया हिन्दुस्तान से, टूथपेस्ट आया विदेश से।

हैं जी ?

तो ये सारी चीजें ग्रहण करने के लिए तो कोई प्रॉब्लम नहीं है, परंतु शादी-ब्याह होगा और उसमें क्या बजाएंगे ?

वो ट्रमबोन! वो कहां से आया ?

वो हिन्दुस्तानी है ? ना! वो भी विदेश से आया।

ड्रम बजाएंगे, वो कहां से आया ? विदेश से।

हिन्दुस्तानी क्या है ? वो हिन्दुस्तानी नहीं है, पर तबला — ये सारी चीजें। वो तो ज्यादा बजता नहीं है, शादी-ब्याह में जब बारात चलती है।

तो समझने की बात है — कुछ लें, कुछ दें। और हर एक व्यक्ति, जो दिया जाए उसको देखने के लिए, उसको स्वीकार करने के लिए, उसको जानने के लिए राज़ी हो। और जो दिया जाए, वो ऐसा दिया जाए, ताकि औरों का भी भला हो। वो चीजें नहीं दी जाएं, जिनका कोई सिर-पैर ही नहीं है। पर वो चीजें दी जाए, जिससे सबका भला होगा। सबका! सबका!

तभी सब मिलकर के — क्योंकि अब समय आ गया है दरारों को बंद करने का। दरारों को बढ़ाने का नहीं, दरारों को बंद करने का। सब मिलकर के जब करेंगे, नई सीढ़ी बनेगी और इस सीढ़ी के ऊपर सब चढ़ेंगे, सिर्फ युवा ही नहीं। सिर्फ युवा ही नहीं! क्योंकि लोग फिर वही बात करते हैं, युवा पीढ़ी की बात करते हैं।

हम कहते हैं, क्यों जी ? सिर्फ युवा ही क्यों ?

क्योंकि सब लोग अपनी जिम्मेवारी उनके सिर पर थोपना चाहते हैं। नहीं, हम सबको जिम्मेवार होना चाहिए, सबको जिम्मेवार होना चाहिए। समय ज्यादा दूर नहीं है। धीरे-धीरे लोग अस्सी, नब्बे, सौ साल जीना शुरू कर देंगे तो फिर युवा क्या रह जायेंगे, अगर युवा का ही इंतजार करते रहेंगे तो ?

सबको मिलकर के — सब एक हैं। सब मनुष्य हैं! जबतक ये स्वांस तुम्हारे में आ रहा है, जा रहा है, तुम पर भगवान की कृपा है। उठो और इस जिंदगी को स्वीकार करो! इस कृपा को स्वीकार करो अपने जीवन में, ताकि हम सभी इस पृथ्वी के वासी सब एक होकर के — एक होकर के अपनी, सबकी-सबकी तकदीर बदल सकें।

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इस पृथ्वी के वासी सब एक होकर के

अपनी और सबकी तकदीर बदल सकते हैं।

दो मेंढक (Do Mendak) 00:03:07 दो मेंढक (Do Mendak) वीडियो अवधि : 00:03:07 हमें जरूरत है अपनी धारणाओं की दुनिया से बाहर निकलने की।

Title : दो मेंढक

पहला मेंढक : हैलो! तुम यहां घूमने आये हो ?

दूसरा मेंढक : हां, भाई! मैं तो बस यहां से गुजर रहा था तभी अचानक बारिश आ गई।

पहला मेंढक : अरे परेशान मत हो दोस्त, तुम सही जगह आये हो। मैं तो यहां इस तालाब में रहता हूं। आओ देखो!

पहला मेंढक : तो देखा तुमने! कितना बड़ा है मेरा तालाब।

दूसरा मेंढक : हूं!

पहला मेंढक : अच्छा, तुम कहां रहते हो ?

दूसरा मेंढक : मैं तो एक समुंदर में रहता हूं।

पहला मेंढक : समुंदर! हूं... वो कितना बड़ा होगा ?

दूसरा मेंढक : हूं... बहुत बड़ा।

पहला मेंढक : क्या तुम्हारा समुंदर इतना बड़ा है ?

दूसरा मेंढक : नहीं, इससे बड़ा।

पहला मेंढक : तो क्या तुम्हारा समुंदर इतना बड़ा है ? इतना बड़ा ? इतना बड़ा ?

पहला मेंढक : तो क्या वो इससे भी बड़ा है ?

दूसरा मेंढक : समुंदर इससे बहुत बड़ा होता है, मेरे दोस्त।

पहला मेंढक : मैं नहीं मानता। इतने सालों से मैं यहां रह रहा हूं, मगर मैंने तो आजतक कोई ऐसी जगह देखी नहीं, जो मेरे तालाब से बड़ी हो। ऐसा हो ही नहीं सकता कि इससे भी बड़ी कोई जगह हो।

दूसरा मेंढक : हूं... तो ठीक है चलो मेरे साथ। आओ मैं तुम्हें दिखाता हूं कि समुंदर कैसा होता है।

पहला मेंढक : ओह! माफ करना मेरे दोस्त। आजतक मैं यही सोचता रहा कि मेरा तालाब सबसे बड़ा है। मगर मुझे अब अहसास हुआ कि मैं गलत था।

कहानी का सार यही है कि हम अपनी धारणाओं की दुनिया में एक छोटे तालाब की तरह रहते हैं और सोचते हैं कि इस दुनिया से बेहतर और कुछ नहीं है। जब कोई बताता है कि इसके अलावा एक दूसरी दुनिया भी है, तो उस पर यक़ीन करना मुश्किल हो जाता है।

निराशा क्यों होती है (Niraasha Kyun Hoti Hai) 00:04:09 निराशा क्यों होती है (Niraasha Kyun Hoti Hai) वीडियो अवधि : 00:04:09 हमारी नासमझी ही हमारी निराशा का कारण है।

Title : निराशा क्यों होती है ?

कनुप्रिया: निराशा न सिर्फ एक पीढ़ी को, हर पीढ़ी में फैल रही है। क्या है यह निराशा का इतना प्रभाव कि उठने को ही नहीं आने दे रहा है ? सबकुछ होते हुए भी, सबकुछ ना होते हुए भी, निराशा एक है, जो है साथ में।

प्रेम रावत जी: एक छोटा बच्चा डॉक्टर के पास गया और बच्चे ने डॉक्टर से कहा कि ‘‘डॉक्टर साहब! मैं अपने को जहां भी छूता हूं, दर्द होता है।

कनुप्रिया: बहुत सही बात है!

प्रेम रावत जी: ‘‘मेरे घुटने में भी दर्द हो रहा है, मेरे सिर में भी दर्द हो रहा है, मेरे कान में भी दर्द हो रहा है, मेरी नाक में भी दर्द हो रहा है, मेरे दांत में भी दर्द हो रहा है, मेरे सिर के ऊपर भी दर्द हो रहा है, मैं यहां लगाता हूं फिर भी दर्द हो रहा है, सब जगह दर्द हो रहा है।’’

डॉक्टर ने जांच-बींच की और कहा, ‘‘तेरी उंगली टूटी हुई है। तू अपनी उंगली को जहां भी लगाता है, दर्द होता है।’’

तो यही बात हमारे साथ है। मतलब, मैं अपने को इस बात से जुदा नहीं कर रहा हूं। क्योंकि जो निराशा का कारण है, वो है हमारी नासमझ! और नासमझ एक ऐसी चीज है, जो हमारे साथ चलती है। जहां हम जाते हैं, हमारे साथ आती है। नासमझ यह थोड़े ही है कि किसी चीज को निकाल करके यहां रख दिया। ना! हमको यह समझना है कि समझ भी हमारे अंदर है और नासमझ भी हमारे अंदर है। अंधेरा भी हमारे अंदर है, प्रकाश भी हमारे अंदर है। जिसको आप प्रकट करेंगे, वही प्रकट होगा, जिसको आप प्रकट करेंगे।

गुस्सा करने में आपको कितने मिनट लगते हैं, कितने सेकेंड लगते हैं ?

क्योंकि गुस्सा भी आपके अंदर है। परंतु आपकी समझ क्या है ? झुंझलाए हुए हैं। सब के सब झुंझलाए हुए हैं। एक तिनका और अगर सिर पर पड़ जाए, खत्म! स्ट्रेस! स्ट्रेस! स्ट्रेस! स्ट्रेस! स्ट्रेस! सबके ऊपर!

होता क्या है ? लोग हैं, लगे हुए हैं, लगे हुए हैं, लगे हुए हैं, लगे हुए हैं...। चैन का कोई नाम नहीं ले रहा है। शांति का कोई नाम नहीं ले रहा है। जब उम्र ज्यादा हो जाएगी तो जितना कमाया, जितना कमाया, ये सब डॉक्टरों के पास जाएगा, सब डॉक्टरों के पास जाएगा। क्यों ?

फिर तबियत खराब होगी, फिर अस्पताल में ले जाएंगे और पड़े रहेंगे — अब ये चाहिए, अब ये चाहिए, अब ये चाहिए! अरे! मैं मर गया! अरे! मेरा यहां दर्द हो रहा है। अब यहां दर्द हो रहा है। चैन से तो जिंदगी गुजारी नहीं।

तो जब हमारी जिंदगी के अंदर कुछ इस प्रकार की चीजें होने लगती हैं, तो यह गलत दिशा है। और कम से कम मैं इस बात को समझता हूं और जो मैं कह रहा हूं, इस बात को आप लोग भी समझते हैं।

आप लोगों ने भी देखा है, क्या होता है ? बेपरवाही! इस जिंदगी के अंदर बेपरवाही!

इस स्वांस को न समझना, इस आशीर्वाद को न समझना — तो इसके साथ यही होगा। और सारी दुनिया कन्फ्यूज़ पड़ी है।

और मेरा यह कहना है कि वो, जो तुम्हारे हृदय के अंदर व्यापक है, वह ठीक करना चाहता है, परंतु उसको ठीक करने तो दो! और वह कहां से करेगा ठीक ? तुमसे करेगा ठीक!

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हमारी नासमझी ही हमारी निराशा का कारण है!

हमारी जीत हो (Hamari Jeet Ho) 00:01:16 हमारी जीत हो (Hamari Jeet Ho) वीडियो अवधि : 00:01:16 हमारी जीत हो! हम सक्सेसफुल हों! इसको हम जीत समझते हैं।

प्रेम रावत
हार-जीत! हार-जीत! हार-जीत! हमारी जीत हो! हम सक्सेसफुल हों! इसको हम जीत समझते हैं।
आशीर्वाद! आशीर्वाद देते हैं लोगों को! ‘‘तुम्हारी मनोकामना पूरी हो!’’
हृदय की नहीं, मन की कामना! मनोकामना मतलब, मन की कामना पूरी हो! मुझे कोई व्यक्ति समझा दे कि क्या ऐसा भी मन होता है, जिसकी सारी कामना पूरी हो चुकी हों ?

तीन बातें (Teen Batein) 00:07:13 तीन बातें (Teen Batein) वीडियो अवधि : 00:07:13 तीन चीजें — ये वही कर सकता है, जो अपने आत्मबल को समझता है।

प्रेम रावत:

एक समय था कि द्रौपदी को मालूम पड़ा कि कोई बहुत पहुंचे हुए संत आए हैं और उनके दर्शन करने के लिए जाना चाहिए। तो द्रौपदी तैयार हुई और गई और जो संत आए हुए थे, वो और कोई नहीं थे — वो थे वेद व्यास जी।

तो वो वेद व्यास जी के पास गई, कहा: ‘‘महाराज! मुझे आप बताइए, मेरा भविष्य क्या है ?’’

तो वेद व्यास जी हँसते हैं, उससे कहते हैं: ‘‘मेरे को मालूम है तेरा भविष्य क्या है। तेरी वजह से करोड़ों लोग मरेंगे, तेरी वजह से खून की नदियां बहेंगी।’’

द्रौपदी कहती है: ‘‘महाराज! मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से करोड़ों लोग मरें। मैं नहीं चाहती कि मेरी वजह से खून की नदियां बहें। कोई उपाय बताइए।’’

वेद व्यास जी — देखिए, उस समय वो लिख रहे हैं महाभारत! तो वो कह सकते हैं द्रौपदी को कि कोई उपाय नहीं है। यह तो होगा ही!

परंतु फिर भी — क्योंकि वो दयालु हैं, वो द्रौपदी से कहते हैं, ‘‘ठीक है! मैं तेरे को बताता हूं। अगर तू नहीं चाहती है कि तेरी वजह से करोड़ों लोग मरें, तेरी वजह से खून की नदियां बहें तो मैं तेरे को एक इलाज बताता हूं। तीन चीजें अगर तू करेगी तो ये कुछ नहीं होगा। खून की नदियां नहीं बहेंगी, करोड़ों लोग नहीं मरेंगे। तीन चीजें — सिर्फ तेरे को तीन चीजें करनी हैं।’’

कहा, ‘‘क्या ?’’

ध्यान से सुनिए! ध्यान से सुनिए! आप भी इसको अपना सकते हैं, पर ध्यान से सुनिए!

तो वेद व्यास जी कहते हैं, ‘‘एक, किसी का अपमान मत करना। किसी का अपमान मत करना। और अगर कोई तेरा अपमान करे तो गुस्सा मत होना।’’

सुन रहे हो न मेरी बात ?

‘‘एक — किसी का अपमान नहीं करना। दूसरा — अगर कोई तुम्हारा अपमान करे तो गुस्सा मत होना और तीसरी चीज — अगर किसी ने तुम्हारा अपमान भी किया और तुम गुस्सा भी हो गए तो तीसरी चीज क्या नहीं करनी है ? बदला मत लेना। ये तीन चीज अगर तू करेगी द्रौपदी तो तेरे कारण कोई नहीं मरेगा। तेरे कारण कोई खून की नदियां नहीं बहेंगी।’’

खैर! महाभारत की कथा सुनी होगी! भइया! वो कथा नहीं है। यह महाभारत तो अब हो रही है। वो कोई कहानी नहीं है। यह तो यहां हो रही है और तुम हो, तुम पर निर्भर है, तुम पर निर्भर है। वो सिर्फ कहानी नहीं है, वो तो असली चीज है और इस कहानी के बीच में अगर तुम तीन चीज कर सके — किसी का अपमान नहीं करो। कोई तुम्हारा अपमान करे तो गुस्सा मत हो और अगर गुस्सा हो भी जाओ तो बदला मत लो। अगर ये तीन काम तुम कर सके तो यह दूसरी महाभारत बनेगी, जिसमें लड़ाई नहीं है — सिर्फ ज्ञान है, जिसमें आनंद है, जिसमें सब लोग मिलके रहते हैं।

महाभारत भी तुम्हारा भविष्य है और एक और भविष्य है तुम्हारा, जिसमें तुम शांति से, आनंद से, अपनी जिन्दगी गुजार सकते हो। यह भी संभावना है। तुमको यह चूज़ करना पड़ेगा कि तुम क्या चाहते हो ? लड़ाई चाहते हो या शांति चाहते हो ? जबतक तुम अपनी जिन्दगी के अंदर यह संकल्प नहीं करोगे कि तुमको क्या चाहिए, यह महाभारत की लड़ाई एक ही दिन नहीं, दूसरे दिन भी होगी, तीसरे दिन भी होगी, चौथे दिन भी होगी, पांचवे दिन भी होगी। जब से उठोगे तब से और शाम तक यह महाभारत की लड़ाई होती रहेगी तुम्हारे हर दिन, जबतक तुम्हारा यह स्वांस पूरा नहीं होता है।

तीन चीजें! पर ये वही कर सकता है, ये वही कर सकता है — जिसकी भुजाओं में नहीं, जो अपने आत्मबल को समझता है। एक बल यह है, एक बल यह है {भुजाओं का बल} और एक बल अंदर का है। यह बल {भुजाओं का बल} तो तुम उठक-बैठक करके बना सकते हो, परंतु फिर भी एक ऐसा समय आएगा कि यह बल तुम्हारा काम नहीं करेगा।

परंतु अंदर का जो बल है, आत्मा का जो बल है, अगर उसमें तुम ताकतवर हो तो वो ऐसा बल है कि तुमको बलवान बनाएगा कब तक ? जबतक तुम आखिरी स्वांस नहीं ले लेते। वो है असली बल! वो है असली बल! मैं कहता हूं उस बल में बलवान बनो। जिस बली के पास वो बल है, वो नफरत के बाण नहीं चलाता है, वो दया के बाण चलाता है।

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