प्रश्नकर्ता:
मुझे अकेलापन महसूस होता है, इस अकेलेपन से बचने का क्या उपाय है?
प्रेम रावत:
देखिए! यह एक बहुत इन्टरेस्टिंग सवाल है। और इन्टरेस्टिंग यह इसलिए है कि हम करते क्या हैं अपने जीवन में ? तो, पहले तो हम बच्चे रहते हैं — खेलते हैं, कूदते हैं, फिर हमारा स्कूल आना-जाना होता है। वहां मित्र बनाते हैं, पढ़ाई करते हैं, जिम्मेवारियों को समझते हैं, गृहकार्य मिलता है। धीरे-धीरे-धीरे करके हमारी पढ़ाई और आगे बढ़ती है। हम और कल्चर्स के बारे में पढ़ते हैं। हम इतिहास के बारे में पढ़ते हैं। हम जॉग्रफी के बारे में पढ़ते हैं। धीरे-धीरे करके वो भी बढ़ती हैं चीजें। और लोगों के बारे में सुनते हैं और करते-करते-करते हमारे एम्बिशन्स भी बहुत बढ़ते हैं — हमारी धारणाएं, हमारे विचार, हमारी इच्छाएं! हम ऐसा बनना चाहते हैं। हम ऐसा बनना चाहते हैं और स्कूल और यूनिवर्सिटीज़ का काम ही यह है कि वो माइंड को शेप करें।
तो धीरे-धीरे-धीरे करके हमको यह लगने लगता है कि ‘‘अच्छा! हम ये बनेंगे! हम डॉक्टर बनेंगे, हम इंजीनियर बनेंगे! हम ये करेंगे, हम ये करेंगे! हम उस जैसा बनना चाहते हैं। हम उस जैसा बनना चाहते हैं।’’ तो फिर इन चीज़ों को ले करके आगे — यूनिवर्सिटीज़ में जाते हैं, ग्रेजुएट होते हैं और बाहर आकर के जॉब लेते हैं, नौकरी करते हैं।
तो अगर इस सारी चीज को देखा जाए तो ये हुई — रिवर्स इंजीनियरिंग! पर रिवर्स इंजीनियरिंग का मतलब कि आपका लक्ष्य ये है और आप इतना सबकुछ कर रहे हैं, उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए। तो ये लक्ष्य और इतना सबकुछ आपको करना पड़ रहा है। इसमें आप अपना समय का भी बलिदान कर रहे हैं। इसमें आप अपनी एनर्जी का भी बलिदान कर रहे हैं। इसमें आप अपने रिश्तों का भी बलिदान कर रहे हैं और करते-करते, करते-करते और फिर आप उस लक्ष्य तक पहुंचते हैं। अब आपके दिमाग में यह था कि जब वो लक्ष्य पूरा कर लेंगे तो फिर हम बहुत ही खुश हो जाएंगे। सबकुछ ठीक हो जाएगा! फिर कोई चिंता करने की चीज नहीं रहेगी। परंतु उस लक्ष्य तक जितने भी पहुंचे हुए हैं, वो कभी यह नहीं कहते हैं कि ऐसा होता नहीं है। वो सारी चीज़ें तब भी बनी रहती हैं।
तो एक प्रश्न उठता है कि ‘‘क्या इस जिंदगी को रिवर्स इंजीनियरिंग के लिए — यह उचित है या किसी और चीज के लिए ?’’ मतलब, ये भी संभव है कि आप अपनी जिंदगी में तो — रिवर्स इंजीनियरिंग तो हुई, ये लक्ष्य हुआ और ये ऐसा हो गया। और अगर जरा विचार करिए! बजाय ऐसे के, अगर ऐसा हो तो क्या हो ? मतलब, आप क्या नहीं हासिल कर सकते हैं ?
अगर आपने अपने जीवन के अंदर खुशी हासिल कर ली, अपने जीवन के अंदर अपने आपको पहचान लिया, अपने जीवन के अंदर कुछ ऐसा कर दिया कि जो आपके सपने थे, वो टूट गए और सपने से भी बहुत बड़ी चीज आपने हासिल कर ली।
तो मैं समझता हूं कि जिंदगी की ये पोटेंशियल है। आपके लाइफ की ये पोटेंशियल है। ये संभावना है! ये नहीं, ये संभावना है कि एक चीज नहीं, बहुत-कुछ आप हासिल कर सकते हैं। परंतु इसके लिए रिवर्स इंजीनियरिंग नहीं, इसके लिए आपको दिल से काम करना पड़ेगा।
जो आपका — जो आप दिल से काम करेंगे, वो काम नहीं है। उसको आप इंज्वाय करेंगे, उसका आप पूरा-पूरा फायदा उठाएंगे।
तो ये कैसे हो ? और जो कुछ भी और जो समस्याएं हैं — आज के यूथ में ये है। सब लोग ये कर रहे हैं — रिवर्स इंजीनियरिंग, रिवर्स इंजीनियरिंग!
बताइए मेरे को क्या — और ये इसके लिए तो कोर्सेज भी हैं। जो आप कोर्स ले सकते हैं कि ये हासिल करने के लिए आपको क्या-क्या, क्या-क्या करना पड़ेगा। सारी जिंदगी को रिवर्स इंजीनियरिंग कर रखा है।
परंतु जिंदगी की पोटेंशियल, संभावना रिवर्स इंजीनियरिंग के लिए नहीं है, जिंदगी की पोटेंशियल इसके लिए है। और जबतक आप इस पर नहीं आएंगे, तो ये तो और जो चीज़ें हैं, अब जैसे — परिवार से अलग होना या अपने आपको लोनली महसूस करना! लोनली महसूस तो वो लोग भी करते हैं, जो अपने परिवार के साथ हैं। क्योंकि वो भी रिवर्स इंजीनियरिंग कर रहे हैं। वो समझते हैं कि ‘‘मैं यहां अटका हुआ हूं।’’ कोई गांव में है, वो पढ़-लिख तो लिया, पर वो देख रहा है कि यहां कोई संभावना तो है नहीं उसके लिए, पर वो अटका हुआ है। तो मां-बाप के साथ तो है, परिवार के साथ तो है, परंतु ध्यान कहां है ? कहीं और है — ‘‘काश! मैं भी वहां होता!’’ दूसरा वो, जो अटका हुआ नहीं है, जो चले गया — ‘‘काश! मैं वो होता!’’ तो ये ‘‘काश’’ तो दोनों ही कर रहे हैं! काश, काश, काश, काश!
तो बात वो नहीं है कि वो माहौल बदल जाए या वो माहौल बदल जाए। आप अपने में देखिए! कि आप क्या कर सकते हैं ? आप अपने में देखिए कि क्या संभावना है ? आपको लोनली होने की जरूरत नहीं है। आप कहीं भी हों, क्योंकि आप अपने साथ हैं। आपका प्रकाश आपके अंदर है। आपकी दोस्ती आपके अंदर है, आपका प्यार आपके अंदर है, आपकी खुशी आपके अंदर है, आपकी सक्सेस आपके अंदर है। इसीलिए, इसीलिए कितना जरूरी है कि आप अपने आपको जानें! और इस संभावना को, अपनी जिंदगी की संभावना को पूरा करें। उसके बिना ये तो सारे चक्कर बने रहेंगे। कोई ये चाहता है, कोई ये चाहता है, कोई ये चाहता है, कोई ये चाहता है।
अब देखिए! आप जा रहे हैं कहीं, आपने एक खिड़की में देखा, दुकान में देखा, एक सूट है। अच्छी सूट है। आपने खरीद ली। तो उसका यह मतलब थोड़े ही है कि आप और सूट नहीं खरीदेंगे। दो महीने के बाद, तीन महीने के बाद, एक साल के बाद — हो सकता है वो सूट आपको फिट न हो। फिर आप देखें दूसरी। वो पहन लेंगे, वो खरीद लेंगे।
तो पहली वाली क्यों खरीदी ? क्योंकि उस समय वो सूट आपको सूट कर रही थी। तो आपकी परिस्थितियां बदली तो कुछ और बदल गया। कुछ परिस्थिति बदली तो कुछ और बदल गया। कुछ और बदल गया तो कुछ और बदल गया। तो कुछ और बदल गया तो कुछ और बदल गया। तो कुछ और बदल गया तो कुछ और बदल गया। कुछ और बदल गया तो कुछ और बदल गया। ये तो सारी बदलती रहेंगी। अब एक लहर एक जगह आती है। उसी पर आँख बनाए रखना कि दूसरी भी वहीं आएगी, गलत है। वो वहां नहीं आएगी। वो लहर कहीं और आएगी, कहीं और आएगी, कहीं और आएगी। तो समुद्र की लहरों को गिनने से मतलब ?
यह भवसागर भी एक भवसागर है। इसमें भी लहर आती रहती हैं, जाती रहती हैं, आती रहती हैं। यह तो इसकी प्रकृति है। काहे के लिए गिन रहे हो उन लहरों को ? अगर कुछ करना है इस भवसागर के लिए तो वो करिए कि आपकी नौकाएं लहरों के कारण न डूबें। लहरों को गिनने से क्या फायदा ? अपनी पतवार से लहरों को ऐसे ऊपर से मारने से क्या फायदा ? उससे क्या होगा ? बस! कुछ अगर प्रबंध करना है तो कुछ ऐसा प्रबंध करना है कि जिस नौका में आप बैठें हैं, वो डूब न जाए, इन लहरों के कारण। और ये वही डूबने की बात है, जो अपने आपको अकेलापन महसूस करना — तो यह सब मन का खेल है।
मन के बहुत तरंग हैं, छिन छिन बदले सोय।
एक ही रंग में जो रहे, ऐसा बिरला कोय।।
इस मन की तो लहर आती रहती है। किसी को कुछ दुःख है, किसी को कुछ दुःख है। किसी को कुछ दुःख है, किसी को कुछ दुःख है। दुःख तो सबको परेशान करता है। सुखी कौन है ? सुखी वही है, जो अपने अंदर की चीज को जानता है। जो उसके अंदर विराजमान है, जो उसके अंदर बैठी है, उसको जानता है।
प्रश्नकर्ता:
मुझे छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा आता है। मुझे पता है गुस्सा करना गलत है पर फिर भी मैं गुस्सा करता हूं। मैं गुस्से को कंट्रोल कैसे करूं ?
प्रेम रावत :
सबसे पहला मेरा यह प्रश्न होगा कि ‘‘आप यह कंट्रोल क्यों करना चाहते हैं ? मतलब, गुस्से में ऐसी क्या बात है, जो आपको पसंद नहीं है ? भाई, आपका स्वभाव है। अगर आपका स्वभाव नहीं होता तो आप गुस्सा कैसे करते ? तो ऐसी क्या चीज़ है, जो गुस्सा करने पर आपको पसंद नहीं है ?’’
मैं आपसे यह प्रश्न इसलिए पूछ रहा हूं, क्योंकि यह प्रश्न मैंने अपने आपसे पूछा। गुस्सा मेरे को भी आता है और लोग ऊटपटांग काम करते हैं तो उससे भी गुस्सा आता है। तो एक दिन मैंने अपने आपसे पूछा कि ठीक है, लोग तो ऊटपटांग काम करते ही हैं — अब जिसकी समझ में नहीं आया, कुछ न कुछ करेगा। वो गलत करेगा। पर तुमको गुस्से से गुस्सा क्यों है ? तो समझ में यह आया कि मुझको गुस्से से गुस्सा इसलिए है, क्योंकि गुस्सा करने के बाद जैसा मैं महसूस करता हूं, वो मुझे पसंद नहीं है। जब गुस्सा हो रहा होता है तो मेरे को मालूम ही नहीं है कि गुस्सा कब आता है ? पर जब चला जाता है, तब मेरे को महसूस होता है कि — ‘‘हां!… ऑ… ऑ… ऑ… हा…हा… ये अच्छा नहीं था।’’
तो गुस्से के बाद जो होता है, उससे मुझे नफरत है। क्योंकि मैं एक ऐसी चीज बोल जाऊंगा, जो मैं कभी बोलना नहीं चाहता। मैं ऐसी चीज़ कर जाऊंगा, जो मैं कभी करना नहीं चाहता। मतलब, गुस्सा एक ऐसी चीज़ है, जिसमें कि मैं अपने आपको खो देता हूं। जो कुछ भी मैंने अपने से प्रण किया है, जो भी मैंने अपने से कहा है कि ‘‘नहीं, ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है’’, वो मैं तोड़ देता हूं। क्योंकि वो एक ऐसा समय है कि मैं अपना संतुलन खो देता हूं। तो सबसे बड़ा प्रश्न तो मेरे को यह पूछना है अपने से कि ‘‘मेरे लिए, मेरे संतुलन की क्या कीमत है ? मेरे संतुलन के लिए। बात काम की नहीं है, बात औरों की नहीं है। मेरे लिए मेरे संतुलन की क्या कीमत है ?’’ अगर यह मेरे लिए मूल्यवान है तो मुझे मेरा संतुलन खोना अनिवार्य नहीं है।
इसके लिए मैं क्या करूं ? क्या करूं ? बोलने से पहले गुस्से की हालत में — अगर मैं अपने को दो क्षण भी दूं, दो सेकेंड सोचने का, मैं समझ सकता हूं। बात यह वही है कि जब मनुष्य क्रोध में होता है, वो अपने आप से अलग है। वो — वो है, जो वो नहीं होना चाहता है। वो — वो है, जो उसके स्वभाव में नहीं है। और उससे बचने के लिए, उससे बचने के लिए जो कुछ भी उसको करना पड़े। ऐसे भी लोग हैं, जिनको देखते ही गुस्सा आता है। तो फिर पैर तो आपके हैं! वहां क्यों जाते रहते हो ? जाओ! ऐसी संगत में बैठो, ऐसी संगत में बैठो, ऐसी कंपनी में बैठो, ऐसी संगत में बैठो, जिसमें आप उभरो! अंदर से उभरो! कोई चीज़ अच्छी समझो! ऐसी संगत में नहीं, जहां कि आप अपने से दूर होते जा रहे हैं। ये कुसंगत है!
हर एक आदमी के पास यह उपाय है कि वो अपनी कुछ संगत बनाए। चाहे वो जेल में ही क्यों न हो, जहां कोई भी समझेगा कि यह तो असंभव बात है! परंतु सबसे बड़ी बात है — और फिर यह वही उदाहरण है कि एक मोमबत्ती जो जली हुई है, वो दूसरी मोमबत्ती को जला सकती है। जब मोमबत्तियां जलने लगती हैं तो अंधेरे का आना असंभव हो जाता है।
परंतु ऐसी चीज़ें हैं, जो मेरा ध्यान, जहां होना चाहिए, वहां से अलग करती हैं। तो या तो मैं अब उन चीज़ों की लिस्ट बनाऊं और उन चीजों की लिस्ट अपनी जेब में रखूं और जब कैसी भी परिस्थिति हो, देखूं, आज ये लिस्ट में है या नहीं है। या फिर मैं ये बात समझूं कि मैं चाहता क्या हूं ? हर पल, हर क्षण अपने ज़ीवन में सुबेरे से लेकर शाम तक मैं चाहता क्या हूं ? और यह चाहत मेरी एक ऐसी है, जो मेरे साथ हमेशा बंधी रही है । चाहे मैं कितना भी छोटा था, चाहत यही थी कि ‘‘मैं खुश रहना चाहता हूं। मैं आनंद में रहना चाहता हूं।’’
मेरे गुरु महाराज जी ने, मेरे पिता जी ने मेरे को बताया कि वो आनंद का स्रोत मेरे अंदर है। जिस आनंद को मैं चाहता हूं, वो आनंद का स्रोत मेरे अंदर है। वो बाहर नहीं है। जब बाहर की चीज़ों को बदलना मैंने बंद किया — क्योंकि पहले तो यही था कि मैं ये कर दूंगा, मैं ये कर दूंगा तो अच्छा हो जाएगा। ये कर दूंगा तो अच्छा हो जाएगा। और जब अंदर की चीज़ों में ध्यान देना शुरू किया तो अपने आप फिर वो जो हृदय रूपी प्याला है, वो आनंद से भरने लगा। क्या वो हमेशा भरा रहता है ? नहीं। क्या वो परिस्थितियां आज भी आती हैं, जिनसे कि गुस्सा हो ? बिल्कुल! क्योंकि वो चीज़ मेरे को मालूम पड़ गई है कि जो चीज़ चाहिए मेरे को, वो मेरे अंदर है तो मैं कम से कम उस तरफ कोशिश कर सकता हूं। और जितनी कोशिश मैं करता हूं अपने अंतर्मुख होने की, अंदर जाने की — अंदर जो मेरे सद्भावना है, उसको उभारने की, तो वो कोशिशें सफल होती हैं। अगर मैं ऐसी चीज़ की तरफ कोशिश करूं, जो संभव नहीं है तो वो कोशिश अपने आप असफल होगी। तो अगर मैंने अपनी जिंदगी के अंदर कोशिश की है कि मेरी सारी समस्याएं चली जाएं तो वो सफल नहीं होंगी।
अब लोग यही सोचते हैं कि अगर मेरे पास धन हो तो मेरी मुश्किलें सब खतम हो जाएंगी। देख लीजिए आप! अखबार पढ़िए! लोग हैं, जिनके पास इतना पैसा है, इतना पैसा है कि कई-कई बार उनको खुद नहीं मालूम कि उनके पास कितना पैसा है। तो क्या उनके पीछे समस्याएं नहीं लगी हुई हैं ? बिल्कुल समस्याएं लगी हुई हैं। किसी को — उनका नाम कीचड़ में न उछल जाए — यह उनको समस्या रहती है। कोई उनसे ज्यादा अमीर न हो जाए — यह उनकी समस्या लगी रहती है। समस्याएं तो सबके पीछे लगी हुई हैं। परंतु एक ऐसी भी जगह है, जहां समस्या नहीं हैं। समस्या को हटाने के लिए लोग कोशिश करते आए हैं और सफल नहीं हुए हैं। परंतु जो अंतर्मुख हो करके उस चीज़ को समझते हैं कि आनंद जो मेरे को चाहिए, खुशी जो मेरे को चाहिए — मैं खुश रहना चाहता हूं, वो मेरे अंदर है। और उस तरफ मैं जितनी कोशिश करूंगा, वो सब सफल होंगी, बाहर की तरफ मैं जितनी कोशिश करूंगा, वो सब सफल नहीं होंगी ।
टेक्नोलॉजी का सही इस्तेमाल कैसे हो सकता है ?
प्रश्नकर्ता :
आज का दौर साइंस और टेक्नोलॉजी का है। लेकिन जैसे-जैसे हम उन्नति करते जा रहे हैं, आगे बढ़ते जा रहे हैं, अपने आपसे दूर होते जा रहे हैं। तकनीक का इस्तेमाल विनाश के हथियार बनाने के लिये भी हो सकता है और मनुष्य के कल्याण के लिये भी। हम किस तरह से तकनीकी प्रगति का इस्तेमाल मानवता और शांति के लिये कर सकते हैं ?
प्रेम रावत :
यह तो वो वाली बात है न कि अगर मैं किसी चीज की जरूरत नहीं समझता हूं, मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं है तो फिर मैं उसकी तरफ ध्यान नहीं दूंगा। यही बात होती है कि क्या हम इस बात को इसकी जरूरत समझते हैं कि इस संसार के अंदर शांति होनी चाहिए ? क्या यह हमारे लिए कोई महत्व रखती है या नहीं या सिर्फ यह है कि मैं इस चीज का आविष्कार करूंगा तो मेरे को मान्यता मिलेगी, मेरे को पैसा मिलेगा, मेरे को मान-सम्मान मिलेगा ?
तो अब एक वही व्यक्ति, जो चक्कू बनाता है, वह तलवार भी बना सकता है। चक्कू घर में भोजन बनाने में मदद करेगा और एक दूसरे को मारने में मदद करेगा। परंतु यहां क्या हो रहा है ? यहां (दिमाग में) क्या बसा हुआ है ? अगर सिर्फ बात है मान-सम्मान की, बात है पैसे की तो फिर आदमी के लिए कोई लिमिट ही नहीं है।
"बनाओ, ये बनाओ! ठीक है, ये बम हजारों लोगों को मार सकता है।"
और अगर बात है कि नहीं, मेरी भी कोई जिम्मेवारी है तो लोग फिर उस टेक्नोलोजी को उस तरीके से इस्तेमाल करने लगेंगे, जिसमें लोगों का भला होगा। तो दोनों ही बातें हैं।
अब एक कैप्टन है, अगर वो समझता है कि जो उसके पैसेंजर हैं, जहाज में पैसेंजर हैं, वो उसकी जिम्मेवारी है और उसकी जिम्मेवारी है कि वो उनको सुरक्षित रखे तो वो उस पर ध्यान देगा। और अगर उसके दिमाग में यह बात नहीं है, कोई और फितूर चढ़ा हुआ है तो वही जहाज, वो पत्थरों पर चढ़ा सकता है, सबको मार सकता है।
तो यह तो बात मनुष्य की है। अब उसको अगर समझ में नहीं आई है बात तो फिर वो वही करेगा, जो उसकी मर्ज़ी आती है। जिसमें वो यह देखता है शॉर्टकट क्या है ?
"मेरे को मान-सम्मान चाहिए!" अब लोगों को मान-सम्मान चाहिए!
लोग कहते हैं, "अजी! आपको ये पदवी मिली हुई है! आपको शांतिदूत की पदवी मिली हुई है।" शांतिदूत की पदवी का मतलब क्या है ? शांतिदूत की पदवी का मतलब है कि जहां जाओ, और शांतिदूत बनाओ! ये है। और मैं यही लोगों को प्रेरित करता हूं — तुम भी शांति के इस मार्ग में मदद करो।
तो अगर यह हमारी समझ रही तो कोई भी टेक्नोलोजी हमारे पास आएगी, हम उसका सदुपयोग करेंगे। दुरूपयोग नहीं करेंगे! परंतु अगर हमारी समझ खराब है तो दुरूपयोग होगा।
प्रेम रावत:
जब तुम छोटे बच्चे थे और चलना सीख रहे थे, तुम गिरे कि नहीं गिरे ? तुम्हारा उद्देश्य क्या था ? चलना। पर गिरे। फेल हुए कि नहीं हुए? असफल हुए या नहीं हुए? परंतु तुमने असफलता को कभी स्वीकार नहीं किया। फिर दोबारा खड़े हुए और आज क्या करते हो ? करने से पहले — कोशिश करने से पहले सोचते हो किसके बारे में ? असफलता । सफलता के बारे में नहीं, असफलता के बारे में। और जैसे ही सोचते हो सफलता के बारे में, करेंगे ही नहीं। पहले असफलता।
पर कोशिश तो करो! जैसे बच्चा करता है खड़ा होके और जब पहले वो कदम लेता है, उसको मालूम ही नहीं कि वो चल भी रहा है। बस— त, त, त, त! उसको दिशा का कोई ज्ञान नहीं है। उसके जीवन के अंदर उस समय ऐसी प्यास है चलने के लिए, ऐसी चाह है चलने के लिए, जो उसको किसी ने सिखाया नहीं है। क्योंकि वो समझता नहीं है अभी बात — जरूरी क्या है, जरूरी क्या नहीं है? वो चल देगा। चल देगा और अगर असफल भी हुआ, उसको स्वीकार नहीं करेगा। फिर खड़ा होगा। यह हिम्मत नहीं है तो क्या है? और जब इतनी छोटी-सी उम्र में तुम्हारे पास इतनी हिम्मत थी, आज तुम्हारी हिम्मत को क्या हो गया है ?
मतलब, तुम जीवित भी हो और तुमने जीवन को त्याग भी दिया है। अभी मौत नहीं आई है, पर जीवन को भी तुमने त्याग दिया है। ‘‘क्या होगा मेरा ? असफलता, असफलता, असफलता, असफलता!
तुम जीवित हो। जबतक तुम जीवित हो, तुम्हारे पर कृपा हो रही है। और क्या चाहिए तुमको ? और क्या चाहिए ? सब मतलब, यह तो — इसके बाद तो जो भी तुम इस दुनिया के अंदर करना चाहते हो, यह संभव है। कोई असंभव नहीं है। संभव है! परंतु सबसे पहले क्या चीज चाहिए ? तुम्हारा जीना होना बहुत जरूरी है। अगर तुम जीवित नहीं हो तो फिर सबकुछ असंभव है और तुम जीवित हो तो फिर सब संभव है। इसके लिए हिम्मत की जरूरत है। हिम्मत भी तुम्हारे अंदर है।
तो कुछ भी हो, कुछ भी हो, तुमको जीना है। जबतक ये स्वांस आ रहा है तुम्हारे अंदर, तुमको जीना है। और हारे हुए की तरह नहीं जीना है। जीते हुए की तरह जीना है। यह नहीं है कि तुम्हारी क्या उम्र है! यह भी एक असफलता का बहाना है।
और लोग कहते हैं, ‘‘जी! हमारी याद्दाश्त चली गई।’’ जैसे-जैसे... तुम्हारी याद्दाशत कहीं नहीं गई। तुमको अभी भी अपना बचपना याद है। तुमको अपने कपड़ों के बारे में याद है कि कैसे-कैसे कपड़े तुमने पहने। तुमको स्कूल के बारे में याद है। तुम्हारे... सबकुछ वहीं का वहीं है। बात यह है कि यह जो भूलने की बात होती है मनुष्य की, यह एक बहुत बड़ी ट्रिक है। और ट्रिक यह है कि तुम जब इस उम्र के हो गये हो तो बहुत सारी चीजें तुमको याद करनी पड़ती हैं। जब तुम छोटे थे, तुमको बहुत कम याद करने की जरूरत थी। तो याद करने में आसानी रहती थी कि ‘‘यहां ये है। वहां ये है।” अब ‘‘उसको फोन करना है, वहां ये जाना है, ऐसा करना है, वैसा करना है।’’ ये तो इतनी सारी चीजें हैं कि दिमाग तो अपने आप — चाहे तुम 18 साल के भी हो, पर अगर इतनी चीजें हो जाएंगी तो तुमको याद नहीं रहेंगी। चाहे किसी भी —यह मैं मनगढ़त नहीं कह रहा हूं। यह वैज्ञानिक फैक्ट है। यह वैज्ञानिक बात है। इस पर रिसर्च की है विज्ञान के लोगों ने, साइंसटिस्ट ने और इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि कुछ होता-जाता नहीं है। सब वैसा का वैसा ही है।
तो अब शरीर है। अब लोग कहते हैं, ‘‘जी! हमको चलने में दुख होता है...या…।’’
तो कोई बात नहीं। आनंद लेने के लिए, इस जीवन का आनंद लेने के लिए मील, दो मील, तीन मील चलने की जरूरत नहीं है। कहीं भी हो तुम, अपने खाट पर ही बैठे हो, तो जो अंदर का आनंद है, इसको तो तुम ले सकते हो।
इसमें कोई शॉर्टकट नहीं है। यह उनके लिए है, जो आँखें खोल करके — यह उनके लिए है, उस बच्चे के लिए है, जो असफलता को स्वीकार करना ही नहीं चाहता है। न वो सीखना चाहता है उस असफलता को, न उसको स्वीकार करना चाहता है। जितनी बार वो गिरेगा, उसको कोई गम नहीं है। वो फिर खड़ा होगा, फिर चलेगा और एक दिन ऐसा आएगा कि चलना उसके लिए बहुत आसान हो जाएगा। वही चीज, जो असंभव थी — क्योंकि जब वो पहले-पहले सीखता है न, तो उसके पैर काबिल नहीं हैं उसका वजन उठाने के लिए। धीरे-धीरे उसकी जो मसल्स हैं, इनको स्ट्रांग होना पड़ेगा। और जो बैलेंस है, वो उसके पास नहीं है, पर धीरे-धीरे उन सारी चीजों को वो सीखता है। और जब सीख लेता है तो वो चलना शुरू करता है।
अब हम बड़े हो गए हैं, परंतु वो चीजें, हमारे लिए वो कानून, अभी बदला नहीं है। जिस भी चीज में हमने असफलता को स्वीकार कर लिया, उसमें हम असफल जरूर होंगे। पर जब असफलता को स्वीकार नहीं किया, हिम्मत से आगे चले, हिम्मत से आगे बढ़े, तो वो सफलता भी जरूर मिलेगी। ये बात है। ये बात है!
असफलता को कभी स्वीकार न करें।
Text on screen:संसार में पर्यावरण को बचाने की जागरूकता कैसे आ सकती है?
प्रश्नकर्ता :
संसार भर में आज प्रकृति से हमारी छेड़छाड़ और ग्लोबल-वार्मिंग एक बहुत बड़ा मुद्दा है। हम पर्यावरण को बचाने की बात तो बहुत करते हैं, लेकिन असल में शायद इसके प्रति हम जागरूक नहीं हैं। इस धरती को रहने के लिये और भी बेहतर और पर्यावरण को बचाने के लिये हमें क्या करने की जरूरत है ?
प्रेम रावत:
इस विश्व को हम अपना घर नहीं समझते हैं। जब हमारा घर होता है, उसको सजाते हैं, फोटो लगाते हैं। यह नहीं है कि हथौड़े को लेकर के फिर दीवाल में लगाते रहते हैं और दीवालें तोड़ना शुरू कर देते हैं, किवाड़ तोड़ना शुरू कर देते हैं, छत तोड़ना शुरू कर देते हैं। नहीं। हर एक चीज को संवार के रखते हैं। नये-नये रंग लगाते हैं। डेकोरेशन करते हैं, ताकि वो अच्छा लगे। जिस दिन हम इस सारे संसार को अपना घर समझना शुरू कर देंगे, ग्लोबल-वार्मिंग इश्यू नहीं रहेगा। परंतु हम समझते हैं, ‘‘यह किसी और का घर है।’’ हमारा घर ये है और हम अपने ही घर को तोड़ने में लगे हुए हैं। ये ‘नासमझ’ की बात है। और ये बहुत, बहुत ही इम्पौरटेंट इश्यूज़ हैं। क्योंकि ये सब —सबके ऊपर इसका असर होगा। परंतु जिस दिन हम इस सारे वर्ल्ड को एक्सेप्ट कर लेंगे, सारी...सारी इस पृथ्वी को एक्सेप्ट कर लेंगे कि ‘‘यह मेरी पृथ्वी है।’’ अब तक तो सिर्फ यह है कि ‘‘यह मेरा देश है!’’ नहीं। ‘‘यह मेरी पृथ्वी है!’’ उस दिन हम संकोच करेंगे कूड़ा डालने में। उस दिन संकोच करेंगे हम इस पृथ्वी को हानि पहुंचाने में।
सोशल मीडिया की आदत से कैसे बचें ?
प्रश्नकर्ता:
आज हम सब मोबाइल फोन और सोशल मीडिया के आदी हो गये हैं। हमारा ज्यादा से ज्यादा समय इसी पर लगता है। सोशल मीडिया के इस एडिक्शन से, इस लत से हम कैसे बच सकते हैं ?
प्रेम रावत:
एक एडिक्शन सोशली एक्सेप्टेबल है, एक एडिक्शन सोशली एक्सेप्टेबल नहीं होता है। जो सोशली एक्सेप्ट नहीं होता है, उसके लिए सबकुछ करने के लिए तैयार हैं, जो एडिक्शन सोशली एक्सेप्टेबल होता है, उसके लिए कोई परवाह नहीं करता है। परंतु लोग यह भूल जाते हैं कि दोनों ही एडिक्शन हैं। दोनों ही एडिक्शन हैं और दोनों ही मनुष्य के लिए खराब हैं।
ये टेक्नोलॉजी भी मोडरेशन में होनी चाहिए। खाना भी मोडेरेशन में खाना चाहिए, एक्सरसाइज़ भी मोडेरेशन में होनी चाहिए। हर एक चीज मोडरेशन में होनी चाहिए। इस सोसाइटी में, इस बाहर की दुनिया में सब चीजें मोडरेशन में होनी चाहिए। तो बात यह आ जाती है कि — क्योंकि यह सोशली एक्सेप्टेबल है, इसके जो कान्सिक्वेंसेज़ हैं, अभी ज्यादा नहीं लोगों के आगे सामने आए हैं।
अस्पतालों में वो चीजें बढ़ गई हैं, जो लोग आते हैं इमरजेंसी में, क्योंकि सिर पर चोट लग गई। क्यों लग गई ? क्योंकि वो अपना यहां ऐसे कर रहे थे और आगे चल रहे थे और गिर गये या खम्भे के साथ टकरा गए। ये सारी चीजें हो रही हैं। परंतु अभी हमने इस एडिक्शन को डिफाइन नहीं किया है। सबसे बढ़िया चीज तो यह होगी कि हम इसको अपनी समझ से करें। अर्थात् प्रेशर से नहीं! क्योंकि बात यह है — सबसे बड़ी चीज इसमें एक गेगा बाइट का डाटा नहीं है। सोशल एक्सेप्टेन्स! ये बीमारी सोशल एक्सेप्टेन्स की है। एक गेगा बाइट की नहीं है, दो गेगा बाइट की नहीं है, तीन गेगा बाइट की नहीं है। हर एक मनुष्य सोशली एक्सेप्टेन्स चाहता है। पर क्यों चाहता है ? क्यों चाहता है ?
यह नहीं पूछ रहा है वो। वो चाहता है कि उसके फ्रैण्ड्स हों और सब उसको एक्सेप्ट करें, परंतु वो यह नहीं पूछ रहा है क्यों ? और मेरे पास उसका जवाब है। क्योंकि वो अपने आपको नहीं जानता है। क्योंकि वो अपने आपको नहीं जानता है, इसलिए वो चाहता है कि और लोग उसको जानें। और...और लोग जो कॉमेन्ट करेंगे उस पर, वो अपने आपको जानेगा, उन लोगों के कॉमेन्ट्स के द्वारा। पर वो अपने आपको नहीं जान पायेगा।
तो डिसीज़ यहां और यह प्रॉब्लम यहां, एक गेगा बाइट की नहीं है, डिसीज़ है सोशल एक्सेप्टेन्स की। सोशल एक्सेप्टेन्स लोगों को हमेशा चाहिए थी। यह नई चीज नहीं है। यह तो नया तरीका है उसी बीमारी को पकड़ने का। उसी बीमारी को इस्तेमाल करने का।
समाज तो बहुत पहले से ही बंटा हुआ है। फौजी लोग एक तरह की सूट पहनते हैं, पुलिस वाले एक तरह की सूट पहनते हैं। ये सारी चीजें — और सोशल एक्सेप्टेन्स। अब आप कहीं भी चले जाइए, किसी भी आर्मी के घर में चले जाइए, किसी सोल्जर के, आपको एक फोटो मिलेगी सोल्जर की, जिसमें खूब अच्छी तरीके से अपना कैप पहना हुआ है, अपनी वर्दी पहनी हुई है। अमेरिका में भी यही होता है। इंग्लैण्ड में भी यही होता है। सब जगह यही होता है। पर यह इसलिए है — सोशल एक्सेप्टेन्स औरों की चाहिए, क्योंकि अपने आपको नहीं जानते हैं। जिस दिन अपने आपको समझना शुरू कर देंगे, यह बात सम हो जाएगी और फिर लोग औरों की तरफ नहीं देखेंगे। और यह जो टेक्नोलॉजी है, जिससे मैसेजेस लोगों को मिल सकती है, वो अपने दौर पर पहुंच जाएगी। परंतु चक्कर यहां गेगा बाइट का नहीं है, चक्कर यहां अपने आपको न जानने का है।