प्रेम रावत:
आप तो प्लानिंग करते हैं एक हफ्ते की, एक महीने की, दो महीने की, एक साल की। अजी छोड़िये। आप एक पल की प्लानिंग करिये। अगर कर सकते हैं तो। और पल के बारे में आप क्या जानते हैं जी ? कुछ नहीं! सिर्फ आया और गया। चिंता करते हैं आप कल की। ऐं ? कल क्या होगा और कल क्या हो गया ? ये दो चिंता लगी रहती हैं। और सारा जीवन कहाँ है ? एक पल-पल में।
आप जहां खड़े हुए हैं, वहां से आप देख रहे हैं और बस चल रही है। और कुछ नहीं चल रहा — बस चल रही है। पेड़ वहीं के वहीं खड़े हुए हैं, रोड वहीं का वहीं है और बस चलती हुई दिखाई दे रही है। इसका क्या मतलब हुआ ? आप बस में नहीं बैठे हैं। और अगर सबकुछ और चलता हुआ दिखाई दे रहा है — पेड़ जा रहे हैं इधर-उधर, रोड जा रही है इधर-उधर, पर बस वहीं की वहीं है। यह अच्छी बात है। इसका मतलब है आप बस में बैठे हुए हैं। कहने का मतलब — लोग कहते हैं कि “टाइम कितना जल्दी निकल जाता है, मालूम भी नहीं पड़ा।” लोग देखते हैं अपने आपको, कहते हैं “टाइम कहां गुज़र गया, कुछ नहीं मालूम।” इसका क्या मतलब हुआ ? इसका मतलब यह हुआ कि आप खड़े हुए हैं और जो टाइम की बस है वो निकल रही है। वो जा रही है। वो चलती दिखाई दे रही है। और आप खड़े हुए हैं, वो गयी निकल।
याद रहे, याद रहे कि वो चीज़ जो मुझे जिन्दा रखती है, हर स्वांस के साथ मेरे अंदर आ रही है। हर स्वांस के साथ, वो चीज़ आ रही है और जा रही है, और हर पल, हर क्षण वो मुझे छू रही है।
प्रेम रावत:
आप उन्नति करना चाहते हैं। आप ब्राइट फ्यूचर चाहते हैं। और आपको अच्छी नौकरी मिले। और आपको अच्छा जॉब मिले, ताकि आप खूब धन कमा सकें, फिर मज़ा ही मज़ा होगा, क्योंकि पैसा ही पैसा होगा! होता क्या है ?
साक्षात्कार:
पुरुष: Before the job hobbies were different, घूमना काफी पसंद था, क्रिकेट खेलता था नॉर्मली, दोस्तों के साथ ज्यादा टाइम स्पेंड होता था।
पुरुष: तब मेरी हॉबीज़ बहुत डिफरेंट थी now they are totally different.
पुरुष: दोस्त हैं काफी जो लोग बोलते हैं कि भाई, तू बड़ा आदमी बन गया है, बिज़ी हो गया है। ऐसा कुछ नहीं है। लाइफ के साथ होता है। कम हो गये हैं दोस्त थोड़े।
पुरुष: हमें जॉब भी देखनी पड़ती है, साथ-साथ अपनी पर्सनल लाइफ भी मेंटेन करनी पड़ती है, तो बैलेंस बना के चलना पड़ता है।
महिला: जब तक पढ़ाई किया तब तक तो इतना स्ट्रगल नहीं था। बट एक अच्छी लाइफ पाने के लिये जब हम जॉब ज्वॉइन करते हैं तो स्ट्रगल्स ऑटोमेटिकली बढ़ जाती है।
प्रेम रावत:
होता क्या है कि एक आदमी है, ग्रेजुएट किया, अच्छी जॉब, नौकरी ढूंढी, कंपनी के पास गये तो कंपनी ने कहा कि ठीक है, आप हमको अपनी एक्सपर्टीज़ ऑफर कीजिए, हम आपको पैसा ऑफर करेंगे। क्योंकि आपके हैं सपने, जो आप पूरा करना चाहते हैं।
साक्षात्कार:
पुरुष: मैं तो अपने आप को बी एम डब्लू में देखना चाहता हूं पांच साल बाद। अब एनी हाउ वो कैसे अचीव होता है that’s depend on.
महिला: फैमिली, बंगलो, कार एक्सट्रा, एक्सट्रा ।
महिला: मेरे लिये तो अभी सबसे बड़ी खुशी मेरा बेबी है। तो आप कितने भी थक के जाओ घर पर तो जब वो देखते हो तो लगता है हां, this is the best part of my life.
पुरुष: मैं अपने आप को पांच साल बाद इस कम्पनी में एक ऐसी पोजीशन पर देखता हूं, जहां पर मैं एक टीम को लीड कर रहा हूंगा।
महिला: मैं अपने आप को एक इंडिपेंडेंट सक्सेसफुल वूमेन बनाना चाहती हूं।
प्रेम रावत:
आप अपना समय, अपना दिमाग, अपना एफर्ट उस कंपनी को देंगे और वो कंपनी आपको देगी पैसा, ताकि आप अपने ड्रीम्स को पूरा कर सकें। कॉन्ट्रैक्ट साइंड! आपके मुँह में स्माइल! यस!
साक्षात्कार:
महिला: जॉब से मेन फायदा है हमारी जो बेसिक नीड्स होती हैं हमें लाइफ में आगे बढ़ने के लिये, हमारी खुशियों को पाने के लिये, जॉब से हमारी वो चीजें फुलफिल होती हैं।
पुरुष: थोड़ा बहुत प्रेशर है जॉब का, बट वही है कि कलीग्स का साथ है और बॉस का हेल्प है तो सबकुछ हो जाता है इज़ीली।
पुरुष: जब भी कोई अपना जॉब स्टार्ट करता है तो वो ये सोचता है कि मैं आगे चलके एक सक्सेसफुल एम्पलॉयी बनूंगा, बट जैसे-जैसे वो जॉब करता है तो उसको समझ में आता है कि यह इतना आसान नहीं है।
प्रेम रावत:
होगा ये कि कंपनी कहेगी, ‘‘आप हमको अपना 100% दीजिए!” पहली सेमिनार, जो आप अपनी कंपनी के लिए अटेंड करेंगे, उसमें आपको यही समझाया जायेगा — you must give a hundred percent. किसी ने मैथ पढ़ी है ? अगर 100% गया कम्पनी के पास, आपके लिए क्या बचा?
साक्षात्कार:
पुरुष: ऑलमोस्ट 10 अवर्स हम शिफ्ट देते हैं ऑफिस में तो टाइम मिलता नहीं है।
पुरुष: जैसे कि छुटटी के लिये भी कभी-कभी जेन्यवन होता है लेकिन they don’t allow us to take the leaves.
पुरुष: अगर हम काम कर हैं तो हमें अपना 100% तो देना ही पड़ेगा।
महिला: हमसे तो उनकी जो भी रिक्वाइर्मन्ट होती है, any how we have to fulfill.
महिला: दूर से हम बाहर के लोगों को देखते हैं तो ऐसा लगता है उनकी लाइफ़ हमसे, हमारी लाइफ़ से इज़ी है। बट पर्सनली अगर उनसे मिलो तो वो भी अपनी लाइफ़ से, अपनी जॉब से कहीं न कहीं वो भी दुखी हैं।
प्रेम रावत:
आदमी टायर्ड होता रहता है, टायर्ड होता रहता है, टायर्ड होता रहता है, टायर्ड होता रहता है और कंपनी कहती रहती है, ‘‘hundred percent please, hundred percent please, hundred percent please, hundred percent please!” अब उसके पास सिर्फ निन्यानबे बचा है देने के लिए, उसके बाद फिर अस्सी बचा है देने के लिए, उसके बाद फिर सत्तर बचा है देने के लिए और फैमिली के लिए जीरो! और फैमिली उससे अलग होने लगती है, एलीनेट होने लगती है। वो अपने से एलीनेट होने लगता है और फिर कंपनी को क्या जरूरत है ऐसे आदमी की ?
साक्षात्कार:
महिला: Actually I am a mother तो मेरे को वो प्रॉब्लम होती है weekend पर but I can’t do anything because मेरे को करना होता है।
पुरुष: वो लाइफ बैलेंस थोड़ा बिगड़ जाता है बिकॉज़ हम बिजी रहते हैं जॉब्स में।
महिला: हम अपनी पर्सनल लाइफ में स्पेस नहीं कर पाते, फैमिली को टाइम नहीं दे पाते।
पुरुष: कभी-कभी तो मन भी करता है कि अब तो छोड़ देना था।
पुरुष: बॉस के ऊपर भी प्रेशर होता है तो उसको दूसरों पर अपना लोड निकालना पड़ता है तो वो चीज हमें समझनी चाहिए।
पुरुष: कभी-कभी संडे को हमें आना पड़ता है तो हमें यह लगता है कि खुद तो घर पर बैठे हैं, ठीक है, और हमें फोन करके यहां बुला लिया।
पुरुष: Because in future we will become boss, हम भी वो ही चीज करेंगे और फिर हमारे नीचे वाला हमें गाली देगा।
पुरुष: अपनी स्किल से ज्यादा हम कम्पनी को दे रहे हैं। हमारी जितनी क्षमता है उससे ज्यादा हम काम कर रहे हैं बट हमें लगता है कि इतना हमें इन रिर्टन नहीं मिल रहा।
महिला: I don’t think so, I have getting paid that much what I deserve.
पुरुष: कम्पनी के साथ भी है, जब तक आप उनके लिये युसफुल हैं तभी तक वो आपको मोटीवेट करते हैं, नर्चर करते हैं, otherwise they will throw you out.
प्रेम रावत:
उनको सिर्फ एक कागज का टुकड़ा फाड़ना है and the contract is finished! और वो कागज का टुकड़ा आपकी जिंदगी को रेप्रज़ेंट करता है। तो क्या मेरा मतलब है कहने का कि आपको पढ़ाई नहीं करनी चाहिए ? नहीं, मैं ये नहीं कह रहा हूं।
मैं कह रहा हूं — Be armed for reality. सच्चाई के लिए तैयार होकर के जाना। उस मैदान में, लड़ाई के मैदान में अच्छी बात नहीं है कि सिर्फ — ‘‘अजी! मैं तो देखने के लिए निकला था।’’ नहीं। तैयार हो के जाना। तैयार होने का क्या मतलब है? Yes, you need education — education होनी चाहिए साथ में। But you also need ‘you’ and you need the wisdom. और क्या विज़डम कि मैं सोऊंगा नहीं, मेरे को जगना जरूरी है। मेरे को जगना जरूरी है, मेरे को ये पहचानना जरूरी है कि — मेरी नीड्स क्या हैं ? मेरा हृदय, मेरा हार्ट मेरे से क्या मांगता है ?
संयम...स्वतंत्रता...शांति..
प्रेम रावत :
दो दीवाल हैं! एक दीवाल से निकल के आए और दूसरी दीवाल से जाना है। और उसके बीच में है तुम्हारी जिंदगी। कहां से आए ? किसी को नहीं मालूम। और जब दूसरी दीवाल के अंदर घुसेंगे, कहां जाएंगे ? यह किसी को नहीं मालूम। और ये दो दीवाल हैं! इसके बीच में है तुम्हारा खेल! ये उस दीवाल के उधर नहीं है और इस दीवाल के उधर नहीं है। इस दीवाल के इधर है और इस दीवाल के इधर है। इसमें तुम हो। तुम्हारे रिश्ते, तुम्हारे दोस्त, तुम्हारा सुख, तुम्हारा दुख, तुम्हारी चिंताएं, सब इसके बीच में हैं। और यह जो समय मिला है, तुम कहां लगे हुए हो ? इन दो दीवालों के बीच की सोचने के लिए नहीं। कहां जाता है मनुष्य का ध्यान ? इस दीवाल के उस तरफ क्या है ? फायदा क्या हुआ ? फायदा क्या हुआ ? क्योंकि वो तो होना ही है! वो तो हो के रहेगा! उसको टालने के लिए तो बहुत लगे हुए हैं पर वो कभी टलेगी नहीं। जब यह हो गया कि तुम इस दीवाल के इस तरफ आए तो अब उस दीवाल के उस तरफ तुमको जाना है।
देखो! जब तुम पैदा होते हो, तुमको कोई ध्यान नहीं है, तुम कौन हो, क्या हो, क्या करते हो, क्या करना है, क्या है, क्या नहीं है। एक-एक मिनट के आधार पर तुम जीते हो। सबकुछ ठीक है, सबकुछ ठीक नहीं है। भूख लगी है — ऐंऽऽ तकलीफ है, क्योंकि डाइपर किसी ने चेंज नहीं किया है तो — ऐंऽऽ नींद आ रही है, सो नहीं रहे हैं तो —ऐंऽऽ! उससे मां को पता लग जाता है कि कोई चीज ठीक नहीं है। ततततत... सुला देती है। सोना क्या है ? जागना क्या है ? कुछ नहीं मालूम। यही चक्कर चलता रहता है, चलता रहता है, चलता रहता है, चलता रहता है।धीरे-धीरे करके वो बोलना भी सीख जाएगा। ये सारी चीजें होती रहती हैं, होती रहती हैं, होती रहती हैं, होती रहती हैं, होती रहती हैं।
तो इसमें लगभग समझो —10 साल लग जाएंगे। फिर अगले 10 साल में सब चक्कर होगा। उसी अगले 10 साल में “टीन एजर” बनोगे। सिर्फ 10 साल में। उसी 10 साल — जैसे पहले 10 साल, वैसे ही दूसरे 10 साल में तुम “टीन एजर” बनोगे और “टीन एजर” से बाहर भी निकलोगे। नाइनटीन! बस! फिर ट्वेंटी। और फिर अगले 10 साल में, सिर्फ दस साल में — दस साल की बात हो रही है। पहला दस साल, दूसरा दस साल, तीसरा दस साल — सारी दुनियादारी के चक्कर में पड़ोगे। शादी! कोई जब 30 का होने लगता है — ऐं! उससे पहले ही ये सबकुछ होता है। नौकरी लग जाती है, ये ..! क्योंकि नौकरी लग जाए, फिर शादी भी अच्छी होगी। ग्रेजुएट भी उसी में होना है। अगर कोई डिग्री लेनी है कॉलेज से, वो भी उसी में होगी। ये सबकुछ कर कर कराके सारी अच्छी तरीके से तुम अगले उस दस साल में फंस जाओगे।
फिर अगले दस साल में तुम क्या करोगे ? फंसे रहोगे। पहले दस साल में उस चक्कर से तुम, निकलने की तुम्हारी इच्छा भी नहीं थी। अगले दस साल में उससे भी तुम्हारी निकलने की इच्छा नहीं थी। अगले दस साल में उससे भी निकलने की इच्छा नहीं थी, परंतु ये जो होंगे अगले, तुम्हारी इच्छा होगी — कैसे निकलें ? फिर ध्यान जाएगा तुम्हारा रिटायरमेंट की तरफ, जो अगले दस साल में होना है। रिटायर भी होना है और होगा क्या ? पहले मंदिरों का चक्कर काटते थे, अब अस्पतालों का चक्कर काटोगे — ‘‘उंह! ये हो गया, वो हो गया! डॉक्टर साहब! ठीक कर दो!’’ यही होना है सबके साथ।
तो तुम जब सोचते हो कि तुम्हारे पास बहुत टाइम है तो जरा सोचो कितना टाइम है! ज्यादा टाइम नहीं है। और इसी में करना है, जो कुछ करना है। इसी में समझना भी है, अपने हृदय को भरना भी है, अपने आपको समझना भी है। तो उसके प्रति तुम क्या कर रहे हो ?
इसी जीवन में सबकुछ करना है। अपने आपको समझना भी है और अपने हृदय को भरना भी है।
प्रेम रावत:
हम लोगों की एक आदत है और वो आदत भेड़ में भी है। एक भेड़ इधर गई, तो सबके सब उधर ही जायेंगे। तो जब मनुष्य होकर के भी भेड़ जैसा ही रहना है, तो मनुष्य होने से क्या फायदा? मनुष्य होने से क्या फायदा? भेड़ को तो खेती करनी नहीं पड़ती, बाजार जाना नहीं पड़ता। कोई उसको खिलाता है, कोई उसके लिए खेती करता है। कोई चारा डालता है तो भेड़ तो मनुष्य से अच्छी हुई। क्योंकि मनुष्य हो करके भी अगर व्यवहार वही है जो भेड़ का है तो कम से कम भेड़ को तो हमेशा खाना मिलता है और तुम उसके लिए पता नहीं कहां-कहां भागते फिरते हो। फिर फायदा क्या हुआ?
आप मेरी बात समझो, मैं मज़ाक नहीं कर रहा हूं। क्योंकि बात गम्भीर है। है मजाकिया पर है गम्भीर। और गम्भीर इसलिए है क्योंकि आप मनुष्य हैं। मैं मनुष्य हूं। और मैं मनुष्य के नाते आपसे कह रहा हूं। मैं भी मनुष्य हूं, आप भी मनुष्य हो। मैं मनुष्य के नाते, एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से ये कह रहा है कि — नहीं, इस जीवन का लक्ष्य ये नहीं है। क्योंकि आप जीवित हैं। आप कुछ और पा सकते हैं। कुछ और कर सकते हैं। आप अपने जीवन में शांति का अनुभव कर सकते हैं।
आप अपने जीवन को सफल कर सकते हैं। किसी लिस्ट से नहीं, अपने हृदय के अंदर उस सक्सेस को महसूस करके कि — हां, सचमुच में, सचमुच में मैं कितना धन्य हूं कि मैं जीवित हूं।
सब दबे हुए हैं अपने बोझ से। हम ये कैसे करें, हम ये कैसे करें, हमारे पर ये बोझ है, हमारे पर ये बोझ है, हमारे पर ये बोझ है। मैं आप पर बोझ नहीं डालना चाहता। मैं आपका बोझ हल्का करना चाहता हूं। मैं चाहता हूं कि आप अपने कंधों से इस बोझ को नीचे रखें। इसका यह मतलब नहीं है कि आप अपनी जिम्मेवारी न निभायें। पर ये जिम्मेवारी बोझ क्यों बन गई? अब जिम्मेवारी है, ये बोझ क्यों बन गई? क्योंकि एक चीज है आपके अंदर जो कुछ और पाना चाहती है। और आपका जो दिमाग है इसमें टेप लगी हुई है — नहीं, तुमको कुछ और पाना है।
अगर वो होने लगे आपके जीवन में जो आपका हृदय चाहता है तो ये जिम्मवारियां बोझ नहीं रहेंगी। ये जिम्मवारियां बोझ नहीं रहेंगी। इनको आप निभा सकेंगे। इनको उतना ही टाइम देंगे, जितना देना है। उससे ज्यादा नहीं। क्योंकि अभी तो हर एक चीज जो आपको करनी है पहाड़ जैसी लगती है। नहीं? वो भी दिन भी होते हैं कि ऐसे लगता है अब ये भी करना है, अब वो भी करना है, अब वो भी करना है, अब वो भी...।आह! बताऊं क्यों? क्योंकि तुम नहीं करना चाहते। जो तुम नहीं करना चाहते, वो पहाड़ जैसी लगती है, जो करना चाहते हो, वो पहाड़ जैसी नहीं लगती।
ये जग अंधा मैं केहि समझाऊं, सभी भुलाना पेट का धन्धा।
सबका…सबका…सबके साथ। परंतु यहां जो मैं चीज कह रहा हूं वो अलग है। क्योंकि ये एक प्लेटफार्म, ये स्टेज कोई पॉलिटिकल स्टेज नहीं है। कोई धर्म की स्टेज नहीं है। ये मानव के नाते एक स्टेज है। एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से मानवता के नाते से कह रहा है कि तुम जिस जीवन को जी रहे हो, यह असली में तुम्हारा जीवन नहीं है। एक और जीवन है जिसके अंदर तुम हर एक दिन खुशी को महसूस करो।
इस जीवन का लक्ष्य भेड़-चाल में फंसे रहना नहीं है। क्योंकि आप मनुष्य हैं, आप अपने जीवन में शांति का अनुभव कर सकते हैं।
प्रेम रावत :
चार चीजें बहुत जरूरी हैं इस जीवन के अंदर और इन चार चीजों में तो मैं किताब भी लिखने जा रहा हूं। और ये जो चार चीजें हैं — एक कि तुम अपने आपको जानो। जब तक तुम अपने आपको नहीं जानोगे, तुमको नहीं पता तुम्हारी शक्तियां क्या हैं और तुम्हारी कमजोरी क्या हैं? तुमको यह नहीं मालूम रहेगा कि तुम यहां आये क्यों हो? तुमको यह नहीं मालूम पड़ेगा कि मनुष्य होता क्या है, जब तक तुम अपने आपको नहीं जानोगे।
और दूसरी चीज कि अपने जीवन में — अपने जीवन में सदैव यह हृदय आभार से भरा रहे। और भरेगा तभी, जब आप हर दिन के लिए धन्यवाद अदा करने योग्य होंगे। ये नहीं है कि सुबेरे उठ करके — आहह! नहीं, उठ करके — मैं जीवित हूं। मैं जीवित हूं। असली सफलता तो वह है। असली चीज तो वह है, जिसका तुम अनुभव कर सको।
तो आभार कैसे होगा? जब तक सचमुच में दिल भरेगा नहीं और जब तक जो असलियत है उसको हम स्वीकार नहीं करेंगे अपने जीवन के अंदर ।
और तीसरी चीज कि तुम्हारे बारे में लोग क्या सोचते हैं, इसको तुम छोड़ दो। मैं जानता हूं... हैंऽऽऽ ये कैसे होगा । क्या मतलब क्योंकि जो कुछ भी तुम बैठे-बैठे यही तुम्हारे दिमाग में चलता रहेगा कि — “वो क्या सोच रहा है मेरे बारे में, वो क्या सोच रहा है मेरे बारे में, वो क्या सोच रहा है मेरे बारे में, वो क्या सोच रहा है मेरे बारे में।” लोगों के जीवन तबाह हो जाते हैं इस बात को लेकर। तबाह! ये होना चाहिए, वो होना चाहिए ताकि मेरी नाक न कटे। नहीं कटेगी। अपने आप नहीं कटेगी, चक्कू से कटेगी। क्योंकि ऐसी प्रथा बना रखी है। ऐसी प्रथा बना रखी है। और ये कभी टूटेगी नहीं, लगी रहती है। साल के उसके बाद, उसके बाद, उसके बाद, उसके बाद, उसके बाद, उसके बाद इसी में, वो क्या सोचेंगे, वो क्या सोचेंगे, वो क्या सोचेंगे, वो क्या सोचेंगे। क्यों? उनके पास और कुछ सोचने के लिए नहीं है? है! उनके पास बहुत है सोचने के लिए। वो तुम्हारे बारे में — और वो तुम्हारे बारे में नहीं। अगर वो इतने ही खुदगर्ज हैं तो वो अपने बारे में सोच रहे होंगे।
कितना जरूरी है कि हम इन चीजों में न पड़ जायें और हमेशा हमारे जीवन के अंदर आशा बनी रहनी चाहिए। जब तक ये स्वांस चल रहा है, मनुष्य को निराश होने की जरूरत नहीं है। चाहे कुछ भी हो जाये, निराश नहीं होना है। निराश होने की कोई जरूरत नहीं है। इसे कहते हैं असली ताकत। ये है असली ताकत।
Text on screen:
चार जरूरी बातें
अपने आपको जानो।
हृदय आभार से भरा रहे।
लोग क्या सोचेंगे इसकी परवाह न करें।
जीवन के अंदर आशा बनी रहे।
टॉम प्राइस : (होस्ट)
और यह है — मेरा आपसे सवाल। और फिर हम आपके सवाल पर जाएंगे; आप बिलकुल भी चिंता न कीजिये। मेरे लिए कमाल का मौका है, कमाल का प्रेम जी से सवाल पूछने का।
तोहफा खोलने वाला उदाहरण कमाल का है। पर एक बार अगर आपने ये तोहफा खोल लिया, “आप इस तोहफे को दोबारा बंद होने से कैसे रोकेंगे, कैसे रोकेंगे!”
प्रेम रावत जी :
अब यह अहम सवाल है। बस इतने समय में क्या आपने सोचा कि तोहफा खुद नहीं खुला होगा, आपने इसे खोला है। तो बस आप ही हैं जो इसे बंद करके वापस रख सकते हैं। हां बिल्कुल, आप ऐसा कभी भी कर सकते हैं। तो एक तोहफा, तो तोहफा ही है जब आप स्वीकार नहीं करते, यह तोहफा नहीं है।
एक कहानी है मतलब कि इस उदाहरण से पहले भी कुछ आता है पर मैं अपनी बात बताता हूं एक समय भगवान बुद्ध अपने एक शिष्य के साथ जा रहे थे। उस शहर में सब बुद्ध को बुरा कह रहे थे। कहते हैं, "आप अच्छे नहीं हैं, आप ये नहीं करते, आप वो नहीं करते और ये सब।"
तो उनके शिष्य ने कहा, " बुद्ध, यह आपको परेशान नहीं करता इतने सारे लोग आपके बारे में बुरा बोल रहे हैं, बोलते जा रहे हैं!"
तो जब बुद्ध वापिस आये उन्होंने एक कटोरा लिया और उनका शिष्य वहीं बैठा था। उन्होनें एक कटोरा लिया और सरका दिया और फिर पूछा "यह किसका है ?" और उनके शिष्य ने कहा, "यह आपका है।" फिर बुद्ध ने थोड़ा और सरकाया और पूछा "यह अब किसका है ?"
शिष्य ने कहा "यह अब भी आपका है।"
वह ऐसा करते रहे और पूछते गए कि "यह किसका है; यह किसका है!" और शिष्य कहता रहा "यह आपका है; यह आपका है।" फिर उन्होंने कटोरा लिया और शिष्य की गोद में रख दिया और फिर पूछा कि "अब किसका है ?"
उसने कहा "यह अब भी आपका है।"
उन्होंने कहा "बिल्कुल सही।" अगर मैं बुराई को नहीं मानता तो वो मेरी नहीं है और यह वही बात है अगर हम इस तोहफे को नहीं अपनाते, यह हमारा नहीं है। यह बस पड़ा रहेगा ऐसे ही। हम इस दुनिया में आते हैं और एक दिन हमें यहां से जाना है और फिर हम सोचते हैं और यह बहुत ज्यादा लोगों के साथ होता रहता है। बस आखिरी क्षण में वह कहते हैं कि "मैंने अब तक क्या किया ?"
फिर भी सब सुलझाने का समय होता ही नहीं है जैसा कि आप करना चाहते थे कि वो हो। लेकिन अभी वह समय है अभी आप जीवित हैं और आप वो सब कर सकते हैं या जीवन बर्बाद कर सकते हैं। और बात यह है जीवन वापस लौट कर आपसे यह नहीं कहेगा कि आप बर्बाद कर रहे हैं। ऐसा होता तो अच्छा होता। जानते हैं ना, पर ऐसा नहीं होता। और इसकी एक और खूबसूरती है कि जब भी आप तोहफे को स्वीकारने का सोचते हैं, यह उसी समय आपका बन जाता है। तो ज्यादा देर नहीं हुई है फ़र्क़ नहीं पड़ता। अगर आप खुद से कहते हैं कि "अच्छा अब तो मैं 84 का हूं मेरे लिए बहुत देर हो चुकी है।"
जी नहीं! देर नहीं हुई है और ये आप कहते हैं कि "अच्छा, मैं तो बहुत छोटा हूं।"
नहीं, आप छोटे नहीं हैं,आप बड़े नहीं है बस जिस दिन आप स्वीकारते हैं वह आपका है।