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तनाव 00:09:52 तनाव Video Duration : 00:09:52 आशा की हमको बहुत जरूरत है। क्योंकि जब आशा चली जाती है तो निराशा बैठ जाती है। आशा...

Text on screen : तनाव में आकर आज बहुत से युवा आत्महत्या कर लेते हैं, इसे कैसे रोका जा सकता है ?

प्रेम रावत:

यह बहुत ही गंभीर सवाल है। क्योंकि अगर आप गुब्बारे में फूंक मारते रहेंगे, मारते रहेंगे, मारते रहेंगे, मारते रहेंगे, आपको अच्छी तरीके से मालूम है कि उस गुब्बारे के साथ क्या होगा। फफ्फ! सोसाइटी दो आँसू बहाने के लिए तो तैयार है, पर ये समस्या के बारे में कुछ करने के लिए तैयार नहीं है। सक्सेस की फूंक ऐसी मार दी है लोगों के पीछे, ऐसी — और उन बच्चों के पीछे, शुरुआत से — तुझे कुछ बनना है, तुझे कुछ बनना है, तुझे कुछ बनना है, तुझे कुछ बनना है, तुझे कुछ बनना है।

जब आप कह रहे हैं, ‘‘तुझे कुछ बनना है’’ तो उसका तो — एक बात तो स्पष्ट हो गयी उसके दिमाग में कि मैं कुछ हूं नहीं। तो जब यह बात किसी बच्चे के दिमाग में स्पष्ट हो जाती है कि ‘‘मैं कुछ हूं ही नहीं, मेरे को कुछ बनना है तो जब वो चीज, जो मेरे को बनने के लिए चाहिए, वो खतम हो गयी तो मैं भी खतम हो गया।’’

ये बीमारी बच्चों की नहीं है। ये बीमारी हमारी सोसाइटी की बनाई हुई है। और जब एक भी बच्चा अपनी जिंदगी को खतम करने के लिए मजबूर होता है तो ये तो wakeup call है सारी सोसाइटी के लिए। और न सिर्फ हिन्दुस्तान की सोसाइटी के लिए, सारे संसार की सोसाइटी के लिए! बच्चों का काम खुदकुशी करना नहीं है। बच्चों का काम है — इस जीवन को enjoy करना! उनको प्रेरित करना इस जीवन के बारे में, जो वो बचपना खो चुके हैं —बुजुर्ग लोग — ये तो उल्टी गंगा बह रही है यहां। तो सक्सेस, सक्सेस, सक्सेस, सक्सेस, सक्सेस! और मैं सबसे कहता हूं — तुम पहले से ही सक्सेसफुल हो! ये चीजें तुमको सक्सेसफुल नहीं बनाएंगी। तुम्हारा सक्सेस तुमसे शुरू होता है। और तुम्हारा सक्सेस एक फूल के माफ़िक है। एक फूल के माफ़िक है! इसको पानी दो, अपने आप खिलेगा। उसकी पत्तियों को खींचने से फूल नहीं खिलेगा और चाहे कितनी भी कोशिश कर लो! उस फूल को खिलने दो। ये सक्सेस की बीमारी बहुत ही खराब है। सक्सेस तो पहले से ही है।

जिस दिन आपने स्वांस लिया, आप सक्सेसफुल हुए। और जबतक आपके अंदर स्वांस आ रहा है, जा रहा है, आप सक्सेसफुल हैं। पर मां-बाप हैं — ‘‘तू मेरी बेटी है।’’ और मैं तो ये कहूंगा आपसे — क्योंकि ये बड़ी निजी बात है मेरी। पर मेरे साथ ये हुआ। और मैंने साफ-साफ कहा — चाहे कुछ भी हो, कुछ भी हो — बुरा समय आए, अच्छा समय आए, कुछ भी हो — बेटी! तेरा-मेरा जो संबंध है — तू भी प्रण कर, मैं भी प्रण करता हूं कि ‘‘कुछ भी हो, हम इस संबंध को बदलने नहीं देंगे। चाहे कुछ भी आए।’’ तो ये कहां गया ?

मां, बेटी! बाप है, अपने जीवन में संघर्ष कर रहा है! और वो नहीं चाहता कि मेरी बेटी भी ये संघर्ष करे। तो उसके अंदर फूंक क्या मार रहा है ? उल्टी फूंक मार रहा है। ‘‘सक्सेसफुल! मेरे जैसा मत बनना! मेरे से ज्यादा मेहनत करना!’’ मेहनत करने से नहीं — वो लोग सक्सेसफुल हैं, जो इस सारी जिंदगी को दोनों हाथों से बटोरते हैं, समेटते हैं। वो करना नहीं सिखाया।

आत्महत्या करने के लिए कितना अंधेरा चाहिए! कितना अंधेरा चाहिए! ये देखिए आप कि आदमी कोई — मैंने बहुत सोचा इस बारे में कि आदमी को जीने में और मरने में कोई अंतर नहीं आ रहा है। मतलब, बत्ती इतनी बुझ गई है, इतना अंधेरा हो गया है कि वो मोमबत्ती, जो जलनी चाहिए, वो बुझ गई है। हम सबको कोशिश करनी चाहिए कि वो मोमबत्ती कभी न बुझे। कभी न बुझे! और जबतक सभी मिलकर के उनकी मदद नहीं करेंगे — स्कूल तो बना देते हैं। स्कूल तो बना देते हैं, पर उस स्कूल में पढ़ाया क्या जा रहा है ? बच्चों की समझ में भी आ रहा है या नहीं ? इम्तिहान के पेपर तो बना देते हैं, पर वो बेचारे पास कैसे होंगे ? क्या पढ़ाया जा रहा है बच्चों को ?

अब देखिए! एक मैं documentary देख रहा था, उसमें साफ है। तो एक country है। उसमें level of education इतना ऊंचा नहीं था। तो उन्होंने कहा, कुछ करना चाहिए। तो उन्होंने कहा, ‘‘ठीक है! बदल देंगे!’’ बदल दिया उन्होंने। क्या बदल दिया ? गृह-कार्य खतम! मैंने कहा, ‘‘ऐऽऽऽ! ऐंऽऽऽ! ऐंऽऽ! गृह-कार्य खतम!’’ और स्कूल के जो घंटे हैं, वो बहुत ही कम कर दिए। बहुत ही limited, बहुत ही कम! और emphasis — जाओ, खेलो!

हुआ क्या ?

बच्चे दिल भर के खेलते थे। और जब स्कूल में आते थे तो उनके लिए ये नहीं है कि यहां भी खेलते रहेंगे। नहीं। खेल वहां हो गया, अब पढ़ेंगे! ध्यान देने लगे। लेवल ऑफ एजुकेशन उसका आया। और फिर उनको मालूम है अच्छी तरीके से कि ध्यान दे दिया, अब फिर जाकर के खेलेंगे। ये हम एक दूसरे से क्यों नहीं सीख पाते ? मतलब, ये तो facts हैं! affection नहीं है, ये तो facts हैं। वो चीजें, जिससे सबका भला हो — काहे के लिए हम implement नहीं कर पाते हैं ? ऐसी-ऐसी चीजें implement करने के लिए हम तैयार हैं, जिसमें सिर्फ चंद का फायदा हो। पर ऐसी चीजें नहीं, जिसमें सबका फायदा हो।

तो ये समस्या बहुत ही गंभीर समस्या है! और एक बच्चे का आत्महत्या करना, बहुत ज्यादा है! एक का भी नहीं होना चाहिए! ये उम्र नहीं है उन चीजों की। अंधेरे की उम्र नहीं है, ये उजाले की उम्र है। और अगर जिस सोसाइटी में ये हो रहा है, तो ये समझिए कि उस सोसाइटी में भी मोमबत्तियां बुझ रही हैं। किसी के पास वो मोमबत्ती जलाने के लिए जली हुई मोमबत्ती नहीं है। कितना जरूरी है कि जलती हुई मोमबत्ती हो, ताकि और लोग भी उससे जला सकें। और ये बहुत ही, बहुत ही जरूरी बात है कि — जब — देखिए! आशा एक ऐसी चीज है कि जब आशा हमारी जिंदगी से चली जाती है तो अंधेरा बहुत गंभीर हो जाता है। और आशा हमारी जिंदगी से कभी नहीं जानी चाहिए। आशा की हमको जरूरत है। क्योंकि जब आशा चली जाती है तो निराशा बैठ जाती है। जब निराशा बैठ जाती है तो अंधेरा हो जाता है। जब अंधेरा हो जाता है तो फिर दिखाई नहीं देता है, कहां जा रहे हैं ? और ऐसी ठोकर कि जब जिंदगी और अंधेरे में भी कोई अंतर नहीं दिखाई देता है तो फिर सबकुछ खतम!

फरिश्ता 00:02:00 फरिश्ता Video Duration : 00:02:00 किसका इंतजार है हमें ?

Text on screen:

कौन है वो ?

किसका इंतजार है हमें ?

हम आसमान में देखते हैं और किसी फरिश्ते का इंतजार करते हैं कि कोई धरती पर आयेगा हमारी सारी समस्याएं सुलझा देगा।

तुम ही वो फरिश्ता हो, जो तुम्हारी समस्याएं सुलझा सकता है।

- प्रेम रावत

संबंध 00:01:57 संबंध Video Duration : 00:01:57 जबतक ये स्वांस चल रहा है, वो तुम्हारा धन है। असली धन!

प्रेम रावत:

किस चीज से तुम्हारा संबंध है ? किस चीज से तुम्हारा तार जुड़ा हुआ है ? उस चीज से अगर तुम्हारा तार जुड़ा हुआ है, जो सत्य है, जो तुम्हारे अंदर है, जो अविनाशी है तो फिर चाहे कुछ भी हो बाहर, कुछ भी हो बाहर, कुछ नहीं होगा तुमको। क्योंकि तुम्हारा धैर्य अंदर से आयेगा। अपने अंदर उन चीजों को प्रोत्साहन दो, जो अच्छी चीजें हैं, जो सुंदर चीजें हैं, जिनसे आनंद मिलेगा। हृदय को आनंद मिलेगा।

तो शांति का अनुभव तो हर एक व्यक्ति कर सकता है। हर एक व्यक्ति कर सकता है, चाहे किसी भी परिस्थिति में क्यों न हो।

‘‘लोग तो कोसते हैं अंधेरे को, पर अंधेरे को कोसने से उजाला नहीं होगा। दीया जलाने से उजाला होगा।’’

अपने अंदर का दीया कभी जलाया ?

अपने अंदर का दीया जलाओ! अपने अंदर का तुम दीया जलाओगे तो फिर अंधेरे से डरने की क्या जरूरत रहेगी ?

जबतक स्वांस चल रहा है, अभी भी कुछ है। और जो है, वो सबसे शक्तिशाली है। उसको चोर नहीं चुरा सकता। उसको बॉउन्ड्रीज़ अलग नहीं कर सकती। उसको बड़े से बड़े देश, उसको नहीं ले सकते। वो तुम्हारा है, तुम्हारा रहेगा। जबतक ये स्वांस चल रहा है, वो तुम्हारा धन है। असली धन! असली धन वो है!

सुख और शांति वाला संसार कैसा होगा ? 00:12:51 सुख और शांति वाला संसार कैसा होगा ? Video Duration : 00:12:51 शांति का वास्ता सिर्फ एक चीज से है और वह है मनुष्य। और शांति उसके अंदर है!

Text on screen : अगर इस संसार में सिर्फ सुख और शांति होगी तो वह संसार कैसा होगा ?

प्रेम रावत:

देखिए! बात यह है कि इस दुनिया के अंदर लड़ाई — अगर हम इतिहास को देखें तो इतनी ज्यादा नहीं हुई हैं। लोगों ने परिश्रम यही किया है कि शांति का वातावरण बने। जब मनुष्य खेती करने लगा, तब सारा चक्कर हुआ। क्योंकि अब खेती है। तो किसी ने हल चलाया, किसी ने पानी दिया, किसी ने बीज बोया — अब उसमें फसल तैयार है और कोई ऐसा है, जो ये सारी मेहनत नहीं करना चाहता है। और जब फसल तैयार हो गई तो उसको काट के ले गया। तब जाकर के लोगों ने ये सारा प्रबंध शुरू किया। तब से राजा बने, तब से लड़ाइयां चालू हुईं! किसकी जमीन है — उससे पहले किसी को क्या मतलब था, किसकी जमीन है ? सभी की जमीन है। जो जा रहा है, उसकी जमीन है। परंतु एक बार जब खेती होने लगी, तब लोगों के जीवन में ये हो गया कि नहीं, ये मेरी है, ये मेरी है, ये ये है, ये वो है! तो बात ये है कि ये सारी चीजें — इन पर लड़ना, इन पर झगड़ना!

अब सबसे ज्यादा लड़ाई होती है — ये मेरा है! अब ये ही बात नहीं है कि ‘‘यह मेरा है! यह मेरा विचार है और तुमको इस तरीके से होना चाहिए!’’ इस पर भी लड़ाई होती है। फिर शांत हो जाते हैं। और जब शांत हो जाते हैं, तब फिर दुबारा से निर्माण शुरू होता है, उन्नति होती है! यह तो मनुष्य को अच्छी तरीके से मालूम है कि शांति क्या लाती है और अशांति क्या लाती है ? इसमें दूरदर्शी होने की जरूरत नहीं है। जो है, अगर उसको देखा जाए! क्योंकि इस संसार में समस्या ज्यादा नहीं है। थोड़ी समस्या है। और मैं समस्याओं को छोटा नहीं बनाना चाहता। लोग भूख से मरते हैं। अब ये समस्या छोटी क्यों है मेरे हिसाब से ? क्यों है ? एक तो लोगों के हिसाब से बहुत बड़ी समस्या है! समस्या छोटी ये इसलिए है कि इस पृथ्वी पर इतना खाना उपजता है, उगाया जाता है कि वो सबको खिला सके। अगर पृथ्वी छोटी पड़ती खाना उगाने के लिए तो यह बहुत बड़ी समस्या होती। पर पृथ्वी इस चीज के लिए अनिवार्य है। और इतना खाना उगता है, परंतु वो खाना, ताकि चावल, गेहूं, इन चीजों का दाम control करने के लिए फेंका जाता है। वो ज्यादा जरूरी है लोगों के लिए पैसा, जिसको वो खा नहीं सकते हैं, जिसको वो पी नहीं सकते हैं। वो समझते हैं कि इसके होने से सबकुछ है और वो ये भूल जाते हैं कि एक ये दीवाल है, जब मैं पैदा हुआ और एक ये दीवाल है कि मेरे को जाना है, और जिस दिन मैं इस दीवाल तक पहुंचूंगा और इसके दूसरी तरफ जाऊंगा — एक कौड़ी पैसा मैं नहीं ले जा सकता हूं। और मेरे पेट में कोई ऐसी चीज नहीं है, जो पैसे को हजम कर ले। एक चीज नहीं है!

ये पैसा है क्या ? मनुष्य का बनाया हुआ है। भगवान ने बनाया — प्रकृति ने बनाया सोना, मनुष्य ने लगाया उसका दाम! और जब दाम लगने लगा तो फिर वो अपने भविष्य को कोसता है कि उसके पास इतना क्यों है, मेरे पास इतना क्यों नहीं है ? ये सारी चीजें मनुष्य की बनाई हुई हैं। और मनुष्य ही इनको झेलता है, इन्हीं चीजों से दुखी होता है। अपने भविष्य को कोसता है कि ‘‘ऐसा क्यों हो रहा है मेरे साथ ? मैं क्यों नहीं अमीर हूं ? ये क्यों अमीर है ? मैं गरीब क्यों हूं ? भगवान ने ऐसा क्या बनाया ?’’ फिर धर्म की बात आ जाती है। ‘‘अरे! ये तो मेरे पिछले जन्मों का फल मिल रहा है मेरे को!’’ और ये सब चलता रहता है! परंतु सही बात तो ये है कि शांति हम सबके अंदर है। शांति कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो बाहर हो! वह हमारे अंदर है।

घट में है सूझे नहीं, लानत ऐसी जिंद।

तुलसी या संसार को, भयो मोतियाबिंद।।

Cataract — मोतियाबिंद! चीज जो है, वो दिखाई नहीं दे रही है साफ-साफ! यही होता है मोतियाबिंद से। और जब वो मोतियाबिंद निकल जाता है तो फिर साफ दिखाई देने लगता है कि जिस चीज की हमको जरूरत है, जिस शांति की हम तलाश कर रहे हैं, वह शांति हमारे अंदर है। जब मनुष्य उस शांति का अनुभव करने लगता है और वो जान लेता है कि ‘‘ये मेरी प्रकृति है, मैं ये हूं! मैं ये नहीं हूं, मैं ये हूं!’’

अब देखिए! एक समय था कि आईना नहीं था। आईना रूप जैसी कोई चीज नहीं थी। तो लोग अपने आपको उस तरीके से नहीं देख पाते थे, जिस तरीके से आज देख पाते हैं। या तो पानी में लोग अपनी परछाईं देखते थे। पर पानी की परछाईं तो आप जानते ही हैं, कभी इधर-उधर पानी हिल रहा है तो वो ठीक ढंग से दिखाई नहीं देगी। कोई चमकीली चीज! पर चमकीली चीज होने के लिए पैसा होना जरूरी था। अमीरों को ही उपलब्ध थी, गरीबों को ज्यादा उपलब्ध नहीं थी। अर्थात् लोग अपने चेहरे को नहीं जानते थे, नहीं पहचान पाते थे। और जब आईना आया तो अब तो सब लोग देखते हैं। अगर अपनी फोटो देखेंगे तो कहेंगे कि ‘‘ये तो मेरी फोटो है!’’ तो कैसे आपको मालूम ?

क्योंकि आप जानते हैं कि आपका चेहरा कैसा दिखता है! ठीक इसी प्रकार से जब मनुष्य अपनी प्रकृति को समझता है तो उसको समझ में आता है कि शांति मेरे से दूर नहीं है। मैं शांति से दूर नहीं हूं, शांति मेरे से दूर नहीं है। और मेरी प्रकृति में अशांति भी है। मेरी प्रकृति में लड़ना भी है! क्योंकि लड़ाई जो चीज है, वो बाहर से नहीं आती है, वो मनुष्य के अंदर से ही आती है। और शांति भी मनुष्य के अंदर से आती
 है। जब दोनों चीजों को वो पहचानने लगता है तो वो जानता है कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है ? और जबतक वो अपने आपको नहीं जानेगा, वो समझने की कोशिश करेगा कि अच्छा क्या है, बुरा क्या है — वो जो कुत्ता अपनी दुम को chase करता रहता है, फिरता रहता है, फिरता रहता है, उसकी हालत, वैसी मनुष्य की हो जाएगी। और होगा क्या ? शांति दूर रह जाएगी। जब मनुष्य जानता ही नहीं है कि ये अशांति का कारण भी मैं ही हूं और शांति का कारण भी मैं ही हूं तो वो दूसरों की तरफ देखेगा, लीडरों की तरफ देखेगा। और लीडर तो कर नहीं सकते। और करेंगे कैसे ? जब स्रोत उसका मनुष्य है, जब मनुष्य ही नहीं बदलने के लिए तैयार है, जब मनुष्य ही अपने आपको पहचानने के लिए तैयार नहीं है तो लीडर क्या करेगा ? चटनी किस चीज की बनाएगा ? क्या करेगा ? मतलब, क्या solution देगा किसी को ? Solution हमेशा एक ही रहा है — अपने आपको जानो! अपने आपको पहचानो! जबतक जानोगे नहीं, जबतक पहचानोगे नहीं, ये बात समझ में नहीं आएगी कि शांति आपसे दूर नहीं है। और उस दिन होगा क्या ? उस दिन होगा क्या ? उस दिन क्या बदल जाएगा ऐसा ? अगर ये भी मान के चलें कि चलिए! एक दिन ऐसा आएगा कि सब अपने आपको जानते हैं। उस दिन बदलेगा क्या ? पर बदलना किस चीज को है ? किस चीज की वजह से, बाहरी चीज की वजह
 से हमारे मन में अशांति होती है ? ये तो अंदर की ही बात है! तो इस दुनिया को बदलने की जरूरत नहीं है। इसका ये मतलब नहीं है कि सेलफोन गायब हो जाएंगे! ना। बाहर किसी चीज को बदलने की जरूरत नहीं है। किसी चीज को बदलने की जरूरत नहीं है।

अगर आपके पास एक मोटर साइकिल है और मोटर साइकिल का स्पार्क, प्लग खराब हो गया और आपकी मोटर साइकिल नहीं चल रही है। तो आप मेरे को बताइए कि उस मोटर साइकिल को ठीक करने के लिए क्या करना पड़ेगा ? उसका रंग बदलना पड़ेगा ? रोड बदलने पड़ेंगे ? साइन बदलने पड़ेंगे ? गैस टैंक बदलना पड़ेगा ? टायर बदलने पड़ेंगे ? नहीं। स्पार्क-प्लग बदलना पड़ेगा। वो बदल दीजिए, सब ठीक है! आपके पास एक टार्च है! फ्लैश लाइट है, टॉर्च है! उसमें एक बल्ब है। बल्ब खतम हो गया। तो क्या करना चाहिए आपको ? नई बैटरी ? बाहर उसको दूसरे रंग में रंग दें ? नहीं। बल्ब नया लाइए, लगाइए! वो जलने लगेगा! यही बात मनुष्य के साथ भी है। वो अपने आपको जाने, अपने आपको समझे तो फिर ये सारी चीजें — इनको बदलने की जरूरत नहीं है। ये तो — मनुष्य का काम है आविष्कार करना! वो चीज ही ऐसी तिकड़मी है। मतलब, आप देखिए कि रोटी बेलना। एक चीज है, जो हिन्दुस्तान में बहुत तादाद में होता है। तो रोटी बेलना — उसके लिए बेलन चाहिए, उसके लिए एक फ्लैट जगह चाहिए! उसके लिए आटा चाहिए! आटा को गूंधना है! सबका अपना—अपना तरीका है। सबका अपना-अपना — मैंने देखा है। सबका अपना-अपना तरीका है। कोई बड़ी स्टाइल से बेलता है — कोई ये करता है, कोई वो करता है। रोटी बनाने वाले भी ऐसे हैं कि कई बार तो उसको उछालते हैं और उसको पकड़ते हैं। फिर करते हैं। सबका अपना-अपना तरीका है। क्योंकि चीजों को थोड़ा-सा बदलना, थोड़ा-सा आसान बनाना, ये तो मनुष्य के दिमाग में एक कीड़ा है। ये तो वो करते आया है और करते आएगा। पर इससे न कोई खराबी है, न कोई अच्छाई है। क्योंकि स्रोत शांति का वो है। वो चीजें नहीं! मतलब, जिसको खाना बनाना नहीं आता है, उसको आप अच्छी से अच्छी चीजें दे दें, इसका मतलब नहीं है कि खाना स्वादिष्ट बनेगा। परंतु जिसको आता है, अगर उसको इधर-उधर की भी चीज मिल जाएगी, वो उसी को लेकर के — तिकड़मी क्योंकि है मनुष्य, बढ़िया चीजें बना लेगा। तो ये अंतर है।

ये जो चीज — ध्यान जो है शांति के बारे में हम दुनिया की तरफ डालते हैं, बाहर की चीजों की तरफ डालते हैं। क्योंकि हम ये समझते हैं कि जो कुछ भी बाहर हो रहा है, वही हो रहा है। परंतु वो बाहर तो बाहर है। और जड़ इसकी है मनुष्य के अंदर! और जबतक वो नहीं समझेगा, तबतक ये कुछ भी हो! कुछ भी हो! अब क्या आविष्कार होना खराब बात है ? बिल्कुल नहीं। क्या सेलफोनों को अच्छा नहीं होना चाहिए ? बिल्कुल अच्छा होना चाहिए! क्या सेलफोन इस समय बहुत बड़े हैं ? बिल्कुल बड़े हैं! आप अपने जैकेट में डालिए तो जैकैट ऐसे नीचे हो जाने लगती है। सेलफोनों को मालूम नहीं है — कब शांत होना चाहिए, कब शांत नहीं होना चाहिए! परंतु ये सारी चीजें — इनसे कोई तुक नहीं है, इससे कोई वास्ता नहीं है शांति का। शांति का वास्ता है तो सिर्फ एक चीज से है, वो मनुष्य से है। और शांति उसके अंदर है और आज है! तो ये प्रश्न कि ‘‘भविष्य में अगर ऐसा कभी हो!’’ नहीं, ये तो है! ये तो अभी है! परंतु ये प्रगट नहीं हो रहा है। और प्रगट इसलिए नहीं हो रहा है, क्योंकि ध्यान नहीं है उस तरफ। और थोड़ा-सा भी ध्यान उस तरफ जाए तो सबकुछ बदल सकता है।

हृदय की चाहत 00:01:42 हृदय की चाहत Video Duration : 00:01:42 हर एक मनुष्य के अंदर एक हृदय है और वह असली आजादी चाहता है।

हर एक मनुष्य के अंदर एक हृदय है। और हृदय क्या कहता है मनुष्य से ? हृदय कहता है मनुष्य से कि मुझे आजादी दे। क्योंकि जिंदगी के अंदर कुछ ऐसी सलाखें हैं, जो वो लोहे की सलाखों से ज्यादा मजबूत हैं। और कैसी सलाखें हैं वो ? वो सलाखें हैं अज्ञानता की, वो सलाखें हैं संशय की। हम अपने जीवन में, हम अपने को समझते हैं कि हम आजाद हैं। पर अगर हम अज्ञानता के पिंजरे में बंधे हुए हैं, सशंय के पिंजरे में बंधे हुए हैं। तो यह हृदय रूपी चिड़िया जो उड़ना चाहती है यह कैसे उड़ेगी ?

हम ऐसी स्वतंत्रता की बात कर रहे हैं कि जेल के अंदर बैठे भी आदमी उस असली स्वतंत्रता का अनुभव कर सके। ऐसी शांति जो किसी और चीज के ऊपर निर्भर नहीं है जो अपने में ही पूरी है। ऐसी शांति!

- प्रेम रावत

शांति और मानवता 00:05:05 शांति और मानवता Video Duration : 00:05:05 मानवता के लिए मानव को समझना बहुत जरूरी है!

प्रश्नकर्ता : हमने शांति को defined किया, मानवता को defined किया, एक आदमी, जो दिन में 150 रुपये कमाता है सारे दिन extreme conditions में काम करता है, उसके लिए शांति और मानवता हम कैसे define करेंगे ?

प्रेम रावत जी : पैसा भी मनुष्य ने बनाया है और पैसे का अभाव भी आज मनुष्य बना रहा है। इस पृथ्वी से सारा धन निकलता है। हीरे-जवाहरात कहां से निकलते हैं ? किसी के safe से निकलते हैं या धरती से निकलते हैं ? वो भी धरती से निकलते हैं। तो ये तो रही बात Inequality की। परंतु हमको अच्छी तरीके से मालूम है कि भूखे पेट से — इसके लिए कहा भी है कि —

बिन भोजन भजन न होय गोपाला।

ये लो अपनी कंठी माला।।

तो शांति जरूरी है और जो concerns आपने कही, ये भी जरूरी हैं। जो concerns हमारी भौतिक concerns हैं, इसके लिए society है। इसके लिए government है, इसके लिए systems हैं और उनके बावजूद भी ये नहीं हो रही है। और मैं ये कह रहा हूं कि जबतक मनुष्य अपने आपको नहीं पहचानेगा तो वो मानवता को — मानवता को, humanity को कैसे establish करेगा ? मानवता के लिए मानव को समझना बहुत जरूरी है! बिना मानव अपने आपको समझे, कैसे मानवता को स्थापित करेगा ? ये संभव नहीं है!

तो इसलिए मेरी कोशिश, मेरी कोशिश आज से नहीं, दो साल से नहीं, तीन साल से नहीं — 50 साल से ऊपर मेरी यही कोशिश रही है कि मनुष्य अपने आपको समझे, क्योंकि मैंने देखा है कि जब मनुष्य अपने आपको समझने लगता है तो उसके माहौल में ऐसा परिवर्तन होता है और सुंदर परिवर्तन होता है। ये बात मैं क्यों कह रहा हूं ? मेरे शब्द खाली नहीं हैं।

हमारा एक प्रोग्राम है, जो कि universities में भी है, libraries में भी है, जो veterans लड़ाइयों से वापिस आ रहे हैं, उनके लिए भी है। और सबसे बड़ी बात है कि वो जेलों में भी है। साउथ अफ्रीका में हर एक single जेल में है वो। हर एक जेल में है वो प्रोग्राम — पीस एजुकेशन प्रोग्राम!

उससे होता क्या है ? उससे होता क्या है ?

वो लोग, वो लोग, जो जेल में बंद हैं और एक साल के लिए नहीं, दो साल के लिए नहीं, तीन साल के लिए नहीं, कई ऐसे लोग हैं, जिनको जिंदगी का sentence मिला हुआ है, Life sentence मिला हुआ है — जब वो आते हैं जेल में तो सबसे पहले उनको यही लगता है कि सोसाइटी का fault है, गवर्नमेंट का fault है, पुलिस का fault है, उनकी फैमिली का fault है, उनके दोस्तों का fault है कि वो जेल में हैं। जब वो अपने आपको समझने लगते हैं, तब जाकर के असली परिवर्तन उनके जीवन में आता है कि इसका रिस्पॉन्सिबल और कोई नहीं, मैं हूं। और जब वो बदलना शुरू करते हैं तो उनके जीवन के अंदर जेल में भी रहकर के सुकून उनको मिलता है। तो जब जेल में रहते हुए उनके जीवन के अंदर शांति आ सकती है।

If they can feel peace in the middle of a prison, then imagine what is possible in the world outside that prison, change, change, change, change for the better, for the better. And that's the betterment of mankind, of mankind. How? By lighting individual candles. You can light a whole city. So, I hope that helps.

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