प्रेम रावत:
बात है जीवन की। हम जिस बात को करते हैं, उसका किसी मजहब से लेना-देना नहीं है। वो मनुष्य के लिए है। और सबसे जरूरी बात समझना यह है कि क्योंकि हम जीवित हैं, कौन-सी ऐसी चीजें हैं, जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा प्रभाव रखती हैं, जो जरूरी हों ? क्योंकि अगर विषय होता कि आप धन और कैसे कमा सकते हैं — अगर विषय होता कि आप कैसे 50 परसेंट पैसे को बढ़ा सकते हैं, जो आपके पास है, तो यह जगह बहुत छोटी पड़ती। क्योंकि आजकल हम लोगों की जो समझ है, वो कुछ इसी प्रकार की हो गयी है।
एक छोटी-सी कहानी है कि एक बार पांडव भाई, जो वनवास में थे, तो उनको प्यास लगी —बहुत ही प्यासे थे तो खोजना शुरू किया और युधिष्ठिर खोजते-खोजते तालाब के किनारे पहुंचे तो उनको बड़ी खुशी हुई कि पानी मिल गया है। जैसे ही वह पानी की तरफ गए, उनका ध्यान गया कि सारे उनके भाई जमीन पर लेटे हुए हैं, मरे हुए हैं। तो जैसे ही युधिष्ठिर ने हाथ अपना पानी में डाला पानी पीने के लिए, तो जो वहां गंधर्व था, उसने कहा, ‘‘रुको! पानी मत पीओ! मेरे सवालों का पहले जवाब दो, फिर मैं पानी पीने दूंगा।’’
उसने कहा, ‘‘नहीं, मेरे को प्यास लगी है, पानी पीने दो!’’
बोला, ‘‘नहीं! तुम्हारे भाइयों के साथ यही हुआ है। उन्होंने मेरी बात नहीं सुनी, पानी पीने लगे। मेरे सवालों का जवाब नहीं दिया और सब मरे पड़े हैं। तुम्हारे साथ भी यही होगा।’’
तो युधिष्ठिर रुके, कहा ‘‘पूछो!’’
तो कई सवाल पूछे गए और उनमें से एक सवाल था कि ‘‘सबसे अद्भुत् चीज क्या है ? पीक्यूलियर, स्ट्रेन्ज! अद्भुत!’’
तो युधिष्ठिर कहते हैं, ‘‘मनुष्य है! मनुष्य है!’’
फिर पूछा जाता है उनसे, ‘‘क्यों ? क्यों मनुष्य अद्भुत है ?’’
कहा कि ‘‘इसलिए कि कोई ऐसा मनुष्य नहीं है, जिसको यह नहीं मालूम कि एक दिन उसको मरना है, पर वह जीता ऐसे है कि कभी मरेगा ही नहीं। इसलिए अद्भुत है!’’
बात मरने की नहीं है, बात जीने की है — किस प्रकार जी रहा है ? किस प्रकार जी रहा है ? बात धन कमाने की नहीं है। कमाइए, खूब कमाइए! जितना हो सकता है, उतना कमाइए! बात धन कमाने की नहीं है, पर जिस तरीके से आप कमा रहे हैं, बात उसकी है कि आप किस तरीके से कमा रहे हैं, कि आप उस धन को अपने साथ ले जाएंगे और यह होगा नहीं।
हर एक चीज का एक लिहाज़ होता है। जब आप अपने घर से कहीं जाने के लिए निकलते हैं, दूर सफर करने के लिए निकलते हैं — तीन दिन के लिए जाना है, चार दिन के लिए जाना है, पांच दिन के लिए जाना है, छः दिन के लिए जाना है, उसी तरीके से तो आप पैक करते हैं अपने सूटकेस को ? इस प्रकार से सूटकेस पैक होता है कि उसमें सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ! ये तो नहीं करते हैं! दो दिन के लिए जाना है, तीन दिन के लिए जाना है, उसी चीज को देख के — क्या होना है, क्या करना है ? ये सब देखकर के ही तो आप पैक करते हैं? पर अपने जीवन में किस तरीके से पैक करते हैं?
जो आपके नाते हैं, रिश्ते हैं — और मैं यह चर्चा इसलिए कर रहा हूं आजकल, जब मैं यहां पहुंचा, मेरे पास एक रिक्वेस्ट आयी कि ‘‘जी! एक व्यक्ति हैं और वो अपने जीवन के आखिरी दौर पर हैं — डॉक्टरों ने कह दिया है। और वो आपसे बात करना चाहते हैं।’’ तो मैंने फोन किया।
तो सबसे पहले उन्होंने कहा कि ‘‘हां, मेरे को कह दिया है कि मैं जा रहा हूं!’’
मैंने कहा कि असलियत तो यह है कि हम सब जा रहे हैं। कोई ऐसा नहीं है, जो नहीं जा रहा है। सिर्फ इतना है कि डॉक्टर ने अभी नहीं कहा है। मतलब, डॉक्टर कह दे — अपशगुन! डॉक्टरों का तो मुंह भी नहीं देखना चाहिए, वो ऐसी चीज कह सकते हैं। पर डॉक्टर कह देते हैं तो हमारा सारा सोचने का तरीका बदल जाता है। डॉक्टर कह देते हैं तो हमारे सोचने का तरीका बदल जाता है। जीने का तरीका बदल जाता है। और डॉक्टर ने नहीं कहा है, फिर भी हकीकत तो वही है।
तो संत-महात्माओं का इसके बारे में यह कहना है कि हम आपने आपको — अब मैं पैराफ्रेज़ कर रहा हूं। अंग्रेजी में जो शब्द होगा कि हम अपने आपको cheat कर रहे हैं — और कोई नहीं, हम अपने आपको cheat कर रहे हैं। जो फैक्ट्स हैं, जो हकीकत है, उसको स्वीकार नहीं कर रहे हैं। परंतु एक ऐसी हकीकत अपने दिमाग में बनाए हुए हैं, जो हकीकत नहीं है। जो हकीकत नहीं है।
तो फिर क्या रह गया ? मतलब, अगर मैं इसी तरीके से बोलता रहूं, थोड़ी देर के बाद आप लोगों को तो रोना आना लगेगा। इतना डिप्रेसिंग बन जाएगा ये सारा सब्जेक्ट — ‘‘जाना है, जाना है, जाना है! इसकी परवाह मत करो! उसकी परवाह मत करो! ये क्या होगा ? वो क्या होगा?’’
नहीं, नहीं, नहीं, नहीं! मैं डिप्रेसिंग बात करने के लिए नहीं आया हूं। डिप्रेसिंग बात करनी है तो आपको मेरी क्या जरूरत है ? टेलीविजन चालू कीजिए, न्यूज चैनल देखिए, डिप्रेशन अपने आप आ जाएगा! अखबार खोल के बैठ जाइए!
परंतु बात कुछ ऐसी है कि इस अंधेरे के बीच में एक रोशनी है। बात कुछ ऐसी है कि इस डिप्रेसिंग न्यूज के बीच में — इस सारे डिप्रेसिंग संसार के बीच में एक खुशखबरी है! और वो खुशखबरी है — यह जीवन! वो खुशखबरी है — यह स्वांस! वो खुशखबरी है — तुम्हारा जिंदा होना!
On screen text:
इस सारे डिप्रेसिंग संसार के बीच में एक खुशखबरी है!
वो खुशखबरी है — ये जीवन!
आप में कोई कमी नहीं है बस अपनी खूबियों को जानने की कोशिश करो।
- प्रेम रावत:
संगीत –
मुमकिन है, मुमकिन है, मुमकिन है, मुमकिन है
हर डगर सफर ढूंढे दिल मुकाम जो
मिल जाये यूं हीं कहीं, मुमकिन है
रंग इश्क का रंग देता है रूह को
चाहे फासलें भी हों, मुमकिन है
पुरुष: कहीं न कहीं अंदर कुछ अकेलापन-सा हमेशा लगता है, सबकुछ होने के बावजूद भी।
महिला: आजकल फिज़िकल वर्क से ज्यादा मेंटल वर्क है। इस दुनिया में हमें जितना अपना माइंड यूज़ करना पड़ रहा है, उसके लिये हमें एक बहुत ही पॉज़िटिविटी और पीस की जरूरत है।
महिला: शांति जो है वो हमारे जीवन में बहुत जरूरी है। हम यह मानेंगे इसके बगैर हमारा जीवन जो है वह अधूरा है।
महिला: मैं किसी भी कौस्ट पर अपनी शांति — मन की जो है न, खोने नहीं देती।
प्रेम रावत:
अगर तुम्हारे जीवन की शांति बिखर गयी तो तुम भी बिखर जाओगे और जिस दिन तुम्हारे इस जीवन के अंदर शांति आ जायेगी, तुम भी पूरे हो जाओगे।
संगीत –
हर डगर सफर ढूंढे दिल मुकाम जो
मिल जाये यहीं कहीं, मुमकिन है
रंग इश्क का रंग देता है रूह को
चाहे फासलें भी हों, मुमकिन है
जो मिले वो अपना रहे, सदियों तक रहे, मुमकिन है
मोती-सी हूं मैं अगर, मुमकिन है तो यहां, मंजर प्यार भरा मुमकिन है . . .
पुरुष: हर एक कौम के लिए शांति आजकल बहुत जरूरी है। हर-एक भागम-भाग में लगा हुआ है। कोई अपने बारे में नहीं सोच रहा।
पुरुष: Success means peace, peace in your life. If you are living peacefully, तो आप अच्छे से आराम से रह रहे हो।
पुरुष: बगैर शांति के कुछ भी नहीं है, जीवन अधूरा है।
महिला: अगर हरेक मुहल्ले में से कोई भी समझदार होता है, तो वो सबको समझा सकता है, तो इससे पूरे विश्व में, संसार में शांति रहेगी।
प्रेम रावत:
जहां हृदय खुश है, शांत है, अंदर शांति है, वहां स्वर्ग है।
संगीत –
देखो जुगनू को अंधेरों में, रोशनी कैसे मिल जाती है
आसमां की गोदी से चलकर, ये घटाएं कहां जाती हैं
जो वो आसमां ए रूका बस वहां
जो ये मुमकिन तो सब मुमकिन है
मुमकिन है, मुमकिन है, मुमकिन है, मुमकिन है . . .
पुरुष: जिंदगी में कभी भी आशा नहीं छोड़नी चाहिए। कभी भी कोई नेगेटिव फीलिंग को अंदर ना आने देना, वही पीस है।
महिला: जब आप मेंटल पीस में होंगे तब आपको पता चलेगा क्या चीज सही है और क्या चीज गलत है। तभी आप डिसीज़न ले पायेंगे।
पुरुष: पीस अंदर, अंदर पड़ी है आपके, बाहर नहीं है। जो बाहर ढूंढेगा उसको नहीं मिलने वाली।
प्रेम रावत:
संभावना क्या हो सकती है ?
संभावना तो यह है कि तुम यह जीवन सुख और चैन से जीयो। दिन और रात शांति का अनुभव करो। ना एक दिन और की आशा हो, ना एक दिन कम की निराशा हो। और चैन, सुकून, शांति से यह जीवन बीते, यह संभावना है।
संगीत –
बूंदें गिरती हैं जो छम से, फिर जाने कहां जाती हैं
तितलियां उड़ती हैं साथ में, लेकिन कुछ आगे निकल जाती हैं
गर सोच से आगे हम चलें, नामुमकिन भी तो मुमकिन है
मुमकिन है, मुमकिन है, मुमकिन है, मुमकिन है...
मुमकिन है, मुमकिन है, मुमकिन है...।
Text on screen: शांति मुमकिन है . . .
प्रेम रावत:
अब देखिए! एक छोटी-सी बात। आपकी वॉन्ट्स भी हैं, आपकी नीड्स भी हैं। क्या कभी आपने बैठ के एक दिन अपने से यह पूछा है कि मेरी वॉन्ट्स क्या हैं और मेरी नीड्स क्या हैं ? या दोनों की खिचड़ी बनी हुई है ?
साक्षात्कार:
पुरुष: यह तो एक ही सिक्के के दो पहलू हो गये।
पुरुष: ज़रूरत है . . .
पुरुष: अटेंडेंस . . .
पुरुष: हर चीज़ चाहत है।
पुरुष: पढ़ाई करनी है, जॉब करनी है, पैसे कमाने हैं, जो करना है करना है। लेकिन वॉन्ट्स में क्या हो रहा है सबकुछ करना है हमें।
महिला: अच्छी-सी, मस्त-सी लाइफ बिना शादी के।
पुरुष: चाहत जो है कभी खत्म नहीं होती इंसान की।
महिला: चाहत क्या होती है ?
पुरुष: घूमना सबसे ऊपर है।
महिला: ग्रोथ चाहिए, डेवलपमेंट चाहिए डेफ़िनिटेली मनी इज़ वैरी इम्पोर्टेन्ट
महिला: पहाड़ों में जाकर ट्रैकिंग करना।
पुरुष: चाहत तो यह है कि मैं फ़रारी में घूमूं।
महिला: मेरी! मैं बेसिकली आर्मी में जाना चाहती हूं।
महिला: ज़रूरतें हैं . . .
प्रेम रावत:
असली ज़रूरत! उन चीज़ों की बात कर रहा हूं जिनके बिना मनुष्य जीवित नहीं रह सकेगा। मनुष्य की ज़रूरतें क्या हैं ? तीन हफ्ते अगर भोजन न मिले, आप गए!
साक्षात्कार:
पुरुष: तीन हफ्ते खाना...
महिला: बिल्कुल डैमेज़ हो जायेंगे, चल भी नहीं पायेंगे।
पुरुष: अरे! बचेंगे ही नहीं और क्या होगा।
पुरुष: थ्री टाइम्स भी डे...नहीं मिलता आइ कांट लीव विदाउट फूड।
महिला: ओह माइ गॉड! हम लोग फूडी हैं हम लोग को तो वैसे ही चाहिए।
पुरुष: खाना नहीं मिले तो कैसे ? रह नहीं पाऊंगा पहली बात तो।
महिला: मैं तो नहीं रह सकती।
महिला: खाना! खाना तो इंसान की ज़रूरत होती है।
प्रेम रावत:
अगर कोई बिना भोजन के मर गया तो उसके लिए मेडिकल टर्म है — स्टारवेशन। वो मरा स्टारवेशन से। अगर तीन-चार दिन आपको पानी न मिले, हफ्ते भर पानी न मिले, आप गए!
साक्षात्कार:
पुरुष: चाहिए पानी तो।
महिला: पानी के बिना तो नहीं सर्वाइव कर सकते।
महिला: पानी, हवा, खाना नहीं छोड़ सकते आप।
पुरुष: पानी भी नहीं और खाना भी नहीं तो, मर जायेगा वो।
पुरुष: तीन दिन तक अगर एक इंसान को पानी न मिले ना, दो घंटे में मर जाता है इंसान। तुम तीन दिन की बात कर रहे हो यार
महिला: पानी के बिना तो हम तीन घंटे भी नहीं रह सकते।
प्रेम रावत:
कोई अगर पानी के बिना मर गया तो उसके लिए भी मेडिकल टर्म है, वो मर गया डि-हाइड्रेशन से। अगर आप पाँच मिनट हवा नहीं लेंगे, स्वांस नहीं लेंगे, आप गए!
साक्षात्कार:
पुरुष: नहीं रह पाऊंगा सांस के बिना तो।
महिला: मेरे से तो एक मिनट तक सांस नहीं रोकी जाती।
महिला: एक मिनट भी नहीं हो पाती।
महिला: सांस के बिना मैं एक मिनट भी नहीं सर्वाइव कर पाऊंगी।
महिला: सांस लिये बिना हम यहां पर 30 सेकेंड्स रोकने की कोशिश करते हैं योगा के थ्रू पर वो भी नहीं हो पाता है।
प्रेम रावत:
अगर कोई मर गया बिना हवा के, ऑक्सीजन के तो उसके लिए भी मेडिकल टर्म है — सफोकेशन। पर अगर कोई मर गया बिना टीवी देखने के तो उसके लिए कोई मेडिकल टर्म नहीं है। क्योंकि वो इम्पॉर्टेन्ट नहीं है। मैं बात कर रहा हूं आपकी ज़रूरतें, और आपकी चाहतों की।
साक्षात्कार:
पुरुष: मैं रह ही नहीं पाऊंगा बिना टीवी के।
पुरुष: फ़ोन के बिना तो आइ थिंक मैं सोच सकता हूं कि लाइफ मेरी मॉम मेरे से छीन चुकी हैं।
पुरुष: पहले कैसा था, रोटी, कपड़ा, मकान। अभी रोटी, कपड़ा, मकान एंड मोबाइल।
पुरुष: वॉटसअप चाहिए होता है सबसे पहले। फ़ोन के बिना आज के टाइम में कुछ नहीं है।
महिला: फ़ोन तो लाइफ...।
महिला: लाइफ है आजकल की।
महिला: इंटरनेट इज़ वैरी नेसेसरी।
महिला: फेसबुक, वॉटसअप क्यों ? क्योंकि हमारा टाइम पास नहीं होता है।
महिला: फ़ोन ही सबकुछ हो गया है। फ़ोन ही गर्लफ्रेंड हो गया है, फ़ोन ही बॉयफ्रेंड हो गया है।
महिला: खाने के बिना रह सकते हैं पर फ़ोन के बिना नहीं रह सकते।
महिला: मतलब मैं सबकुछ भूल सकती हूं पर फ़ोन के बिना घर से बाहर इम्पॉसिबल नहीं।
प्रेम रावत:
मेरी ज़रूरत है — ‘शांति!’ ये लग्ज़री नहीं है। क्योंकि अगर ज़ीवन में शांति का अनुभव नहीं कर सकता हूं तो जहां भी जाऊंगा, मैं बिखरा रहूंगा।
On screen text: ज़रूरतें और चाहतें . . . आप किसे ज्यादा महत्व देते हैं ?
प्रेम रावत:
हमारी सारी जिंदगी हम एक ही चीज से तौलते हैं। हार-जीत! हार-जीत! हार-जीत! हमारी जीत हो। हमारी जीत हो। हम सक्सेसफुल हों। इसको हम जीत समझते हैं। आशीर्वाद! आशीर्वाद देते हैं लोगों को। क्या ?
"तुम्हारी मनोकामना पूरी हो!"
मनोकामना मतलब, मन की कामना पूरी हो। हृदय की नहीं, मन की कामना। मुझे कोई व्यक्ति समझा दे कि क्या ऐसा भी मन होता है, जिसकी सारी कामना पूरी हो चुकी हों।
मन के बहुत तरंग हैं, छिन छिन बदले सोय।
एक ही रंग में जो रहे, ऐसा बिरला कोय।।
बात विभिन्न तरंगों की नहीं है, बात है ‘छिन-छिन बदले सोय’। बदलता रहता है, बदलता रहता है, बदलता रहता है। आज ये है, आज वो है, आज वो है, आज वो है, आज वो है, आज वो है।
माता-बहनें — मैंने देखा हुआ है। जाती हैं साड़ी खरीदती हैं। साड़ी कैसे खरीदी जाती है ?
आप दुकान में जाते हैं, दुकानदार से कहते हैं, "साड़ी दिखाओ!"
वह आपको एक साड़ी दिखाता है। आप उसको खरीद लेते हैं। ऐसे ही तो है न ? ना!
"और दिखाइए! कोई बढ़िया दिखाइए! और कौन-कौन से रंग हैं आपके पास ?"
ये माता-बहनों की ही बात नहीं है। जब लोग टाई खरीदने के लिए जाते हैं, वही बात होती है। औरतें तो साड़ी पहनती हैं, मर्द टाई पहनते हैं। वही उनके लिए साड़ी है। वो उसी को — ऐसी होनी चाहिए, ऐसी होनी चाहिए, ऐसी होनी चाहिए, ऐसी होनी चाहिए, ऐसी होनी चाहिए।
तो हमारे लिए जीत क्या है ? जीत वो है कि जब हमारी मन की कामनाएं पूरी हों तो हमारी जीत हो गयी। और हमारी मन की कामना पूरी नहीं हो रही है तो हम हार रहे हैं। जब आप समझ जाएंगे और अपना जीवन अपने मन से नहीं, पर अपने हृदय से जीना शुरू करेंगे — जिस दिन आप प्यार अपनी जिंदगी के अंदर अपने हृदय से करना शुरू करेंगे, उस दिन आपको सच्चे प्यार का अहसास होगा। जिस दिन आप अपने मन से नहीं, पर अपने हृदय से जीना शुरू करेंगे, जिंदगी क्या है, आपको समझ में आएगी।
हृदय भी है मनुष्य के पास। मन भी है मनुष्य के पास, हृदय भी है मनुष्य के पास। मन का उपयोग कैसे करते हैं, यह सबको भलीभांति मालूम है। पर हृदय का प्रयोग कैसे होता है, ये किसी को — बहुत बिड़ला कोई मिलेगा, जिसको मालूम हो। जो एक ही रंग में रहना जानता हो, बहुत बिड़ला है। बिड़ला मतलब — रेयर! आसानी से नहीं मिलेगा।
तो अगर आप अपनी हार से बाहर जाना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको यह समझना पड़ेगा कि असली जीत क्या है। और असली जीत है — जब मैंने अपने मन को नहीं, अपने हृदय को शांत कर लिया है, जब मैंने अपने हृदय की पुकार को सुनना शुरू कर दिया है। नहीं तो मेरे को सारे जीवन में — बात यह है जी कि कई बार हम समझते हैं कि हम जीत गए। और जीत के भी फिर अहसास बाद में जाकर होता है कि वो जीत नहीं थी, वो तो हार है। उस समय लगा कि जीत गए।
जब नयी-नयी लोगों की शादी होती है, बच्चे होते हैं। बड़ा प्यार है बच्चे से। बड़ा नटखट है, बड़ा ये है, वो है। वो नटखट कितना नटखट है। जरा 16-17-18 साल तक पहुंचने दो, अपने आप पता लगेगा।
मां कई बार बड़े प्यार से अपने बच्चे के बारे में बोलती है, "ये मेरी बात सुनता नहीं है।"
हां! जरा पहुंचने दो 18 साल तक, तब पता लगेगा। क्यों ? अगर बच्चे से प्यार नहीं है, बच्चे को क्या बनना चाहिए, सिर्फ उसी चीज से प्यार है तो तुम्हारी हार निश्चित है।
सबसे बड़ी बात है कि एक बार लोगों से पूछा गया कि "तुम कितने दिन जीओगे ?"
तो अगर 70 साल भी अगर जिए, उसके बनते हैं लगभग — 25 हजार 550 दिन। और अगर सौ साल भी जिये तो 36 हजार 500 दिन। 36,500। पर जब लोगों से पूछा गया कि अगर सौ साल भी जीओ तो कितने दिन जीओगे ?
तो लोगों का पहला कैलक्युलेशन था — तीन लाख। 3,65,000। थ्री हंड्रेड सिक्सटी फाइव थाउजेंड। वो जीरो एक और लगाना चाहते थे, जो जीरो लगता नहीं है। क्योंकि सबकी ख़्वाहिश है — सिर्फ इतने ही दिन थोड़े जीना है। क्या है मनुष्य के साथ ?
वही वाली बात। एक योद्धा की कहानी कि चाहे वो कितना भी लड़े, कैसे भी लड़े, खूब लड़े, परंतु उसको मरना है।
समझिए आप! कितनी गंभीर बात यह है कि वो लड़ाई कर रहा है। और वो लड़ रहा है। क्यों ? ताकि उसकी जीत हो! तो लड़ रहा है, लड़ रहा है, लड़ रहा है। मार रहा है, और लोगों को मार रहा है, खूब लड़ रहा है, खूब लड़ रहा है, खूब लड़ रहा है। परंतु उसको कोई आकर के अगर यह बताए कि "तू जितना चाहे लड़ ले, पर तेरे को इसी रणभूमि में गिरना है। कट के गिरेगा!" अर्थात्, कितना भी वो लड़ ले, उसकी जीत नहीं होगी।
वो योद्धा कौन है ? आप हो। मैं हूं। और हम क्या कर रहे हैं ? हम लड़ रहे हैं। और कोई हमको आकर बताता है, "लड़ ले! खूब लड़ ले! पर जीत नहीं होगी तेरी।"
तो क्या करोगे ? क्या करोगे ? लड़ते रहोगे ? और अगर वही प्रश्न उससे पूछा जाए कि ‘‘अगर मेरे को इस रणभूमि में गिरना ही है तो मेरी जीत कैसे संभव है ?” और अगर वही व्यक्ति उसको कहे कि तू लड़ाई में नहीं जीत सकता, क्योंकि तेरे को इसी रणभूमि में गिरना है। तू लड़ाई में नहीं जीतेगा। कोई नहीं जीतेगा। तू हारेगा भी नहीं, पर तू जीतेगा भी नहीं। क्योंकि सभी को इस रणभूमि में गिरना है।
तो अगर तू अपनी जीत चाहता है तो जो तू जीता हुआ है — और यह भी कितनी सुंदर बात है। देखिए, शब्दों का खेल है! तू अगर अपनी जीत चाहता है तो तू समझ कि तू जीता हुआ है। अब इसके दो शब्द हो गए। एक तो कि पहले ही तुम्हारी जीत हो रखी है और दूसरा कि तुम जीते हुए हो। अर्थात्, तुम जिंदा हो! जिंदा होने में ही तुम्हारी जीत है। लड़ाई में तुम्हारी कभी जीत नहीं होगी। लड़ाई में जीत नहीं होगी। ये जानने में तुम्हारी जीत होगी, ‘‘तुम जीते हुए हो।’’ तो वही, ‘‘जीते हुए हो।’’ मतलब, जीते हुए हो — ‘‘पहले से ही तुम्हारी जीत हो रखी है’’ या फिर दूसरा कि ‘‘तुम जिंदा हो! जीते हो!’’ इसको जानो! इसको समझो कि ये क्या है।
असली जीत है — जब मैंने अपने मन को नहीं, अपने हृदय को शांत कर लिया हो।
प्रेम रावत:
जमीन में कुछ न कुछ उगना है। हल चला लो, पानी दो, बीज़ मत डालो। कुछ न कुछ जरूर उगेगा। कुछ न कुछ जरूर उगेगा। बात यह है कि जो उगेगा वो खाने लायक नहीं है।
तो किसान क्या करता है ? उसको मालूम है कुछ न कुछ जरूर उगेगा। सबसे पहले वो उग जाए, जो खाने लायक हो तो अच्छा रहेगा। तो वो बीज़ डालता है, पानी देता है और क्या करता है कि वो चीज़ जो खाने लायक नहीं है वो न उगे तो उसको निकालता रहता है। ताकि क्या उपजे जो खाने लायक है।
तुम भी किसान हो और तुम्हारी ज़िंदगी खेत है। और यह स्वांस रूपी हल चल रहा है और इस खेत में कुछ न कुछ जरूर उगेगा। ज़ीवन तो निकल रहा है इसको कोई रोक नहीं सकता। समय है, आ रहा है और जा रहा है, आ रहा है और जा रहा है। आता रहेगा और जाता रहेगा। इसको कोई रोक नहीं सकता, इसको कोई थाम नहीं सकता। और ऐसे ही तुम्हारे अन्दर यह स्वांस आ रहा है और जा रहा है, आ रहा है और जा रहा है, आ रहा है और जा रहा है। और सबसे बड़ी चीज़ जो मनुष्य के लिये हो रही है वो है, कि उसका ज़ीवन इस समय मौजूद है।
तुम्हारी ज़िंदगी खेत है और यह स्वांस रूपी हल चल रहा है और इस खेत में कुछ न कुछ जरूर उगेगा। प्रश्न यह है क्या ?