सईद नक़वी : हैलो! मैं सईद नक़वी हूं। पत्रकार था, टेलीविज़न का प्रेज़ेंटर भी हूं, एंकर भी हूं और कॉलम्निस्ट भी हूं। मैंने, इंटरनेशनल अफेयर्स पर मेरी रुची सबसे ज्यादा रही। नेल्सन मंडेला का सबसे पहला इंटरव्यू मेरा था। फिदेल कास्त्रो हुए, गद्दाफ़ी मुअम्मर गद्दाफ़ी, प्रेज़िडेंट जिआ-उल-हक़, बेनज़ीर भुट्टो, ये सब से मैंने इंटरव्यूज़ लिए और यही मेरा काम रहा कि सारी ज़िन्दगी मैं टेलीविज़न के लिए और प्रिंट के लिए। कई अखबारों के लिए काम किया, विलायत में संडे टाइम्स के लिए काम किया। अमेरिका में बोस्टन ग्लोब का फॉरेन एडिटर रहा मैं।
जब मेरे पास लोग आए कि मैं एक, मेरी समझ में नहीं आया कि प्रेम रावत जी क्या हैं ? गॉड मैन हैं, स्प्रीचुवल लीडर हैं, साधू हैं, संत हैं तो भई किसके लिए मैं अपने आप को तैयार करूं।
सईद नक़वी : इस प्रोग्राम में, मैं आपको क्या कह के, आपको क्या कहूं कि आप गुरु जी हैं, आप महाराजी हैं, आप फ़लसफी हैं, फिलॉसफर हैं, आप हैं क्या ? और आपको दुनिया इतना जो पूछती है, उसकी वजह क्या है ? ये जादू क्या है ?
प्रेम रावत : मैं तो मनुष्य हूं। और मेरा नाम मेरे मां-बाप ने प्रेम पाल सिंह रावत रखा था और लोग मेरे को कई नामों से पुकारते हैं। पर मैं वही हूं जो हूं। अब घर में भी बच्चों को कोई किसी नाम से पुकारता है, कोई किसी नाम से पुकारता है। पर इसका मतलब नहीं है कि वो बदल जाता है। मैं मनुष्य हूं, और ये मैंने पहली चीज़ समझी है। और अगर मैं अपनी मानवता को नहीं समझता हूं, अपनी मनुष्यता को नहीं समझता हूं तो मैं कुछ भी नहीं समझता हूं। अगर सिर्फ नाम ही में अटका रहूंगा तो मेरे को पता नहीं लगेगा कि मैं कौन हूं, मैं क्या हूं। और जो कुछ भी लोग मेरे को सम्मान देते हैं, सबकुछ देते हैं, और मैंने, ये मैं सबसे कहता हूं कि ठीक है, आप मेरे को सम्मान दे रहे हैं और मैं स्वीकार करता हूं परंतु ये सम्मान मेरा नहीं है। ये सम्मान सबके लिए है। हमलोग...
सईद नक़वी : हैलो! मैं सईद नक़वी हूं। पत्रकार था, टेलीविज़न का प्रेज़ेंटर भी हूं, एंकर भी हूं और कॉलम्निस्ट भी हूं। मैंने, इंटरनेशनल अफेयर्स पर मेरी रुची सबसे ज्यादा रही। नेल्सन मंडेला का सबसे पहला इंटरव्यू मेरा था। फिदेल कास्त्रो हुए, गद्दाफ़ी मुअम्मर गद्दाफ़ी, प्रेज़िडेंट जिआ-उल-हक़, बेनज़ीर भुट्टो, ये सब से मैंने इंटरव्यूज़ लिए और यही मेरा काम रहा कि सारी ज़िन्दगी मैं टेलीविज़न के लिए और प्रिंट के लिए। कई अखबारों के लिए काम किया, विलायत में संडे टाइम्स के लिए काम किया। अमेरिका में बोस्टन ग्लोब का फॉरेन एडिटर रहा मैं।
जब मेरे पास लोग आए कि मैं एक, मेरी समझ में नहीं आया कि प्रेम रावत जी क्या हैं ? गॉड मैन हैं, स्प्रीचुवल लीडर हैं, साधू हैं, संत हैं तो भई किसके लिए मैं अपने आप को तैयार करूं।
सईद नक़वी : इस प्रोग्राम में, मैं आपको क्या कह के, आपको क्या कहूं कि आप गुरु जी हैं, आप महाराजी हैं, आप फ़लसफी हैं, फिलॉसफर हैं, आप हैं क्या ? और आपको दुनिया इतना जो पूछती है, उसकी वजह क्या है ? ये जादू क्या है ?
प्रेम रावत : मैं तो मनुष्य हूं। और मेरा नाम मेरे मां-बाप ने प्रेम पाल सिंह रावत रखा था और लोग मेरे को कई नामों से पुकारते हैं। पर मैं वही हूं जो हूं। अब घर में भी बच्चों को कोई किसी नाम से पुकारता है, कोई किसी नाम से पुकारता है। पर इसका मतलब नहीं है कि वो बदल जाता है। मैं मनुष्य हूं, और ये मैंने पहली चीज़ समझी है। और अगर मैं अपनी मानवता को नहीं समझता हूं, अपनी मनुष्यता को नहीं समझता हूं तो मैं कुछ भी नहीं समझता हूं। अगर सिर्फ नाम ही में अटका रहूंगा तो मेरे को पता नहीं लगेगा कि मैं कौन हूं, मैं क्या हूं। और जो कुछ भी लोग मेरे को सम्मान देते हैं, सबकुछ देते हैं, और मैंने, ये मैं सबसे कहता हूं कि ठीक है, आप मेरे को सम्मान दे रहे हैं और मैं स्वीकार करता हूं परंतु ये सम्मान मेरा नहीं है। ये सम्मान सबके लिए है। हमलोग...
एक झलक :
ऐंकर:
और इसी मटके की तरह हम अपनी कमियां देख के जो हैं भविष्य का सामना करने से डरते हैं। और इसी डर में हम जीते हैं कि you know, भविष्य में क्या होगा ? भविष्य का सामना करने में हम डर जाते हैं। प्रेम! बताइए मुझे, इस डर को कैसे भगाएं ?
प्रेम रावत जी:
भविष्य है क्या ? एक समय है। खाली है। भविष्य खाली है। जो आप करेंगे, वो होगा उस भविष्य में। अगर आप डरेंगे तो आप डरते रहेंगे। भविष्य में भी डरते रहेंगे, आज भी डरेंगे और यही डर रहेगा। ये तो भविष्य एक खाली पेज है, एक खाली पन्ना है। क्या लिखना है उस पर ? ये आपके ऊपर है। बिल्कुल आपके ऊपर है! ये है आपका भविष्य!
एक झलक :
ऐंकर:
और इसी मटके की तरह हम अपनी कमियां देख के जो हैं भविष्य का सामना करने से डरते हैं। और इसी डर में हम जीते हैं कि you know, भविष्य में क्या होगा ? भविष्य का सामना करने में हम डर जाते हैं। प्रेम! बताइए मुझे, इस डर को कैसे भगाएं ?
प्रेम रावत जी:
भविष्य है क्या ? एक समय है। खाली है। भविष्य खाली है। जो आप करेंगे, वो होगा उस भविष्य में। अगर आप डरेंगे तो आप डरते रहेंगे। भविष्य में भी डरते रहेंगे, आज भी डरेंगे और यही डर रहेगा। ये तो भविष्य एक खाली पेज है, एक खाली पन्ना है। क्या लिखना है उस पर ? ये आपके ऊपर है। बिल्कुल आपके ऊपर है! ये है आपका भविष्य!
एक झलक:
ऐंकर : इसी चीज से, आपकी बात से मेरे दिल में एक सवाल है। आपने शायद उसका लगभग उत्तर दिया। पर मैं उस चीज को और भी विस्तार से जानना चाहूंगा। जरूरी क्या है कि पैसे कमाकर मैं अपनी सारी इच्छाएं पूरी करूं या फिर अपनी इच्छाओं को खत्म कर एक संतुष्ट जीवन बिताऊं ?
प्रेम रावत जी : देखिए! ये सवाल जो आपने किया है, ये भी बहुत महत्वपूर्ण सवाल है। क्योंकि बहुत लोग ये पूछते हैं। इसमें एक गलतफहमी है कि आप अपनी इच्छाओं को पूरी कर पाएंगे। यह आपकी गलतफहमी है! आपकी इच्छा कभी पूरी नहीं होंगी। क्योंकि जो एक रुपया कमाता है, उसके लिए दस बहुत है।
ऐंकर : हां! सही कहा।
प्रेम रावत जी : जो दस कमाता है, उसके लिए सौ चाहिए। जो सौ कमाता है, उसके लिए हजार चाहिए। और जो हजार कमाता है, उसके लिए लाख चाहिए। और जो लाख कमाता है, उसके लिए दस लाख चाहिए। और अगर आपको कोई इस बात में ऐसा लगता है कि ये बात सही नहीं है तो आप दुनिया को देख लीजिए।
ऐंकर : मतलब, point of satisfaction है ही नहीं।
प्रेम रावत जी : है ही नहीं।
ऐंकर : Infinity, मतलब, बढ़ता ही जाएगा, बढ़ता ही जाएगा।
प्रेम रावत जी : बढ़ता ही जाएगा, बढ़ता ही जाएगा! अगर आपके पास कार नहीं है, स्कूटर नहीं है, साइकिल नहीं है और आप पैदल चलते हैं तो कितना — आप सोचते होंगे— लोग सोचते हैं — कितना अच्छा हो, बाइसिकिल हो जाए! जिसके पास बाइसिकिल है, वो सोचता है — कितना अच्छा हो, स्कूटर हो जाए! जिसके पास स्कूटर है, वो — कितना अच्छा हो, मोटरसाइकिल हो जाए। जिसको मोटरसाइकिल है — कार हो जाए। कार है तो — फिर बड़ी कार हो जाए, फिर बड़ी कार हो जाए, फिर बड़ी कार हो जाए, फिर बड़ी कार हो जाए, बड़ी .........
ऐंकर : ऐसे में कहां रुका जाए कि नहीं यार! मैं ये नहीं..... मतलब, एक फुलस्टॉप कहां लगे लाइफ में कि यार! ये नहीं, आगे नहीं ? आगे जितना बढ़ोगे, बढ़ते जाओगे!
प्रेम रावत जी : नहीं, पर बात ये है — जो गलतफहमी की बात जो मैं कह रहा था — एक तो लोगों की गलतफहमी है कि कहीं अगर इसी सीढ़ी पर चलते रहे तो कहीं satisfaction में पहुंच जाएंगे। ये होगा नहीं। दूसरी गलतफहमी ये है कि या तो ये है, या फिर अंदर की शांति है। दोनों नहीं।
ऐंकर : दोनों कभी एक साथ नहीं हो सकती है।
प्रेम रावत जी : दोनों कभी एक साथ नहीं होते, ये गलतफहमी है। क्योंकि आप जो भी करना चाहते हैं बाहर, वो करिए। वो करिए! और जो अंदर की बात है, वो अंदर की बात है। और जबतक आपके अंदर वो सुकून नहीं होगा, जबतक आपके अंदर वो शांति नहीं होगी तो बाहर चाहे कोई भी वातावरण हो, आप शांत नहीं रहेंगे।
एक झलक:
ऐंकर : इसी चीज से, आपकी बात से मेरे दिल में एक सवाल है। आपने शायद उसका लगभग उत्तर दिया। पर मैं उस चीज को और भी विस्तार से जानना चाहूंगा। जरूरी क्या है कि पैसे कमाकर मैं अपनी सारी इच्छाएं पूरी करूं या फिर अपनी इच्छाओं को खत्म कर एक संतुष्ट जीवन बिताऊं ?
प्रेम रावत जी : देखिए! ये सवाल जो आपने किया है, ये भी बहुत महत्वपूर्ण सवाल है। क्योंकि बहुत लोग ये पूछते हैं। इसमें एक गलतफहमी है कि आप अपनी इच्छाओं को पूरी कर पाएंगे। यह आपकी गलतफहमी है! आपकी इच्छा कभी पूरी नहीं होंगी। क्योंकि जो एक रुपया कमाता है, उसके लिए दस बहुत है।
ऐंकर : हां! सही कहा।
प्रेम रावत जी : जो दस कमाता है, उसके लिए सौ चाहिए। जो सौ कमाता है, उसके लिए हजार चाहिए। और जो हजार कमाता है, उसके लिए लाख चाहिए। और जो लाख कमाता है, उसके लिए दस लाख चाहिए। और अगर आपको कोई इस बात में ऐसा लगता है कि ये बात सही नहीं है तो आप दुनिया को देख लीजिए।
ऐंकर : मतलब, point of satisfaction है ही नहीं।
प्रेम रावत जी : है ही नहीं।
ऐंकर : Infinity, मतलब, बढ़ता ही जाएगा, बढ़ता ही जाएगा।
प्रेम रावत जी : बढ़ता ही जाएगा, बढ़ता ही जाएगा! अगर आपके पास कार नहीं है, स्कूटर नहीं है, साइकिल नहीं है और आप पैदल चलते हैं तो कितना — आप सोचते होंगे— लोग सोचते हैं — कितना अच्छा हो, बाइसिकिल हो जाए! जिसके पास बाइसिकिल है, वो सोचता है — कितना अच्छा हो, स्कूटर हो जाए! जिसके पास स्कूटर है, वो — कितना अच्छा हो, मोटरसाइकिल हो जाए। जिसको मोटरसाइकिल है — कार हो जाए। कार है तो — फिर बड़ी कार हो जाए, फिर बड़ी कार हो जाए, फिर बड़ी कार हो जाए, फिर बड़ी कार हो जाए, बड़ी .........
ऐंकर : ऐसे में कहां रुका जाए कि नहीं यार! मैं ये नहीं..... मतलब, एक फुलस्टॉप कहां लगे लाइफ में कि यार! ये नहीं, आगे नहीं ? आगे जितना बढ़ोगे, बढ़ते जाओगे!
प्रेम रावत जी : नहीं, पर बात ये है — जो गलतफहमी की बात जो मैं कह रहा था — एक तो लोगों की गलतफहमी है कि कहीं अगर इसी सीढ़ी पर चलते रहे तो कहीं satisfaction में पहुंच जाएंगे। ये होगा नहीं। दूसरी गलतफहमी ये है कि या तो ये है, या फिर अंदर की शांति है। दोनों नहीं।
ऐंकर : दोनों कभी एक साथ नहीं हो सकती है।
प्रेम रावत जी : दोनों कभी एक साथ नहीं होते, ये गलतफहमी है। क्योंकि आप जो भी करना चाहते हैं बाहर, वो करिए। वो करिए! और जो अंदर की बात है, वो अंदर की बात है। और जबतक आपके अंदर वो सुकून नहीं होगा, जबतक आपके अंदर वो शांति नहीं होगी तो बाहर चाहे कोई भी वातावरण हो, आप शांत नहीं रहेंगे।