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आशा का दिया 00:00:00 आशा का दिया शब्द लोग सोचते हैं कि नौकरी है, परिवार है, जिम्मेदारियां हैं — यही सब कुछ हमारा जीवन ...

सुख व दुःख जीवन के दो पहलू हैं। सुख में मनुष्य की यही कोशिश रहती है कि सुख का लाभ मिले, पर जब दुःख होता है तो वह सोचता है कि दुःख से कैसे निकलें। अच्छा-बुरा तो सभी लोग जानते हैं, पर एक सच्चाई है जो अच्छे और बुरे दोनों से परे है। वह सच्चाई हम सबके हृदय में व्याप्त है, पर हम उससे अनभिज्ञ रहते हैं। कठिनाइयों और समस्याओं में फंसकर हम जीवन को तराजू में तौलते रहते हैं कि मैंने क्या पाया और क्या खोया।

जीवन है तो समस्याएं हैं। मनुष्य इन समस्याओं से बच नहीं सकता। सत्य तो यह है कि मनुष्य अपने लिए नरक खुद ही बनाता है। जितनी भी हमारी समस्याएं हैं, वह सब हमने ही बनाई हुई हैं। उदाहरण के लिए, एक रेल दुर्घटना हो गयी। यह किसका फल है ? लोग यह नहीं समझते कि लाइनमैन ने गलत सिगनल दे दिया, इससे दो ट्रेनों की टक्कर हो गयी। लोग कहते हैं कि "यह करनी का फल है।" कोई बस के नीचे आ गया। यह नहीं कि उस व्यक्ति को जहां नहीं होना चाहिए था, वहां चला गया। नहीं! यह तो करनी का फल हो गया। 

व्यक्ति को निराश होने के लिए किसी परिस्थिति विशेष की जरूरत नहीं है। वह तो कहीं भी निराश हो सकता है। चाहे वह गरीब से गरीब हो या अमीर से अमीर हो, समस्याओं का बोझ सबके लिए बराबर है। समस्याओं के बोझ में कोई अंतर नहीं है।  

एक बार की घटना है कि पांच रईस थे। उन्होंने कुछ गड़बड़ की। उन्हें महसूस हुआ कि उनकी पोल खुल जाएगी तो वे एक होटल में गए। उन्होंने वहां खूब शराब पी और फिर अपने-अपने कमरों में जाकर खुदकुशी कर ली। कई बार सुनने में आता है कि कोई महिला किसी से प्यार करती है, पर उसकी शादी कहीं दूसरी जगह हो रही है। वह भी खुदकुशी कर लेती है। अगर उन पाँचों में से किसी से पूछा जाये, "इस महिला का बोझ तुम्हारे बोझ से तो कम होगा ? क्योंकि तुम्हें तो इतनी शर्म लगी कि पकड़े गए तो जेल जाना पड़ेगा। इसे तो जेल नहीं जाना पड़ेगा!" उन दोनों के बोझ में क्या अंतर है ? कोई विद्यार्थी यूनिवर्सिटी में फेल हो जाता है, वह भी खुदकुशी कर लेता है। उस महिला से पूछिए, "क्या इसका बोझ तेरे बोझ से कम है ? यह तो दोबारा पढ़ने जा सकता था। कोई और तरकीब सोच लेता। तुम्हारी तो जिंदगी खराब होने जा रही थी, इसके साथ ऐसा थोड़े ही था ?" परन्तु क्या उन तीनों का बोझ अलग-अलग है ? तीनों का ही बोझ एक सामान है। ये सारी दुनिया की चीजें सबके लिए एक ही जैसी हैं। नया रूप-रंग या आकार ले लेती हैं, पर समस्याओं की हथौड़ी सभी को चोट पहुंचाती है। 

कारण स्पष्ट है कि लोग अपने इन कंधों पर हर एक बात का बोझ ले लेते हैं। जीवन में निराशा को स्थान नहीं देना चाहिए। अगर निराशा है, तो आशा भी तो है! आशा यह है कि कल सूर्य दोबारा उदय होगा। जैसे सूर्य उदय होता है और अस्त होता है, दिन समाप्त होता है और रात्रि आती है, मैं भी कल उस सूर्य की तरह उठूंगा, अपनी आशाओं को देखूंगा, अपने आनंद को देखूंगा। यह नई भोर है, नया दिन है, जो मेरे लिए आशाओं से भरा होना चाहिए। जो कुछ भी मैंने कल किया, आज वह सबकुछ मेरे लिए बदल सकता है। मैं अपने जीवन में अपनी असली आशा को पाऊं। एक बात बिलकुल स्पष्ट है कि बनाने वाले ने हमको दिया है यह शरीर, बनाने वाले ने दिया है यह स्वांस! क्या हम इस पर विश्वास कर सकते हैं ? सत्य तो यह है कि हम लोग और चीजों में पड़ जाते हैं और दुनिया के चक्करों में फंस जाते हैं। उसी चक्की में पीस के रह जाते हैं। भवसागर की यह नदी बहुत गहरी है। धारा खूब तेज बह रही है। अपनी जिंदगी को देखिये, कहां-कहां आप उलझे हुए हैं। आपकी उलझन कोई कम थोड़े ही है ?

लोग सोचते हैं कि नौकरी है, परिवार है, जिम्मेदारियां हैं — यही सब कुछ हमारा जीवन है। लेकिन यह जीवन नहीं है। इस जीवन की अगर कोई घड़ी है या कोई कड़ी है तो वह है एक स्वांस, जो अंदर आता है और एक स्वांस जाता है। जिस दिन इस स्वांस का आना-जाना बंद हो जायेगा, आप अपने मान-सम्मान को, अपने रिश्ते-नातों को, अपनी नौकरी को, अपने धन-वैभव को और उन सब चीजों को, जिनको अपना जीवन समझते हैं, वे सब समाप्त हो जाएंगी।  

अगर जीवन का लक्ष्य कुछ होना चाहिए, तो क्या सबसे श्रेष्ठ लक्ष्य यह नहीं होगा कि मैं उस चीज को जान लूं, जिसके अभाव में मैं कुछ नहीं हूं और जिसके होने से मैं सबकुछ हूं। अगर मैं उसी चीज को नहीं जानता हूं तो मेरा जीवन अधूरा है। क्योंकि इस संसार से जाना सबको है! कब जाना है, यह किसी को नहीं मालूम। और यह अच्छी बात है। अपनी जिंदगी में एक दिन में कितनी बार हम अपने से कहते हैं कि एक दिन जाना है ? कई-कई हफ्ते कई-कई महीने निकल जाते होंगे। कम से कम कुछ तो अच्छा करके जाओ! यह आपका जीवन है। अपने जीवन में उस आशा के दीये को सदा जलाये रखें।

- श्री प्रेम रावत 

स्वांस रूपी हीरे की परख 00:00:00 स्वांस रूपी हीरे की परख शब्द अगर किसी चीज को परखना है तो हमें उस क्षेत्र में अनुभवी होना पड़ेगा।

प्रेम रावत:

मूल चीज यह है कि आपके अंदर भी स्वांस है और मेरे अंदर भी स्वांस है। आप भी जीवित हैं और मैं भी जीवित हूँ। आपको भी मौका मिला है और मुझको भी मौका मिला है। क्योंकि अगर किसी चीज को परखना है तो हमें उस क्षेत्र में अनुभवी होना पड़ेगा।

सब घोड़ा नहीं खरीद सकते। क्योंकि मालूम नहीं है कि क्या देखना है। सब लोग हाथी नहीं खरीद सकते जिसको हाथी के गुणों का ज्ञान है कि ऐसा उसका कद होना चाहिए, ऐसे उसके दांत होने चाहिए, वे लोग ही हाथी खरीद सकते हैं। कई बार मैंने देखा है कि लोग घोड़ा  खरीदने के लिए जाते है तो घोड़े के मुँह को खोलते हैं, दांत देखते हैं। उन दांतों में वे क्या देखते हैं, मुझको यह नहीं मालूम, पर वे लोग मुँह खोलते हैं, दांत देखते हैं। वे लोग घोड़े का पैर उठाते हैं, नीचे देखते हैं। मैंने देखा हुआ है कि कैसे खरीदते हैं। वह सब काम मैं कर सकता हूँ, परन्तु घोड़े के कितने दांत होने चाहिए, उसके क्या गुण हैं, यह मुझे नहीं मालूम।

अन्य चीजों को छोड़िये। कोई कहता है, "हम तो शास्त्रों के ज्ञानी हैं।" एक मिनट के लिए वह बात छोड़िये, क्योंकि जो शास्त्रों का ज्ञान रखता है, उसको भी तो जीना है। जब हर एक को जीना है तो क्या अपने जीवन में हमको 'जीने' का ज्ञान है ?

यह जो स्वांस आ रहा है, यह साधारण चीज नहीं है। यह सबसे मूल्यवान चीज है। अगर आपके पास एक हीरा है और आप जानना चाहते हैं कि उस हीरे की कीमत क्या है तो यह जानने के लिए आप किसके पास ले जायेंगे ? जिसको परख है, जो उसकी कीमत जानता हो, जो उसको देख सकता हो, जो उसको देखकर यह बता सके कि यह असली है या नकली है। आपके पास भी स्वांस रूपी हीरा बनाने वाले की दया से आता है। क्या आपको परख है कि कैसे परखा जाता है यह स्वांस रूपी हीरा ? यह स्वांस रूपी हीरा जो आपको मिला है, क्या आपको उसकी परख है ? अगर उसकी परख नहीं है तो होनी चाहिए। इतनी कीमती चीज आ रही है और आपको परख नहीं है तो कहीं न कहीं गड़बड़ है।

यह जो मौका मिला है, इसको तो अपनाइये! यह जो स्वांस मिला है, इसको तो अपनाइये! देखिये! दीये में जो घी है, जो तेल है उसके कारण प्रकाश है। असली में तो वह घी या तेल जल रहा है। बत्ती तो उसको सींच रही है। क्या चीज है, जो असली है जिसके कारण आप ‘आप’ हैं ? उस चीज को मत भूलिए। यह स्वांस रूपी जो तेल है, स्वांस रूपी जो घी है, यह जल रहा है।  जिस दिन यह चला जायेगा, उस दिन सबकुछ खत्म! यह जो हर एक स्वांस का उपहार मिल रहा है, हर एक स्वांस के अंदर जो शांति छिपी है, इसको स्वीकार कीजिये और इसका आनंद लीजिये।

असली आनंद की प्यास आपके अंदर है 00:00:00 असली आनंद की प्यास आपके अंदर है शब्द आनंद की प्यास मनुष्य के अंदर स्वाभाविक रूप से है। यह आपका स्वभाव है। इसको आप बदल...

प्रेम रावत:
प्रत्येक मनुष्य के जीवन में तीन बातें हैं – एक तो जन्म हुआ, एक जीवन है और एक अंत होगा। एक हो गया। इसीलिए तो यहां हैं। अगर जन्म ही नहीं हुआ होता तो संसार में आते कैसे ? एक हो गया है, एक हो रहा है, एक होने के लिए बाकी है। एक और जरूरी बात है – क्या आप जानते हैं कि आप में क्या है ? क्या आप समझते हैं कि आप के ऊपर किस प्रकार से बनाने वाले ने कृपा की है ? अथाह! जिसका कोई अंत नहीं है, अथाह! अथाह! कृपा से आपको यह मनुष्य शरीर मिला है।

हम बात करते हैं मनुष्य शरीर की, हम बात करते हैं जीवित, जीते-जागते मनुष्यों की...आज की बात कर रहा हूं मैं, क्योंकि ये स्वांस आया, आज आया, कल आएगा। अगर ये कृपा रही – जिस कृपा के कारण ये स्वांस आज आया तो कल भी आयेगा। पर मुझको मालूम नहीं, क्या बढ़िया प्रकृति बनाई है कि धन तो दे दिया, पर कितना है, ये नहीं मालूम और खर्च करोगे। चाहे तुम चाहो या न चाहो, खर्च तो ये होगा। परंतु किस चीज पर खर्च करना है, ये तुम्हारे ऊपर निर्भर है। यह समझने की बात है।

सबसे बड़ी बात एक यह है कि क्या आप अपने जीवन में इस चीज को स्वीकार करते हैं कि आपके अंदर ही परमानन्द है। परम आनन्द आपके अंदर है।

दूसरी बात, इसको जानने की प्यास आपको कैसे लगी ? इसके बारे में भी आप समझिए। यह आपकी करनी नहीं है। ये स्वांस, इस आनंद की प्यास मनुष्य के अंदर स्वाभाविक रूप से है। यह आपका स्वभाव है। इसको आप बदल नहीं सकते। जब आप खुश होते हैं तो मुस्कुराते हैं। इसको आप बदल नहीं सकते। जब आपको दुःख होता है तो रोते हैं। इसको आप बदल नहीं सकते। कोशिश करते हैं लोग। यह आपका स्वभाव है कि जब आप सुंदर चीज के दर्शन करते हैं तो आपको आनंद मिलता है। यह आपका स्वभाव है। इसको सीखने की जरूरत नहीं पड़ती। यह सिखाने की जरूरत नहीं है। सीखने की जरूरत नहीं है। इसके लिए स्कूल जाने की जरूरत नहीं है, यह आपका स्वभाव है।

तो आपका स्वभाव क्या है ? आपका स्वभाव है आनंद से, परमानंद से प्रेम करना। आपका स्वभाव है शांति में रहना। एक शांति वह है, जो परिस्थितियों पर निर्भर है। जब बाहर सबकुछ ठीक होगा, तब वह शांति महसूस होगी। पर एक शांति वह है कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, मनुष्य अपने अंदर उस शांति का अनुभव कर सकता है। उस शांति में ही आनंद है और उस आनंद में है वह शांति!

वास्तव में आपका स्वभाव है, अपने जीवन को सफल बनाना। चाहे आप न भी बनाना चाहें, फिर भी आपका स्वभाव है। इसको आप बदल नहीं सकते। तो मैं अपने स्वभाव को समझूं। अपनी प्यास को समझूं। बिना प्यास के पानी की कोई कीमत नहीं है। जहां प्यास लगी, पानी की कीमत अपने आप पता चल जाती है। प्रश्न यह है कि क्या आपको उस शांति की, उस परमानंद की प्यास है या नहीं ? अगर है और आप अपनी प्यास बुझाना चाहते हैं तो मैं आपकी मदद कर सकता हूं।

अपने आपको जानो (Apnay Aap Ko Jano) 00:00:00 अपने आपको जानो (Apnay Aap Ko Jano) शब्द असली नाता क्या है ? क्या चीज है वह, जिसके होने से सबकुछ है और जिसके अभाव में कुछ...

प्रेम रावत:

एक बार की बात है, एक किसान जंगल से गुजर रहा था तो अचानक उसे शेर का एक छोटा-सा बच्चा मिला। उसने इधर-उधर देखा तो उसे कोई भी दिखाई नहीं दिया। शेर का बच्चा भूख और प्यास के कारण अधमरा-सा हो गया था। उसकी यह दशा देखकर किसान को दया आ गई और वह उसे उठाकर अपने घर ले आया। उसको खिलाया-पिलाया और जब शेर का बच्चा तंदुरुस्त हो गया तो किसान ने सोचा कि इसे कहां रखा जाए। किसान ने काफी भेड़ें पाल रखी थी तो उसने उस शेर के बच्चे को भी इन्हीं भेड़ों के साथ रख दिया।

दूसरे दिन जब भेड़ें चरने के लिए बाहर निकलीं तो शेर का बच्चा भी उनके साथ बाहर निकला। इसी तरह सालों बीत गए और शेर का बच्चा उन भेड़ों के साथ ही चरता रहा, उन्हीं के साथ निकलता था और उन्हीं के साथ घर वापस आता था।

ऐसे ही एक दिन जब वह बच्चा भेड़ों के साथ चर रहा था, तो अचानक एक बड़ा शेर जंगल से आ गया और उसने एक भयभीत करनेवाली दहाड़ मारी। दहाड़ सुनकर छोटी भेड़ें कांप गई और झाड़ियों में छिपने लगीं। शेर का बच्चा, जो अब किशोर हो चुका था, वह भी भेड़ों की तरह डरकर छिपने लगा।

जब बड़े शेर ने देखा कि भेड़ों के साथ एक छोटा शेर भी छिपने की कोशिश कर रहा है, तो बड़ा शेर छोटे शेर के पास गया और उससे पूछा कि ‘‘तुम क्या कर रहे हो ?’’

छोटे शेर ने कहा कि ‘‘मैं छिपने की कोशिश कर रहा हूं।’’

शेर ने कहा कि ‘‘तुम क्या समझते हो, क्या मैं तुम्हें खा जाऊंगा ?’’

तो छोटे शेर ने कहा, ‘‘हां, आप मुझे खा जायेंगे!’’

शेर ने कहा, ‘‘नहीं, नहीं। तुम जानते नहीं हो कि तुम कौन हो।’’

छोटे शेर ने कहा, ‘‘हां, मैं नहीं जानता हूं कि मैं कौन हूं, परंतु यह जानता हूं कि तुम मुझे खा जाओगे, इसलिए मेरा छिपना बहुत जरूरी है।’’

शेर ने कहा, ‘‘नहीं, सच में तुम्हें पता नहीं है कि तुम कौन हो। तुम समझते हो कि तुम भी भेड़ हो, लेकिन तुम भेड़ नहीं हो। आओ, मेरे साथ आओ!’’

वह उसे तालाब के किनारे ले गया और कहा कि ‘‘देख, अपनी परछाईं को देख!’’

जब छोटे शेर ने अपनी परछाईं देखी तो कहा, ‘‘सचमुच में मैं उन भेड़ों की तरह नहीं हूं। मैं तो आपकी तरह हूं!’’ वह बड़े शेर के प्रति अपना आभार प्रकट करने लगा।

तो शेर ने कहा कि ‘‘क्यों! मैंने तो तुम्हें सिर्फ यह दिखाया है कि तुम असल में कौन हो! तुम भेड़ नहीं हो। ठीक है, तुम भेड़ों के साथ रहते थे, परंतु तुम भेड़ नहीं हो। तुम उनके साथ रहते-रहते समझने लगे थे कि तुम भेड़ हो!’’

समझो कि तुम्हारा असली स्वरूप क्या है ? तुम कौन हो ? अभी तक तो तुमने नातों को समझा है कि ‘‘मैं किसी का बेटा हूं, मैं किसी का चाचा हूं।’’ इन्हीं चीजों को समझा है। पर असली नाता क्या है ? क्या चीज है वह, जिसके होने से सबकुछ है और जिसके अभाव में कुछ भी नहीं है। जिसको हम पहचानने की कोशिश करते हैं, वह सब बाहर की तरफ है। परंतु हमारे अंदर जो स्थित है, क्या हमने उसको भी पहचानने की कोशिश की है कि हमारा असली स्वरूप क्या है ? जिस पल हम यह पहचान जाएंगे कि हमारा असली स्वरूप क्या है, तो हमारे बहुत सारे भ्रम मिट जाएंगे।

सफलता के मायने (Safalta kay Mainay) 00:00:00 सफलता के मायने (Safalta kay Mainay) शब्द इस दुनिया में कोई भी चीज निरर्थक नहीं है। यह जीवन अनंत संभावनाओं से परिपूर्ण है।

कहानी

एक बार एक राजा ने अपने माली को बुलाया और कहा, "इस पहाड़ी पर जो हमारा महल है, यहां एक बहुत सुंदर बगीचा होना चाहिए।"

माली ने कहा, "जी हजूर!"

वह बगीचे की तैयारी में लग गया। पानी पहाड़ी के नीचे था, नीचे नदी थी। माली दो बड़े-बड़े मटकों को लेकर हर रोज नीचे जाता था, पानी से भरता था, फिर धीरे-धीरे करके वह ऊपर पहुँचता था और अपने बगीचे में पानी देता था।

काफी दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। एक दिन जो पीछे वाला मटका था, उसमें किसी चीज से ठोकर लगने के कारण या अन्य किसी कारण छेद हो गया। वह माली पहाड़ी के नीचे जाए, दोनों मटकों को पानी से भरे और जबतक वह ऊपर तक आये तो आगे वाले मटके में तो पूरा पानी भरा रहता था, परन्तु पीछे वाला मटका खाली हो जाता था। यह सिर्फ कहानी है।

एक दिन आगे वाले मटके ने पीछे वाले मटके से कहा, "तू तो किसी काम का नहीं है। तुझ में तो छेद हो गया है। तू किसी काम का नहीं रहा। देख! मेरी वजह से राजा का बगीचा इतना हरा-भरा रहता है, क्योंकि मैं ही यहां तक पानी लाता हूं। जबतक तू यहाँ पहुँचता है, तुझ में तो एक बूंद भी पानी नहीं बचता है। अब तू किसी काम का नहीं है।"

पीछे वाले मटके ने जब यह सुना कि वह किसी काम का नहीं है तो बड़ा उदास हुआ। दूसरे दिन माली आया, उसने दोनों मटकों को देखा तो उसने देखा कि पीछे वाला मटका बड़ा उदास है। उसने मटके से पूछा, "क्या बात है ? तू उदास क्यों है ?"

तब उस मटके ने कहा, "आगे वाले मटके ने मुझसे कहा है कि मैं किसी काम का नहीं हूं। जब सवेरे-सवेरे पानी लेने के लिए आप जाते हैं, फिर जबतक आप बाग में पहुंचते हैं तो आगे वाले मटके में तो पानी रहता है, परन्तु मेरे अंदर छेद होने की वजह से एक बूंद भी पानी नहीं बचता है। इस आगे वाले मटके का यह कहना है कि जो बाग हरा- भरा है, वह उसकी वजह से है, मेरी वजह से नहीं है।"

माली ने हँसते हुए कहा, "तू जानता नहीं है। तेरे भीतर छेद होने के बावजूद भी मैंने तुझे फेंका नहीं है। मैं तुझे हर रोज नीचे ले जाता हूं, तेरे अंदर पानी भरता हूं और तुझे ऊपर तक लाता हूं। हाँ, यह सही बात है कि इस बाग में जो कुछ भी हरियाली है, हरा-भरा है, वह इस आगे वाले मटके की वजह से है, परन्तु क्या तुमने देखा नहीं कि उस नदी से लेकर ऊपर इस बाग तक जो फूल उग रहे हैं, वे सब तुम्हारी वजह से उग रहे हैं ? उन सबको तेरी वजह से पानी मिलता है। यह तो एक ही बाग है, पर तेरी वजह से वह सारा का सारा रास्ता — उस नदी से लेकर इस बाग तक हरा-भरा है, क्योंकि उनको तुझसे पानी मिलता है।"

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मेरे संदेश का मकसद इस बात से है कि आपको यह मनुष्य शरीर मिला है और आप इसका महत्त्व समझें, जानें। क्योंकि अन्य सारी चीजें तो इस संसार के अंदर बदलती रहेंगी। आज आप हैं। एक दिन ऐसा भी आएगा कि आप इस संसार में नहीं रहेंगे। यह नियम संसार का हमेशा रहा है। परन्तु सबसे बड़ी बात है कि जबतक हम जीवित हैं, जीवन होने की वजह से हमारे जीवन में अनंत सम्भावनाएं हैं।

- श्री प्रेम रावत

आज का दिन (Aaj ka Din) 00:00:00 आज का दिन (Aaj ka Din) शब्द आज का दिन कैसे बीतना चाहिए ? हम इस दिन में क्या-क्या हासिल कर सकते हैं ?

कितना सुंदर यह आज का दिन है! आज के दिन तो यह स्वांस भी है, यह जीवन भी है, यह हृदय भी है! मैं आज के दिन की बात कर रहा हूँ। मैं जीवन की बात नहीं कर रहा हूँ। मैं आज के दिन की बात कर रहा हूँ, क्योंकि वे सब 'आज' करके ही आयेंगे। कल, परसों, नरसों करके नहीं आएंगे, 'आज' करके आएंगे, ‘आज' बनेंगे।

जिस दिन हर्ष हो, खुशी हो, हृदय में तसल्ली हो, आशा हो, वह दिन सचमुच में धन्य है। उस दिन हृदय में आनंद है, आशा है, खुशी है, मौके हैं, हम सब उन मौकों का पूरा-पूरा फायदा उठा सकते हैं। अगर यह बात है तो आज का दिन धन्य हो गया।

आज का दिन कैसे बीतना चाहिए ? हम इस दिन में क्या-क्या हासिल कर सकते हैं ? कैसे इस दिन को सफल कर सकते हैं ? क्या इन चीज़ों का हमको ज्ञान है ? अगर नहीं है तो यह बड़ी खतरनाक बात हो गयी है! आप बस में जा रहे हैं और कोई ऐसा आदमी, जिसको बस चलानी नहीं आती है, परन्तु वह बस चला रहा है और बस खूब तेज चल रही है। अगर आपको कहीं पता लग गया कि ड्राइवर को बस चलाना नहीं मालूम है तो क्या आपको डर नहीं लगेगा ? अगर 'आज का दिन' एक बस है और आप स्टीयरिंग व्हील के पीछे बैठे हैं तो मैं आपसे पूछता हूँ कि क्या आपको इस 'आज रूपी बस' को चलाने का ज्ञान है ?

आपके जीवन में जितने भी दिन आएंगे, वे सब 'आज' करके आयेंगे। कितना सरल कर दिया है, जैसे स्वांस लेना! आपको कुछ करने की जरूरत नहीं है। अपने आप आयेगा, अपने आप जायेगा। आपके लिए उस हर एक स्वांस के आने-जाने में क्या छिपा है? आपके लिए हर एक 'आज' के आने-जाने में, हर एक स्वांस में छिपी है — सच्ची शांति!

यह जो मौका मिला है, इसको अपनाइये। यह जो स्वांस मिला है, इसको अपनाइये। आप उस शांति की जगह में जाइये और एक-एक स्वांस में लीन हो जाइये। शांति का अनुभव करके अपने जीवन को सफल बनाइये। जब आप अपने हृदय को शांति से भर लेंगे तो यह दिन कहीं नहीं जा सकता। आज के दिन को सफल कीजिये। यह जो हर एक स्वांस का उपहार मिल रहा है, हर एक स्वांस के अंदर जो शांति छिपी है, इसको स्वीकार कीजिये।

- श्री प्रेम रावत

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