प्रेम रावत:
काल करे सो आज करि, आज करे सो अब।
पल में परलय होयगी, बहुरि करेगा कब।।
कबीरदास की ये पक्तियां मानव प्रकृति की ओर इशारा करती हैं। क्योंकि मनुष्य की यह आदत है कि वह कुछ कार्यों को तो तुरन्त कर लेता है और कुछ को अगले दिन पर छोड़ देता है। प्रश्न यह है कि वह किस प्रकार के कार्यों को शीघ्र कर लेता है और किन्हें भविष्य के लिए छोड़ देता है। देखा यह गया है कि अधिकांशतः वही कार्य कल पर छोड़े जाते हैं जो बाहरी रूप से देखने पर इतने महत्वपूर्ण नहीं लगते। मनुष्य अपने दिन की सफलता का मूल्यांकन भौतिक उपलब्धियों के आधार पर करता है कि उसने क्या-क्या हासिल किया। परंतु क्या वह थोड़ी देर रुककर कभी यह भी सोचता है कि जिस जीवन को वह भौतिक सुखों को पाने की लालसा में दिन-रात लगा रहा है, वह जीवन उसे क्यों मिला है ? उसके जीवन का उद्देश्य क्या है ?
एक तरफ सारी दुनिया की जिम्मेदारियां हैं और एक तरफ है आपका जीवन! जो आपको दिया गया है जो आपके लिए है। यदि आप इस बात को स्वीकार करते हैं तो प्रश्न उठता है कि जो चीज आपको मिली है क्या उसे भी संभालने की कोशिश आज तक की गई या नहीं ? आज के दिन जो अनमोल चीज आपको मिली है, उसको संवारा या नहीं संवारा ?
जहां पानी की कमी नहीं होती वहां पानी को लोग बर्बाद भी करते हैं, पर जहां पानी नहीं होता है वहां उस पानी के नीचे भी एक डिब्बा रख देते हैं ताकि वह पानी खराब न हो। इसी तरह आपका स्वांस है। एक दिन आया था, जो कि पहला स्वांस था। एक दिन जायेगा, वह आखिरी स्वांस होगा और बीच में है आज का दिन! इसी आज के दिन को आप दुनिया के सभी कार्यों को संवारने में लगा देते हैं लेकिन जो अनमोल स्वांस मिला है, उस पर ध्यान नहीं जाता है। क्योंकि हम उसी दिन को बढ़िया समझते हैं कि जिसमें बिजनेस में वृद्धि हो, अच्छी नौकरी मिल जाए आदि। परंतु सबसे बढ़िया दिन तो वह होगा, जिस दिन आप कहेंगे, “आज के दिन मुझे यह जीवन मिला, मेरा स्वांस चल रहा है, मैं जीवित हूं। मेरे पास यह मौका है, मैं इसे खोना नहीं चाहता। आज के दिन मुझे वह बात समझ में आयी, जिसकी चर्चा सारे संत-महात्मा अपने जीवन भर करते आये हैं।”
समय के सद्गुरु की कृपा से हम इस स्वांस की कीमत को समझ सकते हैं। जिस दिन यह बात समझ जाएंगे, उस दिन से यह जीवन व्यर्थ नहीं जाएगा। उस दिन तुम भी अपना हृदय रूपी डिब्बा उस नल के नीचे रख दोगे। जो पानी व्यर्थ बह रहा था, वह बच जाएगा। जिंदगी संवर जाएगी। वह चीज मिल जाएगी जिससे हम अपने जीवन को पूरा कर सकें। हर दिन आभारी हृदय से, चैन और आनंद से कह सकेंगे, “हे बनाने वाले, तेरा लाख-लाख शुक्र है।” फिर यह कहेंगे कि आज का दिन ही मेरे जीवन का पहला दिन है। कल अगर फिर यह दिन आया तो मैं इसे बेकार नहीं जाने दूंगा। इसी तरीके से हमें हर दिन का स्वागत करना होगा। आने वाले कल के लिए नहीं, न गुजरे हुए कल के लिए, बल्कि आज के लिए और सदा के लिए! क्योंकि इस जीवन में जितने भी दिन आएंगे, वे सब ‘आज’ के रूप में ही आएंगे। कल, परसों, नितरसों करके नहीं आएंगे। 'आज' में ही आनंद छिपा है।
अभी हमारे पास समय है कि हम कल को संवारने के बजाय आज पर ध्यान दें। आज के दिन में अपने हृदय को शांति और आनंद से भर लें। कल आए न आये, मुझे परवाह नहीं है। यदि कल आएगा तो मैं उसका भी स्वागत आज की ही तरह करूंगा ताकि मेरे हृदय का प्याला दिन-प्रतिदिन भरता चला जाए और मेरा जीवन सफल हो।