सुख व दुःख जीवन के दो पहलू हैं। सुख में मनुष्य की यही कोशिश रहती है कि सुख का लाभ मिले, पर जब दुःख होता है तो वह सोचता है कि दुःख से कैसे निकलें। अच्छा-बुरा तो सभी लोग जानते हैं, पर एक सच्चाई है जो अच्छे और बुरे दोनों से परे है। वह सच्चाई हम सबके हृदय में व्याप्त है, पर हम उससे अनभिज्ञ रहते हैं। कठिनाइयों और समस्याओं में फंसकर हम जीवन को तराजू में तौलते रहते हैं कि मैंने क्या पाया और क्या खोया।
जीवन है तो समस्याएं हैं। मनुष्य इन समस्याओं से बच नहीं सकता। सत्य तो यह है कि मनुष्य अपने लिए नरक खुद ही बनाता है। जितनी भी हमारी समस्याएं हैं, वह सब हमने ही बनाई हुई हैं। उदाहरण के लिए, एक रेल दुर्घटना हो गयी। यह किसका फल है ? लोग यह नहीं समझते कि लाइनमैन ने गलत सिगनल दे दिया, इससे दो ट्रेनों की टक्कर हो गयी। लोग कहते हैं कि "यह करनी का फल है।" कोई बस के नीचे आ गया। यह नहीं कि उस व्यक्ति को जहां नहीं होना चाहिए था, वहां चला गया। नहीं! यह तो करनी का फल हो गया।
व्यक्ति को निराश होने के लिए किसी परिस्थिति विशेष की जरूरत नहीं है। वह तो कहीं भी निराश हो सकता है। चाहे वह गरीब से गरीब हो या अमीर से अमीर हो, समस्याओं का बोझ सबके लिए बराबर है। समस्याओं के बोझ में कोई अंतर नहीं है।
एक बार की घटना है कि पांच रईस थे। उन्होंने कुछ गड़बड़ की। उन्हें महसूस हुआ कि उनकी पोल खुल जाएगी तो वे एक होटल में गए। उन्होंने वहां खूब शराब पी और फिर अपने-अपने कमरों में जाकर खुदकुशी कर ली। कई बार सुनने में आता है कि कोई महिला किसी से प्यार करती है, पर उसकी शादी कहीं दूसरी जगह हो रही है। वह भी खुदकुशी कर लेती है। अगर उन पाँचों में से किसी से पूछा जाये, "इस महिला का बोझ तुम्हारे बोझ से तो कम होगा ? क्योंकि तुम्हें तो इतनी शर्म लगी कि पकड़े गए तो जेल जाना पड़ेगा। इसे तो जेल नहीं जाना पड़ेगा!" उन दोनों के बोझ में क्या अंतर है ? कोई विद्यार्थी यूनिवर्सिटी में फेल हो जाता है, वह भी खुदकुशी कर लेता है। उस महिला से पूछिए, "क्या इसका बोझ तेरे बोझ से कम है ? यह तो दोबारा पढ़ने जा सकता था। कोई और तरकीब सोच लेता। तुम्हारी तो जिंदगी खराब होने जा रही थी, इसके साथ ऐसा थोड़े ही था ?" परन्तु क्या उन तीनों का बोझ अलग-अलग है ? तीनों का ही बोझ एक सामान है। ये सारी दुनिया की चीजें सबके लिए एक ही जैसी हैं। नया रूप-रंग या आकार ले लेती हैं, पर समस्याओं की हथौड़ी सभी को चोट पहुंचाती है।
कारण स्पष्ट है कि लोग अपने इन कंधों पर हर एक बात का बोझ ले लेते हैं। जीवन में निराशा को स्थान नहीं देना चाहिए। अगर निराशा है, तो आशा भी तो है! आशा यह है कि कल सूर्य दोबारा उदय होगा। जैसे सूर्य उदय होता है और अस्त होता है, दिन समाप्त होता है और रात्रि आती है, मैं भी कल उस सूर्य की तरह उठूंगा, अपनी आशाओं को देखूंगा, अपने आनंद को देखूंगा। यह नई भोर है, नया दिन है, जो मेरे लिए आशाओं से भरा होना चाहिए। जो कुछ भी मैंने कल किया, आज वह सबकुछ मेरे लिए बदल सकता है। मैं अपने जीवन में अपनी असली आशा को पाऊं। एक बात बिलकुल स्पष्ट है कि बनाने वाले ने हमको दिया है यह शरीर, बनाने वाले ने दिया है यह स्वांस! क्या हम इस पर विश्वास कर सकते हैं ? सत्य तो यह है कि हम लोग और चीजों में पड़ जाते हैं और दुनिया के चक्करों में फंस जाते हैं। उसी चक्की में पीस के रह जाते हैं। भवसागर की यह नदी बहुत गहरी है। धारा खूब तेज बह रही है। अपनी जिंदगी को देखिये, कहां-कहां आप उलझे हुए हैं। आपकी उलझन कोई कम थोड़े ही है ?
लोग सोचते हैं कि नौकरी है, परिवार है, जिम्मेदारियां हैं — यही सब कुछ हमारा जीवन है। लेकिन यह जीवन नहीं है। इस जीवन की अगर कोई घड़ी है या कोई कड़ी है तो वह है एक स्वांस, जो अंदर आता है और एक स्वांस जाता है। जिस दिन इस स्वांस का आना-जाना बंद हो जायेगा, आप अपने मान-सम्मान को, अपने रिश्ते-नातों को, अपनी नौकरी को, अपने धन-वैभव को और उन सब चीजों को, जिनको अपना जीवन समझते हैं, वे सब समाप्त हो जाएंगी।
अगर जीवन का लक्ष्य कुछ होना चाहिए, तो क्या सबसे श्रेष्ठ लक्ष्य यह नहीं होगा कि मैं उस चीज को जान लूं, जिसके अभाव में मैं कुछ नहीं हूं और जिसके होने से मैं सबकुछ हूं। अगर मैं उसी चीज को नहीं जानता हूं तो मेरा जीवन अधूरा है। क्योंकि इस संसार से जाना सबको है! कब जाना है, यह किसी को नहीं मालूम। और यह अच्छी बात है। अपनी जिंदगी में एक दिन में कितनी बार हम अपने से कहते हैं कि एक दिन जाना है ? कई-कई हफ्ते कई-कई महीने निकल जाते होंगे। कम से कम कुछ तो अच्छा करके जाओ! यह आपका जीवन है। अपने जीवन में उस आशा के दीये को सदा जलाये रखें।
- श्री प्रेम रावत