प्रेम रावत:
एक बार एक काफिला था, जो एक जगह था। तो एक दिन एक लड़का, एक बच्चा, जो काफिले का सरदार था, उसके पास आया और उसने अपने सरदार से कहा कि "सरदार! मेरा एक सवाल है।"
कहा, "क्या ?"
कहा, "मैं देखता हूं कि कुछ लोग — जो अच्छा महसूस करते हैं, जो अच्छे हैं, कई बार वो बुरा काम करते हैं, बुरी चीज करते हैं और वो लोग, जो बुरी चीज करते हैं, कई बार वो अच्छा करते हैं। जो लोग खुश रहते हैं, वो कई बार दुःखी हो जाते हैं और जो लोग दुःखी रहते हैं, फिर कई बार वो खुश हो जाते हैं। ऐसा क्यों है ?"
सरदार ने कहा, "हर एक मनुष्य के अंदर दो शेर हैं। एक अच्छा शेर है और एक बुरा शेर है। और दोनों शेर आपस में लड़ते हैं।"
उसने सोचा। सोच के वो बोलता है, "फिर क्यों लड़ते हैं ?"
कहा, "इसलिए लड़ते हैं कि तेरे पर काबू कर सकें।"
फिर सोचा उसने। कहा, "सरदार! जीतता कौन है ? कौन-सा शेर जीतेगा ? अंत में कौन-सा शेर जीतेगा ? अच्छा वाला या बुरे वाला ?"
सरदार ने कहा, "जिस शेर को तू खिलाएगा, वही जीतेगा।"
कहानी तुमको पसंद आयी ? बुरे शेर को खिलाओगे, वो जीतेगा। वो तुम पर काबू करेगा, तुम पर राज करेगा। अच्छे शेर को खिलाओगे, वो जीतेगा, वो तुम पर काबू करेगा, तुम पर राज करेगा। अच्छे वाला शेर अच्छा है, बुरे वाला शेर बुरा है।
समझे ? तो किस शेर को खिलाते हो तुम ?
बुरे वाले शेर को खिलाओगे, वही जीतेगा। तुमको गुस्सा करने में कितनी देर लगती है ? तुमको निराश होने में कितनी देर लगती है ? क्या मतलब है इसका ? कौन-से शेर को खिला रहे हो ?
कई लोग तो ये समझते हैं, "हमें बुरे शेर को कुछ नहीं खिलाना चाहिए।"
तो वो किसी को कुछ नहीं खिला रहे हैं। अच्छे शेर को खिलाना जरूरी है! अगर अच्छा चाहते हो तुम अपने जीवन में तो अच्छे शेर को खिलाना जरूरी है! बुरे शेर से संबंध मत बनाओ! उससे न बात करो, न उसके पास जाओ, न उसको कहो कि ‘‘तू बुरा शेर है!’’ अच्छे शेर की देखभाल करो, उसको खिलाओ, हर समय उसको खिलाओ, ताकि वो बलवान हो!
तो अगर तुम यह महसूस करते हो कि तुम बड़ी आसानी से निराश हो जाते हो, अगर तुम यह महसूस करते हो कि बड़ी जल्दी से गुस्सा हो जाते हो, आशाएं टूट जाती हैं, अपने आपको तुम भ्रमित पाते हो, कभी यहां की सोचते हो, कभी वहां की सोचते हो, कभी — ये कैसा है, वो कैसा है ? इसका क्या उत्तर है ? ये ऐसा है, वो वैसा है — इन सब चीजों में लगते हो। इसका मतलब है कि तुम बुरे शेर को खिला रहे हो।
अच्छे शेर को खिलाओगे, तब वो कहेगा, "तेरे को इसकी क्या फिक्र है, उसकी क्या फिक्र है ? अगर तेरे को फिक्र करनी है तो इसकी फिक्र कर, जो तेरे अंदर आ रहा है, जा रहा है। जिसके न आने से तू कुछ भी नहीं कर पायेगा!"
अरे! विटामिन तो ठीक है — ये ऐसी विटामिन है कि इसके बिना एक दिन भी नहीं चलोगे तुम। एक दिन तो छोड़ो, तीन मिनट! तीन मिनट! और ये जब तक चल रहा है, इसकी तरफ तुम ध्यान नहीं देते हो और जब ये बंद होने लगता है, तब तुम्हारा ध्यान जायेगा। तो इसका मतलब है कि तुमने अपने सारे जीवन भर बुरे शेर को खिलाया। वो तुम्हारा बलवान है, वो तुमको खाएगा और उससे बड़ा नर्क हो नहीं सकता! जो आदमी स्वर्ग में बैठा-बैठा नहीं जानता है कि वह स्वर्ग में है, इससे बड़ा नर्क क्या हो सकता है ?
तो समझो! ध्यान देने से सबकुछ होगा। उस चीज को अपनाने से सबकुछ होगा। जो तुममें अच्छाई है, उसको उभरकर बाहर आने दो। जितना बाहर आएगी, उतना ही तुम्हारे जीवन के अंदर और सुंदरता आएगी। जो शांति है, उसको आने दो बाहर। अशांति को नहीं।
ये सारी चीजें तुममें हैं। तुममें बुराई भी है और तुममें अच्छाई भी है। और कितनी बुराई है और कितनी अच्छाई है ? हर एक व्यक्ति में, हर एक मनुष्य में 50 प्रतिशत अच्छाई है और 50 प्रतिशत बुराई है।
कोशिश करो! कोशिश करो इस शांति के लिए, इस आनंद के लिए, अपने जीवन को सफल बनाने के लिए। इसमें ज्यादा समय नहीं लगता। इसमें ज्यादा समय नहीं लगता। अच्छाई में रोशनी जब आती है, कितना समय लगता है और रोशनी जब जाती है तो अंधेरे को आने में कितना समय लगता है! रोशनी अंधेरे को हटाती है। ये तो दो बहनें हैं — एक तरफ रोशनी है और एक तरफ अंधेरा है। बस, फ़र्क इतना है कि ये एक-दूसरे को नहीं जानते। पर रहते बहुत नजदीक हैं। बहुत नजदीक हैं! जैसे ही रोशनी जाती है, तुरंत अंधेरा आता है। और जैसे ही — जब रोशनी चली जाती है, अंधेरा ही अंधेरा हो जाता है। बहुत नजदीक हैं एक दूसरे के पर एक दूसरे को नहीं जानते। क्योंकि अंधेरे ने कभी रोशनी को नहीं देखा, रोशनी ने कभी अंधेरे को नहीं देखा।
अच्छाई भी है, बुराई भी है। तुम्हारी अच्छाई, तुम्हारी बुराई को नहीं जानती और तुम्हारी बुराई तुम्हारी अच्छाई को नहीं जानती पर रहते ये एक ही में हैं। तुममें रहते हैं। हममें रहते हैं। और ये हमेशा कोशिश करनी चाहिए कि मैं उस शांति तक पहुंच सकूं, जो मेरे अंदर अच्छाई है, उस तक मैं पहुंचूं, उसको मैं आगे बढ़ावा दूं और आनंद लो! क्योंकि इसका — इसका सारा सार यही है। सच्चिदानन्द! सत् ये है और जब मेरा चित्त इसमें लगेगा तो क्या मिलेगा ? आनंद मिलेगा। ये सारा — चक्कर ही सारा आनंद का है।
मैं कह रहा था न, दो मौज हैं। एक तो दुनिया की मौज है और एक अंदर की मौज है। अंदर की मौज करोगे तो अंदर की मौज में कितने भी तुम बुड्ढे हो जाओ, कोई अंतर नहीं आएगा।