प्रश्नकर्ता:
मुझे अकेलापन महसूस होता है, इस अकेलेपन से बचने का क्या उपाय है?
प्रेम रावत:
देखिए! यह एक बहुत इन्टरेस्टिंग सवाल है। और इन्टरेस्टिंग यह इसलिए है कि हम करते क्या हैं अपने जीवन में ? तो, पहले तो हम बच्चे रहते हैं — खेलते हैं, कूदते हैं, फिर हमारा स्कूल आना-जाना होता है। वहां मित्र बनाते हैं, पढ़ाई करते हैं, जिम्मेवारियों को समझते हैं, गृहकार्य मिलता है। धीरे-धीरे-धीरे करके हमारी पढ़ाई और आगे बढ़ती है। हम और कल्चर्स के बारे में पढ़ते हैं। हम इतिहास के बारे में पढ़ते हैं। हम जॉग्रफी के बारे में पढ़ते हैं। धीरे-धीरे करके वो भी बढ़ती हैं चीजें। और लोगों के बारे में सुनते हैं और करते-करते-करते हमारे एम्बिशन्स भी बहुत बढ़ते हैं — हमारी धारणाएं, हमारे विचार, हमारी इच्छाएं! हम ऐसा बनना चाहते हैं। हम ऐसा बनना चाहते हैं और स्कूल और यूनिवर्सिटीज़ का काम ही यह है कि वो माइंड को शेप करें।
तो धीरे-धीरे-धीरे करके हमको यह लगने लगता है कि ‘‘अच्छा! हम ये बनेंगे! हम डॉक्टर बनेंगे, हम इंजीनियर बनेंगे! हम ये करेंगे, हम ये करेंगे! हम उस जैसा बनना चाहते हैं। हम उस जैसा बनना चाहते हैं।’’ तो फिर इन चीज़ों को ले करके आगे — यूनिवर्सिटीज़ में जाते हैं, ग्रेजुएट होते हैं और बाहर आकर के जॉब लेते हैं, नौकरी करते हैं।
तो अगर इस सारी चीज को देखा जाए तो ये हुई — रिवर्स इंजीनियरिंग! पर रिवर्स इंजीनियरिंग का मतलब कि आपका लक्ष्य ये है और आप इतना सबकुछ कर रहे हैं, उस लक्ष्य को पूरा करने के लिए। तो ये लक्ष्य और इतना सबकुछ आपको करना पड़ रहा है। इसमें आप अपना समय का भी बलिदान कर रहे हैं। इसमें आप अपनी एनर्जी का भी बलिदान कर रहे हैं। इसमें आप अपने रिश्तों का भी बलिदान कर रहे हैं और करते-करते, करते-करते और फिर आप उस लक्ष्य तक पहुंचते हैं। अब आपके दिमाग में यह था कि जब वो लक्ष्य पूरा कर लेंगे तो फिर हम बहुत ही खुश हो जाएंगे। सबकुछ ठीक हो जाएगा! फिर कोई चिंता करने की चीज नहीं रहेगी। परंतु उस लक्ष्य तक जितने भी पहुंचे हुए हैं, वो कभी यह नहीं कहते हैं कि ऐसा होता नहीं है। वो सारी चीज़ें तब भी बनी रहती हैं।
तो एक प्रश्न उठता है कि ‘‘क्या इस जिंदगी को रिवर्स इंजीनियरिंग के लिए — यह उचित है या किसी और चीज के लिए ?’’ मतलब, ये भी संभव है कि आप अपनी जिंदगी में तो — रिवर्स इंजीनियरिंग तो हुई, ये लक्ष्य हुआ और ये ऐसा हो गया। और अगर जरा विचार करिए! बजाय ऐसे के, अगर ऐसा हो तो क्या हो ? मतलब, आप क्या नहीं हासिल कर सकते हैं ?
अगर आपने अपने जीवन के अंदर खुशी हासिल कर ली, अपने जीवन के अंदर अपने आपको पहचान लिया, अपने जीवन के अंदर कुछ ऐसा कर दिया कि जो आपके सपने थे, वो टूट गए और सपने से भी बहुत बड़ी चीज आपने हासिल कर ली।
तो मैं समझता हूं कि जिंदगी की ये पोटेंशियल है। आपके लाइफ की ये पोटेंशियल है। ये संभावना है! ये नहीं, ये संभावना है कि एक चीज नहीं, बहुत-कुछ आप हासिल कर सकते हैं। परंतु इसके लिए रिवर्स इंजीनियरिंग नहीं, इसके लिए आपको दिल से काम करना पड़ेगा।
जो आपका — जो आप दिल से काम करेंगे, वो काम नहीं है। उसको आप इंज्वाय करेंगे, उसका आप पूरा-पूरा फायदा उठाएंगे।
तो ये कैसे हो ? और जो कुछ भी और जो समस्याएं हैं — आज के यूथ में ये है। सब लोग ये कर रहे हैं — रिवर्स इंजीनियरिंग, रिवर्स इंजीनियरिंग!
बताइए मेरे को क्या — और ये इसके लिए तो कोर्सेज भी हैं। जो आप कोर्स ले सकते हैं कि ये हासिल करने के लिए आपको क्या-क्या, क्या-क्या करना पड़ेगा। सारी जिंदगी को रिवर्स इंजीनियरिंग कर रखा है।
परंतु जिंदगी की पोटेंशियल, संभावना रिवर्स इंजीनियरिंग के लिए नहीं है, जिंदगी की पोटेंशियल इसके लिए है। और जबतक आप इस पर नहीं आएंगे, तो ये तो और जो चीज़ें हैं, अब जैसे — परिवार से अलग होना या अपने आपको लोनली महसूस करना! लोनली महसूस तो वो लोग भी करते हैं, जो अपने परिवार के साथ हैं। क्योंकि वो भी रिवर्स इंजीनियरिंग कर रहे हैं। वो समझते हैं कि ‘‘मैं यहां अटका हुआ हूं।’’ कोई गांव में है, वो पढ़-लिख तो लिया, पर वो देख रहा है कि यहां कोई संभावना तो है नहीं उसके लिए, पर वो अटका हुआ है। तो मां-बाप के साथ तो है, परिवार के साथ तो है, परंतु ध्यान कहां है ? कहीं और है — ‘‘काश! मैं भी वहां होता!’’ दूसरा वो, जो अटका हुआ नहीं है, जो चले गया — ‘‘काश! मैं वो होता!’’ तो ये ‘‘काश’’ तो दोनों ही कर रहे हैं! काश, काश, काश, काश!
तो बात वो नहीं है कि वो माहौल बदल जाए या वो माहौल बदल जाए। आप अपने में देखिए! कि आप क्या कर सकते हैं ? आप अपने में देखिए कि क्या संभावना है ? आपको लोनली होने की जरूरत नहीं है। आप कहीं भी हों, क्योंकि आप अपने साथ हैं। आपका प्रकाश आपके अंदर है। आपकी दोस्ती आपके अंदर है, आपका प्यार आपके अंदर है, आपकी खुशी आपके अंदर है, आपकी सक्सेस आपके अंदर है। इसीलिए, इसीलिए कितना जरूरी है कि आप अपने आपको जानें! और इस संभावना को, अपनी जिंदगी की संभावना को पूरा करें। उसके बिना ये तो सारे चक्कर बने रहेंगे। कोई ये चाहता है, कोई ये चाहता है, कोई ये चाहता है, कोई ये चाहता है।
अब देखिए! आप जा रहे हैं कहीं, आपने एक खिड़की में देखा, दुकान में देखा, एक सूट है। अच्छी सूट है। आपने खरीद ली। तो उसका यह मतलब थोड़े ही है कि आप और सूट नहीं खरीदेंगे। दो महीने के बाद, तीन महीने के बाद, एक साल के बाद — हो सकता है वो सूट आपको फिट न हो। फिर आप देखें दूसरी। वो पहन लेंगे, वो खरीद लेंगे।
तो पहली वाली क्यों खरीदी ? क्योंकि उस समय वो सूट आपको सूट कर रही थी। तो आपकी परिस्थितियां बदली तो कुछ और बदल गया। कुछ परिस्थिति बदली तो कुछ और बदल गया। कुछ और बदल गया तो कुछ और बदल गया। तो कुछ और बदल गया तो कुछ और बदल गया। तो कुछ और बदल गया तो कुछ और बदल गया। कुछ और बदल गया तो कुछ और बदल गया। ये तो सारी बदलती रहेंगी। अब एक लहर एक जगह आती है। उसी पर आँख बनाए रखना कि दूसरी भी वहीं आएगी, गलत है। वो वहां नहीं आएगी। वो लहर कहीं और आएगी, कहीं और आएगी, कहीं और आएगी। तो समुद्र की लहरों को गिनने से मतलब ?
यह भवसागर भी एक भवसागर है। इसमें भी लहर आती रहती हैं, जाती रहती हैं, आती रहती हैं। यह तो इसकी प्रकृति है। काहे के लिए गिन रहे हो उन लहरों को ? अगर कुछ करना है इस भवसागर के लिए तो वो करिए कि आपकी नौकाएं लहरों के कारण न डूबें। लहरों को गिनने से क्या फायदा ? अपनी पतवार से लहरों को ऐसे ऊपर से मारने से क्या फायदा ? उससे क्या होगा ? बस! कुछ अगर प्रबंध करना है तो कुछ ऐसा प्रबंध करना है कि जिस नौका में आप बैठें हैं, वो डूब न जाए, इन लहरों के कारण। और ये वही डूबने की बात है, जो अपने आपको अकेलापन महसूस करना — तो यह सब मन का खेल है।
मन के बहुत तरंग हैं, छिन छिन बदले सोय।
एक ही रंग में जो रहे, ऐसा बिरला कोय।।
इस मन की तो लहर आती रहती है। किसी को कुछ दुःख है, किसी को कुछ दुःख है। किसी को कुछ दुःख है, किसी को कुछ दुःख है। दुःख तो सबको परेशान करता है। सुखी कौन है ? सुखी वही है, जो अपने अंदर की चीज को जानता है। जो उसके अंदर विराजमान है, जो उसके अंदर बैठी है, उसको जानता है।