कितना कुछ हम अपने जीवन में चाहते हैं, कितनी चीज़ों के बारें में हम प्रार्थना करते हैं, किन्तु एक चीज़ है जिसकी हमको जीवन में सचमुच जरूरत है। जहाँ तक मेरी बात है तो मैं उस आनंद को हर समय महसूस करना चाहता हूँ। क्योंकि मुझे पता है कि वो मेरे अंदर है। मैं उस आनंद को महसूस करना चाहता हूँ । मैं अपने जीवन को पूरी तरह से उस प्यार से, उस खुशी से, उस आनंद से भर लेना चाहता हूँ । मेरे विचारों से नहीं, मेरी चुनौतियों और परेशानियों से नहीं, अच्छे और बुरे से नहीं। जब मेरे पास वो आनंद की समझ होगी जिसे असली समझ कहते हैं, तब मैं स्पष्टता से देख सकूँगा, तब मैं पहचान सकूँगा जो सच है, जो असली है। तब मैं अपने गुरु महाराज को पहचान पाउँगा।
अपने गुरु महाराज को पहचानने के लिए हर दिन प्रयास करना पड़ता है। ये कोई सरल बात नहीं है। मेरा विश्वास करो, ये कोई सरल बात नहीं है। ये हर उस प्यार से अधिक कोमल है, जो तुमने कभी भी अपने जीवन में महसूस किया है। मुझे जगाने के लिए गुरु महाराज दया से बार-बार कोशिश करते हैं, मैं हर दिन उन्हें धन्यवाद देने के लिए कोशिश करता हूँ । वो कोशिश करते हैं कि मैं भूलूँ नहीं, वो कोशिश करते हैं कि जो मेरे लिए जरूरी है उसे मैं हमेशा याद रखूँ। वो कोशिश करते हैं कि मैं हर स्वांस की कीमत को कभी न भूलूँ।
वो बार-बार याद दिलाते हैं कि ये जीवन कितना अमूल्य है। वो बार-बार याद दिलाते हैं कि आनंद मेरी जिंदगी में कितना मायने रखता है। ये ज्ञान मेरे लिए कितना मायने रखता है। वो बार बार मेरी अँधेरी दुनिया में ज्ञान का दीपक जलाते हैं। वो बार-बार याद दिलाते हैं कि जिसे मैं बाहर ढूंढ रहा हूँ वो मेरे अंदर है। वो चीज जहाँ से मेरी शुरुआत है और जहाँ मेरा अंत है वो भी मेरे अंदर ही है। वो बार-बार याद दिलाते हैं कि किस प्रकार मैं अपने जीवन में हर एक स्वांस का स्वागत करूँ और हर स्वांस को जानू और समझूँ।
यही मेरे आनंद का दरवाजा है। यही मेरे घर का दरवाजा है। यही मेरे मोक्ष का दरवाजा है।
गुरु महाराज, ये मेरी प्रार्थना है कि मुझे समेट लीजिए। मैं बिखरा हुआ हूँ । जब इस माया की चमक को देखता हूँ तो बिखर जाता हूँ । मुझे बटोर लीजिए, और मुझे मेरे ह्रदय के आनंद के करीब रखिए। मुझे ऐसी जगह रखिए जहाँ मेरा हृदय संतुष्ट रहे। जहाँ एक ऐसा सच विराजमान हो, जहाँ ऐसा आनंद हो जिसका मैं अनुभव अपने जीवन में कर सकूँ। मैं उस अनंत को समझने की कोशिश नहीं करना चाहता, बल्कि उसे महसूस करना चाहता हूँ । मुझे बटोर लीजिए। मुझे समेट लीजिए।
मेरी प्रवृत्ति चारों ओर बिखरने की है। जब मैं उस अनंत के अनुभव के करीब होता हूँ , तो मुझे मालूम है कि वहीं मुझे होना चाहिए। वो एक ऐसी जगह है जो परिभाषा से परे है। वो एक ऐसी जगह है जहाँ मुझे उस आनंद और अनंत की तलाश करने की जरूरत नहीं है। वो मेरी कल्पना से दूर है और मेरे ह्रदय के पास है। हम एक दूसरे को खुश रखने के लिए कितनी कोशिश करते हैं, पर गुरु महाराज सचमुच मैं जानता हूँ कि हृदय की असली खुशी क्या है।
तुम आए हो, तुम आ गए, इस जीवन का नृत्य शुरू होना चाहिए। आप अपनी कहानी शुरू होने दीजिए। निराशा से दूर, भय से दूर, सिर्फ आनंद की धुन में, सिर्फ आनंद में। गुरु महाराज की कृपा से उस अनुभव का साक्षात्कार होने दीजिए।
गुरु महाराज मुझे याद दिलाते रहना कि मैं स्वतंत्र रहूँ। अपनी ही इच्छाओं का दास न बन जाऊँ। गुरु महाराज याद दिलाते रहना कि हर दिन मेरे को स्वीकार करना है। हर स्वांस एक उपहार है। याद दिलाते रहना कि मेरे ह्रदय में कितनी दया है, याद दिलाते रहना कि मैं अपने ह्रदय को आभार से भरूँ। याद दिलाते रहना कि मैं अपनी आँखें खोलकर उस आनंद के नज़ारे को देखूं।
श्री प्रेम रावत जी द्वारा लिखित और वर्णित।
धारकों से अनुमति से संबंधित कॉपीराइट और सर्वाधिकार सुरक्षित।