आनंद की चाहत

Jul 12, 2019
परम आनंद की किसी मनुष्य के लिए कोई सीमा नहीं है। चाहे वह शिक्षित हो या अशिक्षित; अमीर हो या गरीब; जवान हो या वृद्ध। किसी के लिए उसकी कोई सीमा नहीं है। वह होता है असली आनंद! वह सबके हृदय में है। उसकी न शुरुआत है और न उसका अंत है। वह अनंत है और आनंद का भण्डार है।

प्रेम रावत:

इस संसार में हम सभी आनंद चाहते हैं। दुनिया हमें बताती है कि जीवन में आनंद कैसे मिलेगा ? यह दुनिया हमें हमारी चाहतों के बारे में बताती है कि हमारी यह भी चाहत है, वह भी चाहत है। पर सचमुच में हमारी असली चाहत क्या है। हम अपना जीवन किस प्रकार सफल कर सकते हैं ?

इस संसार में बनाने वाले ने मनुष्य को उपहार में बहुत कुछ दिया है। उसने हमें आँखें दी हैं, इन आंखों से हम देख सकते हैं। पर हम क्या देखते हैं इन आँखों से, यह हम पर निर्भर करता हैं। इन आँखों से हम सुंदर चीजों को भी देख सकते हैं और बुरी चीजों को भी देख सकते हैं। कानों से हम सुन सकते हैं, पर हम क्या सुनते हैं, यह हम पर निर्भर करता है। इस शरीर में स्वांस आता है, स्वांस जाता है और हमें फिर एक दिन का मौका मिलता है। इस मौके का लाभ उठाना हम पर निर्भर करता है। 

एक कहानी प्रचलित है। एक धोबी था। वह बहुत गरीब था। एक दिन सोने की वर्षा हुई। उस दिन वह अपने घर पर था। उसने देखा कि घर में हर जगह सोने की वर्षा हो रही है। उसने सोचा कि अगर घर में सोने की वर्षा हो रही है तो घाट पर भी सोने की वर्षा हो रही होगी और घर में तो कोई आएगा नहीं क्यों न मैं पहले घाट पर जाऊं वहां पर पहले सोना एकत्र कर लूं। इसी ख्याल के साथ वह घाट पर पंहुचा। जबतक वह घाट पंहुचा, तब तक लोगों ने सारा सोना उठा लिया था। उसने सोचा कोई बात नहीं, मेरे घर में तो सोने की वर्षा हुई है। जैस ही वह अपने घर पंहुचा, उसने पाया कि वहां भी सारा सोना लोगों ने समेट लिया था। तभी से यह कहावत बन गयी, "न घर का रहा न घाट का।"

उस धोबी को जो मौका मिला, वह समय रहते उसका लाभ नहीं उठा सका। कहीं हमारे साथ भी ऐसा न हो जाए। हमारी एक-एक स्वांस में आनंद रुपी अनमोल खजाना भरा है। यह बनाने वाले की तरफ से मनुष्य के लिए उपहार है, पर हम अज्ञानतावश उसे ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं और संसार की अन्य वस्तुओं में उस आनंद को पाने का प्रयत्न कर रहे हैं।

क्या हम सबके हृदय में सचमुच कोई ऐसी चीज विद्यमान है जो हमें सुख और आनंद की ओर ले जाए ? अगर यह सत्य है तो इस संसार के अंदर हम चाहे कुछ भी कर लें, पर जबतक हमारे हृदय में संतुष्टि नहीं होगी, तब तक कोई लाभ नहीं है। एक सरल उदाहरण है कि अगर किसी व्यक्ति के जूते में कंकड़ गड़ रहा है और कंकड़ की वजह से पैर में दर्द का अनुभव हो रहा है! ऐसा व्यक्ति चाहे किसी भी डॉक्टर के पास चला जाए, पर जबतक वह अपने जूते से कंकड़ को नहीं निकाल लेगा, तबतक उसका दर्द खत्म नहीं हो सकता। हम लोगों ने भी अपनी जिंदगी के अंदर बहुत बड़े-बड़े कंकड़-पत्थर डाल रखें है और हृदय की बात कोई नहीं सुनना चाहता है। भगवान ने मनुष्य को हृदय दिया है, क्योंकि उसे इसकी जरूरत थी। अगर सभी चीजें मनुष्य अपनी बुद्धि से ही पकड़ सकता, तो फिर हृदय की कोई जरूरत नहीं होती। मनुष्य अपने हृदय से सिर्फ एक चीज को पकड़ सकता है वह है परम आनंद! कार चलाने के लिए हृदय की नहीं दिमाग की जरूरत होती है उसी प्रकार परमसुख को आप बुद्धि से नहीं समझ सकते, हृदय से समझ सकते हैं। जब हृदय मिला है तो उसका भी इस्तेमाल कीजिये।

हमारे भीतर एक महत्वपूर्ण तत्त्व है और वह है परम आनंद! उस परमसुख शांति और आनंद का स्वयं अनुभव किया जा सकता है। अगर आप जीवित हैं तो इसका सहज ही आनंद उठा सकते हैं उसे खोजने की जरूरत नहीं है। ढूंढने से वह मिलेगा नहीं, क्योंकि वह परमसुख पहले से ही आपके अंदर है, अर्थात आपके पास है।

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