आनंद की खोज

हर एक मनुष्य को किसी न किसी चीज की तलाश है। क्या है वो चीज जिसको खोज रहे हैं लोग ?
Jul 03, 2019
वो चीज जिसकी दुनिया को तलाश है, जिसकी तुमको तलाश है, जिसकी हर एक व्यक्ति को तलाश है, वो तुम्हारे ही घट के अंदर बैठा है।

संसार के अंदर अगर देखा जाये तो हर एक मनुष्य को किसी न किसी चीज की तलाश है। खोज रहे हैं लोग! खोज रहे हैं लोग पर प्रश्न ये उठता है कि किसको खोज रहे हैं ? क्या वो चीज है जिसको खोजा जा रहा है ? किसकी खोज  है ? 

कबीरदास जी का एक भजन है कि —

पानी में मीन पियासी, मोहे सुनि-सुनि आवे हाँसी। 

पहले एक बात स्पष्ट हो जाये कि वो किस मीन की बात कर रहे हैं ? कौन है वो मीन ? कौन है वो मीन ?. . .

भजन : 

पानी में मीन पियासी, पानी में मीन पियासी 

मोहे सुनि-सुनि आवे हाँसी, मोहे सुनि-सुनि आवे हाँसी . . .

 

प्रेम रावत: 

कौन है वो मीन ? कौन है वो पानी ? तुम हो वो मीन। तुम्हारी बात हो रही है। ये भजन कबीरदास जी ने तुम्हारे लिये लिखा है—

भजन : 

                              पानी में मीन पियासी, पानी में मीन पियासी 

                            मोहे सुनि-सुनि आवे हाँसी, मोहे सुनि-सुनि आवे हाँसी  . . . 

 

प्रेम रावत:

आतमज्ञान बिना नर भटके, क्या मथुरा क्या काशी।  

कैसे ? 

मृग-नाभि में है कस्तूरी, बन-बन फिरे उदासी।। 

तुम कभी उदास हुए हो अपनी जिंदगी के अन्दर ?

 

भजन : 

                        आतमज्ञान बिना नर भटके, क्या मथुरा क्या काशी।...

                         मृग-नाभि में है कस्तूरी, बन-बन फिरत उदासी।।

 

प्रेम रावत:

मृग भी तुम हो और ये है वो वन। ये संसार है वो वन। तुम हो वो मृग। तुम्हारे ही अन्दर वो कस्तूरी है। 

                      मृग-नाभि में है कस्तूरी, बन-बन फिरे उदासी।। 

वन में फिरता है चेहरा लटकाए। क्या होगा ? क्या हाल होगा मेरा ? क्या करूंगा मैं ? चिंता लगी रहती है चिंता! सबको चिंता खाती रहती है, खाती रहती है, खाती रहती है, खाती रहती है। 

                               आतमज्ञान बिना नर भटके, 

क्या मतलब हुआ ? तुमको आत्मा का ज्ञान है ? बात आत्मा की नहीं है, बात है आत्मज्ञान की। क्योंकि बिना ज्ञान हुए तुम समझ नहीं पाओगे कि क्या, क्या है। तुम कौन हो ? जो तुम अपने आपको समझते हो तुम वो नहीं हो। जो तुम अपने आपको समझते हो तुम वो नहीं हो! तुम क्या हो ? इसको समझने के लिए तुम्हारे अंदर स्थित जो चीज है जब तक तुम उसको नहीं समझोगे तो तुम समझ नहीं पाओगे कि क्या है। 

 

भजन :

                  जल बिच कमल, कमल बीच कलियाँ, ता पर भँवर लुभासी। 

सो मन बस तिरलोक भयो सब, यती सती संन्यासी। 

                   आतमज्ञान बिना नर भटके, क्या मथुरा क्या काशी।।

        

तो फिर बात आती है कि — 

                     जल बिच कमल, कमल बीच कलियाँ, ता पर भँवर लुभासी। 

भंवर कौन है ? हम सब लोग हैं। भौंरा है उस कमल के आगे-पीछे, आगे-पीछे, आगे-पीछे दौड़ रहा है। 

                       जल बिच कमल, कमल बीच कलियाँ, ता पर भँवर लुभासी। 

                         सो मन बस तिरलोक भयो सब, यती सती संन्यासी। 

इसमें सब आ गये। सबका मन भाग रहा है। विषयों में भाग रहा है। सब भाग रहे हैं। सब भाग रहे हैं, सब दौड़ रहे हैं। सब खोज रहे हैं। जैसे भौंरा खोजता है न कि कहां है वो मीठा-मीठा जो पानी है उस कमल के अंदर, उसको ढूंढता है। कमल कभी इधर जाता है, कभी उधर जाता है। भौंरा जो है उस कमल के अंदर, जो वो मीठा — उस फूल के अंदर जो मीठा-मीठा शहद है उसका, उसको पाने के लिए कभी इधर जाता है, कभी उधर जाता है, कभी इधर जाता है, कभी उधर जाता है। और तुम्हारा भी यही हाल बताया है। तुम भी, उस माया रूपी पानी का तुमको स्वाद लग गया। अब जहां वो मिले वहीं तुम जाते हो। वहीं तुम भंवराते हो, वहीं तुम नखरे करते हो, सबकुछ वहीं होता है। और ऐसे ही मन तीनों लोकों में घूमता रहता है, घूमता रहता है, घूमता रहता है, घूमता रहता है। और उसमें कौन आ गया ? 

सब आ गये — यती, सती, सन्यासी। 

विधि हरि हर जाको ध्यान धरत हैं,  

निश दिन — हर एक दिन। 

मुनिजन सहस अठासी। 

सोई हंस तेरे घट माहीं, 

तेरे, तेरे, तेरे — हर एक व्यक्ति के लिए कहा है। 

सोई हंस तेरे घट माहीं, अलख. . . 

जिसकी कोई परिभाषा नहीं है। जिसके बारे में तुम किताब नहीं लिख सकते। वही अलख पुरुष अविनाशी। तुम बताओ, तुम किस चीज को जानते हो जो अविनाशी हो ? जहां तक तुम देख सकते हो, चंद्रमा को देखते हो, सूरज को देखते हो, तारों को देखते हो, पेड़ों को देखते हो, धरती को देखते हो, आकाश को देखते हो, इन सबका नाश होना है। ये मैं नहीं कह रहा हूं। ये सबका नाश होना है। ये सारे वैज्ञानिक कहते हैं कि इन सबका नाश होगा, क्योंकि जो बना है उसका नाश जरूर होगा। परंतु ऐसी चीज जो बनी नहीं, जो अविनाशी है, जिसका कभी नाश नहीं होगा, तुम जानते हो ऐसी चीज ? क्योंकि वो चीज जिसकी दुनिया को तलाश है, जिसकी तुमको तलाश है, जिसकी हर एक व्यक्ति को तलाश है, वो तुम्हारे घट के अंदर ही बैठा है।

 

भजन :

                       है घट में पर दूर बतावें, दूर की बात निरासी। 

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