प्रेम रावत:
जब तुम छोटे बच्चे थे और चलना सीख रहे थे, तुम गिरे कि नहीं गिरे ? तुम्हारा उद्देश्य क्या था ? चलना। पर गिरे। फेल हुए कि नहीं हुए? असफल हुए या नहीं हुए? परंतु तुमने असफलता को कभी स्वीकार नहीं किया। फिर दोबारा खड़े हुए और आज क्या करते हो ? करने से पहले — कोशिश करने से पहले सोचते हो किसके बारे में ? असफलता । सफलता के बारे में नहीं, असफलता के बारे में। और जैसे ही सोचते हो सफलता के बारे में, करेंगे ही नहीं। पहले असफलता।
पर कोशिश तो करो! जैसे बच्चा करता है खड़ा होके और जब पहले वो कदम लेता है, उसको मालूम ही नहीं कि वो चल भी रहा है। बस— त, त, त, त! उसको दिशा का कोई ज्ञान नहीं है। उसके जीवन के अंदर उस समय ऐसी प्यास है चलने के लिए, ऐसी चाह है चलने के लिए, जो उसको किसी ने सिखाया नहीं है। क्योंकि वो समझता नहीं है अभी बात — जरूरी क्या है, जरूरी क्या नहीं है? वो चल देगा। चल देगा और अगर असफल भी हुआ, उसको स्वीकार नहीं करेगा। फिर खड़ा होगा। यह हिम्मत नहीं है तो क्या है? और जब इतनी छोटी-सी उम्र में तुम्हारे पास इतनी हिम्मत थी, आज तुम्हारी हिम्मत को क्या हो गया है ?
मतलब, तुम जीवित भी हो और तुमने जीवन को त्याग भी दिया है। अभी मौत नहीं आई है, पर जीवन को भी तुमने त्याग दिया है। ‘‘क्या होगा मेरा ? असफलता, असफलता, असफलता, असफलता!
तुम जीवित हो। जबतक तुम जीवित हो, तुम्हारे पर कृपा हो रही है। और क्या चाहिए तुमको ? और क्या चाहिए ? सब मतलब, यह तो — इसके बाद तो जो भी तुम इस दुनिया के अंदर करना चाहते हो, यह संभव है। कोई असंभव नहीं है। संभव है! परंतु सबसे पहले क्या चीज चाहिए ? तुम्हारा जीना होना बहुत जरूरी है। अगर तुम जीवित नहीं हो तो फिर सबकुछ असंभव है और तुम जीवित हो तो फिर सब संभव है। इसके लिए हिम्मत की जरूरत है। हिम्मत भी तुम्हारे अंदर है।
तो कुछ भी हो, कुछ भी हो, तुमको जीना है। जबतक ये स्वांस आ रहा है तुम्हारे अंदर, तुमको जीना है। और हारे हुए की तरह नहीं जीना है। जीते हुए की तरह जीना है। यह नहीं है कि तुम्हारी क्या उम्र है! यह भी एक असफलता का बहाना है।
और लोग कहते हैं, ‘‘जी! हमारी याद्दाश्त चली गई।’’ जैसे-जैसे... तुम्हारी याद्दाशत कहीं नहीं गई। तुमको अभी भी अपना बचपना याद है। तुमको अपने कपड़ों के बारे में याद है कि कैसे-कैसे कपड़े तुमने पहने। तुमको स्कूल के बारे में याद है। तुम्हारे... सबकुछ वहीं का वहीं है। बात यह है कि यह जो भूलने की बात होती है मनुष्य की, यह एक बहुत बड़ी ट्रिक है। और ट्रिक यह है कि तुम जब इस उम्र के हो गये हो तो बहुत सारी चीजें तुमको याद करनी पड़ती हैं। जब तुम छोटे थे, तुमको बहुत कम याद करने की जरूरत थी। तो याद करने में आसानी रहती थी कि ‘‘यहां ये है। वहां ये है।” अब ‘‘उसको फोन करना है, वहां ये जाना है, ऐसा करना है, वैसा करना है।’’ ये तो इतनी सारी चीजें हैं कि दिमाग तो अपने आप — चाहे तुम 18 साल के भी हो, पर अगर इतनी चीजें हो जाएंगी तो तुमको याद नहीं रहेंगी। चाहे किसी भी —यह मैं मनगढ़त नहीं कह रहा हूं। यह वैज्ञानिक फैक्ट है। यह वैज्ञानिक बात है। इस पर रिसर्च की है विज्ञान के लोगों ने, साइंसटिस्ट ने और इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि कुछ होता-जाता नहीं है। सब वैसा का वैसा ही है।
तो अब शरीर है। अब लोग कहते हैं, ‘‘जी! हमको चलने में दुख होता है...या…।’’
तो कोई बात नहीं। आनंद लेने के लिए, इस जीवन का आनंद लेने के लिए मील, दो मील, तीन मील चलने की जरूरत नहीं है। कहीं भी हो तुम, अपने खाट पर ही बैठे हो, तो जो अंदर का आनंद है, इसको तो तुम ले सकते हो।
इसमें कोई शॉर्टकट नहीं है। यह उनके लिए है, जो आँखें खोल करके — यह उनके लिए है, उस बच्चे के लिए है, जो असफलता को स्वीकार करना ही नहीं चाहता है। न वो सीखना चाहता है उस असफलता को, न उसको स्वीकार करना चाहता है। जितनी बार वो गिरेगा, उसको कोई गम नहीं है। वो फिर खड़ा होगा, फिर चलेगा और एक दिन ऐसा आएगा कि चलना उसके लिए बहुत आसान हो जाएगा। वही चीज, जो असंभव थी — क्योंकि जब वो पहले-पहले सीखता है न, तो उसके पैर काबिल नहीं हैं उसका वजन उठाने के लिए। धीरे-धीरे उसकी जो मसल्स हैं, इनको स्ट्रांग होना पड़ेगा। और जो बैलेंस है, वो उसके पास नहीं है, पर धीरे-धीरे उन सारी चीजों को वो सीखता है। और जब सीख लेता है तो वो चलना शुरू करता है।
अब हम बड़े हो गए हैं, परंतु वो चीजें, हमारे लिए वो कानून, अभी बदला नहीं है। जिस भी चीज में हमने असफलता को स्वीकार कर लिया, उसमें हम असफल जरूर होंगे। पर जब असफलता को स्वीकार नहीं किया, हिम्मत से आगे चले, हिम्मत से आगे बढ़े, तो वो सफलता भी जरूर मिलेगी। ये बात है। ये बात है!
असफलता को कभी स्वीकार न करें।