प्रेम रावत:
प्रत्येक मनुष्य के जीवन में तीन बातें हैं – एक तो जन्म हुआ, एक जीवन है और एक अंत होगा। एक हो गया। इसीलिए तो यहां हैं। अगर जन्म ही नहीं हुआ होता तो संसार में आते कैसे ? एक हो गया है, एक हो रहा है, एक होने के लिए बाकी है। एक और जरूरी बात है – क्या आप जानते हैं कि आप में क्या है ? क्या आप समझते हैं कि आप के ऊपर किस प्रकार से बनाने वाले ने कृपा की है ? अथाह! जिसका कोई अंत नहीं है, अथाह! अथाह! कृपा से आपको यह मनुष्य शरीर मिला है।
हम बात करते हैं मनुष्य शरीर की, हम बात करते हैं जीवित, जीते-जागते मनुष्यों की...आज की बात कर रहा हूं मैं, क्योंकि ये स्वांस आया, आज आया, कल आएगा। अगर ये कृपा रही – जिस कृपा के कारण ये स्वांस आज आया तो कल भी आयेगा। पर मुझको मालूम नहीं, क्या बढ़िया प्रकृति बनाई है कि धन तो दे दिया, पर कितना है, ये नहीं मालूम और खर्च करोगे। चाहे तुम चाहो या न चाहो, खर्च तो ये होगा। परंतु किस चीज पर खर्च करना है, ये तुम्हारे ऊपर निर्भर है। यह समझने की बात है।
सबसे बड़ी बात एक यह है कि क्या आप अपने जीवन में इस चीज को स्वीकार करते हैं कि आपके अंदर ही परमानन्द है। परम आनन्द आपके अंदर है।
दूसरी बात, इसको जानने की प्यास आपको कैसे लगी ? इसके बारे में भी आप समझिए। यह आपकी करनी नहीं है। ये स्वांस, इस आनंद की प्यास मनुष्य के अंदर स्वाभाविक रूप से है। यह आपका स्वभाव है। इसको आप बदल नहीं सकते। जब आप खुश होते हैं तो मुस्कुराते हैं। इसको आप बदल नहीं सकते। जब आपको दुःख होता है तो रोते हैं। इसको आप बदल नहीं सकते। कोशिश करते हैं लोग। यह आपका स्वभाव है कि जब आप सुंदर चीज के दर्शन करते हैं तो आपको आनंद मिलता है। यह आपका स्वभाव है। इसको सीखने की जरूरत नहीं पड़ती। यह सिखाने की जरूरत नहीं है। सीखने की जरूरत नहीं है। इसके लिए स्कूल जाने की जरूरत नहीं है, यह आपका स्वभाव है।
तो आपका स्वभाव क्या है ? आपका स्वभाव है आनंद से, परमानंद से प्रेम करना। आपका स्वभाव है शांति में रहना। एक शांति वह है, जो परिस्थितियों पर निर्भर है। जब बाहर सबकुछ ठीक होगा, तब वह शांति महसूस होगी। पर एक शांति वह है कि चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, मनुष्य अपने अंदर उस शांति का अनुभव कर सकता है। उस शांति में ही आनंद है और उस आनंद में है वह शांति!
वास्तव में आपका स्वभाव है, अपने जीवन को सफल बनाना। चाहे आप न भी बनाना चाहें, फिर भी आपका स्वभाव है। इसको आप बदल नहीं सकते। तो मैं अपने स्वभाव को समझूं। अपनी प्यास को समझूं। बिना प्यास के पानी की कोई कीमत नहीं है। जहां प्यास लगी, पानी की कीमत अपने आप पता चल जाती है। प्रश्न यह है कि क्या आपको उस शांति की, उस परमानंद की प्यास है या नहीं ? अगर है और आप अपनी प्यास बुझाना चाहते हैं तो मैं आपकी मदद कर सकता हूं।