मेरी सारी जरूरतें तो कभी पूरी नहीं होंगी, परन्तु मैं अपने जीवन में अपनी असली जरूरत को तो पूरा करते जाऊं!
आज सारा संसार कोशिश कर रहा है कि मनुष्य को दयालु बनाया जाए। लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर रहें। परन्तु अंदर की संतुष्टि के लिए कोई कोशिश नहीं कर रहा है। जबतक अंदर की संतुष्टि नहीं होगी, ये चीजें तो हो ही नहीं सकती हैं।
प्रेम रावत:
यह संसार जरूरतों के आधार पर चल रहा है। मनुष्य की साधारण जरूरतें हैं। भूख लगती है तो खाना चाहिए। प्यास लगती है तो पानी चाहिए। जब आदमी थक जाता है तो उसे विश्राम चाहिए। नींद आती है, सोने के लिए जगह चाहिए। इन जरूरतों के कारण संसार में कितना बिज़नेस होता है। मनुष्य ही इन जरूरतों को बनाता है। इन जरूरतों को पूरा करने के लिए हम पैसा देते हैं।
हमारी प्रवृत्ति है कि हम जीवन में एक साथ सबकुछ पा लेना चाहते हैं और अपने विचारों के साथ दुनिया में आगे बढ़ते हैं। कई बार हम अपने विचारों से दुनिया की हर एक चीज को पकड़ना चाहते हैं, परन्तु कुछ चीजें ऐसी हैं कि उनका सिर्फ अनुभव किया जा सकता है। एक साधारण उदाहरण है — जैसे भोजन। भोजन क्यों आवश्यक है ? रसोई क्यों आवश्यक है ? क्योंकि मनुष्य को खाने की जरूरत है। अगर मनुष्य को भूख नहीं लगती तो वह क्यों खायेगा ? जब मनुष्य को भूख लगती है तो उसे वह महसूस होती है। जब उसके शरीर को उन पदार्थों की जरूरत पड़ती है, जिनसे उसके शरीर का संचालन हो तो उसके लिए बनाने वाले ने मनुष्य में भूख भी बनायी। मनुष्य को भूख लगती है तो भोजन चाहिए। भोजन मिल सके, इसलिए मनुष्य ने रसोई की रचना की, ताकि वहां खाना बन सके।
मनुष्य का संगठन बल है — सोसाइटी। वही बोझ डालती है कि तुम्हारी भी कुछ जरूरतें हैं। सब लोग जरूरतों को पूरा करने के लिए हर दिन कुछ न कुछ करते रहते हैं। वे जरूरतें, जो मनुष्य की निजी जरूरतें हैं, उन्हें पूरा करने के लिए मनुष्य कभी परेशान नहीं होता है। परन्तु वे जरूरतें, जो सोसाइटी ने, जो इस दुनिया ने हमारे ऊपर डाल रखी हैं, उनको पूरा करने के लिए मनुष्य जरूर परेशान होता है। परन्तु क्या कभी आपने सोचा है कि आपकी असली जरूरत क्या है ? लोग अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए लगे हुए हैं, परन्तु यह कभी नहीं सोचते हैं कि "यह मेरा जीवन है, मैं जिंदा हूं, मेरे अंदर स्वांस आता है, मेरे अंदर स्वांस जाता है। परन्तु एक समय आएगा जब मैं जिंदा नहीं रहूंगा। मुझे नहीं मालूम कि वह समय कब आएगा, पर इतना जरूर मालूम है कि आएगा। और जबतक मैं जीवित हूं, मेरी असली जरूरत क्या है ? मेरी सारी जरूरतें तो कभी पूरी नहीं होंगी, परन्तु मैं अपने जीवन में अपनी असली जरूरत को तो पूरा करते जाऊं!"
इस संसार में सुनाने वालों की कमी नहीं है। सब सुनाते हैं, "खाली हाथ आये थे और खाली हाथ जाना है।" अगर ऐसा ही है तो फिर बनाने वाले ने हाथ ही क्यों दिए ? जब खाली हाथ आये थे और खाली हाथ जाना है, तो इन सबका का क्या फायदा ? इस शरीर का क्या फायदा ? सच्चाई क्या है ? एक समय था कि कुछ नहीं था और एक समय आएगा कि कुछ था, जो अब है और एक समय आएगा कि कुछ नहीं रहेगा। अपनी असली जरूरत को पूरा कीजिये और आपकी असली जरूरत क्या है, यह आप अपने हृदय से पूछिए, क्योंकि अनुभव का कोई विकल्प नहीं होता।