असली तोहफा

तुम्हारे लिए भी एक तोहफा है। क्या है वो तोहफा ? एक अलग सोचने का तरीका।
Oct 29, 2019
तुम जीवित हो। जबतक तुम जीवित हो, तुम्हारे पर कृपा हो रही है। अगर तुम जीवित नहीं हो तो फिर सबकुछ असंभव है। और तुम जीवित हो तो फिर सब संभव है।

इस संसार के अंदर जब लोगों से यह चर्चा होती है कि ऐसी कोई चीज है, शांति भी कोई चीज है, तो सबसे पहले लोग यही कहते हैं कि ‘‘जी! यह तो असंभव है!’’

 

हम कहते हैं, क्यों असंभव है ? काहे के लिए असंभव है ?

 

अब लोगों के साथ यह है कि ये कैसे करोगे ?

 

तो हम लोगों से यही कहते हैं कि भाई! अगर ये जो अशांति है इस संसार के अंदर, अगर वो भेड़ों की वजह से हो या बकरी की वजह से हो या बंदरों की वजह से हो तो ये तो मुश्किल हो जायेगा। क्योंकि भेड़ के साथ कैसे बात करेंगे कि तू क्रांति मत फैला ? या बकरी से कैसे कहें कि तू क्रांति मत फैला ? परंतु ये सब चक्कर मनुष्य का बनाया हुआ है। और मनुष्य एक ऐसी चीज है कि अगर उसकी समझ में आ गया तो वो बदल सकता है।

 

जैसे रत्नाकर डाकू था, जब उसकी समझ में आया तो वह भी बदल गया। तो बड़े-बड़े भी बदल सकते हैं, अगर उनकी समझ में आ जाए। तो मैं तो ये कहता हूं उन लोगों से कि यह तो बड़ी खुशखबरी है कि ये मनुष्य ने फैलाई है। क्योंकि कम से कम अगर मनुष्य ने फैलाई है तो वो उसको खत्म भी कर सकता है, अगर उसकी समझ में आ जाए। तो हम तो दुनिया को समझाने की कोशिश कर रहे हैं। और कई जगह मैंने कहा। मैंने कहा कि मैं क्या लाया हूं तुम्हारे लिए ? जब टीवी पर इन्टरव्यू होता है या रेडियो पर इन्टरव्यू होता है — क्या लाया हूं तुम्हारे लिए ? तुम्हारे लिए भी एक तोहफा है। क्या है वो तोहफा ? एक अलग सोचने का तरीका। क्योंकि आज जो भी मनुष्य सोच रहा है, जब उसको दुःख होता है तो वो किसकी तरफ उंगली फैलाता है ? भगवान की तरफ कि भगवान उसको दुःख दे रहा है। ये उसके कर्मों का फल है।

 

अब कर्म क्या होते हैं, तुमको कैसे मालूम ? कर्म होता क्या है, तुमको कैसे मालूम ? और जो तुम कहते हो कि ये पिछले जन्मों का फल है, पिछले जन्मों का ये है, ये तुमको कैसे मालूम ?

 

किसी ने कभी कह दिया। मां-बाप ने कह दिया — पिछले कर्मों का फल है। तुमने स्वीकार कर लिया। उसके बाद तोते की तरह रटते रहे — पिछले कर्मों का फल है, पिछले कर्मों का फल है, पिछले कर्मों का फल है। तकदीर का फल है, तकदीर का फल है, तकदीर का फल है। और आधे से ज्यादा अगर तुम अपनी समस्याओं को दूर करना चाहते हो तो बैठकर के यह सोचो कि कितनी चीज तुमने रट लगाकर सीखी हुई हैं और कितनी तुमने अनुभव से सीखी हुई हैं। जो रट लगाकर सीखी हुई हैं चीजें, उसके बारे में तुम कुछ कह नहीं सकते। जैसे पानी को — भाषा जो है न, वो भी रट लगाकर सीखी जाती हैं। उसका कोई तुक नहीं है भाषा का। तुमने सुना अपने मां-बाप को बोलते हुए और तुमने भी सीख लिया।

 

तो पानी को पानी क्यों कहते हैं ? नहीं मालूम न ?

 

एक को एक क्यों कहते हैं ? नहीं मालूम।

 

क्योंकि ये सब रट से सीखा है। और अनुभव से क्या सीखा है ?

 

मां ने कहा, ‘‘इसे मत छू, यह गरम है।’’ यही पर्याप्त था तुम्हारे लिए ? जब तुम छोटे थे, मां ने कहा, ‘‘इसको मत छू, यह गरम है।’’ यही पर्याप्त था ?

 

छुआ! जब छुआ, तब अहसास हुआ, यह गरम है। इससे जलता है, इससे दर्द होता है। उसके बाद अनुभव से तुमने सीखा और आज तुम भी लोगों को सिखाते हो, ‘‘इसको मत छू, यह गरम है। इसको मत छू, यह गरम है।’’ तो ये बात है सारे संसार की। किसी ने किताब से पढ़ लिया, रट लगा ली — ततततततत...! मतलब क्या है उसका ?

 

जब महाभारत खत्म हो गई और अर्जुन अपने महल में चले गया सब लड़ाई-वड़ाई खत्म हो गई तो भगवान कृष्ण एक दिन अर्जुन से मिलने के लिए गए। तो अर्जुन से मिलने के लिए गए तो कहा, ‘‘भाई! क्या हालचाल है ?’’

 

कहा, सब ठीक है।

 

कहा, क्या हो रहा है ?

 

कहा, नहीं, सब ठीक है। इतने साल वनवास में रहे। बड़ा अच्छा लगता है, महल में रहते हैं, एक ही जगह रहते हैं। सब हैं। सबकुछ बढ़िया है।

 

कहा, कोई कष्ट नहीं, कोई दुविधा नहीं ? कोई प्रश्न नहीं ?

 

कहा, एक प्रश्न है।

 

कहा, क्या ?

 

‘‘जी! आप ने वो बताया था न वो गीता, जो कुछ भी ज्ञान दिया था, वो मैं भूल गया। वो मैं भूल गया तो कृपा करके मेरे को दुबारा बता दो!’’

 

उसमें दो बातें हैं। एक तो वो फर्स्ट नॉलेज रिव्यू था — पहला नॉलेज रिव्यू, वो भूल गया। और जहां तक रही गीता की बात तो भगवान कहते हैं, ‘‘मेरे को भी याद नहीं है। अब जो सुना दिया तेरे को, उस समय सुना दिया। अब यह थोड़े ही है कि मैंने याद करके सुनाया।’’ और यहां लोग लगे हुए हैं उसको याद करने में। सीखने में नहीं, समझ में नहीं आयेगी बात, पर उसको रट — तोते की तरह उसको सीखने में लोग लगे हुए हैं। तो जबतक ये चक्कर तुम्हारी जिंदगी में भी चलता रहेगा, तो तुम आगे थोड़े ही जा पाओगे ?

 

एक कहावत है अंग्रेजी में कि ‘‘उड़ने के लिए पर नहीं चाहिए। उड़ने के लिए पर नहीं चाहिए, पर जो जंजीरों ने तुमको बांध के रखा हुआ है, इनको काटने की जरूरत है। अगर ये कट जाएं तो तुम अपने आप ही उड़ने लगोगे।’’

 

और ये जंजीरे हैं किस चीज की ?

 

यही सब भावनाओं की, जो लोगों ने बना रखी हैं। अनुभव किसी का कुछ है नहीं।

 

आज मेरे से पूछा गया प्रश्न में। तो जो इन्टरव्यू हो रहा था, उसमें पूछा कि ‘‘आप भगवान से मिले हैं ?’’

 

मैंने कहा, मिलने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता है। जो कभी अलग ही नहीं हुआ हो, उससे मिलना क्या है ? जो कभी अलग ही नहीं हुआ, उससे मिलेंगे कैसे ? वो तो हमेशा ही साथ है। मैंने कहा, अनुभव की बात है। अगर अनुभव की बात करो, अनुभव है ? तो हां, अनुभव है।

 

तो उसने कहा, कैसे ? आपको कैसे मालूम कि भगवान है ?

 

मैंने कहा कि —

नर तन भव बारिधि कहुं बेरो।

सन्मुख मरूत अनुग्रह मेरो।।

 

यह शरीर इस भवसागर को पार करने का साधन है और इस स्वांस का आना-जाना ही मेरी कृपा है। तो मैंने कहा, जब तुम्हारा स्वांस अंदर आता है और जाता है, इसका मतलब है क्या ? भगवान है। क्योंकि यही उनकी कृपा है। और यही कृपा है। इसी से शरीर चलता है।

 

तो बात यह है। अब ये सारा जो कुछ भी हो रहा है इस संसार के अंदर — और क्या फिर — फिर मनुष्य दुःखी होता है। फिर मनुष्य दुःखी होता है तो कहता है, ऐसे मेरे को दुःख क्यों मिल रहा है ? मैं ऐसा क्यों नहीं हूं ? मेरे साथ ऐसा क्यों नहीं है, मेरे साथ ऐसा क्यों नहीं है ? ये कब होगा ? ये कब होगा ?

 

तो जबतक हम समझ नहीं पाएंगे अपने जीवन को, तबतक तो दुःख आएगा ही आएगा। और जिस दिन समझ लेंगे कि हमको मांगने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि जो हम मांग भी नहीं सकते हैं, वो हमको मिल रहा है। और किस रूप में मिल रहा है ? वो इस स्वांस के रूप में मिल रहा है। अब कैसे मांगें इसको ? हम तो इसके बारे में सोच भी नहीं सकते हैं।

 

सबसे पहले तुम मनुष्य हो! मनुष्य के नाते तुम्हारे अंदर ये स्वांस आ रहा है, जा रहा है। तुमको ज्ञान के द्वारा ये विधि मिली है कि तुम उस चीज को समझ सको, उसका तुम अनुभव कर सको। जब तुम उसका अनुभव करते हो तो क्या मिलता है ? उसके बदले में जो प्रसाद तुम्हें मिलता है, उसको शांति कहते हैं। उस शांति का प्रसाद जो तुमको मुफ्त में दिया जा रहा है, उसको ग्रहण करो! उसको फेंको मत! उसको ग्रहण करो!

 

क्योंकि लोग हैं, शंका करना चाहते हैं। शंका करना चाहते हैं! क्यों शंका करना चाहते हैं ? ये तुम्हारे में आदत कहां से आयी ?

 

याद है, जब तुम छोटे थे ? ‘‘देख के काम कर! गलती मत कर!’’

 

ये बात भी तुम्हारे दिमाग में डाली हुई है कि तुमको शंका करनी चाहिए। और तुम ऐसे भक्त हो ‘रट’ के, रट लगाने के — हर एक चीज पर शंका करते हो। ‘‘भगवान है या नहीं है ? मुझे मंदिर जाना चाहिए, नहीं जाना चाहिए ?’’

 

वही — जब इम्तिहान देने के लिए जाते हैं — क्या मैंने सही जवाब दिया ? क्या मतलब, सही जवाब दिया ? क्या मतलब, सही जवाब दिया ? आता था या नहीं आता था ? आता था तो आता था। नहीं आता था तो नहीं आता था। पर शंका करने की क्या जरूरत है ? जब घर में खाना बनाते हो तो बैठे-बैठे शंका करते रहते हो ? ना! चखते हो उसको कि नमक ज्यादा है या कम है — चखते हो! शंका का तो सवाल ही नहीं है! ये थोड़े ही है कि बैठे-बैठे, ‘‘दाल गल गयी, नहीं गली ? टाइम तो हो गया, पर हो सकता है, नहीं गली हो!’’ नहीं ? उसको उठाते हैं — गरम-गरम को ही उठाते हैं और चावल को देखते हैं कि वो बन गया ? भात बन गया या नहीं ? नहीं ?

 

तो फिर जब ये ज्ञान की बात आती है तो फिर शंका क्यों है ? अपने हृदय से पूछो! अपने अनुभव से पूछो!

 

तुम जीवित हो। जबतक तुम जीवित हो, तुम्हारे पर कृपा हो रही है। और क्या चाहिए तुमको ? और क्या चाहिए ? ये तो — इसके बाद तो जो भी तुम इस दुनिया के अंदर करना चाहते हो, यह संभव है। कोई असंभव नहीं है। संभव है! परंतु सबसे पहले क्या चीज चाहिए ? तुम्हारा जीना होना बहुत जरूरी है। अगर तुम जीवित नहीं हो तो फिर सबकुछ असंभव है। और तुम जीवित हो तो फिर सब संभव है। इसके लिए हिम्मत की जरूरत है। हिम्मत भी तुम्हारे अंदर है। हिम्मत भी तुम्हारे अंदर है! और जो कुछ भी तुम चाहते हो, इसके बारे में भी सोचो!

 

तुम वहां बैठे-बैठे सोच रहे होगे, कैसे करेंगे जी ? कैसे करेंगे जी ? कैसे करेंगे जी ? वही संशय है न ? ‘‘कर पाएंगे, नहीं कर पाएंगे! कर पाएंगे....।’’

 

अब इसका उदाहरण देता हूं मैं। और लोगों को बड़ा पसंद आता है ये उदाहरण। इन्टरव्यू में मैंने बहुत बार दिया हुआ है कि जब तुम छोटे बच्चे थे और चलना सीख रहे थे, तुम गिरे कि नहीं गिरे ? तुम्हारा उद्देश्य क्या था ? चलना। पर गिरे। फेल हुए कि नहीं हुए ? असफल हुए या नहीं हुए ? परंतु तुमने असफलता को कभी स्वीकार नहीं किया। फिर दोबारा खड़े हुए। और आज क्या करते हो ? करने से पहले — कोशिश करने से पहले सोचते हो किसके बारे में ? असफलता — सफलता के बारे में नहीं, असफलता के बारे में। और जैसे ही सोचते हो सफलता के बारे में, करेंगे ही नहीं। पहले असफलता! पहले असफलता!

 

यही तो, यही तो बीमारी है सारी दुनिया को। पहले असफलता। पर कोशिश तो करो! जैसे बच्चा करता है खड़ा होकर — जब वह पहला कदम लेता है, उसको मालूम ही नहीं कि वह चल भी रहा है। बस — त, त, त, त! उसको दिशा का कोई ज्ञान नहीं है। उसके जीवन के अंदर उस समय ऐसी प्यास है चलने के लिए, ऐसी चाह है चलने के लिए, जो उसको किसी ने सिखाया नहीं है। क्योंकि वह समझता नहीं है अभी बात — जरूरी क्या है, जरूरी क्या नहीं है ? वह चल देगा। चल देगा। और अगर असफल भी हुआ, उसको स्वीकार नहीं करेगा। फिर खड़ा होगा। यह हिम्मत नहीं है तो क्या है ? और जब इतनी छोटी-सी उम्र में तुम्हारे पास इतनी हिम्मत थी, आज तुम्हारी हिम्मत को क्या हो गया है ?

 

मतलब, तुम जीवित भी हो और तुमने जीवन को त्याग भी दिया है। अभी मौत नहीं आई है, पर जीवन को भी तुमने त्याग दिया है। क्या होगा मेरा ?

 

जो असफलता को स्वीकार करना ही नहीं चाहता है। न वह सीखना चाहता है उस असफलता को, न उसको स्वीकार करना चाहता है। जितनी बार वह गिरेगा, उसको कोई गम नहीं है। वह फिर खड़ा होगा, फिर चलेगा और एक दिन ऐसा आएगा कि चलना उसके लिए बहुत आसान हो जाएगा।

 

- प्रेम रावत

Log In / Create Account
Create Account




Log In with





Don’t have an account?
Create Account

Accounts created using Phone Number or Email Address are separate. 
Create Account Using
  
First name

  
Last name

Phone Number

I have read the Privacy Policy and agree.


Show

I have read the Privacy Policy and agree.

Account Information




  • You can create a TimelessToday account with either your Phone Number or your Email Address. Please Note: these are separate and cannot be used interchangeably!

  • Subscription purchase requires that you are logged in with a TimelessToday account.

  • If you purchase a subscription, it will only be linked to the Phone Number or Email Address that was used to log in at the time of Subscription purchase.

Please enter the first name. Please enter the last name. Please enter an email address. Please enter a valid email address. Please enter a password. Passwords must be at least 6 characters. Please Re Enter the password. Password and Confirm Password should be same. Please agree to the privacy policy to continue. Please enter the full name. Show Hide Please enter a Phone Number Invalid Code, please try again Failed to send SMS. Please try again Please enter your name Please enter your name Unable to save additional details. Can't check if user is already registered Please enter a password Invalid password, please try again Can't check if you have free subscription Can't activate FREE premium subscription Resend code in 00:30 seconds We cannot find an account with that phone number. Check the number or create a new account. An account with this phone number already exists. Log In or Try with a different phone number. Invalid Captcha, please try again.
Activate Account

You're Almost Done

ACTIVATE YOUR ACCOUNT

You should receive an email within the next hour.
Click on the link in the email to activate your account.

You won’t be able to log in or purchase a subscription unless you activate it.

Can't find the email?
Please check your Spam or Junk folder.
If you use Gmail, check under Promotions.

Activate Account

Your account linked with johndoe@gmail.com is not Active.

Activate it from the account activation email we sent you.

Can't find the email?
Please check your Spam or Junk folder.
If you use Gmail, check under Promotions.

OR

Get a new account activation email now

Need Help? Contact Customer Care

Activate Account

Account activation email sent to johndoe@gmail.com

ACTIVATE YOUR ACCOUNT

You should receive an email within the next hour.
Click on the link in the email to activate your account.

Once you have activated your account you can continue to log in

Do you really want to renew your subscription?
You haven't marked anything as a favorite so far. Please select a product Please select a play list Failed to add the product. Please refresh the page and try one more time.