प्रेम रावत:
आइंस्टाइन का नाम सुना है कभी ? बहुत बड़ा वैज्ञानिक, साइन्टिस्ट था वो।
उसने कहा है कि "जिस चीज की रचना हुई है, उसको खत्म भी होना पड़ेगा।"
तो ये सारे ब्रह्माण्ड की रचना हुई है और इस सबको खत्म होना पड़ेगा। इसमें पृथ्वी भी आ गई, इसमें सूरज भी आ गया, इसमें चन्द्रमा भी आ गया। सबकुछ, जो तुमको दिखाई देता है और नहीं दिखाई देता है ब्रह्माण्ड में, जब ऊपर की तरफ देखते हो — सब खत्म होगा! पानी भी खत्म होगा, हवा भी खत्म होगी, नमक भी खत्म होगा, धरती भी खत्म होगी। मतलब सबकुछ खत्म होगा! इसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। मैं नहीं कर सकता।
अविनाशी वो है कि ये सबकुछ खत्म हो जायेगा, फिर भी वह रहेगा। और अविनाशी न मर्द है, न औरत है, न उसके पैर हैं, न उसका सिर है, न उसको सिर की जरूरत, न उसको पैर की जरूरत, न उसको नाखून की जरूरत, न उसको आँख की जरूरत, न उसको कान की जरूरत। क्योंकि जितनी भी सृष्टियां आकर चली जाएं, वो रहेगा। जो था, जो है और जो रहेगा! जिसका कभी नाश नहीं होगा, उसे कहते हैं — अविनाशी
तुम्हारा दिमाग तो सिर्फ इतना ही बड़ा है। तुम्हारा दिमाग तो सिर्फ इतना ही बड़ा है और जिस दिन तुमको ढंग की चाय नहीं मिलती है, ये दिमाग परेशान हो जाता है। जिस दिन तुम्हारी दाल में थोड़ा-सा नमक ज्यादा हो जाता है तो ये दिमाग परेशान हो जाता है। ये अविनाशी को कैसे समझेगा ? ये अविनाशी को कैसे समझेगा परंतु कहा है कि वही अविनाशी तुम्हारे अंदर है।
और फिर लोग सवाल करेंगे, "अजी! वो अविनाशी हमारे अंदर है तो हमको पता क्यों नहीं लगता?"
एक किताब पढ़ रहा था मैं आज, तो उसमें एक कहानी थी। वो कहानी सुनाता हूं। तो कहानी है, अकबर और बीरबल की!
एक दिन अकबर कहता है बीरबल से कि "अगर भगवान सर्वव्यापक है तो दिखाई क्यों नहीं देता? पता क्यों नहीं लगता, कहां है? बताओ बीरबल!"
अब बीरबल को लगा कि गए! कैसे इसका जवाब दें। तो फिर बीरबल ने कहा, "जी! कुछ दिन की मोहलत दीजिए, हम मालूम करके आपको बताएंगे।"
तो बीरबल गया घर, सिर लटकाया हुआ, दुःखी! कैसे — उसका ये कहना है कि सर्वव्यापक तो है, पर अब इसको कैसे बताऊंगा अकबर को, कैसे दिखाऊंगा, कैसे बताऊंगा कि है ? कैसे उसको prove करूंगा? कैसे साबित करूंगा? अब उसके घर में उसके कुछ रिश्तेदार आए हुए थे और उनका एक लड़का था।
तो लड़के ने कहा, "चाचा बीरबल! क्या बात है, बड़े दुःखी नजर आ रहे हो?"
तो कहा, "मैं दुःखी तो हूं!"
कहा, "क्या हुआ?"
कहा, "हुआ ये कि बादशाह ने ये सवाल पूछा है कि अगर भगवान सर्वव्यापक है, भगवान जब हमारे अंदर है तो हमको दिखाई क्यों नहीं देता ? हमको पता क्यों नहीं है?"
तो लड़का बोलता है, आप चिंता मत कीजिए! कल जाइए आप ठाठ से और बादशाह से कहिए कि "अजी! इस सवाल का जवाब मैं क्या दूंगा, ये मेरा एक छोटा रिश्तेदार है, उम्र में छोटा है, यही आपको बता देगा।"
बीरबल ने कहा, "ठीक है!"
तो दूसरे दिन दोनों गए।
बादशाह हंसा! बीरबल फंसा! कहा, "बीरबल! हमारे सवाल का जवाब है तुम्हारे पास?"
कहा, "हुजूर! मैं क्या आपको जवाब दूंगा, ये तो मेरा रिश्तेदार है, अभी उम्र ज्यादा नहीं है इसकी, यही दे देगा।"
बादशाह बोला, "इतनी बड़ी बात का ये लड़का जवाब देगा ?" बादशाह ने कहा, "ठीक है, जवाब दो!"
तो लड़का बोलता है, "आप बादशाह हैं। हिन्दुस्तान के राजा हैं। आपको इतनी भी कद्र नहीं है कि आपके दरबार में एक मेहमान आया है और आप उसकी जरा ज़र्रानवाज़ी करें!"
तो अकबर को लगा कि बाप रे बाप! तुरंत उसने आज्ञा दी — अच्छा! क्या चाहिए, क्या चाहिए ? क्या चाहिए?
कहा, "ज्यादा नहीं, दो गिलास के — दो दूध के गिलास मंगवा दीजिए!"
दो गिलास लेकर के सिपाही आये और उसके आगे रख दिया।
अब बादशाह कहता है, "जल्दी, जल्दी पीओ आप और हमारे सवाल का जवाब दो!"
कहा, एक मिनट! लड़का बैठा, उस दूध के गिलास में अपनी उंगली डालता है। एक गिलास में एक उंगली और एक गिलास में एक उंगली और उसको ऐसे-ऐसे करने लगता है {उंगली के इशारे से समझाया}। अब घंटा भर बीत गया! बैठे-बैठे बादशाह देख रहा है और उसको लग रहा है कि क्या कर रहा है ये ? दो घंटे बीत गये!
अकबर बोलता है, "मेरे सवाल का जवाब कब दोगे?"
कहा, "धीरज रखिए! अभी तो दो ही घंटे बीते हैं, अभी धीरज रखिए!"
तीन घंटे बीत गये। चार घंटे बीत गये। अब बादशाह से रहा नहीं गया तो कहा, "भाई! क्या कर रहे हो? ये उंगली डाली हुई है दूध के गिलास में। क्या कर रहे हो?"
कहा, "बादशाह! एक बात बताइए, इस दूध में मक्खन है?"
कहा, "हां! है!"
कहा, "मैं मक्खन निकाल रहा हूं!"
बादशाह ने कहा, "ऐसे मक्खन नहीं निकलेगा। ऐसे मक्खन नहीं निकलेगा! इस दूध को जमाना पड़ेगा, तब ये दही बनेगा। दही को फिर बिलोना पड़ेगा, तब जाकर के मक्खन निकलेगा!"
लड़का बोलता है, ठीक इसी तरीके से वो है, पर उसको निकालने के लिए विधि की जरूरत है। अगर तुमको वो विधि नहीं मालूम है तो तुम नहीं जान पाओगे, नहीं समझ पाओगे।
तो अपने आपको जानना — अपने आपको जानना, मतलब आत्मज्ञान!
बिना अपने आपको जाने, बिना आत्मज्ञान के मनुष्य भटक रहा है और भटकेगा।