टॉम प्राइस : (होस्ट)
और यह है — मेरा आपसे सवाल। और फिर हम आपके सवाल पर जाएंगे; आप बिलकुल भी चिंता न कीजिये। मेरे लिए कमाल का मौका है, कमाल का प्रेम जी से सवाल पूछने का।
तोहफा खोलने वाला उदाहरण कमाल का है। पर एक बार अगर आपने ये तोहफा खोल लिया, “आप इस तोहफे को दोबारा बंद होने से कैसे रोकेंगे, कैसे रोकेंगे!”
प्रेम रावत जी :
अब यह अहम सवाल है। बस इतने समय में क्या आपने सोचा कि तोहफा खुद नहीं खुला होगा, आपने इसे खोला है। तो बस आप ही हैं जो इसे बंद करके वापस रख सकते हैं। हां बिल्कुल, आप ऐसा कभी भी कर सकते हैं। तो एक तोहफा, तो तोहफा ही है जब आप स्वीकार नहीं करते, यह तोहफा नहीं है।
एक कहानी है मतलब कि इस उदाहरण से पहले भी कुछ आता है पर मैं अपनी बात बताता हूं एक समय भगवान बुद्ध अपने एक शिष्य के साथ जा रहे थे। उस शहर में सब बुद्ध को बुरा कह रहे थे। कहते हैं, "आप अच्छे नहीं हैं, आप ये नहीं करते, आप वो नहीं करते और ये सब।"
तो उनके शिष्य ने कहा, " बुद्ध, यह आपको परेशान नहीं करता इतने सारे लोग आपके बारे में बुरा बोल रहे हैं, बोलते जा रहे हैं!"
तो जब बुद्ध वापिस आये उन्होंने एक कटोरा लिया और उनका शिष्य वहीं बैठा था। उन्होनें एक कटोरा लिया और सरका दिया और फिर पूछा "यह किसका है ?" और उनके शिष्य ने कहा, "यह आपका है।" फिर बुद्ध ने थोड़ा और सरकाया और पूछा "यह अब किसका है ?"
शिष्य ने कहा "यह अब भी आपका है।"
वह ऐसा करते रहे और पूछते गए कि "यह किसका है; यह किसका है!" और शिष्य कहता रहा "यह आपका है; यह आपका है।" फिर उन्होंने कटोरा लिया और शिष्य की गोद में रख दिया और फिर पूछा कि "अब किसका है ?"
उसने कहा "यह अब भी आपका है।"
उन्होंने कहा "बिल्कुल सही।" अगर मैं बुराई को नहीं मानता तो वो मेरी नहीं है और यह वही बात है अगर हम इस तोहफे को नहीं अपनाते, यह हमारा नहीं है। यह बस पड़ा रहेगा ऐसे ही। हम इस दुनिया में आते हैं और एक दिन हमें यहां से जाना है और फिर हम सोचते हैं और यह बहुत ज्यादा लोगों के साथ होता रहता है। बस आखिरी क्षण में वह कहते हैं कि "मैंने अब तक क्या किया ?"
फिर भी सब सुलझाने का समय होता ही नहीं है जैसा कि आप करना चाहते थे कि वो हो। लेकिन अभी वह समय है अभी आप जीवित हैं और आप वो सब कर सकते हैं या जीवन बर्बाद कर सकते हैं। और बात यह है जीवन वापस लौट कर आपसे यह नहीं कहेगा कि आप बर्बाद कर रहे हैं। ऐसा होता तो अच्छा होता। जानते हैं ना, पर ऐसा नहीं होता। और इसकी एक और खूबसूरती है कि जब भी आप तोहफे को स्वीकारने का सोचते हैं, यह उसी समय आपका बन जाता है। तो ज्यादा देर नहीं हुई है फ़र्क़ नहीं पड़ता। अगर आप खुद से कहते हैं कि "अच्छा अब तो मैं 84 का हूं मेरे लिए बहुत देर हो चुकी है।"
जी नहीं! देर नहीं हुई है और ये आप कहते हैं कि "अच्छा, मैं तो बहुत छोटा हूं।"
नहीं, आप छोटे नहीं हैं,आप बड़े नहीं है बस जिस दिन आप स्वीकारते हैं वह आपका है।