प्रेम रावत:
मनुष्य के लिए सुख की कोई सीमा नहीं है, दुःख इतना भी, उसको परेशान कर देता है। हर एक चीज के अंदर, हर एक चीज के अंदर सुख भी है, दुःख भी है।
तुम्हारे जीवन में सबकुछ है। तुम्हारे जीवन में सबकुछ भी है और कुछ भी नहीं है। दोनों ही हैं। तुम जब अपने कमरे में जाते हो और कुण्डी बंद करते हो अपने दरवाजे में — आज के बाद याद रखना, तुम अकेले नहीं हो उस कमरे में। कितने हैं उस कमरे में भरे हुए! तुम भी हो, अविनाशी भी है, जीवन भी है और मृत्यु भी है। उस कमरे में सब हैं — ज्ञान भी है, अज्ञान भी है, अंधेरा भी है, उजाला भी है।
अगर उस कमरे को बंद कर दो तुम और सौ ताले लगा दो दरवाजे पर और जैसे ही तुम लाइट बंद करोगे, क्या होगा ? अंधेरा हो जायेगा। नहीं ? कहां से आया अंधेरा ? जब दरवाजा पहले से ही बंद था तो आया कहां से अंधेरा ? क्योंकि वो तुम्हारे दरवाजे बंद करने से पहले ही से अंदर आ रखा था, तुम्हारे साथ ही आया। धर्म भी तुम्हारे साथ है, अधर्म भी तुम्हारे साथ है। सारी चीजें — जहां तुम जाते हो, सब हैं। फ़र्क इतना है, फ़र्क इतना है कि अगर तुम जानते हो कि ये सब साथ हैं तो उसको अपने सीने से लगाओ, जिसको तुम चाहते हो। प्रेम भी तुम्हारे साथ आया है और नफरत भी तुम्हारे साथ आई है। नफरत को तो तुम गले लगाना जानते हो। जानते हो कि नहीं ? नफरत करने में तुमको कितनी देर लगती है ? कितनी देर लगती है ? {चुटकी बजाने जितना समय} परंतु प्रेम को गले लगाना अभी सीखा नहीं।
मक्खन है, पर ऐसे नहीं निकलेगा। घंटे-घंटे बैठे रहो, करते रहो, करते रहो, करते रहो, करते रहो...। ऐसे नहीं निकलेगा। इसकी विधि चाहिए।
अगर तुम जीना सीखना चाहते हो तो प्रेम को गले लगाना सीखो, नफरत को नहीं। ज्ञान को अपने पास बुलाना सीखो, अज्ञानता को नहीं। अभी तो ये सीखा है — अज्ञानता क्या है ? कैसे उसको नजदीक लाया जाये। अपने जीवन में अगर प्रकाश चाहते हो तो प्रकाश को कैसे निकाला जाये ? क्योंकि दोनों हैं! अंधेरा भी है और प्रकाश भी है। अपने जीवन में प्रकाश को लाना सीखो!
आधे से ज्यादा तुम अपनी जिंदगी बदल सकते हो, तीन सेकेण्ड में। तीन सेकेण्ड में! तीन सेकेण्ड में ? सिर्फ तीन सेकेण्ड में। करने से पहले सोचो! सिर्फ तीन सेकेण्ड! क्या करने जा रहे हो ? बस! तीन सेकेण्ड! तीन सेकेण्ड! उसके बाद करो, जो तुमको करना है। पर तीन सेकेण्ड सोचो! क्योंकि गुस्सा भी तुम्हारे साथ है और क्षमा भी तुम्हारे साथ है। तीन सेकेण्ड में तुम चुन सकते हो — गुस्सा चाहिए या क्षमा ? क्षमा प्यार लाएगी। प्यार उजाला लाएगा। उजाला आनंद लाएगा। तीन सेकेण्ड में। और क्योंकि तुम करते पहले हो, सोचते बाद में हो, इसीलिए तुम्हारे जीवन में दुःख रहता है।
है क्या ? ये संसार का स्वभाव है।
चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोय।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय।।
तो तुम कितने बड़े घुन हो, जो बच जाओगे ? अरे! जब वो घुन — जब उसके जीवन के अंदर गेहूं की बोरी आती है। जब घुन कहीं चलते-चलते, चलते-चलते, चलते-चलते पूरी बोरी के पास पहुंचता है कि गेहूं ही गेहूं हैं उसके अंदर, जरा विचार करो, कितना उसको आनंद मिलता होगा।
‘‘हे भगवान! तैंने मेरी सुन ली! इस बोरी में तो गेहूं ही गेहूं है! बैठ के खा-खाकर के मोटा हो जाऊंगा!’’
उसको क्या मालूम कि इस बोरी में जो गेहूं है, उसका आटा बनना है। उसको चक्की में डाला जाएगा और बच्चू! तू भी उस चक्की में पिसेगा! वो घुन क्या खोज रहा है अपने जीवन में ? गेहूं को खोज रहा है और गेहूं बिखरे हुए नहीं, सब एक ही पोटली में मिल गए उसको। इससे बड़ी चीज क्या हो सकती है, उसके लिए ? परंतु जो उसका ख्वाब होगा — छोटे-से घुन का ख्वाब! गेहूं मिल जाए। ऐसा मिल जाए, इधर-उधर भटकना न पड़े। वो सब उसको मिल गया। परंतु उसको ये नहीं पता कि चक्की में पीसना है।
जो कुछ भी हम करते हैं, इसमें दोनों ही गुंजाइशें हैं — अच्छा भी हो सकता है, बुरा भी हो सकता है। अगर हम सोच के काम करेंगे, विचार के काम करेंगे, ये जानकर के काम करेंगे कि हमारी प्रकृति है भूलने की। ये हमारी प्रकृति है भूलने की और मेरे को कोशिश करनी है कि मैं भूलूं न। उस चीज को मैं नहीं भूलूं, जो मेरे लिए जरूरी है। अगर ये याद रहेगा, तुम्हारी जिंदगी के अंदर अपने आप परिवर्तन आएगा। अपने आप परिवर्तन आयेगा!
क्यों ?
जो कुछ भी तुम कर रहे हो, वो उस आनंद के लिए है, क्योंकि ये भी तुम्हारी प्रकृति है। तुम दुःख को नहीं सह सकते हो। याद है, यही मैं कह रहा था शुरुआत में ? तुम दुःख को नहीं सह सकते हो, परंतु सुख की सीमा तुम्हारे में है ही नहीं! अपार सुख तुम सह सकते हो! कोई ऐसे मंदिर में नहीं जाता है कि ‘‘हे भगवान! बहुत ज्यादा सुख दे दिया। अब थोड़ा कम कर दे!’’ मनुष्य के लिए सुख की कोई सीमा नहीं है, दुःख इतना भी, उसको परेशान कर देता है। हर एक चीज के अंदर, हर एक चीज के अंदर सुख भी है, दुःख भी है। पर तुमको — तुमको चुनना है, क्या तुमको चाहिए अपने जीवन में ? सुख चाहिए या दुःख चाहिए ? जिस दिन दुःख चाहिए, दुःख मौजूद है। जिस दिन सुख चाहिए, सुख भी मौजूद है।