Title : दो मेंढक
पहला मेंढक : हैलो! तुम यहां घूमने आये हो ?
दूसरा मेंढक : हां, भाई! मैं तो बस यहां से गुजर रहा था तभी अचानक बारिश आ गई।
पहला मेंढक : अरे परेशान मत हो दोस्त, तुम सही जगह आये हो। मैं तो यहां इस तालाब में रहता हूं। आओ देखो!
पहला मेंढक : तो देखा तुमने! कितना बड़ा है मेरा तालाब।
दूसरा मेंढक : हूं!
पहला मेंढक : अच्छा, तुम कहां रहते हो ?
दूसरा मेंढक : मैं तो एक समुंदर में रहता हूं।
पहला मेंढक : समुंदर! हूं... वो कितना बड़ा होगा ?
दूसरा मेंढक : हूं... बहुत बड़ा।
पहला मेंढक : क्या तुम्हारा समुंदर इतना बड़ा है ?
दूसरा मेंढक : नहीं, इससे बड़ा।
पहला मेंढक : तो क्या तुम्हारा समुंदर इतना बड़ा है ? इतना बड़ा ? इतना बड़ा ?
पहला मेंढक : तो क्या वो इससे भी बड़ा है ?
दूसरा मेंढक : समुंदर इससे बहुत बड़ा होता है, मेरे दोस्त।
पहला मेंढक : मैं नहीं मानता। इतने सालों से मैं यहां रह रहा हूं, मगर मैंने तो आजतक कोई ऐसी जगह देखी नहीं, जो मेरे तालाब से बड़ी हो। ऐसा हो ही नहीं सकता कि इससे भी बड़ी कोई जगह हो।
दूसरा मेंढक : हूं... तो ठीक है चलो मेरे साथ। आओ मैं तुम्हें दिखाता हूं कि समुंदर कैसा होता है।
पहला मेंढक : ओह! माफ करना मेरे दोस्त। आजतक मैं यही सोचता रहा कि मेरा तालाब सबसे बड़ा है। मगर मुझे अब अहसास हुआ कि मैं गलत था।
कहानी का सार यही है कि हम अपनी धारणाओं की दुनिया में एक छोटे तालाब की तरह रहते हैं और सोचते हैं कि इस दुनिया से बेहतर और कुछ नहीं है। जब कोई बताता है कि इसके अलावा एक दूसरी दुनिया भी है, तो उस पर यक़ीन करना मुश्किल हो जाता है।