प्रश्नकर्ता:
मैं अपने आप में तो खुश रह सकता हूं, क्योंकि मुझे अपने आपसे — और मैं अपने आपको समझता हूं, अपने आपको जानता हूं और अपने आपसे कैसा व्यवहार करना है यह भी मुझे मालूम है। लेकिन जो दूसरा कारण, जब दुःख का बनता है और वो दुःख का कारण है, मेरे इर्द-गिर्द की जो परिस्थितियां हैं, उनको हम कैसे नियंत्रित करें ? जो दुःख मुझे एक्सर्टनल या सोसाइटी या अन्य किसी स्रोत से या अन्य किसी जगह से प्रभावित करता है या किसी क्षण तक प्रभावित करता है, उसका समाधान कैसे होगा ?
प्रेम रावत:
आपके घर में मच्छर आ रहे हैं, मक्खियां आ रही हैं। तो आप सबसे पहले क्या देखेंगे ? आपका घर है, दीवाल हैं, किवाड़ हैं, खिड़कियां हैं। सबसे पहले आप क्या देखेंगे ? अगर मक्खियां आ रही हैं — दरवाजा बंद है या नहीं ? खिड़कियां बद हैं या नहीं ? अगर खिड़कियां खुली हुई हैं सारी तो मक्खी मच्छर तो आएंगे। हो सकता है, खिड़की हमने खोली हो कि फ्रेश हवा, शुद्ध हवा हमारे कमरे में आए। परंतु उसका एक कॉन्सीक्वेन्स भी है कि हवा भी आएगी तो मक्खी भी आएगी, मच्छर भी आएंगे और धूल भी आएगी।
तो सबसे पहले हमको ये देखना है कि हम क्या चाहते हैं ? अगर हम उन मक्खी और मच्छरों से बचना चाहते हैं और वो मक्खी-मच्छर हैं — ‘समस्याएं’। जो थोड़ी-थोड़ी समस्याएं आती हैं या कोई ऐसी चीज कर देता है, जिससे कि हमको दुःख होता है या हम किसी का दुःख नहीं सहन कर पा रहे हैं — ये हैं वो मक्खी और मच्छर! खिड़की बंद करने की जरूरत है।
क्योंकि कोई भी मनुष्य अपने जीवन में एक दीया हो। दीया उजाला देता है। दीया यह नहीं देखता है कि मैं किस पर उजाला दे रहा हूं। उसके पास अगर चोर आएगा, उसके लिए भी उजाला हो जाएगा और अगर कोई संत आएगा, उसके लिए भी उजाला हो जाएगा। ये जितने हमारे फ़र्क हमने बनाए हुए हैं, दीये का इससे कोई लेना-देना नहीं है। उसका काम है — प्रकाश देना।
जैसे सूर्य उदय होता है और वो सारे संसार के अंदर उजाला पैदा करता है। वो यह नहीं देखता है, यह चोर है, यह अच्छा आदमी नहीं है, यह नहीं करूंगा, यह नहीं करूंगा। ये सब हम करते हैं। जबतक हम अपने में यह नहीं जान लेंगे कि मेरा स्रोत, मेरे शांति का स्रोत मेरे अंदर है और जब वो स्रोत, उससे मैं अपना कनैक्शन जोड़ूंगा और वो बाहर आएगा तो मैं — सबके लिए एक ऐसा मेरा माहौल हो जाएगा कि मैं सबमें खुशी बांटने के लिए तैयार हो जाऊंगा।
देखिए! दो प्रकार के लोग होते हैं — एक तो वो, जिनके साथ आप एक मिनट भी नहीं बिता सकते हैं और एक वो, जो आपके जीवन में थोड़ी स्माइल ले आते हैं, थोड़ी खुशी ले आते हैं। हां, अगर हम वैसे होने लगें, हर एक व्यक्ति वैसे होने लगे कि वो थोड़ा-सा सुकून ले आए, थोड़ी-सी मुस्कान ले आए। अब ये नहीं है कि वो सारा माहौल बदल देगा, ये नहीं है कि सारी जो समस्याएं हैं, उनको अपने कंधों पर ले लेगा। नहीं। वो सिर्फ एक छोटी-सी चीज करे।
अब एक दिन मैं जा रहा था कार से तो मैंने देखा कि एक बस, जो खड़ी हुई थी, वो चलने लगी। एक बेचारा बहुत ही वृद्ध आदमी उस बस के पीछे धीरे-धीरे भागने लगा। और वो बस उसकी थी, परंतु वह छूट गया। और बस धीरे-धीरे तेज़ चलने लगी और उस बेचारे ने भागने की कोशिश की, पर बहुत ही वृद्ध था, वो भाग नहीं सका। मैं सोच रहा था कि मैं ड्राइवर से कहूं कि वो बस के ड्राइवर के पास जाए और उससे कहें। इतने में एक व्यक्ति अपनी मोटर साइकिल से आया और उसने बस को थपथपाया और ड्राइवर से कहा — ‘‘तेरा एक पैसेंजर छूट गया है!’’
ड्राइवर ने बस रोकी और वो वृद्ध आदमी उस पर चढ़ गया। और मैंने देखा कि मोटर साइकिल वाले ने अपनी मोटर साइकिल को रोककर के, बस में चढ़कर के उस वृद्ध आदमी से ये नहीं कहा कि ‘‘तूने थैंक्यू नहीं कहा ?’’ ना। वो चला गया।
मैंने सोचा कि हम एंजेल्स की बात करते हैं। मैंने अभी-अभी एक एंजेल को मोटर साइकिल में देखा और उसने... अब बेचारा वो कहां जा रहा था ? लोग उसकी इंतजार करेंगे। कितने लोगों के लिए उसने एक बहुत ही मुश्किल बात को सरल बना दिया। वो आया। कहां से आया ? पता नहीं। और कहां गया ? मैं देखता रहा, कहां गया ? कहीं चला गया वो। उसके पर नहीं थे और वो देखने में भी कोई ऐसा नहीं लगता था कि विशेष आदमी हो। परंतु वो मनुष्य था। और उस मनुष्य के रूप में वो एंजेल आई — वो था और उसने एक बहुत छोटा-सा काम किया — ‘‘ठक-ठक! तेरा पैसेंजर छूट गया।’’ और चला गया।
ये हम सब कर सकते हैं। हम ये सब कर सकते हैं। यह मानवता है। और जब मनुष्य अपने आपको ही नहीं जानता है तो उसकी मानवता क्या है, वो नहीं समझ पाता है। और ये समझना बहुत जरूरी है।
- प्रेम रावत