प्रेम रावत:
हमारी सारी जिंदगी हम एक ही चीज से तौलते हैं। हार-जीत! हार-जीत! हार-जीत! हमारी जीत हो। हमारी जीत हो। हम सक्सेसफुल हों। इसको हम जीत समझते हैं। आशीर्वाद! आशीर्वाद देते हैं लोगों को। क्या ?
"तुम्हारी मनोकामना पूरी हो!"
मनोकामना मतलब, मन की कामना पूरी हो। हृदय की नहीं, मन की कामना। मुझे कोई व्यक्ति समझा दे कि क्या ऐसा भी मन होता है, जिसकी सारी कामना पूरी हो चुकी हों।
मन के बहुत तरंग हैं, छिन छिन बदले सोय।
एक ही रंग में जो रहे, ऐसा बिरला कोय।।
बात विभिन्न तरंगों की नहीं है, बात है ‘छिन-छिन बदले सोय’। बदलता रहता है, बदलता रहता है, बदलता रहता है। आज ये है, आज वो है, आज वो है, आज वो है, आज वो है, आज वो है।
माता-बहनें — मैंने देखा हुआ है। जाती हैं साड़ी खरीदती हैं। साड़ी कैसे खरीदी जाती है ?
आप दुकान में जाते हैं, दुकानदार से कहते हैं, "साड़ी दिखाओ!"
वह आपको एक साड़ी दिखाता है। आप उसको खरीद लेते हैं। ऐसे ही तो है न ? ना!
"और दिखाइए! कोई बढ़िया दिखाइए! और कौन-कौन से रंग हैं आपके पास ?"
ये माता-बहनों की ही बात नहीं है। जब लोग टाई खरीदने के लिए जाते हैं, वही बात होती है। औरतें तो साड़ी पहनती हैं, मर्द टाई पहनते हैं। वही उनके लिए साड़ी है। वो उसी को — ऐसी होनी चाहिए, ऐसी होनी चाहिए, ऐसी होनी चाहिए, ऐसी होनी चाहिए, ऐसी होनी चाहिए।
तो हमारे लिए जीत क्या है ? जीत वो है कि जब हमारी मन की कामनाएं पूरी हों तो हमारी जीत हो गयी। और हमारी मन की कामना पूरी नहीं हो रही है तो हम हार रहे हैं। जब आप समझ जाएंगे और अपना जीवन अपने मन से नहीं, पर अपने हृदय से जीना शुरू करेंगे — जिस दिन आप प्यार अपनी जिंदगी के अंदर अपने हृदय से करना शुरू करेंगे, उस दिन आपको सच्चे प्यार का अहसास होगा। जिस दिन आप अपने मन से नहीं, पर अपने हृदय से जीना शुरू करेंगे, जिंदगी क्या है, आपको समझ में आएगी।
हृदय भी है मनुष्य के पास। मन भी है मनुष्य के पास, हृदय भी है मनुष्य के पास। मन का उपयोग कैसे करते हैं, यह सबको भलीभांति मालूम है। पर हृदय का प्रयोग कैसे होता है, ये किसी को — बहुत बिड़ला कोई मिलेगा, जिसको मालूम हो। जो एक ही रंग में रहना जानता हो, बहुत बिड़ला है। बिड़ला मतलब — रेयर! आसानी से नहीं मिलेगा।
तो अगर आप अपनी हार से बाहर जाना चाहते हैं तो सबसे पहले आपको यह समझना पड़ेगा कि असली जीत क्या है। और असली जीत है — जब मैंने अपने मन को नहीं, अपने हृदय को शांत कर लिया है, जब मैंने अपने हृदय की पुकार को सुनना शुरू कर दिया है। नहीं तो मेरे को सारे जीवन में — बात यह है जी कि कई बार हम समझते हैं कि हम जीत गए। और जीत के भी फिर अहसास बाद में जाकर होता है कि वो जीत नहीं थी, वो तो हार है। उस समय लगा कि जीत गए।
जब नयी-नयी लोगों की शादी होती है, बच्चे होते हैं। बड़ा प्यार है बच्चे से। बड़ा नटखट है, बड़ा ये है, वो है। वो नटखट कितना नटखट है। जरा 16-17-18 साल तक पहुंचने दो, अपने आप पता लगेगा।
मां कई बार बड़े प्यार से अपने बच्चे के बारे में बोलती है, "ये मेरी बात सुनता नहीं है।"
हां! जरा पहुंचने दो 18 साल तक, तब पता लगेगा। क्यों ? अगर बच्चे से प्यार नहीं है, बच्चे को क्या बनना चाहिए, सिर्फ उसी चीज से प्यार है तो तुम्हारी हार निश्चित है।
सबसे बड़ी बात है कि एक बार लोगों से पूछा गया कि "तुम कितने दिन जीओगे ?"
तो अगर 70 साल भी अगर जिए, उसके बनते हैं लगभग — 25 हजार 550 दिन। और अगर सौ साल भी जिये तो 36 हजार 500 दिन। 36,500। पर जब लोगों से पूछा गया कि अगर सौ साल भी जीओ तो कितने दिन जीओगे ?
तो लोगों का पहला कैलक्युलेशन था — तीन लाख। 3,65,000। थ्री हंड्रेड सिक्सटी फाइव थाउजेंड। वो जीरो एक और लगाना चाहते थे, जो जीरो लगता नहीं है। क्योंकि सबकी ख़्वाहिश है — सिर्फ इतने ही दिन थोड़े जीना है। क्या है मनुष्य के साथ ?
वही वाली बात। एक योद्धा की कहानी कि चाहे वो कितना भी लड़े, कैसे भी लड़े, खूब लड़े, परंतु उसको मरना है।
समझिए आप! कितनी गंभीर बात यह है कि वो लड़ाई कर रहा है। और वो लड़ रहा है। क्यों ? ताकि उसकी जीत हो! तो लड़ रहा है, लड़ रहा है, लड़ रहा है। मार रहा है, और लोगों को मार रहा है, खूब लड़ रहा है, खूब लड़ रहा है, खूब लड़ रहा है। परंतु उसको कोई आकर के अगर यह बताए कि "तू जितना चाहे लड़ ले, पर तेरे को इसी रणभूमि में गिरना है। कट के गिरेगा!" अर्थात्, कितना भी वो लड़ ले, उसकी जीत नहीं होगी।
वो योद्धा कौन है ? आप हो। मैं हूं। और हम क्या कर रहे हैं ? हम लड़ रहे हैं। और कोई हमको आकर बताता है, "लड़ ले! खूब लड़ ले! पर जीत नहीं होगी तेरी।"
तो क्या करोगे ? क्या करोगे ? लड़ते रहोगे ? और अगर वही प्रश्न उससे पूछा जाए कि ‘‘अगर मेरे को इस रणभूमि में गिरना ही है तो मेरी जीत कैसे संभव है ?” और अगर वही व्यक्ति उसको कहे कि तू लड़ाई में नहीं जीत सकता, क्योंकि तेरे को इसी रणभूमि में गिरना है। तू लड़ाई में नहीं जीतेगा। कोई नहीं जीतेगा। तू हारेगा भी नहीं, पर तू जीतेगा भी नहीं। क्योंकि सभी को इस रणभूमि में गिरना है।
तो अगर तू अपनी जीत चाहता है तो जो तू जीता हुआ है — और यह भी कितनी सुंदर बात है। देखिए, शब्दों का खेल है! तू अगर अपनी जीत चाहता है तो तू समझ कि तू जीता हुआ है। अब इसके दो शब्द हो गए। एक तो कि पहले ही तुम्हारी जीत हो रखी है और दूसरा कि तुम जीते हुए हो। अर्थात्, तुम जिंदा हो! जिंदा होने में ही तुम्हारी जीत है। लड़ाई में तुम्हारी कभी जीत नहीं होगी। लड़ाई में जीत नहीं होगी। ये जानने में तुम्हारी जीत होगी, ‘‘तुम जीते हुए हो।’’ तो वही, ‘‘जीते हुए हो।’’ मतलब, जीते हुए हो — ‘‘पहले से ही तुम्हारी जीत हो रखी है’’ या फिर दूसरा कि ‘‘तुम जिंदा हो! जीते हो!’’ इसको जानो! इसको समझो कि ये क्या है।
असली जीत है — जब मैंने अपने मन को नहीं, अपने हृदय को शांत कर लिया हो।