प्रेम रावत:
प्रश्न यह है कि तुमने अपनी जिंदगी का क्या प्रबंध किया है ? और मैं ये क्यों कह रहा हूं ? मैं इसलिए कह रहा हूं कि — एक बात पर ध्यान दिया जाय!
मान के चलें कि एक हवाई जहाज ऊपर से जा रहा है। और जहां सामान रखा जाता है हवाई जहाज में, वहां एक बहुत बड़ा बक्सा रखा हुआ है। उस बक्से में भरे हुए हैं पत्थर! और संदूक हवाई जहाज से हट गया है और गिर रहा है। और किस रफ्तार से गिर रहा है ? दो फीट प्रति सेकेंड — प्रति सेकेंड की स्पीड से वो गिरेगा। अंग्रेजी में ‘‘two feet per second, per second.’’ तुम्हारे लिए क्या ? तुम तो अपने जीवन में व्यस्त हो, वो बक्सा गिर रहा है। वो बक्सा गिर रहा है और वो तभी रुकेगा — कब रुकेगा ?
कब रुकेगा वो बक्सा ? मालूम है तुमको ?
जब वो इस पृथ्वी पर आकर टकरायेगा।
और तुम कहां हो ? कहां हो तुम ? कहां हो तुम ? कहां हो ? नहीं मालूम ?
पृथ्वी पर हो। कैसा लगा तुमको, जब मैंने बोला कि वो डब्बा गिर रहा है ?
इस पृथ्वी पर सात बिलियन लोग हैं। और जो-जो जिंदा है, सबके नाम का बक्सा गिर रहा है। अरे! तुम्हारा नाम लिखा है उस पर। वो इधर-उधर नहीं टकरायेगा। वो ठीक तुम्हारे सिर पर फूटेगा। प्रबंध कर लिया है इसका कि ये होगा ? प्रबंध कर लिया इसका ?
ये जानने के बाद तुमने अपने जीवन में क्या प्रबंध किया है ?
अगर तुम अपने जीवन में आनंद चाहते हो तो उसका भी तुमको प्रबंध करना पड़ेगा। अगर तुम अपने जीवन में सुख चाहते हो तो उसका भी तुमको प्रबंध करना पड़ेगा।
कई लोगों ने जीवन की तुलना की है कई चीजों से।
कुछ लोग बोलते हैं कि "यह जीवन जो है यह नदी के समान है, बह रहा है।"
कोई बोलता है कि "यह जीवन नौका के समान है।"
कोई बोलता है कि "यह जीवन जैसे संगीत का कोई instrument होता है, यंत्र होता है उसके समान है।"
कोई बोलता है कि "यह जीवन एक पतंग के समान है।"
सुनो! अगर यह जीवन नौका के समान है तो नौका वालों, इस नौका को डूबना नहीं चाहिए। अगर यह नौका डूब गई तो गड़बड़ होगी।
अगर यह जीवन नदी के समान है — डूब मत जाना। डूब मत जाना!
अगर यह जीवन — जैसे साज़ का कोई यंत्र है, ऊटपटांग मत बजाना। लय से, स्वर ठीक होना चाहिए। ये नहीं है कि अंधाधुंध — टें, टें, टें, टें, टें.... नहीं।
यह जीवन कोई थ्यौरी नहीं है भाई! यह जीवन कोई किताब नहीं है। यह जीवन किसी का आइडिया नहीं है। यह तो जीती-जागती चीज है। और जब तक इस जीवन को पूरा नहीं करोगे, तब तक भटकते रहोगे। कभी इधर जाओगे, कभी उधर जाओगे। कभी ये मन उधर भागेगा। कभी इधर जायेगा, कभी उधर जायेगा, कहीं-कहीं जायेगा, क्या-क्या करेगा — पता नहीं। अब ये दुनिया का सारा चक्कर है। ये दुनिया का सारा चक्कर है। परन्तु जो इससे आगे निकलकर के यह समझ लेता है कि यह जीवन एक थ्यौरी नहीं है, यह कोई ऐसी चीज नहीं है, जिसको मैं डब्बे में बंद करके रख दूं कहीं। यह तो ऐसी चीज है जो जीती-जागती है। यह तो सचमुच में उपहार है। और मैं अपने जीवन का पूरा-पूरा फायदा उठाऊं। पूरा-पूरा! आधा नहीं, चौथाई नहीं। पूरा-पूरा फायदा उठाऊं। ये मेरे हृदय की इच्छा है। क्या तुम्हारे हृदय की ये इच्छा नहीं है ? कौन ऐसा आदमी है इस संसार के अंदर जिसकी ये इच्छा न हो कि वह अपने जीवन को सफल बनाये ?