एक-एक स्वांस का आना-जाना भगवान का दिया हुआ यन्त्र है।
जो मेरा जीवन है यह भी एक यंत्र है। हर एक मनुष्य इसको बजा सकता है। और जब बजाना सीख लेंगे तब ही ऐसी मधुर आवाज आयेगी कि उसमें आप खो जायेंगे।
प्रेम रावत :
जब आदमी बांसुरी बजाता है तो आपको मालूम है वो क्या कर रहा है ? उस बांसुरी में वो फूंक मार रहा है और जो छेद है बांसुरी के, उनको खोल के और बंद करके, वो उस आवाज को स्वर में ला रहा है और उसका आप आनंद उठा सकते हैं।
सोचिये! सोचिये कि अगर वो फूंक ही मारता रहे बांसुरी पर और कुछ न करे, क्या स्वर निकलेगा ? क्या आवाज निकलेगी ?
जिसको बांसुरी बजानी नहीं आती है न, तो वो भी बांसुरी में बजाने की जब कोशिश करता है, तो फूंक मारता है बांसुरी में। तो फूं-फूं करके तो आवाज आती है परंतु उसको लगता है कि वैसी आवाज क्यों नहीं आयी जब इसने बजायी ?
मेरे को सीखना पड़ेगा और अगर मैं सीख जाऊं तो मैं भी इसी तरीके से इसको बजा सकता हूं।
आपको क्या दिया ?
आपको क्या मिला जो बनाने वाले ने आपको दिया ? और वो चीज आप कभी भूलना मत।
जो भगवान ने हमको दिया है, यह भी एक यंत्र है।
एक-एक स्वांस, एक-एक स्वांस जो आपके अंदर आ रहा है, यह उसकी दया का फल है।
आज पता नहीं, हम कितनी चीजों को इस संसार के अंदर दोष देते हैं और मैं आपकी बात नहीं कर रहा हूं, मैं सारे संसार की बात कर रहा हूं। सारे संसार की बात कर रहा हूं।
पर जब तक हम सीखेंगे नहीं उसको बजाना, तो जो भी कोशिश करेंगे — क्योंकि यह भी एक यंत्र है जो मेरा जीवन है। और इसके अंदर भी ऐसी आवाज निकल सकती है, कि ऐसी आवाज निकले कि आदमी को नफरत हो और ऐसी भी आवाज निकल सकती है जो मधुर से मधुर हो।
दोष! दोष इस यंत्र का नहीं है। इसको बजाना सीखना पड़ेगा। हर एक मनुष्य इसको बजा सकता है। हर एक मनुष्य इसको बजा सकता है। और जब बजाना सीख लेंगे तब ही ऐसी मधुर आवाज आयेगी, तभी ऐसा स्वर निकलेगा कि उसमें, और तो और आप खो जायेंगे। आप!
जो मेरा जीवन है, जो बनाने वाले ने मुझको दिया, यह भी एक यंत्र है और अगर मैं सीख जाऊं तो मैं भी इसको बजा सकता हूं।