क्या हम जीवित होने के महत्व को समझ पाते हैं ? क्या हमें मालूम है कि हमारी एक-एक स्वांस में अपार आनंद भरा हुआ है और हम उसे जीते-जी प्राप्त कर सकते हैं ?
जो कुछ भी आपके आस-पास हो रहा है, जो कुछ भी आपके जीवन में हो रहा है, उससे आप ऊंचे हैं। जिस प्रकार कमल का फूल गंदे पानी में रहता है, परंतु गंदे पानी से ऊपर रहता है उसी प्रकार आप हैं।
प्रेम रावत:
इस संसार में मनुष्य का जन्म होता है और एक दिन उसे इस संसार से जाना है। यह कोई तर्क या विचार-विमर्श करने की बात नहीं है। चाहे कोई कितना ही ज्ञानी हो या अज्ञानी हो, सबको यह बात मालूम है। ज्ञानी को भी जाना है और अज्ञानी को भी जाना है; अमीर को भी जाना है, गरीब को भी जाना है; शिक्षित को भी जाना है, अनपढ़ को भी जाना है। इस बात को कोई नहीं बदल सकता। जब से इस सृष्टि की रचना हुई है, तब से यह नियम लागू है कि जो इस संसार में आया है, वह एक न एक दिन संसार से जायेगा।
जब इस संसार से सबको जाना ही है तो फिर मनुष्य के लिए क्या शेष रह गया ? कौन-सी चीज बाकी रह गयी ? एक चीज है, जिसे कहते हैं 'जिंदगी'! यह जिंदगी क्या है ? एक तरफ है जन्म और दूसरी तरफ है मरण! इन दोनों के बीच का जो समय है, वह है जिंदगी! इस जिंदगी में — जन्म और मरण के बीच में, मनुष्य के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्या है ? जीवन में कितनी ही चीजें घटित होती रहती हैं, पर सबसे बड़ी बात है कि उसका स्वांस निरंतर चलता रहता है। जब तक यह स्वांस चलता रहता है, तब तक मनुष्य जीवित है। जब स्वांस रुक जाता है, तब उस मनुष्य के लिए सबकुछ समाप्त हो जाता है। लोग परस्पर विभिन्नताओं को देखते हैं, परन्तु इस संसार में हर एक मनुष्य का जन्म एक समान तरीके से ही होता है। सब एक ही तरह से इस संसार में आते हैं और एक ही तरह से इस संसार से जाते हैं।
मूल बात है इस स्वांस की! यह स्वांस कितना बड़ा आशीर्वाद है, हमलोग यह भूल जाते हैं! कितनी कृपा मनुष्य पर हुई है कि उसे यह जीवन मिला, यह शरीर मिला और हर पल उसके अंदर यह स्वांस अपने आप चलता है। जीवन की यही पहचान है कि मनुष्य का स्वांस चल रहा है या नहीं ? यह स्वांस भगवान की कृपा से अपने आप आता है और अपने आप जाता है। अपने पीछे वह एक ऐसा समय छोड़ जाता है, जो कभी दोबारा नहीं आएगा। इसका महत्व अंतिम समय में पता चलता है, जब एक-एक स्वांस लेने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
हममें से कितने व्यक्ति हैं, जो इस पर विचार करते हैं। एक-एक दिन करके धीरे-धीरे सम्पूर्ण जीवन व्यतीत हो जाता है।
क्या हम जीवित होने के महत्व को समझ पाते हैं ? क्या हमें मालूम है कि हमारी एक-एक स्वांस में अपार आनंद भरा हुआ है और हम उसे जीते-जी प्राप्त कर सकते हैं ?
हमारी जिंदगी में वह समय कब आएगा, जब हम अपने हृदय का प्याला पूरी तरह से भर सकेंगे ? क्योंकि यह जीवन तो हर क्षण बीत रहा है, पर आनंद पाने की हमारी कामना अभी भी ज्यों की त्यों बनी हुई है।