प्रेम रावत:
अगर मनुष्य को देखा जाए तो हर एक मोड़ पर मनुष्य हार मान लेता है। वो कहता है कि मैं अब आगे नहीं जा सकता। भगवान से प्रार्थना करता है, मंदिरों में जाता है, मन्नतें मांगता है। क्या-क्या नहीं करता है ? क्योंकि वो समझता है कि वो आगे नहीं चल सकता। जीवन में समस्याएं आती हैं और जितनी बड़ी समस्या होती है, उतना ही वो अपने आपको छोटा पाता है।
पर एक बात मैं कहना चाहता हूं और वो बात ये है कि एक समय था, जब एक व्यक्ति, जिसको भगवान के बारे में नहीं मालूम था। दुनियादारी के बारे में नहीं मालूम था। कौन-सा हवन करूं, कौन-सा यज्ञ करूं — कुछ नहीं। वो किसी गुरु के पास जाकर के सत्संग नहीं सुन सकता था। वो किसी inspirational speaker के पास जाकर के कोई उसका लेक्चर नहीं सुन सकता था।
पर उसके जीवन के अंदर एक ऐसा मौका आया, जिसको पूरा करने के लिए उसकी सारी शक्ति लगी। और कितनी ही बार — एक बार नहीं, दो बार नहीं, तीन बार नहीं, चार बार नहीं। कितनी ही बार वो कामयाब नहीं रहा। परंतु फिर भी उसने हार नहीं मानी। वो कौन था ? हम सब थे। और बात कर रहा हूं मैं उस समय की, जब आप छोटे बच्चे थे। चलना सीख रहे थे। कितनी बार गिरे आप ? आपने कोशिश की खड़ा होने की, कदम लेने की और गिर गये। असफलता हर कदम में थी। टांगें — इनमें बल नहीं था कि तुम्हारा वजन उठा सके। तो जब बच्चे को देखते हो, जब खड़े होने की कोशिश करता है तो वो हिलता है। क्योंकि उसके पैर अभी इतने मजबूत नहीं हैं और असफलता हर कदम में। परंतु वो कभी अपनी हार को नहीं मानता है।
आप जितने भी यहां बैठे हुए हैं, आपके साथ यही हुआ है। अब आपको याद हो या न हो, पर हुआ। और असफलता हर एक कदम में — उठे, कोशिश की, गिरे! कई बार रोये भी!
मां ने कहा, "बेटा! उठ! कोशिश कर! अच्छा बच्चा है, अच्छी बच्ची है।"
वो समझ में नहीं आया, क्या कहा, पर कोशिश की। हार नहीं मानी। हार नहीं मानी तो फिर उठने की कोशिश की। फिर असफलता मिली। फिर कोशिश की। फिर असफलता मिली! फिर एक दिन उन सारी असफलताओं के बावजूद — क्योंकि आपने हार नहीं मानी, उसका परिणाम क्या हुआ ? उसका परिणाम हुआ कि एक दिन आपने एक कदम लिया और आप नहीं गिरे! फिर दूसरा कदम लिया और आप नहीं गिरे। फिर तीसरा, फिर चौथा, फिर पांचवां, फिर छठा! और आपने क्या हासिल कर लिया ? आपने चलना हासिल कर लिया। और जिस दिन आपने चलना हासिल कर लिया, उस दिन आपने अपने आपको एक ऐसा तोहफा दिया, ऐसी कामयाबी पायी कि आपने संसार में एक ताला ऐसा खोल दिया कि अब आपके पास स्वतंत्रता थी कि आप जहां जाना चाहें, आप जा सकते हैं।
और इसका मूल कारण क्या था ? असफलता या हार न मानना! असफलता तो थी! जैसे ही पहली बार कोशिश की — भड़ंक! दूसरी बार कोशिश की — भड़ंक! उसके बाद ऐसी भी हालत आयी कि एक कदम लिया और फिर — धड़ाम, फिर खत्म! तो ये तुम्हारे साथ हुआ ?
फिर क्या हुआ ? उसके बाद तो तुमको पता लग गया — भगवान कौन है, क्या है, कहां रहता है। वो ऊपर रहता है, ये होता है, वो होता है। पाठ है, पूजा है, पंडित हैं! और हार माननी शुरू कर दी! एक तरफ ज्ञानी बने। और ज्ञानी कैसे बने ? जैसे ही ज्ञानी बने, पहले अज्ञान के कुएं में छलांग मारी। मारी कि नहीं मारी ? उस बच्चे का अज्ञान देखो! उसे न मालूम है, न परवाह है। उसे न मालूम है, न परवाह है, परंतु एक चीज उसने हासिल की, तुमने हासिल की! तो आज जो तुम्हारे जीवन में असफलता आती है — कभी भी आती है तो तुम हार क्यों मान लेते हो ? जब तुमको मालूम है कि तुम्हारे जीवन में एक ऐसा हादसा हुआ है, जिसमें तुमने कभी हार नहीं मानी और हार न मानने की वजह से, उसकी सफलता तुम्हारे जीवन भर साथ है। ये सच्चाई है! ये कहानी नहीं है।
ये कामयाबी — क्या सबकुछ इतना बदल गया है कि वो कामयाबी आज संभव नहीं है तुम्हारे जीवन में ? पर किन बातों में फंस गये हो ? क्या है तुम्हारी सोच ?