Title on screen: खुशी असल में है क्या ?
ऐंकर: हैपिनेस की बात होती है। शांति की, पीस की बात होती है। और इसीलिए शायद हमारे देश में कुछ स्टेट के गवर्नमेंट भी आगे आते हैं।
हैपिनेस डिपार्टमेंट तक बना दिया। डिपार्टमेंट बना देने से क्या कोई खुश हो सकता है ? या उसके लिए कुछ और करने की जरूरत है हमको ?
प्रेम रावत जी: बात यह है कि हम हैपीनेस को समझते ही नहीं हैं। अब बना दिया डिपार्टमेंट। हैपीनेस डिपार्टमेंट बना दिया। वो एक्शन लेगा। कुछ करेगा। सबसे पहले यह बात समझने की होनी चाहिए कि हैपीनेस सब्जेक्टिव है या ऑब्जक्टिव है ? सब्जेक्टिव का मतलब — ये आपके एहसास करने की बात है। ऑब्जेक्टिव है — नहीं, इसका एक फॉर्मूला है। तो अगर हम हैपीनेस को ऑब्जेक्टिव बना दें, जबकि वो सब्जेक्टिव है। कोई आदमी है, वो खुश है या नहीं है ? उसके पास पैसे नहीं हैं। वो खुश है या नहीं है ? कैसे पूछेंगे आप?
मैंने देखा है छोटे बच्चों को रोड पर, उनके — जूते नहीं हैं उनके पास और एक बाइसिकल का चक्का लेकर के एक लकड़ी के साथ — उसको चला रहे हैं और उनकी स्माइल है इतनी बड़ी। वो हैपी हैं या नहीं ? खुश हैं या नहीं ? तो हमारे दिमाग में एक बात डाल दी गई है कि तुम तब खुश होगे, जब तुम्हारे पास जॉब होगा, जब तुम्हारे पास पैसा होगा, जब तुम्हारे पास कार होगी, जब तुम्हारे पास ये होगा, वो होगा। अब लोग हैं, कई लोग हैं, जो बड़े खुशी से शादी करते हैं। इतनी बड़ी स्माइल! बैंड बज रहा है, बाजा बज रहा है। सब नाच रहे हैं। चार महीने के बाद, पांच महीने के बाद वो स्माइल जो है, यहां आ गई।
ऐंकर: स्क्वीज़ हो जाती है।
प्रेम रावत जी: क्या हुआ ? क्या हुआ ? अगर आप अपनी खुशी और चीजों पर निर्भर रखेंगे तो यही होगा। यही होगा! क्योंकि खुशी, असली खुशी, असली हैपीनेस अंदर से आती है। जब कोई चीज सेट हो, जब कोई चीज ठीक हो अंदर से तो ये बहुत जरूरी है इस बात को जानना कि एक तो हमारे जीवन के अंदर हमको आभार का अहसास होना चाहिए।
और दूसरी चीज, हम ये न सोचें कि दूसरा मेरे बारे में क्या सोच रहा है। एक, फिर तीसरी चीज, हम अपने आपको जानें। अपने आपको पहचानें। और हमारे जीवन के अंदर हमेशा आशा रहनी चाहिए। ये हैं बेसिक फंडामेंटल्स! और गवर्नमेंट इसके बारे में क्या कर सकती है ? नहीं। मनुष्य को करना पड़ेगा। हमारी रिलॉयबिलिटी कि गवर्नमेंट हमारी प्रॉब्लम्स सॉल्व करेगी, इतनी हो गई है, इतनी हो गई है और अगर हम रिपोर्ट-कार्ड देखें — देखिए! अगर आपका बच्चा स्कूल जाता है तो वो कैसा पढ़ रहा है ? पास हो रहा है या नहीं हो रहा है ? ये आप रिपोर्ट-कार्ड से देखते हैं। उसके दिमाग में आया भी है या नहीं आया? हम गवर्नमेंट का रिपोर्ट-कार्ड बनाते हैं ?
ऐंकर: ना।
प्रेम रावत: कितनी प्रोमिसेज़ की और कितनी प्रोमिसेज़ रखीं।
ऐंकर: नो चेकिंग बैलेंस।
प्रेम रावत: कहां है रिपोर्ट-कार्ड ? सोसाइटी ने कहा, हम तुमको ये देंगे, ये देंगे, ये देंगे, ये देंगे! कहां है रिपोर्ट-कार्ड ? और अगर रिपोर्ट-कार्ड आज बनाया जाये तो मैं आपको गारंटी देता हूं कि सारीकी सारी चीजें फेल होंगी। एक भी पास नहीं होगा उसमें से।
क्योंकि वर्ल्ड-लीडर्स आते हैं, उन पर हम रिलॉय करते हैं कि ये शांति लाएंगे। लाया कोई ? तो कब छोड़ेंगे हम ये आदत ? उन पर रिलॉय मत करें, अपने पर रिलॉय करें। अगर आपको सचमुच में सफाई चाहिए अपने देश में तो यह आप पर निर्भर है। आप गंदा न करें। क्योंकि मैं देखता हूं। देखता हूं! लोग जो सोचते भी नहीं हैं और कूड़ा फेंकते हैं। सोचा भी नहीं। मतलब, एक सेकेंड भी नहीं सोचा। ये कहां जाएगा ? मैनुफैक्चर्स बना रहे हैं चीजें, उनको पैकेजेज़ में डाल रहे हैं और कूड़ा इकट्ठा हो रहा है। कहां ? कब लेगा मनुष्य अपनी जिम्मेवारी अपने पर ? और जबतक ये नहीं होगा, कोई खुश नहीं हो सकता।