दो मुसाफिर जा रहे थे। उनमें से एक मुसाफिर चोर था। चोर ने मुसाफिर से पूछा कि “भाई, तुम कहां जा रहे हो ?’’
उस मुसाफिर ने कहा, “मैं धन कमाने के लिए विदेश गया था अब अपनी सारी कमाई लेकर अपने घर जा रहा हूँ।’’
चोर ने कहा “मैं भी वहीं जा रहा हूं, दोनों साथ रहेंगे तो ठीक रहेगा।’’
मुसाफिर ने कहा “अच्छा है भाई। एक से भले दो!’’
चलते-चलते रात हो गयी दोनों एक सराय में ठहरे। जैसे ही वह मुसाफिर खाना खाने नीचे गया, चोर ने उसके सामान की,बिस्तर की, खूब तलाशी ली परंतु उसे कुछ नहीं मिला ।
चोर सोचता रहा, “सारी जगह ढूंढ लिया धन कहीं नहीं मिला आखिर इसने धन छुपाया कहां ? कहीं यह झूठ तो नहीं बोल रहा।’’
अगली सुबह वे दोनों आगे की यात्रा पर निकल पड़े।
चोर ने मुसाफिर से पूछा, "क्या तुमने वाकई धन कमाया है।"
मुसाफिर बोला, "हां, बहुत सारा धन कमाया है। इतना कि अब मुझे काम करने की भी जरूरत नहीं पड़ेगी।"
रास्ता लम्बा था, रात हो गई। इस बार भी उन्हें सराय में ठहरना पड़ा। वहां भी चोर ने सब जगह तलाशी ली। इस बार भी उसके हाथ कुछ नहीं लगा।
अगले दिन गांव पहुंचने के बाद उस चोर ने मुसाफिर से कहा, “अब तुम अपने घर पहुंच गए हो और सुरक्षित भी हो। मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ। दरअसल, मैंएक चोर हूं। जब तुम नीचे खाना खाने के लिए जाते थे तो मैं धन के लालच में तुम्हारे समान की तलाशी लेता था। दोनों रात मैंने तुम्हारे सामान की तलाशी ली किन्तु मुझे कुछ नहीं मिला। तुमने कुछ कमाया भी है या झूठ बोल रहे हो ?"
मुसाफिर बोला – "मैं झूठ नहीं बोल रहा हूँ।"
उसने चोर को अपना कमाया हुआ धन दिखाया और कहा, “तुमने हर जगह मेरे धन को ढूंढा, मेरे बक्से, मेरे बिस्तर, मेरे तकिये के नीचे ढूंढ़ा, किन्तु तुमने इसे अपने तकिये के नीचे नहीं ढूंढा।”
चोर ने हैरानी से पूछा, “अपने तकिये के नीचे!”
मुसाफिर बोला “तुमने इस धन को पाने के लिए हर जगह ढूंढा किन्तु वहां नहीं ढूँढा जहां यह था, तुम्हारे खुद अपने तकिये के नीचे। मुझे मालूम था तुम सब जगह ढूंढोगे परन्तु अपने तकिये के नीचे कभी नहीं ढूंढ़ोगे, इसलिए तुमसे नजर बचाकर इस धन को मैं तुम्हारे तकिये के नीचे रख देता था।”
चोर ने निराश होते हुए कहा, “काश! मैंने अपने तकिये के नीचे देखा होता।’’
ठीक उसी प्रकार वह परम सत्ता, वह ईश्वर हमारे अंदर मौजूद है, किन्तु लोग उसे खोजने के लिए इधर-उधर भटकते हैं, जो बाहर ढूंढने से नहीं मिलेगा। उसके लिए भटकने की जरूरत नहीं है।