एक कहानी है, एक आदमी राजा के दरबार में नौकरी मांगने के लिये आया। राजा ने उसको नौकरी दे दी। वह राजा की खूब सेवा करता था। राजा को भी वह बहुत प्रिय था। राजा ने उसके काम और उसकी ईमानदारी को देखकर उसे अपने राज्य का सेनापति बना दिया। जिससे दरबार में सब उससे ईर्ष्या करने लगे और उसे सेनापति पद से हटाने की कोशिश में लग गए। लोगों ने उसकी जासूसी करनी शुरू कर दी ताकि उसे राजा के सामने नीचे दिखा सकें। लोगों ने देखा कि हर रोज सेनापति दरबार खत्म होने के बाद एक बहुत ही सुनसान जगह पर बनी एक कोठरी में जाकर दरवाजा बंद करके घंटों-घंटों बिताता था।
लोगों ने देखा तो उन्हें लगा कि यह बात राजा को बतानी चाहिए, फिर राजा इसे नौकरी से निकाल देंगे।
लोग राजा के पास गये। राजा से शिकायत की कि "महाराज, सेनापतिहर रोज दरबार खत्म होने के बाद एक सुनसान जगह पर कमरे में घंटों-घंटों बिताते हैं। पता नहीं वह क्या करते हैं ?"
राजा को धीरे-धीरे शक होने लगा कि कुछ गड़बड़ जरूर है!
एक दिन राजा उसके पीछे-पीछे गया और देखा कि सचमुच जब सेनापति दरबार से निकला तो वह उसी कमरे में गया और काफी घंटों के बाद कमरे से बाहर आया ।
दूसरे दिन राजा ने फिर उसका पीछा किया। इस बार जब वह कमरे में चला गया तो राजा ने दरवाजा खटखटाया। उसने दरवाजा खोला और राजा को वहां देख हैरान हो गया।
उसने कहा, "महाराज, आप यहां क्या कर रहे हैं ? यह जगह आपके लिए उचित नहीं है।"
राजा ने कहा, "मैं देखना चाहता हूं कि तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?"
राजा अंदर गया तो देखा कि एक बड़ा बक्सा कमरे के बीच में रखा हुआ है।
राजा को शक हुआ कि हो सकता है इसमें चोरी का सामान हो।
राजा ने कहा, "इस बक्से को खोलो!"
सेनापति ने कहा, "महाराज, इस बक्से में ऐसी कोई चीज नहीं है जो आपके देखने योग्य हो।"
अब राजा का शक और बढ़ गया। उसने गुस्से में कहा "इस बक्से को खोलो"।
सेनापति ने बक्सा खोल दिया।
बक्से में पुराने-मैले कपड़े देखकर राजा ने पूछा, "ये क्या है ?"
क्योंकि राजा ने सोचा था कि उस बक्से में सोने-चांदी की कोई चीज मिलेगी, लेकिन फटे-पुराने, मैले कपड़े उसमें रखे हुए थे।
तब सेनापति ने कहा, "महाराज, जब आपके दरबार से मैं आता हूं, मैं जानता हूं कि आपकी ही कृपा से जहां मैं हूं, मैं हूं। जो मैं आज हूं, वह आपकी की ही दया से हूं, आप ही की कृपा से हूं। जब मैं आपके दरबार में आया था तो इन कपड़ों को पहनकर आया था। मैं हर रोज इन कपड़ों को पहनता हूं और अपने को याद दिलाता हूं कि मैं कौन हूं। अगर आपकी दया न हो, आपकी कृपा न हो तो मेरा यही हाल होगा। क्योंकि मैं वाकई में यह हूं। जहां आपने पहुंचा दिया, मैं वहां नहीं हूं। वह तो आपकी दया है, आपकी कृपा है। आपकी कृपा और दया का मुझको हमेशा पात्र बने रहना है। इस बात को याद दिलाने के लिए मैं इस कमरे में आता हूं।"
सेनापति की बात सुनकर राजा की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए और खुश होकर उन्होंने उसे अपने राज्य का मंत्री घोषित कर दिया।
समझने की बात है कि हम भी बिना ज्ञान के कहां थे ? कहां भटक रहे थे ? किस-किस बात को हमने सोच रखा था ? जो बातें दुनिया के लोगों ने हमको बतायीं, उन्हीं बातों को लेकर के हम बैठे हुए हैं।
हममें से कितने व्यक्ति हैं जो इस पर विचार करते हैं ? एक-एक दिन करके धीरे-धीरे सम्पूर्ण जीवन व्यतीत हो जाता है। क्या हम जीवित होने के महत्व को समझ पाते हैं ? क्या हमें मालूम है कि हमारी एक-एक स्वांस में अपार आनंद भरा हुआ है और हम उसे जीते-जी प्राप्त कर सकते हैं ? हमारी जिंदगी में वह समय कब आएगा, जब हम अपने हृदय का प्याला पूरी तरह से भर सकेंगे ? क्योंकि यह जीवन तो हर क्षण बीत रहा है।
- श्री प्रेम रावत