इस संसार के अंदर जो कुछ भी मनुष्य करता है, वह अपने सुख-शांति के लिए करता है। उसकी धारणाएं हैं कि अगर मैं यह हासिल कर लूंगा या अगर मुझको यह मिल जायेगा तो इससे मेरे जीवन में सुख मिल जायेगा, जीवन में शांति हो जाएगी। सारी दुनिया के लोग इसी चक्कर में इधर-उधर भाग रहे हैं — कोई पुत्र के पीछे भागता है, कोई अपने बिज़नेस के पीछे भागता है। कोई किसी चीज़ के पीछे भागता है, कोई किसी चीज़ के पीछे भागता है।
एक तो यह बात जानना जरूरी है कि अगर मनुष्य जो कुछ भी कर रहा है, वह अपने सुख-शांति के लिए कर रहा है, तो उसके अंदर सुख-शांति की जो चाहत है, जो इच्छा है वह कहाँ से आयी? वह इच्छा किसने पैदा की? यह चीज़ हमने अपनी ज़िन्दगी में सीखी है या स्वाभाविक है? कुछ चीज़ें स्वाभाविक होती हैं और कुछ चीज़ें सीखी हुई होती हैं। कई चीज़ों को सीखने के लिए हमें स्कूलों, महाविद्यालयों, बड़े-बड़े शिक्षण संस्थानों में जाना पड़ता है। वहां सीखने के बाद हमारी इच्छाएं, कामनाएं, आकांक्षाएं उत्पन्न होती हैं। कई बड़े-बड़े विज्ञापन और पोस्टर देखते हैं, हमको दोस्तों ने कुछ बताया, हमको मित्रों ने बताया, तो हमने सीख लिया, हमारी इच्छाएं उत्पन्न हो गईं । परन्तु कुछ ऐसी इच्छाएं होती हैं, जिन्हें हमें सीखना नहीं पड़ता, बल्कि स्वाभाविक होती हैं। जैसे भूख का लगना स्वाभाविक है। इसके लिए हमको कहीं जाकर सीखना नहीं पड़ता। जब खाने की जरूरत पड़ती है, तो यह शरीर हमें बताता है कि — "खाना खा लो!"
प्रकृति ने पहले से ही ऐसा प्रबंध कर दिया है क्योंकि उसको मालूम था कि हो सकता है, आदमी काम में इतना फंस जाये कि उसे अपने शरीर का भी ख्याल न रहे। इसलिए उसने भूख बना दी। जब भूख लगती है तो खाने की इच्छा पैदा होती है और आदमी खाने को ढूंढ़ता है। यह स्वाभाविक चीज़ है। इसको सीखना नहीं पड़ता। जब प्यास लगती है तो आदमी पानी पीता है। क्या असली सुख-शांति की चाहत स्वाभाविक है या सीखी हुई है? यह स्वाभाविक प्यास है। यह अंदर की प्यास है। बाहरी समस्याओं का हल बाहर मिलता है। उसी प्रकार अंदर की चाहत, हृदय की प्यास, असली सुख-शांति को पाने की प्यास का हल आपको अपने अंदर ही मिलेगा, बाहर नहीं।
जिस प्रकार अगर हमको पानी की जरूरत है, पानी की प्यास है तो हम पानी को उस चीज़ में ढूंढेंगे, वहां ढूंढेंगे, जहां पानी का स्रोत है — जैसे नलका, कुआँ, नदी या झरना हो। उसी प्रकार यह समझना जरूरी है कि जिस चीज़ को हम ढूंढ रहे हैं, जिस सुख को हम अपनी ज़िन्दगी के अंदर चाहते हैं, वह कहाँ है? वह चीज़, वह सुख हमारे अंदर है। परन्तु उसको हम ढूंढ कहाँ रहे हैं? उसे हम बाहर ढूंढ रहे हैं।
हम सोचते हैं कि अगर हमारी तरक्की हो जाएगी, तो हमको सुख-शांति मिल जाएगी। परन्तु यह वह सुख नहीं है, जिसकी हमारे हृदय को तलाश है। वह सुख अलग है। अगर हम यही कहते रहेंगे कि मुझको पारिवारिक सुख मिल जायेगा तो मेरे हृदय में तसल्ली हो जाएगी — यह बात गलत है। बाहरी सारे सुखों के बावजूद भी एक ऐसा सुख है, जिसको जाने और समझे बिना मनुष्य का जीवन अधूरा है! आतंरिक सुख की चाहत का बीज बनाने वाले ने आपके हृदय में डाला है कि खोजो, ढूंढो, पता करो, जानो और पहचानो कि असली सुख और शांति कहाँ है?
शांति की जरूरत हृदय को हर दिन है, हर क्षण है। लोग शांति की बात करते हैं, कहते हैं, "विश्व में शांति होनी चाहिए।" हम कहते हैं कि विश्व में शांति नहीं आपके हृदय के अंदर शांति होनी चाहिए। विश्व में है कौन? मनुष्य ही तो हैं।
- श्री प्रेम रावत के संदेश पर आधारित एक लेख