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बच्चों और बड़ों को कुछ समझाने के लिए क्या कहानियां आज भी महत्त्वपूर्ण हैं ?
प्रेम रावत:
देखिए! कहानी के दो कारण होते हैं। एक तो जो कहानी सुनाने वाला है, उसको अच्छी तरीके से मालूम है कि वो क्या कहना चाहता है। परंतु जो वो कहना चाहता है, वो हो सकता है कि दूसरा समझ न पाए। क्योंकि हो सकता है कि वो चैलेंजिंग भी हो! और जो सुनने वाला है, वो कहे, ‘‘नहीं!’’
तो कई बार कहानी एक ऐसी चीज है कि जब गोली खाते हैं न, कई गोलियां हैं, उन पर बाहर चीनी लगा देते हैं, मीठा लगा देते हैं, ताकि उसको हजम करने में अच्छा लगे, कड़वापन न आए। तो एक स्थिति, परिस्थिति और वो ऐसी परिस्थिति, जो entertaining हो! और उसके बीच में वो शिक्षा पड़ी हुई है। और बच्चा उसकी imagination जो है, वो trigger हो! तो जब बच्चा सुन रहा है उसको तो वो सोच भी रहा है और देख रहा है अपने दृष्टिकोण से कि ‘‘अच्छा! ये राजा था! वो ऐसा था! वो वैसा था! वो ऐसा था! वो ऐसा था!’’
अगर कहानी को प्योरिली इंटरटेनमेंट रूप से लिया जाए तो आप टेलीविजन के साथ कैसे compete करेंगे, जिसमें कहानी पूरी की पूरी है ?
राजा कैसे कपड़े पहनते थे, ये बच्चे को imagine करना था। अब imagine करने की क्या जरूरत है ? सिर्फ आँखें खोलिए, पर्दे पर देखिए, टेलीविजन पर देखिए और आपको दिखाई देगा कि उन्होंने कैसे कपड़े पहने हुए हैं। तलवार कैसी होती थी ? ये है, वो है! ये सारी चीजें तो imagination नहीं fire हो रही है। अब, जब मूवी देखते हैं हम, कोई भी मूवी तो हमको कुछ करने की जरूरत नहीं है। Imagine करने की जरूरत नहीं है। कहानी अपने आप unfold करेगी और उसमें जहां-जहां emphasis डालना है, वो डाला जाएगा, म्यूजिक के द्वारा डाला जाएगा, डायलॉग के द्वारा डाला जाएगा। धमाके के साथ डाला जाएगा। हमको तो सिर्फ वहां बैठना है, आँखें खोलनी है और देखते रहो!
कहानी ऐसी चीज नहीं है। कहानी एक very human चीज है। एक बहुत मानवता की बात है! मनुष्य की बात है! उसकी imagination trigger करने की बात है। तो सबसे पहले मैसेज क्या है ? अगर मैसेज को देखा जाए — और वो मैसेज नहीं है उसमें और सिर्फ entertainment है तो काम नहीं चलेगा। वो इसलिए नहीं चलेगा, क्योंकि आप compete कैसे करेंगे कार्टून के साथ ? आप compete कैसे करेंगे, जो वो मूवी फोन पर देख सकता है, वो अपने आई-पैड पर देख सकता है या अपनी टेबलेट पर देख सकता है या अपने कम्प्यूटर स्क्रीन पर देख सकता है या टेलीविजन पर देख सकता है। Impossible! संभव नहीं है। तो एक मूवी है, जो टेलीविजन पर देखता है और एक मूवी है, जो वो अपने दिमाग से देखता है। कहानी है वो चीज, जो वो टेलीविजन {इशारा करते हुए} यहां से देखे! तो सारा उसको, सारे एक्टर उसको लाने हैं। सबकुछ — ड्रामा उसको लाना है, सबकुछ लाना है। और वो इतना engage हो जाता है उसमें —
जब मैं छोटा था, मैं कहानी का मेरे को इतना शौक था कि आप पूछिए मत! जो कोई भी मेरे को कहानी सुना सकता था, मैं उसके पास जाकर बैठ जाता था, ‘‘सुनाओ!’’ सबेरे हो, शाम हो, दोपहर हो! और ये imagine! क्योंकि उस समय —टेलीविजन नहीं आया था। सिर्फ रेडियो था। और रेडियो की भी बहुत थोड़ी-सी चैनल थी। और सबेरे-सबेरे थोड़े से भजन आते थे, फिर खबर आती थी, फिर थोड़ी और खबर आती थी और उसको दोहराया जाता था, फिर रेडियो बन्द! फिर लंच टाइम के समय थोड़ा-सा और रेडियो आता था, फिर रेडियो बंद! फिर शाम के समय रेडियो आता था। मतलब, रेडियो भी हमेशा नहीं चलता था। तब entertainment के लिए क्या करें ?
वो कहानियां explore करना, बाहर जाना, पेड़ को देखना, आम चखना, लीचियों को चखना! और सारे दिन, गर्मियों के दिन यही करना। तो ये चीजें आज बहुत दुर्लभ हो गई हैं। हैं! दुर्लभ हो गई हैं। आदमी को खींच के रखा हुआ है। अब मैं नहीं कह रहा हूं कि टीवी गलत है। मैं ये नहीं कह रहा हूं। मैं नहीं कह रहा हूं कि जो मूवीज़ हैं, वो गलत हैं। नहीं। ये तो होगा। बात ये है कि मनुष्य को सोचने की जरूरत है। और अपने बारे में सोचने की जरूरत है। और जहां तक कहानियों की बात है — जब वो आदमी के लिए मैसेज क्लीयर है तो वो कहानी सुना सकता है।
क्योंकि कहानी एक आदमी के हृदय से, एक आदमी के दिमाग से दूसरे की तरफ जा रही है। और ये चीज बहुत जरूरी है।
अब एक बात मैं थोड़े रूप में कहता हूं। हो सकता है कि आगे जाकर इसका और खुला-खुलासा हो! तो ये है कानून दो मोमबत्तियों का। यह भी एक कानून है। अगर एक मोमबत्ती जल रही है और एक मोमबत्ती बुझी हुई है और आप दोनों मोमबत्तियों को साथ में लगाएं तो कानून यह है कि जो जल रही है, वो बुझी हुई मोमबत्ती को जला देगी। कानून यह नहीं है कि बुझी हुई मोमबत्ती जलती हुई मोमबत्ती को बुझा दे। यह कानून है! प्रकृति का कानून है! और इसकी वजह से जो मोमबत्ती जल रही है, उसमें ये क्षमता है कि वो दूसरी मोमबत्ती को जला दे। यह सबकी जिम्मेवारी है। हर एक मनुष्य जो है इस संसार के अंदर — चाहे वो मर्द हो, चाहे वो औरत हो, चाहे वो बच्चा हो, चाहे वो बूढ़ा हो — यह सबमें क्षमता है। बात ये नहीं है कि जो जलती हुई मोमबत्ती है, उसको लम्बा होना चाहिए, उसको बड़ा होना चाहिए। ना! चाहे वो बहुत छोटी-सी क्यों न हो, पर जल रही हो तो वो बहुत बड़ी, लम्बी-चौड़ी बुझी हुई मोमबत्ती को भी जला सकती है। तो हो सकता है कि आगे इसका और खुलासा किया जाए। पर यह बात बहुत जरूरी है। और ये कहानियां, ये संदेश इसीलिए जरूरी है लोगों तक पहुंचे। क्योंकि यह उनको include करता है। यह नहीं है कि इस टेलीविजन को देखिए! यह टेलीविजन बढ़िया है या इस मूवी को देखिए! या ये करिए, वो करिए! नहीं! जो आपके पास है, उसको देखिए! जो आप हैं, उसको जानिए! जो आप हैं, उसको पहचानिए! यह आप पर निर्भर है।