आज के समय में बच्चों को क्या सिखाया जाये ?
कनुप्रिया:
हमारी दो पीढ़ियां बैठी हैं। सवाल सबसे बड़ा आज — बहुत सारे सवालों को जोड़ के मैं एक सवाल दे रही हूं आपको कि आजकल घर-घर में हर कोई यह चाहता है कि मेरी बात मानी जाए और दो पीढ़ियों के बीच जो दूरी बढ़ती जा रही है, वो हमेशा से रही है, हम मानते हैं। लेकिन अब कुछ ज्यादा ही हो गया है और मुझे लगता है, ज्यादातर — जितने पैरेन्ट्स अगर यहां हैं, उनको यह समस्या आ रही है कि वो अपने बच्चों को क्या सिखाएं ? और जो वो सिखाना चाहते हैं, क्या वो सीख पा रहे हैं या नहीं ? इसको कैसे दूरी को कम करें ?
प्रेम रावत:
देखिए! जहां तक ट्रेडिशन्स की बात है — ट्रेडिशन एक ऐसी चीज है कि जो अपने आप टूटती है। एक जनरेशन में, एक पीढ़ी में — एक पीढ़ी के लोग एक तरीके से काम करते हैं, पर जो दूसरी पीढ़ी आती है, उसको वो दूसरी तरीके से...।
मैं आपको उदाहरण दूंगा, अभी रेडियो में भी मैं इन्टरव्यू दे रहा था, उसमें भी यही बात आई थी। तो एक समय था कि लोग सचमुच में अपने बुजुर्गों को प्रणाम करते थे। मतलब, कोई बुजुर्ग आया तो उसको सचमुच में प्रणाम करते थे। अब धीरे-धीरे करके वो प्रणाम की प्रथा बदल गई है। अब क्या हो गया है ? पहले हुआ कि सिर्फ पैर छुए! वो प्रथा भी धीरे-धीरे बदल गई है। अब घुटने छूते हैं। बस! तो ये ट्रेडिशन तो बदलते रहेंगे ।
बात यह है कि सबसे पहले तो हमको यह समझना चाहिए कि क्या सिखाएं ? क्या लोगों को सीखना चाहिए?
ये बात लोगों को स्पष्ट नहीं है। आदर — हम बच्चों को सिखाते हैं। पहले जब बच्चे छोटे होते हैं, कहते हैं, ‘‘थैंक यू!’’ बच्चे को किसी ने कुछ दिया तो बच्चे से कहते हैं, ‘‘थैंक यू बोलो!’’ वो काहे के लिए बोले थैंक यू ? परंतु हम लोगों को मैनर्स सिखाते हैं।
मैं नहीं कह रहा हूं कि मैनर्स नहीं सिखाने चाहिए। सिखाने चाहिए, परंतु किस ढंग से सिखाने चाहिए ? ताकि उसकी समझ में आए या न आए ? तो जबरदस्ती जब होती है — ‘‘प्लीज़ कहो! प्लीज़ नहीं कहोगे तो मैं नहीं दूंगी।’’ तो वो क्यों कहता है प्लीज़ ?
अब देखिए! हिन्दुस्तान के अंदर कोई भी गलती कर दीजिए आप। आपको सिर्फ एक चीज कहने की जरूरत है।
क्या ?
सॉरी! सॉरी! सॉरी! जैसे यह भगवान का नाम है — सॉरी! आपने भगवान का नाम ले लिया, अब आप सब चीजों से रहित हो गए। आप सब पापों से मुक्त हो गए हैं। समाज को समझना चाहिए कि वो किस तरीके का समाज चाहता है। सोसाइटी को समझना — यह सोसायटी की प्रॉब्लम्स हैं। सोसाइटी को समझना चाहिए कि वो किस प्रकार की सोसाइटी चाहती है। और जबतक ये नहीं होगा, तबतक लोगों के अंदर वो प्रेरणाएं नहीं भरी जाएंगी कि अपने आपको जानो! अपने आपको समझो! अपने जीवन के अंदर आनंद लाओ! ये तुम्हारे उद्देश्य होने चाहिए।
नहीं, नहीं, नहीं! पढ़ते रहो, पढ़ते रहो, पढ़ते रहो, पढ़ते रहो, पढ़ते रहो...! चार बजे उठ के पढ़ो। हमारे साथ यही होता था। चार बजे उठ के — अब नींद आ रही है। और अगर किसी ने देख लिया खेलते हुए — क्या कर रहे हो ? तो बच्चे हैं।
देखिए! कई चीजें हैं, जो दुनिया में हो रही हैं और सब लोगों को मालूम नहीं हैं। नार्वे एक कंट्री है। स्कैण्डिनेवियन कंट्री है और नार्वे का जो एजुकेशन स्टेटस था, वो बहुत low था। बहुत low! तो नार्वे के लोगों ने कहा कि किस तरीके से हम अपना एजुकेशन अच्छा बनाएं, ताकि हमारा जो स्टेटस है, एजुकेशन स्टेटस, वो ऊपर तक पहुंचे। मैं जो कहने जा रहा हूं, वो आपको बड़ा अजीब लगेगा। तो उन्होंने क्या किया ? गृह-कार्य खत्म कर दिया! होमवर्क खत्म! और बजाय सबेरे से लेकर के दोपहर तक स्कूल चले, उसको उन्होंने सिर्फ दो घंटे का बना दिया। और घंटों में क्या करना है ? खेलो!
तो हुआ यह कि जब बच्चे सबेरे आते थे तो उनका मन तो है नहीं पढ़ने का। मन उनका है खेलने का। तो बैठे तो हैं पर मन — वो तो वो वाली बात हो गई कि —
मन तो कहीं और दिया और तन साधन के संग।
तो बैठे तो हैं क्लास रूम में, पर मन क्या कर रहा है ? बाहर बॉल खेल रहा है। तो जब ये बदल दिया उन्होंने तो सिर्फ थोड़ा-सा समय बचा, जिसमें उनको पढ़ना है। तो खेल-कूद करके अपनी तबियत पूरी कर ली और जब क्लास रूम में आए तो एकदम ध्यान दे रहे हैं। सारा का सारा नार्वे का नक्शा बदल गया एजुकेशन का। वो नम्बर 6 या 7 थे, नम्बर 1 में आ गए! परंतु ये सारी चीजें, क्या हमारा समाज इन चीजों को अपनाएगा, ये जो आधुनिक तरीके हैं, जो सक्सेसफुल हैं ? इसीलिए मैं कहता हूं कि हम सबको मिलना चाहिए। हम सब मिलकर के एक नई सीढ़ी बनाएं, जो सफलता की सीढ़ी हो। सबके लिए!
Text on screen:
सोसाइटी को समझना चाहिए
कि वो किस प्रकार की सोसाइटी चाहती है!
और जबतक यह नहीं होगा, तब तक लोगों के अंदर वो प्रेरणाएं
नहीं भरी जाएंगी कि अपने आपको जानो!