लॉकडाउन 12

प्रेम रावत जी द्वारा हिंदी में सम्बोधित (4 अप्रैल, 2020)
Apr 04, 2020
"इन परिस्थितयों में भी वह आनंद आपके अंदर है। सिर्फ बात यह है कि अगर आप उस खेत को जोतेंगे तो वहां से कुछ ना कुछ जरूर निकलेगा।" —प्रेम रावत (4 अप्रैल, 2020)

प्रेम रावत जी:

भारतवर्ष के श्रोताओं को मेरा नमस्कार!

आज का दिन — एक दिन और चला गया। मुझे यही आशा है कि आप लॉकडाउन में हैं, आप सुरक्षित हैं, आप आनंद में हैं और आपने यह दिन जो चला गया, इसको अपने हाथों से से खाली निकलने नहीं दिया। किसी न किसी रूप में, किसी न किसी प्रकार से आपने इस जीवन में, इस समय, इस दिन को पकड़ना सीख लिया है। इसको निचोड़कर इसका जो आनंद है, इसके अंदर जो शांति है यह जो चीजें आपके लिए पॉसिबल हैं, उपलब्ध हो जाती हैं, आपने इन चीजों को जाने नहीं दिया और अपने जीवन को सफल बनाने के लिए आप हमेशा परिश्रम करते हैं।

देखिये! कई लोग हैं जिनका यह पता नहीं क्यों दिमाग में बात है कि हमको कुछ ऐसा दे दीजिए कि एक बार हम कर लें तो फिर हम को दोबारा करने की जरूरत ना पड़े। देखिये! एक रात को अगर आप सो गए तो इसका यह मतलब नहीं है कि आपको फिर सोना नहीं पड़ेगा। नहीं! आपको सोना पड़ेगा। हर रात सोना पड़ेगा। नहीं तो आप अपने आपको थका-मांदा महसूस करेंगे। अगर आपने एक दिन खाना खा लिया तो इसका मतलब नहीं है कि आपको कभी खाने की जरूरत नहीं है। नहीं! आपको हर रोज खाना पड़ेगा और जिस दिन आप नहीं खाएंगे उस दिन आपको भूख लगेगी। पानी के साथ भी यही बात है। अगर एक दिन आपने पानी पी लिया, तो इसका यह मतलब नहीं है कि आपको कभी पानी पीने की जरूरत नहीं पड़ेगी। पानी पीने की जरूरत भी आपको पड़ेगी। तो ये जो चीजें हैं यह जब भी आपको जरूरत है इनकी आपको यह करनी पड़ेगी — खाना खाना पड़ेगा जब भूख लगेगी, प्यास लगेगी आपको पानी पीना पड़ेगा, जब आप थकेंगे तो आपको सोना पड़ेगा।

ठीक इसी प्रकार, शांति भी एक ऐसी चीज है। अगर आप उस चीज से जुड़े हुए नहीं हैं जो शांति का स्रोत है, तो आपके जीवन के अंदर शांति नहीं होगी। फिर आपको जुड़ना पड़ेगा फिर आप उस चीज से जब जुड़ेंगे, तो आपको शांति का एहसास होगा। यह बड़ी बात नहीं है साधारण सी बात है और अच्छी बात है कि हम उस चीज के साथ — कोई ऐसी चीज है जो हमको प्यास लगाती है उस शांति की तरफ जाने की और हम शांति की तरफ जाएं। हमारा हृदय चाहता है कि हम शांति की तरफ जायें। हम दुनिया की तरफ देखते हैं, दुनिया की तरफ जब देखते हैं तो यही बात होती है कि मेरे को यह करना है, मेरे को वह करना है, मैं कैसे बैठकर शांति की तरफ ध्यान दूं, मेरी जिंदगी इतनी बिज़ी है। सबसे पहली बात यह है कि जिंदगी किसकी है ? यह जिंदगी किसकी है और किसके लिए है ? यह जो आपकी जिंदगी है वह किसके लिए है आपके लिए है या किसी और के लिए है ?

सोचिए आप, ध्यान दीजिए इस बात पर क्योंकि यह बात बहुत जरूरी है। आप इस बात को समझें यह बहुत जरूरी है। पैदा कौन हुआ ? जब आप इस संसार में आए, कौन आया ? आप आये। कौन जाएगा इस संसार में और जिसके जाने के बाद आप किसी चीज का अनुभव नहीं कर पाएंगे ? वह भी आप हैं। यह जिंदगी आपको दी गई है। यह स्वांस किसके अंदर आ रहा है, किसके अंदर जा रहा है ? आपके अंदर आ रहा है, आपके अंदर जा रहा है।

ठीक है! औरों के अंदर आ रहा है, औरों के अंदर जा रहा है। परंतु औरों के अंदर जो वह स्वांस आ रहा है, जो जा रहा है उससे मेरा कुछ ताल्लुकात नहीं है। उससे उनका ताल्लुकात है — अर्थात वह जो स्वांस उनके अंदर आ रहा है, जा रहा है उस स्वांस से वो जिंदा हैं और जो मेरे अंदर आ रहा है, मेरे अंदर जा रहा है उससे मैं जिंदा हूं।

तो यह जिंदगी किसकी है ? सबसे बड़ी बात है यह जिंदगी किसकी है ? यह जिंदगी आपको मिली है और इसका दुरुपयोग अगर करेगा तो कौन करेगा ? आप करेंगे । और इसका सदुपयोग अगर कोई करेगा तो कौन करेगा ? वह भी आप करेंगे।

तो बात आ जाती है कि फिर इसका सदुपयोग क्या है ? सबसे बड़ी बात इस जीवन का असली सदुपयोग क्या है ? मैं फिर सुनाता हूं आपको, अभी कुछ दिन पहले मैंने सुनाया था यह —

बड़े भाग्य मानुष तन पावा, सुर दुर्लभ सद्ग्रन्थन गावा।

साधन धाम मोक्ष कर द्वारा, पाइ न जेंही परलोक संवारा।

जो देवताओं को भी दुर्लभ है, जो देवताओं को भी दुर्लभ है, क्योंकि यह मनुष्य शरीर — एक खूबी मनुष्य शरीर की यह है, मनुष्य की यह है कि मनुष्य बना भी सकता है और खा भी सकता है। देवता लोग खा सकते हैं, बना नहीं सकते। वो खा सकते हैं, बना नहीं सकते। मनुष्य खा भी सकता है और बना भी सकता है। तो क्या बताया है — संतों ने, महात्माओं ने, वेदों ने, शास्त्रों ने, क्या बताया कि यह काहे के लिए मिला है! यह मिला है —

“साधन धाम मोक्ष कर द्वारा — यह साधना का धाम है और मोक्ष का दरवाजा है।” इसलिए मिला है, इसलिए यह समय है, इसलिए यह मनुष्य शरीर मिला है। और कोई भी चीज जो आप पा सकते हैं वह आपकी होगी नहीं, क्योंकि जब आप जाएंगे तो खाली हाथ आप आये थे, खाली हाथ आपको जाना पड़ेगा। और जो लोग आज की परिस्थिति को देखकर डर रहे हैं, इनको डरने की जरूरत नहीं है। आपको डरने की जरूरत नहीं है। सावधान होने की जरूरत है, सतर्क होने की जरूरत है, पर आपको डरने की जरूरत नहीं है । डरने से कुछ होता नहीं है, डरने से कुछ होता नहीं है। अपनी आंख बंद करने से कुछ होता नहीं है। समझें कि अगर यह जिंदगी सचमुच में "साधन धाम — साधना का धाम है मोक्ष का दरवाजा है" तो क्या मैं यह कर रहा हूं, क्या मैं यह कर रहा हूं ? क्या जो वह ज्ञान है —

आतमज्ञान बिना नर भटके, क्या मथुरा क्या काशी।

मृग नाभि में है कस्तूरी, बन बन फिरे उदासी।।

मोहे सुन-सुन आवे हांसी।

पानी में मीन पियासी, मोहे सुन-सुन आवे हांसी।।

फिर वही बात हो गई, फिर वही बात हो गई कि जिस चीज के लिए हम आये वह हम जानते ही नहीं हैं। जो हमको यह साधन मिले हुए हैं — यह सिर है; ये आंखें हैं; यह कान है; नाक है; मुंह है; शरीर है; दिमाग है; यह काहे के लिए मिला हुआ है ? काहे के लिए हमको मिला ? इसका हमको मालूम ही नहीं है। इससे क्या हासिल कर सकते हैं, यह हमको मालूम ही नहीं है। लगे हुए है, लगे हुए हैं, कर रहे हैं, हासिल कर रहे हैं। हासिल कर रहे हैं ऐसे, जैसे कि यह साथ ले जाएंगे। पर, यह साथ नहीं जा सकता। यह साथ नहीं जा सकता। साथ तो सिर्फ एक चीज जा सकती है और वह है “आनंद।” और जबतक आप इस परिस्थिति में भी, जो आपके अंदर का आनंद है इसको अगर आप महसूस करने की कोशिश नहीं करेंगे, तो यह हाथों से निकल जाएगा। दिन निकल जाएगा, समय निकल जाएगा और आप रह जाएंगे।

तो फिर फायदा ही नहीं हुआ। फिर फायदा ही क्या हुआ ? फिर फायदा ही क्या हुआ आने का ? जब खाली हाथ आये और खाली हाथ ही जाना है, तो फिर फायदा ही क्या हुआ ? क्या ले जाएंगे यहां से ? क्या ले जा सकते हैं यहां से ? एक चीज को ले जा सकते हैं — वह जो आपके अंदर है, आपकी जो समझ है। वही मैं कहता हूँ कई बार, कई बार कहता हूँ मैं लोगों से कि जब आप किसी के यहां खाना खाने जाते हैं या अपने दोस्तों से मिलते हैं, तो जब खाना खाने जाते हैं तो आप बर्तन ले जाते हैं साथ ? नहीं! जब आपको खाना खिलाया जाता है या आप अपने मित्र के पास गए, अपने रिश्तेदार के पास गए, उसने खाना खिलाया आपको, तो जो कुछ भी आपको खिलाया वह तो गया। वह तो जाएगा। तो क्या बचेगा उस दिन का ? आनंद जो है वह बचेगा। उस आनंद को आप सालों-सालों रख सकते हैं अपने साथ। खाने को नहीं — जो खाना खाया आपने, अगर वह आपके साथ सालों-सालों रहने लगा, तो आपको कब्ज़ हो जाएगा और वह आपको पसंद नहीं होगा, पसंद नहीं आएगा।

परंतु सबसे बड़ी बात कि वह जो आनंद है वह आप ले जा सकते हैं। खाली हाथ आए थे, खाली हाथ आपको जाना है, परंतु आप जीवन के आनंद को साथ ले जा सकते हैं और इन परिस्थितयों में भी वह आनंद आपके अंदर है। सिर्फ बात यह है कि क्या आप उस खान को जोतना जानते हैं, उस खेत को जोतना जानते हैं क्योंकि अगर आप उस खेत को जोड़ेंगे, जोतेंगे तो वहां से कुछ ना कुछ जरूर निकलेगा।

सब्र की बात है भाई! मैं फिर याद दिलाना चाहता हूं कि सभी को सब्र रखो, डरने की बात नहीं है। समय बीत रहा है डर से कुछ नहीं होगा। सतर्क रहो, हाथ धोओ अपने। "न किसी को यह बीमारी दो न किसी से यह बीमारी लो" — यह आप याद रखिए, बस यह याद रखिए — छः फीट लोगों से दूर रहना ताकि उनका थूक या किसी प्रकार की — किसी प्रकार से भी यह कीटाणु जो है या यह वायरस जो है आपके ऊपर जाकर न पड़े। उसके बाद आनंद ही आनंद से रहिये।

यह समय समस्याओं पर ध्यान देने का नहीं है। यह समय है अपने आप पर ध्यान देने का। अपने आप पर ध्यान दीजिए। समस्याएं तो ऐसी हैं — समस्याएं कहीं जा नहीं रही हैं, उनको आपका नंबर अच्छी तरीके से मालूम है, वह कहीं जा नहीं रही हैं। पर, आप जा रहे हैं तो इसलिए इस समय में ध्यान से, प्रेम से, प्यार से, अपने साथ रहना सीखें, अपने जीवन को सफल करें।

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