प्रेम रावत जी:
सभी श्रोताओं को हमारा नमस्कार!
यह हिंदी की जो ब्रॉडकास्ट है, यह 40वीं ब्रॉडकास्ट है और हर दिन हम अंग्रेजी और हिंदी की ब्रॉडकास्ट करते आये हैं तो यह 80 ब्रॉडकास्ट हो गई हैं कुल मिलाकर। और हमने यही भाव प्रकट करना चाहा कि एक तो इन परिस्थितियों को देखते हुए यही हम सब लोगों को कहना चाहते थे कि "भाई डरने की कोई बात नहीं है जो तुम्हारे अंदर, जो सचमुच आत्मबल है इसको इस्तेमाल करना इस समय कितना जरूरी है।" क्योंकि लोग तरह-तरह की बातें करते हैं और शुरू से ही हम इन बातों को लेकर के बैठ जाते हैं। अपने दिमाग में इन बातों को आने देते हैं यह नहीं हम कभी कहते हैं "भाई! यह क्यों कह रहे हो या क्या प्रमाण है तुम्हारे पास!" प्रमाण नहीं मांगते हैं, जैसे किसी ने कह दिया, वैसे ही हम स्वीकार कर लेते हैं।
ठीक है! कोई मज़ाक की बात हो, कोई चुटकुला हो, कोई मज़ाक कर रहा हो या किसी ने कोई बात कह दी, ज्यादा बातों का असर नहीं पड़ता है, परन्तु कुछ बात होती हैं जिनका बहुत ज्यादा असर पड़ता है और वह ऐसा घर कर लेते हैं हमारे अंदर फिर उससे भय पैदा होता है और मनुष्य यह जानने की कोशिश करता है कि क्या हो रहा है, क्योंकि भय में सबसे पहले भय में क्या होता है! अब जब कमरे के अंदर बत्ती जली हुई है और सबकुछ प्रकाश में है, तो कोई अगर आवाज भी हो तो आदमी उस तरफ देखेगा "क्या है" और अगर कुछ नहीं दिखाई देगा तो उसको तसल्ली हो जाएगी। परन्तु वही बात अगर अँधेरे कमरे में हो, कमरा अंधेरा है, कमरे में और कुछ नहीं दिखाई देता है और कोई आवाज हो तो मनुष्य को यह लगेगा, जो आदमी वहां बैठा हुआ है, उसको यह लगेगा कि "क्या थी, क्या चीज थी, किसने आवाज की!" क्योंकि वह देख नहीं पाता है तो डर और बढ़ता है। तो डर एक ऐसी चीज है कि मनुष्य को अंधा बना देती है। जब वह अँधा बन जाता है डर से तो वह कुछ भी कर देगा, कुछ भी अपने दिमाग में ले आएगा, किसी भी बात को समझ लेगा, किसी भी बात को वह सच स्वीकार कर लेगा, चाहे वह सच हो या न हो।
अब कई लोग हैं जो यह कहते हैं कि "भाई! तुम ऐसा नहीं करोगे, ऐसा नहीं करोगे, ऐसा नहीं करोगे, तो नरक जाओगे।" नरक की बात करते हैं और फिर बात करते हैं कि "तुम ऐसा करोगे, ऐसा करोगे तो स्वर्ग जाओगे।" तो नरक से लोगों को डराते हैं और थोड़ी-बहुत जो रिश्वत की तरह ही समझ लीजिये कि स्वर्ग की बात करते हैं कि "तुम ऐसा करोगे, ऐसा करोगे तो स्वर्ग जाओगे!" पर सबसे बड़ा स्वर्ग और सबसे बड़ा नरक यहां है, इस पृथ्वी पर है।
लोग कितने परेशान हो रहे हैं इस समय, नरक है उनके लिए। कई लोग हैं जो अपने घर भी नहीं जा सकते। बेचारों के लिए खाने के लिए कुछ नहीं है, रहने के लिए कोई जगह नहीं है, गर्मी पड़ रही है, जो कुछ भी है, उनके लिए कुछ भी नहीं है, तो इससे बड़ा नरक क्या हो सकता है। और यहां स्वर्ग भी है, जो अपने अंदर इस बात को समझ ले कि उसके अंदर क्या विराजमान है, उसकी जिंदगी क्या है, तो जिसने यह जान लिया, जिसने यह पहचान लिया उसके लिए स्वर्ग ही स्वर्ग है। क्योंकि जिस मनुष्य ने यह जान लिया कि यह सिर्फ मैं यहां किसी एक्सीडेंट की वजह से नहीं हूं, पर यहां मैं हूं और जो यहां हूं मैं कुछ कर सकता हूं। मैं अपने जीवन को सफल बना सकता हूं। मैं अपने हृदय को आभार से भर सकता हूं। मैं इस जीवन का असली आनंद जो हृदय से लिया जाता है, जो एक ऐसी चीज को जानकर लिया जाता है जो तुम्हारे अंदर विराजमान है, जिसको "सच्चिदानंद" कहते हैं, जिसको "परमानंद" कहते हैं वह तुम्हारे अंदर है और जब तुम उसको जान जाओगे, जब उसको तुम पहचान जाओगे तो तुम्हारे लिए स्वर्ग ही स्वर्ग है।
क्योंकि फिर यह सारी चिंताएं जो हैं, जो यह आवाजें आ रही हैं — यह आ तो रही हैं, यह तो बंद नहीं होंगी, परन्तु बत्ती जली हुई है जहां से भी आवाज आ रही है, मनुष्य देख सकता है "कहां से आ रही है, क्या है इसका तुक, कोई तुक नहीं है, कुछ भी नहीं है या यह थी या यहां से आई, इसलिए आई" यह बात स्पष्ट हो जाती है तो फिर मनुष्य को डरने की जरूरत नहीं है, फिर मनुष्य को भटकने की जरूरत नहीं है। अभी तो मनुष्य भटक रहा है — अब लोग यह बात कहते हैं कि “जिसने जाना नहीं वह भटक रहा है”, परन्तु भटकने का मतलब क्या हुआ ? कैसे भटक रहा है ? तो कैसे भटक रहा है वह — बाहर से भले ही ना भटक रहा हो, यह नहीं कि बाहर कहीं इधर जा रहा है, उधर जा रहा है। वैसे तो बहुत लोग हैं जो इधर जा रहे हैं, उधर जा रहे हैं। परन्तु अंदर का भी भटकना होता है उसको यह नहीं मालूम है, उसको सूझ नहीं रहा है कि —
घट अंधियार नैन नहि सूझें,
ज्ञान का दीपक जलाय दीजो रे।
गुरु पैंया लागू नाम लखाय दीजो रे।।
पहले ही इस बात के लिए कहा है कि —
घट अंधियार नैन नहि सूझें।
दिखाई नहीं दे रहा है कि क्या है!
ज्ञान का दीपक जलाय दीजो रे।
गुरु पैंया लागू नाम लखाय दीजो रे
गहरी नदिया, अगम भये धरवा।।
खैई के पार, लगाय दीजो रे।
गुरु पैंया लागू नाम लखाय दीजो रे।।
क्या इसमें भाव है कि मेरे साथ क्या हो रहा है कि इस नदी में, इस भवसागर की नदी में बहुत — "अगम भये धरवा" — बहुत तेजी से धार चल रही है। अब तेजी से धार चल रही है, उसका अभिप्राय क्या हुआ कि मैं उसमें बह जाऊँगा, इतनी तीव्र तरीके से चल रही है वह कि मैं उसमें तैर नहीं सकता, डूब जाऊँगा, मुझे वह ले जायेगी। तो क्या हम कभी अपने जीवन में सोचते हैं — जब हम चलते हैं अपने घर से, किसी भी काम के लिए चलते हैं, तो क्या हम सोचते हैं कि इस नदी में पैर रख रहे हैं, इस भवसागर की नदी में पैर रख रहे हैं और यह बहुत गहरी है और इसमें धार भी बहुत तीव्र चल रही है। और मेरे को खेकर के पार कर दो। मैं इसमें तैर नहीं सकता।
समझने की बात है भटक तो रहे हैं हम, पर अंदर भटक रहे हैं। समझ में नहीं आता है "क्यों हैं हम यहां!" अब ख्याल भी नहीं आता है लोगों को, ख्याल भी नहीं आता है। मैं किसी को डराने की बात नहीं कर रहा हूं। क्योंकि हमारा किसी धर्म से लेना-देना नहीं है। मैं धर्म की बात नहीं कर रहा हूं। हम तो स्वर्ग की बात करते हैं तो हम कहते हैं स्वर्ग भी यहां है। नरक की बात करते हैं तो कहते हैं नरक भी यहां है। और अगर तुम उस नरक से छुटकारा पाना चाहते हो तो उसकी भी विधि तुम्हारे पास है, उसकी भी विधि संभव है और अगर तुम स्वर्ग में जाना चाहते हो तो वह भी संभव है वह भी तुम्हारे अंदर है, परंतु कभी हम यह सोचते नहीं हैं। यह सारी चीजें कोई बताता है तो बड़ी अच्छी लगती है "हां जी! स्वर्ग जाना चाहते हो ? हां जी! जाना चाहते हैं!" परन्तु स्वर्ग में हम क्यों नहीं हैं, उस स्वर्ग का एहसास क्यों नहीं कर रहे हैं ? क्यों नहीं कर रहे हैं, क्योंकि हम भटक रहे हैं। कभी किधर जाते हैं, कभी किधर जाते हैं, कभी किसी से पूछते हैं यह तो — अगर मैं यह आपसे कहूं कि "आप भिखारी हैं" तो आप कहेंगें "नहीं! हम भिखारी नहीं हैं। हमारे पास तो पैसा है!" पर आप भिखारी हैं, कैसे भिखारी हैं ? मैं बताता हूँ आपको।
आप अपने बच्चों से भीख मांगते हैं। बच्चे आपसे भीख मांगते हैं, आप बच्चों से भीख मांगते हैं। किसकी भीख मांगते हैं, किस चीज की भीख मांगते हैं "मेरा नाम रोशन करना, अच्छा बच्चा बनना, सफल होना इस जिंदगी के अंदर, पढ़ाई-लिखाई बड़े प्रेम से करना ताकि तू बड़ा राजा, मेरा राजा बेटा बन सके" यह भीख मांगते हैं। बीवी से भीख मांगते हो क्या कि "सब कुशल-मंगल रहे, आनंद से रहे!" पत्नी तुमसे भीख मांगती है क्या भीख है वह कि "सब कुशल-मंगल रहे, तुम अपनी नौकरी अच्छी तरीके से करो, तुम कहीं भटको ना, सब ठीक रहे" यह वह मांगती है। बड़े-बड़े नेता जब इलेक्शन का टाइम आता है तो नागरिकों से भीख मांगते हैं, जब अपना काम करना होता है तो नागरिक बड़े-बड़े नेताओं से भीख मांगते हैं। भीख सब मांग रहे हैं, एक-दूसरे से मांग रहे हैं, पर घमंड इतना है कि कोई इस बात को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि "हां हम मांग रहे हैं।"
अब जो उस बनाने वाले से भीख मांगे वह तो मैं समझ सकता हूं। जो दानी है उससे, जो असली दानी है, जो असल में कुछ दान भी कर सकता है जिससे कि हमारा भला हो, तो ऐसे से दान मांगना कोई खराब बात नहीं है। ऐसे से भीख मांगना कोई खराब बात नहीं है। परन्तु ऐसी चीज से भीख मांगना, जो अगर भीख भी दे उससे हमारा भला नहीं होगा। तो यह क्या माँगना हुआ ? यह कैसे माँगना हुआ ? इसका क्या तुक बनता है! परन्तु यही हम मांगते-फिरते हैं। देने की क्षमता होनी चाहिए, पर क्या दे सकते हैं आप! एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को क्या दे सकता है ? एक मनुष्य दूसरे मनुष्य को अपना प्यार दे सकता है, इज्जत दे सकता है, उसकी बात समझ सकता है, उसकी बात सुन सकता है, यह भी तो उपहार हैं और यह तो हम किसी से मांगते भी नहीं हैं, परंतु यह किसी को देना कितनी अच्छी बात है और लेने वाले के लिए भी बड़ी सुन्दर बात है और देने वाले के लिए भी सुंदर बात है।
देखिये कुछ चीजें होती हैं संसार के अंदर जैसे, पैसा — जितना आप देंगे लोगों को उतना ही आपका कम होगा। जितना आप देंगे उतना ही आपका कम होगा। परंतु कुछ ऐसी चीजें होती है जितना आप देंगे उतना ही बढ़ेगा। "प्यार" एक ऐसी चीज है कि जितना आप देंगे वह और बढ़ेगा। इज्जत एक ऐसी चीज है कि जितनी आप देंगे वह और बढ़ेगी, आनंद एक ऐसी चीज है (जो परमानंद की बात कर रहा हूं, सच्चिदानंद की बात कर रहा हूं, उसकी चर्चा की बात कर रहा हूं) जितना आप देंगे वह और बढ़ेगा। पर इस माया का क्या कानून है कि जितना आप देंगे उतना ही आपका कम होगा। उतना ही आपका कम होगा। किसी को कपड़े देंगें उतने ही कपड़े आपके कम होंगें। जूते देंगें, उतने ही जूते आपके कम होंगे। आप यह जो सारी चीजें हैं जितना देंगे उतना ही कम होगा और वह जो चीज है, जो अंदर की चीज है वह जितना देंगें वह उतना बढ़ेगा।
यह अगर समझ में आ गयी बात, तो इससे कितनी चीजें पलट सकती हैं हमारे लिए। जहां नरक था वहां स्वर्ग बन सकता है। अब लोग हैं लग जाते हैं "अब यह क्या हो रहा है, क्या हो रहा है" छोटी-सी भी बात होती है तो उससे घबरा जाते हैं। "मेरे को कोई पसंद नहीं करता है, मेरे को कोई नहीं पूछता है, सब मेरे से नफरत कर रहे हैं!" तुमको कैसे मालूम! तुम अंतर्यामी कब से बन गए! तुम अंतर्यामी कब से बन गए! तुमको क्या मालूम कि वह क्या सोच रहा है! तुम बैठे-बैठे उसके लिए सोच रहे हो और वह क्या सोच रहा है तुमको क्या मालूम। वह सोच रहा है कि उसके पैसे कैसे बढ़ेंगे, वह सोच रहा है अपनी गर्लफ्रेंड के बारे में, अपने बॉयफ्रेंड के बारे में। तुम्हारे बारे में कौन सोच रहा है! तुम ही सोच रहे हो। पर लोगों को — बत्ती बुझी हुई है और "यह मन भाग रहा है, भाग रहा है, भाग रहा है, कभी किधर की तरफ जाता है, कभी किधर की तरफ जाता है, अब यह हो जाएगा, वह हो जाएगा, मैं कहीं की नहीं रहूंगी, मैं कहीं का नहीं रहूंगा, ऐसा हो जायेगा मेरा!" यह सारी वही बातें हैं, "बैठे-बैठे सबकुछ पकता रहता है, पकता रहता है, पकता रहता है, पकता रहता है, पकता रहता है।"
अब वही बीरबल की बात मेरे को बार-बार याद आती है। एक बार अकबर ने बीरबल से कहा कि "बीरबल मुझे पांच बेवकूफ लोग लाओ।"
बीरबल ने कहा — "जहाँपनाह! खोजना पड़ेगा पता नहीं कहां मिलेंगे!"
कहा — "नहीं! मेरे को पांच बेवकूफ लोग चाहिए।"
तो बीरबल ने कहा, "अजीब-अजीब बातें करते रहते हैं बादशाह! पर उनका आदेश है कि पांच बेवकूफ आदमी लाने हैं तो मैं जाता हूं, खोजता हूं।"
तो एक आदमी देखा (कहाँ खोजूं मैं तो बीरबल जा ही रहा था रोड पर) — तो देखा एक आदमी पैर ऐसे हिला रहा, जमीन पर लेटा हुआ। गड्ढे में गिरा हुआ, लेटा हुआ और पैर ऐसे-ऐसे हिला रहा और हाथ ऐसे रखा हुआ। हाथ ऐसे रखा हुआ (दोनों हाथ)।
तो बीरबल उसके पास गया, "भाई! तू कर क्या रहा है ?"
कहा, "जी मैं घर से चला था मेरी बीवी ने कहा था कि खिड़की के लिए, हमारी जो खिड़की है घर में उसके लिए पर्दा लाना है, उसके लिए कपड़ा लाना है। और वह खिड़की इतनी चौड़ी है तो अब मैं उठ नहीं सकता हूं, मैं गिर गया अब उठ नहीं सकता हूं। क्योंकि यह जो नाप है अगर मैं इधर-उधर करूं तो यह इधर-उधर हो जाएगा तो इसलिए नाप को तो मैंने यहीं का यही रखा हुआ है और मैं उठने की कोशिश कर रहा हूं, इसलिए मेरे पैर चल रहे हैं।"
बीरबल ने कहा — "ठीक है! एक, पहला वाला बेवकूफ आदमी तो मिल गया।"
दूसरा खोज रहा है, कहाँ मिलेगा! पहले वाले को तो उसने कहा कि "भाई! कल आना मेरे पास, मैं तेरे से बात करना चाहता हूं।"
दूसरा वाला खोज ही रहा था बीरबल, इधर देखा कि एक आदमी अपने गधे पर आ रहा है और बड़ा सा बोझ (जो गधे पर होना चाहिए) वह उसने अपने सिर पर रखा हुआ है और खुद गधे पर बैठा हुआ है।
उसने कहा, "भैया! तू क्या कर रहा है ?"
कहा, "जी! मेरे को मेरे गधे से बहुत प्रेम है और मैं नहीं चाहता हूँ कि यह जो बोझ मैं उठाऊं, यह गधे पर हो, क्योंकि मेरा प्रेम है गधे से तो मैं उठा रहा हूँ उसका बोझ।"
तो बीरबल ने कहा, "यह दूसरा बेवकूफ मिल गया!"
क्योंकि वह गधे पर भी बैठा है और उसने अपने सिर पर बोझ लिया हुआ है, तो गधे को तो उतना ही बोझ होगा। उसका भी और जो उसने सिर पर लिया हुआ है। पर वह सोच रहा है कि नहीं होगा।
तो शाम का टाइम हो गया था, अंधेरा भी होने लगा तब बीरबल ने कहा "अब कहां खोजूं मैं!"
तो देखा एक आदमी एक लाइट थी (जो सड़क के किनारे लाइट होती हैं) उसके नीचे वह कुछ खोज रहा है।
तो उसने कहा, "भाई! क्या कर रहे हो?"
कहा, "जी! मैं अंगूठी खोज रहा हूँ।”
कहा, "कब खोयी अंगूठी, कहाँ खोयी अंगूठी ?"
कहा, "मैं जंगल गया था आज और जंगल में अंगूठी खो गयी मेरी।”
बीरबल ने कहा "जंगल में खो गयी है तो जंगल में खोजो, यहाँ क्या खोज रहे हो!"
कहा, "जंगल में लाइट थोड़ी है यहां लाइट है, इसलिए मैं यहां खोज रहा हूं।"
तो बीरबल ने कहा — "ठीक है! यह तीसरा बेवकूफ भी मेरे को मिल गया।"
पांच बेवकूफ की बात थी। हंसता हुआ दूसरे दिन बीरबल पहुंचा और कहा कि " जी! आपके बेवकूफ सारे मिल गए हैं। पांच बेवकूफ मिल गए हैं।"
पहले की बात बताई, तो बादशाह खूब हंसा कि "हां! सचमुच में यह बेवकूफ है।"
दूसरे की बात बताई, कहा, "हां! यह भी बेवकूफ है।"
तीसरे की बात बताई, कहा, "हां! यह भी बेवकूफ है।"
पर अकबर ने कहा, "चौथा कहां है ?"
कहा, "हुजूर! चौथा तो मैं हूँ कि आपने मेरे को यह कहा कि जाकर बेवकूफों को ढूंढो, मैं बेवकूफों को ढूंढने में लगा रहा, तो चौथा बेवकूफ तो मैं हूँ।"
अकबर ने कहा, पांचवां?
कहा, "हुजूर! गुस्सा मत होना, पर पांचवें बेवकूफ आप हैं, जो आप पांच बेवकूफों को चाहते हैं।"
पर सुनिए, इसका क्या मतलब है! पहला जो बेवकूफ था — किसी ने इसको कह दिया कि इतनी बड़ी चाहिए चीज और उसी पर लगा हुआ है। क्या अनुभव है उसका! कुछ मालूम नहीं! क्या हो रहा है उसकी जिंदगी में! कुछ मालूम नहीं! परंतु उसको यह बता दिया गया है कि खिड़की इतनी चौड़ी है और इतनी चौड़ी खिड़की के लिए पर्दा चाहिए, कपड़ा चाहिए तो वह उसको लिए हुए है। यह नहीं है कि गिर गया है तो उठ जाएँ, चाहे उसको वापिस क्यों ना जाना पड़े और कोई और चीज से वह नापे, ताकि वह वहां पहुंचे और कपड़ा ला सके। (यह तो हुआ पहला वाला)
बोझ वाला — जो गधे वाला था, यही लोग कर रहे हैं। सारी दुनिया कर रही है। बोझ रखा हुआ है अपने सिर पर, अपने कंधों पर, कंधे टूट रहे हैं पर कह रहे हैं कि "नहीं, नहीं! मैं किसी और को यह बोझ नहीं देना चाहता हूं अपने ही पास रखूँगा।"
जो तीसरा था — वह तो सबके साथ है ही। "है कहाँ और ढूंढे कहां" कैसे लगेगी हाथ में, कैसे आएगा हाथ में, कैसे वह चीज समझ में आएगी! जो चीज घट में है उसको कहीं और ढूंढ रहे हैं, तो कैसे मिलेगा ?
जो वो दो बेवकूफ थे — बीरबल, जो असली चीज को नहीं जानते हैं जो नकली को ही परखते रहते हैं, परखते रहते हैं, परखते रहते हैं, तो वह भी बेवकूफ हैं। और वह इच्छा करने वाला कि “बेवकूफी क्या होती है, मेरे को यह मालूम होना चाहिए” क्योंकि जो मनुष्य नरक के बारे में ज्यादा जानता है स्वर्ग के बारे में कम जानता है उसका क्या होगा वह तो गलत सोच रहा है! क्योंकि सोचना अगर उसको है तो स्वर्ग के बारे में सोचना चाहिए। जानना उसको कुछ है तो यह जानना चाहिए कि वह स्वर्ग कहां है, उसके अंदर वह स्वर्ग कहां है ?
तो अब यह आखिरी वाली इस सीरीज़ में, आखिरी वाली यह ब्रॉडकास्ट है और अब PEP की भी बात आई थी कि PEP ट्रेनिंग हो तो उसके लिए सारी चीजें इकट्ठा कर रहे हैं और हम चाहते हैं कि प्रोग्राम भी हमारे हों, तो अभी तो लॉकडाउन है, तो अभी आ नहीं सकते तो हम सोच रहे थे कि वर्चुअल प्रोग्राम हों ताकि हम जैसे यहां हैं बैठे वैसे ही सत्संग सुनाएं, पर वह पूरा प्रोग्राम हो। तो यही हमारी इच्छा है और इसके लिए हम तैयारी करेंगे, तो यह जो ब्रॉडकास्ट है यह यहीं समाप्त होगी और दिखाया जायेगा — और चीजें और हमारे वीडियोस हैं वह दिखाई जायेंगी। जब तैयार हो जायेगा सबकुछ तो फिर हम वापिस आपके पास आयेंगे।
सभी लोगों को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार! कुशल-मंगल रहें और अपना ख्याल रखें।