ऐंकर : सर! आपका बहुत-बहुत स्वागत है 92.7 बिग एफ.एम. में।
प्रेम रावत जी : बहुत मेरे को खुशी है कि ये मेरे को मौका मिला कि आपके जो श्रोता हैं, उन तक मैं अपनी बात पहुंचा सकूं।
ऐंकर : सर! आपकी जिंदगी कैसी रही है ?
प्रेम रावत जी : मेरी जिंदगी जैसी सबकी है — कभी अच्छा है, कभी बुरा है! कभी ऊपर जाती है, कभी नीचे जाती है! कुछ ये होता है; कभी कुछ होता है, कभी कुछ होता है, कभी कुछ होता है। परंतु इसका यह मतलब नहीं है कि मेरे अंदर शांति नहीं है। इसका मतलब यह नहीं है कि जब अच्छा भी हो रहा है, तब भी मेरे अंदर शांति है; जब बुरा भी हो रहा है, तब भी मेरे अंदर शांति है। अगर मैं अपनी — अपनी तरफ झांकना, अपने घट में झांकना न भूलूं तो उस दृश्य से मेरे को वंचित नहीं होना पड़ेगा। ये तो मैं जानता हूं, ये तो मैं समझता हूं। परंतु इसको — इसका अभ्यास करने के लिए कोई आसान काम नहीं है। इसका अभ्यास करना पड़ता है।
ऐंकर : सर! आप किसके करीब बहुत ज्यादा हैं और क्यों ?
प्रेम रावत जी : जो मेरे अंदर स्थित शक्ति है, मैं तो यही समझता हूं कि अगर मेरा कोई दोस्त है तो वो है। क्योंकि स्कूल में जो मेरे दोस्त थे, कई तो गुजर गए और उनसे हमेशा मिलना नहीं होता है, जैसे स्कूल में थे। उसके बाद जो दोस्त थे, वो भी इधर-उधर हो गए।
तो कौन है ऐसा दोस्त मेरा, जो आज भी मेरे साथ है और उस समय तक मेरे साथ रहेगा, जबतक मैं आखिरी स्वांस न लूं ? तो एक अंदर है दोस्त मेरा। और मैं उसी के करीब होना चाहता हूं और कोशिश कर रहा हूं। अभी भी कोशिश कर रहा हूं। क्योंकि कई बार आता हूं और कई बार अपनी वजह से — क्योंकि जिस बात को मैं नहीं समझता हूं, उसी वजह से मैं दूर भी चला जाता हूं। जब दूर चला जाता हूं तो मेरे को लगता है कि ‘‘नहीं! मेरे को पास रहना चाहिए!’’ जब पास रहता हूं तो मेरे को ये याद रखना है कि मैं कुछ भी करूं, यहां से दूर न होऊं!
ऐंकर : सर! जिंदगी में, लाइफ में मतलब, प्रॉब्लम्स, चैलेंजेज़ आते रहते हैं।
प्रेम रावत जी : बिल्कुल आते हैं।
ऐंकर : सर! इनका सामना एक्चुअली कैसे करना चाहिए ?
प्रेम रावत जी : देखिए! ये चैलेंज कहीं आसमान से नहीं आते हैं। ये हमारी करनी के फल हैं। ये हम ही करते हैं, इनका बीज हम ही बोते हैं। तो हम नहीं समझते हैं कि बीज बोते हैं।
अब देखिए! मनुष्य जो है, आज का जो मनुष्य है, वो चाहता है कि भगवान अपने कानूनों को उसके लिए तोड़े!
ऐंकर : अपने कानूनों को उसके लिए तोड़े ?
प्रेम रावत जी : हां! जो भगवान ने प्रकृति के कानून बनाए हुए हैं — मनुष्य चाहता है कि भगवान उस व्यक्ति के लिए उन कानूनों को तोड़ दे! तो मनुष्य समझता है कि मेरे पास पैसा नहीं है। मेरे को पैसा चाहिए! भगवान से जाकर प्रार्थना करता है, ‘‘हे भगवान! मेरे को खूब सारा पैसा दे दे!’’
अब कहां से ? मतलब, किस काम के लिए ? काहे के लिए ? क्या है ? कहां से आएगा ? नहीं! ‘‘दे दे! दे दे! वो तोड़ दे!’’
अब देखिए! मैं सोच रहा था एक दिन कि जब जादूगर लोग कई बार जादू दिखाते हैं — तो कोई कागज लेता है, उसको मशीन में डालता है तो उसमें से सौ का नोट निकल आता है और सब लोग ताली बजाते हैं।
देखिए! हुआ ये है कि आपको बेवकूफ बनाया गया है। सौ प्रतिशत आपको बेवकूफ बनाया गया है। परंतु इस क़दर बेवकूफ बनाया गया है कि आपको अच्छा लगा। {हँसते हुए} तो मनुष्य जब देखता है कि प्रकृति के कानूनों को तोड़ा जा रहा है तो उसको लगता है कि ये चमत्कार है! ये चमत्कार है!
परंतु अगर भगवान राम को देखा जाए तो भगवान राम ने कानून नहीं तोड़े। मां से जन्म लिया। अब आपको — देखिए! छोटा बच्चा जब चलने की कोशिश करता है तो गिरता भी है, दर्द भी होता है, रोता भी है! तो अगर भगवान को कानून तोड़ने का ही कोई रिवाज है तो वो सारा बायपास कर देते! पेड़ से आ जाते! कहीं और से आ जाते, ताकि न मां की दिक्कत रहे, न चलने की दिक्कत रहे। नहीं! परंतु ऐसा नहीं किया। भगवान कृष्ण ने भी ऐसा नहीं किया। परंतु मनुष्य चाहता है कि वो किसी तरीके से प्रकृति के जो कानून, जो भगवान के बनाए हुए हैं, भगवान ही उनको तोड़ दे, ये उसकी कृपा हुई! परंतु ये उसकी कृपा नहीं है। कृपा उसकी ये है कि आपको जीवन मिला है!
आप क्या थे ? देखिए! मैं कई बार ये कहता हूं कि दो दीवालें हैं। एक दीवाल से आप आए, आपका जो जन्म हुआ और ये बीच में आपकी जिंदगी है और एक दीवाल दूसरी है, उससे जाना पड़ेगा। कहां जाएंगे आप ? क्या थे आप ? अगर वैज्ञानिकों की तरफ देखें, जो वैज्ञानिक लोग हैं, तो उनका कहना है कि आप धूल थे — डस्ट! आप धूल थे, अब आप धूल नहीं हो! हो, परंतु अभी धूल नहीं लगते हो! और जब आप उस दीवाल से जाएंगे तो फिर आप धूल बन जाएंगे।
तो मैं लोगों से कहता हूं कि अगर ये सच है तो ये आपका जो जीवन है, ये एक आपका vacation है, छुट्टी है धूल बनने से। धूल ही आपको रहना है करोड़ो-करोड़ों सालों तक! वैज्ञानिकों का यही कहना है। और इस संसार के अंदर — अभी मैं एक मैनेजिंग यूनिवर्सिटी में था। तो वहां यही बात मैंने कही तो वहां पढ़े-लिखे लड़के थे तो उन्होंने कहा कि हां! वैज्ञानिकों का तो यही कहना है कि पहले भी धूल थे। अब धूल नहीं हैं। फिर धूल बनेंगे। और सारा संसार जो है, धूल का बना है। पृथ्वी धूल की बनी हुई है। सूरज भी धूल का बना हुआ है। चंद्रमा भी धूल का बना हुआ है। सारे jupiters, planets, sun, stars, सबकुछ धूल, धूल, धूल, धूल, धूल!
तो ये आपका एक होली-डे है धूल बनने से। तो मेरा प्रश्न ये है कि ‘‘ये होली-डे कैसा चल रहा है आपका ?’’
ऐंकर : फर्स्ट क्लास।
प्रेम रावत जी : क्योंकि अगर दुविधा में हैं आप, परेशान हो रहे हैं — ये परेशानी है, वो परेशानी है, तो ये कोई होली-डे नहीं हुआ। क्योंकि ये होली-डे है तब, जब आप इसमें relaxed हैं। जब इसको आप इंज्वॉय कर रहे हैं। हर एक दिन को इंज्वॉय कर रहे हैं, तब ये बनेगा होली-डे! और ये सबसे बड़ी बात है!
ऐंकर : यस सर! सर! चैलेंजेज़, जैसे कि मैंने अभी पहले भी कहा कि सभी की लाइफ में आते हैं तो आपकी भी लाइफ में चैलेंजेज जरूर आए होंगे।
प्रेम रावत जी : आते हैं!
ऐंकर : आपने उनका सामना कैसे किया, या कैसे करते हैं सर ?
प्रेम रावत जी : देखिए! चैलेंजेज जब आते हैं तो उसका ये मतलब नहीं है कि हर एक चैलेंज में आप सक्सेसफुल होंगे। पर आप कुछ कर सकते हैं। आप हिम्मत रखिए, धीरज रखिए और अपने दिमाग का प्रयोग कीजिए। अपने डर का नहीं, अपने दिमाग का प्रयोग कीजिए। हिम्मत से आगे चलिए। आप मनुष्य हैं! हिम्मत से आगे चलिए। आपके पास हिम्मत है। ये आपकी ताकत है! अगर आप अपने आपको जानेंगे तो आपको पता लगेगा कि आपकी कमजोरियां क्या हैं और आपको ये पता लगेगा कि आपकी ताकतें क्या हैं ? अपने आपको जानना, क्यों ? इसीलिए तो जरूरी बन जाता है! क्योंकि हमको नहीं मालूम कि हमारी कमजोरी क्या है, हमारी ताकतें क्या हैं ? और अगर ताकत से चलेंगे तो किसी भी समस्या का — चैलेंज का सामना किया जा सकता है।
अब देखिए! एक बार मैं इंग्लैंड में था। ट्रैफिक बहुत हो गया है अब लंदन में। तो मैं बैठा हुआ था कार में और मैंने देखा कि एक व्यक्ति, जो visually challenged था, देख नहीं सकता था बेचारा। तो वो अपनी छड़ी लिए हुए और जा रहा है और काफी तेज चल रहा था वो! कार से भी तेज! कार अटकी हुई थी ट्रैफिक में। फिर थोड़ी देर के बाद कार चलने लगी तो उसको ओवरटेक किया, फिर कार रुक गई तो फिर वो आया। फिर मैं देख रहा था — मैं देख रहा था उसकी तरफ कि वो बड़ी अच्छी तरीके से जा रहा है और बड़ी तेज जा रहा है! मैं उसकी तरफ देखता रहा, देखता रहा, देखता रहा काफी समय तक। तब मेरे को लगा — अच्छा! ये क्या कर रहा है ?
ये अपनी छड़ी से साफ रास्ते को देख रहा है। कहां रास्ता साफ है ? वो ये नहीं देख रहा है कि उधर खंभा है, उधर ये बिल्डिंग है, उधर ये लगा हुआ है, उधर ये लगा हुआ है! है न ? वो सिर्फ ये देख रहा है कि कहां रास्ता साफ है ? और कितना साफ है कि वो उससे गुजर जाए। बस!
ऐंकर : बाकी चीजों को वो देख ही नहीं रहा है।
प्रेम रावत जी : देख ही नहीं रहा है। पर हम क्या करते हैं ? हम और चीजों को देखते हैं। हम पहाड़ को देखते हैं। उस रास्ते को नहीं देखते हैं, जो पहाड़ के साथ है। अगर पहाड़ है तो कहीं न कहीं नदी होगी और नदी रास्ता बनाएगी और आप उस रास्ते से कहीं भी जा सकते हैं। तो जरा अपना focus shift कीजिए, आप obstacles को नहीं देखिए! आप clearpath को देखिए!
ऐंकर : परफेक्ट सर! सर! आपकी जिंदगी का कोई ऐसा incident, जिसने आपकी लाइफ को चेंज कर दिया हो ?
ऐंकर : परफेक्ट सर! सर! आपकी जिंदगी का कोई ऐसा incident, जिसने आपकी लाइफ को चेंज कर दिया हो ?
प्रेम रावत जी : हां! एक तो था, पर मेरे को याद नहीं है वो। पर मैं जानता हूं कि वो हुआ है जब मैंने पहला स्वांस लिया। मेरी सारी जिंदगी को बदल दिया। {हँसने लगते हैं}
ऐंकर : अरे सर! {हँसने लगते हैं}
प्रेम रावत जी : मेरे को जीवित कर दिया! उससे पहले मैं क्या था ? अब, मैं स्वांस तो ले नहीं रहा था! जब मैं बाहर आया तो किसी न किसी तरीके से — या तो मेरे को उल्टा पकड़ा होगा या कुछ किया होगा, परंतु मेरे को अच्छी तरीके से मालूम है, क्योंकि मैंने देखा है बच्चों का जन्म होते हुए, मेरे अपने, कि उस समय, जब बच्चा बाहर आता है तो ख्याल एक ही चीज पर जाता है। ये नहीं कि वो लड़का है या लड़की है; ये कैसा है, कैसा नहीं है! सिर्फ एक चीज पर जाता है — स्वांस ले रहा है या नहीं ?
चाहे वो किसी भी धर्म का हो, किसी भी मजहब का हो; अमीर हो, गरीब हो — स्वांस ले रहा है या नहीं ? और जैसे ही — अगर वो स्वांस नहीं ले रहा है तो डॉक्टर उसको उल्टा पकड़ता है और एक देता है पीछे से, जबतक वो स्वांस लेना शुरू न कर दे। और जब वो स्वांस लेना शुरू करता है तो वो घर आ सकता है। और अगर वो स्वांस नहीं लेगा तो वो घर नहीं आएगा। अस्पताल से ही कहीं और जाएगा। हां! जबतक वो स्वांस ले रहा है, उसके लिए — उसके चाचा होंगे, उसके मामा होंगे, उसकी मां होगी, उसके बाप होंगे, उसके भाई होंगे, उसके दोस्त होंगे, उसके दुश्मन होंगे, उसके सबकुछ होगा। और जिस दिन वो स्वांस लेना बंद कर देगा, उसको अपने ही घर से ले जाएंगे।
वहां रह नहीं सकते। ये स्वांस का चमत्कार है! और इसको नहीं समझेंगे अगर — तो यही एक चीज है, जो हुई मेरे भी जीवन के अंदर! और आज भी वो चीज मेरे अंदर आ रही है और जा रही है।
ऐंकर : राइट सर! सर! आपके हिसाब से धर्म, रिलिजन, मजहब क्या है और क्यों ?
प्रेम रावत जी : देखिए! ये लोगों की आस्था है। लोग जिस चीज में विश्वास करना चाहते हैं, ये करते हैं और इसमें कोई दिक्कत नहीं है। कई लोग हैं, जो हिन्दुस्तान में हैं, सब्जियां खाते हैं। कई लोग हैं — नॉर्थपोल की तरफ या अपर कनाडा में, जो सब्जियां नहीं खाते हैं। मतलब, सब्जी की बात है कि उसमें गरम मसाला और टमाटर का छौंक या प्याज या लहसुन या जो कुछ भी है। कई लोग हैं, जो कि प्याज-लहसुन नहीं खाते हैं। कई लोग हैं, जो फुलका खाते हैं। कई लोग हैं, जो फुलका नहीं खाते हैं। इसका मतलब ये नहीं है कि वो खाते ही नहीं हैं। खाते हैं। कुछ न कुछ जरूर मनुष्य को खाना है। कोई साफ पानी पीता है, कोई इतना साफ पानी नहीं पीता है। पर पानी सब पीते हैं।
आजकल हिन्दुस्तान में कई शहर हैं, जिनमें हवा बहुत contaminated है, polluted है, प्रदूषण बहुत हो गया है। और इसका ये मतलब नहीं है कि — अब कई लोग हैं, जो स्वांस लेते हैं। कई ऐसी जगह हैं, जहां हवा स्वच्छ है; कई ऐसी जगह है, जहां हवा स्वच्छ नहीं है परंतु स्वांस तो फिर भी लेना है।
तो बाहर जो कुछ भी हो रहा है, हो रहा है। धर्म हैं, लोग उन पर विश्वास करते हैं। और जहां तक मेरी बात है, तो कम से कम वो विश्वास तो कर रहे हैं कि कोई एक है! अब नाम उनके अलग-अलग हैं। अलग-अलग उनके तरीके हैं, पर बात वही है। कहीं का भी कोई हो, किसी भी धर्म का हो, जब मुसीबत आती है, भगवान का नाम लेते हैं और कोशिश करता है कि मुसीबत न आए। और ये भी उसकी इच्छा है, ये भी भगवान की तरफ से ही उसकी इच्छा है कि मुझे मुसीबतों से बचाना। कहीं भी चले जाइए आप!
तो बात उसकी नहीं है, बात मनुष्य की है। और बात ये है कि वो अपने जीवन के अंदर असली चीज, जो वो है और उसके अंदर है, उसको समझे!
ऐंकर : सर! इंसानियत की definition क्या है और क्या हो रहा है इंसानियत के लिए सर! इंसानियत के लिए क्या हो रहा है ?
प्रेम रावत जी : नहीं! इंसानियत की तो बहुत definitions हैं। एक तो ये है कि जो इंसान हैं, जो इंसानों की प्रकृति है, वो इंसानियत है! परंतु दोनों ही संभावना है। आज मनुष्य एक-दूसरे को मारने में लगा हुआ है, ठगने में लगा हुआ है। और एक-दूसरे का भला भी चाह सकता है! पर एक-दूसरे का भला नहीं चाहता है।
इंसानियत चालू कहां से होती है ? क्या आपके परिवार से नहीं होती है ? जब सबेरे-सबेरे आप उठते हैं, आपके बच्चे हैं, आपके परिवार के लोग हैं। कितनी मां हैं, जो सबसे पहला शब्द बच्चों को बोलती हैं, ‘‘लेट हो गया तू! लेट हो जाएगा! जल्दी कर!’’ मतलब, क्या मतलब जल्दी कर ? लेट हो गया!
क्या तुमको कोई खुशी नहीं है अपने बच्चे को देख के ? तो क्या आपको शर्म आती है कि आप उस खुशी को व्यक्त करें ? क्योंकि अगर छोटी-सी भी बात आप कर दें, ‘‘गुड मॉर्निंग बेटा! कैसे हो ?’’
इंसानियत यहां से चालू होती है। एक इंसान, दूसरे इंसान से इस तरीके से व्यवहार करना शुरू करे। पति! अब देखिए! कितने झंझट होते हैं पति-पत्नी में ? क्लेश होता है, डिवोर्स होता है, लड़ाइयां होती हैं!
सबेरे-सबेरे पत्नी उठती है, ‘‘ये ले आना! ये ले आना! ये ले आना!’’
‘‘ये कहां रखा है ?’’ पति बोल रहा है अपनी पत्नी से, ‘‘ये कहां रखा है ? मेरा नाश्ता कहां है ? मेरा ये नहीं है! मेरा वो नहीं है!’’
जिम्मेवारी के बोझ में मनुष्य ऐसा बदल गया है, ऐसा बदल गया है, ऐसा बदल गया है, ऐसा बदल गया है कि — आप जानवरों को देखें, वो अपने बच्चों से ज्यादा प्यार कर रहे हैं, बनिस्पत मनुष्य अपने बच्चों से, अपने परिवार से।
तो जब ऐसा माहौल बन गया है तो इंसानियत कहां रही ? कैसे जाएगी ? जिन लोगों की तरफ हम देखते हैं कि वो हमारा मार्गदर्शन करेंगे, वो ही हमको गुमराह कर रहे हैं! वो ही हमको गुमराह करने में लगे हुए हैं! आज झूठ की क्या कीमत है ? बल्कि ये कहना चाहिए कि सत्य की क्या कीमत है ? सत्य! सत्य की कीमत तो कुछ है ही नहीं! जो चाहे, जैसा चाहे, जितना झूठ बोलना चाहे, उतना झूठ बोलता है। अब उसको ये नहीं है कि इसका क्या नतीजा होगा।
तो जब ये, ऐसा माहौल हमने बना ही लिया है तो इसमें फिर इंसानियत का नाम ही कहां से आएगा ? तो इंसानियत अगर शुरू करनी है दोबारा, तो बड़ी बेसिक से शुरू करनी पड़ेगी, अपने से शुरू करनी पड़ेगी, अपने परिवार से शुरू करनी पड़ेगी, उन लोगों से, जिनसे सचमुच में प्यार है, उनसे चालू करनी पड़ेगी। तभी हम समझ पाएंगे कि दूसरे के साथ कैसा व्यहार करना चाहिए। आजकल का माहौल ये है कि जो पराया है, उसको गुड-मॉर्निंग कहने के लिए हम तैयार हैं और जो अपने हैं, उनके लिए कुछ नहीं है।
ऐंकर : सर! आजकल लोग बहुत जल्दी घबरा जाते हैं किसी भी बात को लेकर और उस घबराहट में गलत कदम भी उठा लेते हैं। तो ऐसे लोगों से आप क्या कहना चाहते हैं ?
प्रेम रावत जी : वो अपनी — अपने आपको नहीं जानते हैं! क्योंकि आपके अंदर हिम्मत है, हिम्मत से काम लीजिए। तभी सब्र आएगा! जिसके पास हिम्मत नहीं है, जिसके पास स्ट्रेंथ नहीं है, जो अपनी स्ट्रेंथ को नहीं समझता है, वो कुछ नहीं कर पाएगा। ये एक चूहे को भी मालूम है। चूहा भागने की कोशिश करता है। सबसे पहले तो भागने की कोशिश करेगा। पर अगर भाग नहीं सका वो तो उसको भी मालूम है कि उसको जो कुछ भी वो कर सकता है — वो है तो बहुत छोटा! परंतु उसको मालूम है कि जो मेरे को करना है — उसमें हिम्मत है! वो हिम्मत नहीं हारता। वो उल्टा मुंह करेगा और कोशिश करेगा, कोशिश करेगा काटने की। उसको मालूम है। उसको मालूम है! देखिए!
हित अनहित पशु पक्षिय जाना।
मानुष तन गुन ग्यान निधाना।।
अच्छा-बुरा तो सब जानते हैं। मनुष्य ही नहीं जानता है। क्योंकि क्या गुण है ? मानुष तन — ये जो शरीर मिला है — गुण, इसका गुण यही है कि वो ज्ञान प्राप्त कर सकता है। तो जब वो है ही नहीं मनुष्य के पास तो फिर ये सारे झंझट होते हैं।