लॉकडाउन 55

पीस एजुकेशन प्रोग्राम की ओर अग्रसर (19 मई, 2020)
May 18, 2020
"जो भी मैं अपने जीवन में करूं, मैं एक चीज को ध्यान में हमेशा रखूं कि मेरी खुशी बाहर से नहीं आएगी, मेरी खुशी मेरे अंदर से आएगी। मेरी शांति बाहर से नहीं आएगी, मेरी शांति मेरे अंदर से आएगी।" —प्रेम रावत / प्रेम रावत जी "पीस एजुकेशन प्रोग्राम" कार्यशालाओं की वीडियो श्रृंखला को आप तक प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहे हैं। इस दौरान हम उनके कुछ बेहतरीन कार्यक्रमों से निर्मित लॉकडाउन वीडियो आप के लिए प्रसारित करेंगे।

प्रेम रावत:

बात है जीवन की। हम जिस बात को करते हैं, उसका किसी मज़हब से लेना-देना नहीं है। वो मनुष्य के लिए है। और सबसे जरूरी बात समझना यह है कि क्योंकि हम जीवित हैं, कौन-सी ऐसी चीजें हैं, जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा प्रभाव रखती हैं, जो जरूरी हों ? क्योंकि अगर विषय होता कि आप धन और कैसे कमा सकते हैं — अगर विषय होता कि आप कैसे 50 परसेंट पैसे को बढ़ा सकते हैं, जो आपके पास है तो यह जगह बहुत छोटी पड़ती। क्योंकि आजकल हमलोगों की जो समझ है, वो कुछ इसी प्रकार की हो गयी है।

बात धन कमाने की नहीं है। कमाइए, खूब कमाइए! जितना हो सकता है, उतना कमाइए! बात धन कमाने की नहीं है, पर जिस तरीके से आप कमा रहे हैं, बात उसकी है कि आप किस तरीके से कमा रहे हैं कि आप उस धन को अपने साथ ले जाएंगे। और यह होगा नहीं।

हर एक चीज का एक लिहाज़ होता है। जब आप अपने घर से कहीं जाने के लिए निकलते हैं, दूर सफर करने के लिए निकलते हैं — तीन दिन के लिए जाना है, चार दिन के लिए जाना है, पांच दिन के लिए जाना है, छः दिन के लिए जाना है, उसी तरीके से तो आप पैक करते हैं अपने सूटकेस को। यह थोड़े ही है कि जब आपको एक दिन के लिए कहीं जाना है तो सूटकेस — अब माता-बहनों की बात अलग है। परंतु वो इस प्रकार से सूटकेस पैक होता है कि उसमें सबकुछ, सबकुछ, सबकुछ! ये तो नहीं करते हैं। दो दिन के लिए जाना है, तीन दिन के लिए जाना है, उसी चीज को देखकर — क्या होना है, क्या करना है ? ये सब देखकर के ही तो आप पैक करते हैं ? पर अपने जीवन में किस तरीके से पैक करते हैं ?

जो आपके नाते हैं, रिश्ते हैं — और मैं यह चर्चा इसलिए कर रहा हूं आज, क्योंकि अभी तो पांच बजे हैं — एक बजे मैंने एक फोन-कॉल की। मेरे पास कल, जब मैं यहां पहुंचा, मेरे पास एक रिक्वेस्ट आयी कि ‘‘जी! एक व्यक्ति हैं और वो अपने जीवन के आखिरी दौर पर हैं — डॉक्टरों ने कह दिया है। और वो आपसे बात करना चाहते हैं।’’ तो मैंने फोन किया।

तो सबसे पहले उन्होंने कहा कि ‘‘हां, मेरे को कह दिया है कि मैं जा रहा हूं!’’

मैंने कहा कि असलियत तो यह है कि हम सब जा रहे हैं। कोई ऐसा नहीं है, जो नहीं जा रहा है। सिर्फ इतना है कि डॉक्टर ने अभी नहीं कहा है। मतलब, डॉक्टर कह दे — अपशगुन! डॉक्टरों का तो मुंह भी नहीं देखना चाहिए, वो ऐसी चीज कह सकते हैं। पर डॉक्टर कह देते हैं तो हमारा सारा सोचने का तरीका बदल जाता है। डॉक्टर कह देते हैं तो हमारे सोचने का तरीका बदल जाता है, जीने का तरीका बदल जाता है। और डॉक्टर ने नहीं कहा है, फिर भी हकीकत तो वही है। तो संत-महात्माओं का इसके बारे में यह कहना है कि हम अपने आपको — अब मैं पैराफ्रेज़ कर रहा हूं। और अंग्रेजी में जो शब्द होगा कि हम अपने आपको cheat कर रहे हैं। और कोई नहीं, हम अपने आपको cheat कर रहे हैं। जो फैक्ट्स हैं, जो हकीकत है, उसको स्वीकार नहीं कर रहे हैं। परंतु एक ऐसी हकीकत अपने दिमाग में बनाए हुए हैं, जो हकीकत नहीं है। जो हकीकत नहीं है।

तो फिर क्या रह गया ? मतलब, अगर मैं इसी तरीके से बोलता रहूं, थोड़ी देर के बाद आप लोगों को तो रोना आना लगेगा। इतना डिप्रेसिंग बन जाएगा ये सारा सब्जेक्ट — ‘‘जाना है, जाना है, जाना है। इसकी परवाह मत करो। उसकी परवाह मत करो। ये क्या होगा ? वो क्या होगा।’’ नहीं, नहीं, नहीं! मैं डिप्रेसिंग बात करने के लिए नहीं आया हूं। डिप्रेसिंग बात करनी है तो आपको मेरी क्या जरूरत है ? टेलीविजन चालू कीजिए, न्यूज चैनल देखिए, डिप्रेशन अपने आप आ जाएगा। अखबार खोल के बैठ जाइए।

परंतु बात कुछ ऐसी है कि इस अंधेरे के बीच में एक रोशनी है। बात कुछ ऐसी है कि इस डिप्रेसिंग न्यूज़ के बीच में — इस सारे डिप्रेसिंग संसार के बीच में एक खुशखबरी है। और वो खुशखबरी है — यह जीवन! वो खुशखबरी है — यह स्वांस! वो खुशखबरी है — तुम्हारा जिंदा होना! और अगर आप थोड़ी-सी चीजों को समझ जाएं तो आपका पूरा जीवन बदल जाएगा — खुशी में!

कितने ही लोग हैं, कितने ही लोग हैं, जिनके जीवन के अंदर दुःख है और उन दुःखों का कारण और कोई नहीं, वही लोग हैं, जिनको वो बहुत प्यार करते हैं। है कि नहीं ? ताना सुनना — द,द,द,द,द... द,द,द,द... द,द,द,द,द!

अब बात आती है — प्रेम करने की। क्या आपको प्रेम करना आता है ?

‘‘I loveyou, I loveyou, I loveyou’’ के कार्ड खरीदते रहते हैं। जवान थे तो ज्यादा कहते थे, अब थोड़ा बुड्ढे हो गये तो कम कहते हैं। देखिए! मनुष्य को प्यार करना चाहिए तो प्यार करना चाहिए। उससे प्यार करना चाहिए, जिसे वो प्यार करना चाहता है। और असली प्यार वो है कि प्यार हुआ जिससे हुआ, पर उसके कामों से नहीं। तो मैं ऊपर से बात चालू करता हूं।

आप भगवान से प्यार करते हैं ? इसके दो ही उत्तर हो सकते हैं — हां या ना! मल्टीपल च्वाइस है ये! हां या ना! करते हैं ?

आप भगवान से प्यार करते हैं और इसलिए करते हैं, क्योंकि जो वो करता है या भगवान से प्यार करते हैं, इनडिपेंडेंट ऑफ — वो जो करता है ?

आप अपनी मां से प्यार करते हैं, क्योंकि आप अपनी मां से प्यार करते हैं या आप अपनी मां से प्यार करते हैं, क्योंकि वो जो आपके लिए करती है ?

आप अपनी पत्नी से प्यार करते हैं — आप अपनी पत्नी से प्यार करते हैं या पत्नी से इसलिए प्यार करते हैं, कि वो जो आपके लिए करती है ?

मैं — आप समझें न समझें, मैं इसको बहुत इम्पोर्टेंट समझता हूं। क्योंकि अगर मैं भगवान से इसलिए प्यार करता हूं, क्योंकि मैं भगवान से आशा रखता हूं, उपेक्षा रखता हूं कि मेरे लिए वो ये करेगा, ये करेगा, ये करेगा, ये करेगा, ये करेगा, ये करेगा, तो ठीक है। मैं भी भगवान से प्यार करने के लिए तैयार हूं।

मतलब, लोगों का यह है कि हम इतने स्वार्थी हो गए हैं — हम अपने आपको स्वार्थी नहीं मानते।

जब सबेरे-सबेरे उठते हैं, कोई कहे, ‘‘तुम स्वार्थी हो।’’ ‘‘ना! हम कैसे स्वार्थी हैं ?’’

मतलब किसी भूखे को खाना भी खिलाना, उसमें भी हम अपेक्षा करते हैं कि वो कुछ कर्म हमारे — यहां जाएगा जेब में और भगवान हमको दया दृष्टि से देखेगा और हमारा बिज़नेस अच्छा चलेगा। तो हर एक चीज की अपेक्षा हो गयी।

आप अपने बेटे से प्यार करते हैं। इसलिए प्यार करते हैं, क्योंकि वो आपका कहा मानता है और अगर आपका कहा न माने तो वही प्यार करते रहेंगे उसको ?

यहां तक भी क्वेश्चन आ जाता है कि ‘‘तू मेरा बेटा हो ही नहीं सकता!’’

मतलब, कुछ ऐसा माहौल बना दिया है हमने अपने दिमाग में कि जो हकीकत है, उस हकीकत को हम नहीं देख रहे हैं।

अच्छा, भगवान की बात भी हो गयी, बीवी की बात भी हो गयी, बेटे की बात भी हो गयी। बीच में और कोई है तो उसकी बात भी समझो, हो गयी! क्योंकि वही बात है। वो जबतक हमको सैटिस्फाई करते रहेंगे, हम ठीक हैं और हम अपने आपको — अगर वो हमको सैटिस्फाई नहीं कर रहे हैं तो फिर गड़बड़ है।

अच्छा! अब ले जाते हैं बात एक कदम आगे! और कौन है एक कदम आगे ? आप!

आप अपने आप से प्यार करते हैं या नहीं ?

और अगर करते हैं तो इसलिए करते हैं, क्योंकि आप अपने आपको पहचानते हैं इसलिए आप अपने से प्यार करते हैं या आप इसलिए प्यार करते हैं कि आपकी जो आशाएं हैं, जबतक आप उन आशाओं को, उन ख्वाबों को पूरा करते रहेंगे, आप ठीक हैं। और जब आप नहीं करने लगेंगे अपने ही ड्रीम्स को पूरा — अपने ही ख्वाबों को पूरा। क्योंकि देखिए! लोग हैं इस संसार के अंदर, जो खुदकुशी करते हैं। खुदकुशी करना कोई आसान चीज नहीं है। पर वो अपने से ही इतने निराश हो गये हैं कि अब उनको जीवन में आगे चलने के लिए कोई आशा ही नहीं दिखाई देती है।

तो अगर प्यार करना है तो प्यार करना सीखना पड़ेगा बिना अपेक्षा के। और यह आसान काम नहीं है।

मैं सिर्फ आपके सामने बात रख रहा हूं, इसका मतलब यह नहीं है कि आप सबको डिवोर्स ले लेना चाहिए या अपने बच्चों को अनाथाश्रम में डाल देना चाहिए या अपनी जॉब से फायर कर लेना चाहिए। सिर्फ बात है दृष्टिकोण की, बात है समझ की।

अब बैलेंस की बात होती है। बैलेंस तो हो नहीं सकेगा। आई एम सॉरी! आई एम सॉरी! फिजिक्स इज़ इन्वॉल्व! एक तरफ इन्फिनिट — जिसका कभी अंत ही नहीं होता है — जिसका कभी अंत ही नहीं होता है और एक तरफ वो, जिसका अंत निश्चित है। सचमुच में दोनों को एक ही तराजू में रखेंगे ?

वाह, वाह, वाह! क्योंकि होगा नहीं। एक अथाह, दूसरा अथाह नहीं।

तो फिर इसका दृष्टिकोण क्या निकलता है ?

इसका दृष्टिकोण यह निकलता है कि जो भी मैं अपने जीवन में करूं, मैं एक चीज को ध्यान में हमेशा रखूं कि मेरी खुशी बाहर से नहीं आएगी, मेरी खुशी मेरे अंदर से आएगी। मेरी शांति बाहर से नहीं आएगी, मेरी शांति मेरे अंदर से आएगी। मेरा भगवान मेरे को बाहर नहीं मिलेगा, मेरा भगवान मेरे को अंदर में मिलेगा।

ये आपके ऊपर निर्भर है, आप किसको प्यार करें और कैसे प्यार करें ? ये आपके ऊपर निर्भर है! दिल से प्यार करें या दिमाग से प्यार करें ?

एक बार मैं था रेडक्रॉस ब्लड डोनर्स ड्राईव, इटली में — मैंने कहा कि सभी लोगों को ‘‘पीस एम्बेसडर’’ होना चाहिए। सभी लोगों को! शांति की बात करता हूं मैं, परंतु शांति तब तक संभव नहीं होगी, जबतक तुम अपने आपको नहीं पहचानोगे। हो ही नहीं सकती।

जबतक यह नहीं जानोगे कि ‘‘शांति तुम्हारी चाह नहीं है, तुम्हारी जरूरत है।’’ अभी तो लोग समझते हैं कि ‘‘आहा! अच्छा होगा शांति हो जाए!’’ बिना शांति के ये संसार नहीं चल पाएगा। बिना शांति के यह संसार नहीं चल पाएगा, चाहे कितनी भी टेक्नोलॉजी हो! आज सबसे अव्वल टेक्नोलॉजी इस संसार के अंदर शांति की नहीं है, अशांति की है। सबसे अव्वल टेक्नोलॉजी, सबसे एडवांस टेक्नालॉजी डिप्लॉय हुई है लड़ाई करने के लिए।

शांति के लिए क्या करना है ? कुछ नहीं!

लड़ाई के लिए क्या करना है? बहुत कुछ!

शांति के लिए क्या करना है ? कुछ नहीं।

कोई बम नहीं बनाना है, कोई फाइटर जेट नहीं बनाना है, कोई कुछ नहीं बनाना है, कोई सर्वेलेन्स नहीं करनी है, कोई रेडार नहीं चाहिए, कोई सेल्फट्रैकिंग मिसाइल नहीं चाहिए, कोई जीपीएस नहीं चाहिए। सिर्फ मनुष्य चाहिए और सिर्फ मनुष्य चाहिए! लोग कहते हैं, ‘‘हमको शांति के लिए क्या करना चाहिए ?’’

हम कहते हैं, ‘‘कुछ नहीं!’’ तुम जो कर रहे हो, उससे नहीं हो रही है। करना छोड़ो! तुम्हारे अंदर है। तुम्हारे अंदर है। जिस चीज को तुम खोज रहे हो, वो तुम्हारे अंदर है, तुम्हारे पास है। इस बात को जानो, इस बात को समझो और सिर्फ अपने दृष्टिकोण को बदलने की बात है। सिर्फ अपने दृष्टिकोण को बदलने की बात है। समझने की बात है और फिर इस जीवन के अंदर आनंद ही आनंद संभव है। यह मैं दावे के साथ कह सकता हूं। क्योंकि मैं नहीं कह रहा कि मेरे को समस्याएं नहीं तंग करती हैं। करती हैं। खूब करती हैं।

लोगों का काम ही है, अपनी समस्या मेरे सिर पर डालना सबेरे से लेकर शाम तक। और किसी और की हो न हो, वो तो किराये पर भी ले आते हैं। परंतु मेरा दृष्टिकोण बदला ? क्योंकि मैंने अपने से एक सवाल पूछना शुरू किया, ‘‘क्या मैं इस समस्या के कारण परेशान होना चाहता हूं या नहीं ? समस्या को तो देख लेंगे। पर क्या मैं परेशान होना चाहता हूं या नहीं ?’’

और जब उत्तर मेरे को मिला — नहीं! तो मैंने कहा, ठीक है। अब हम समस्या से लड़ने के लिए तैयार हैं।

दृष्टिकोण की बात है। समस्या से तो लड़ेंगे! लड़ना पड़ेगा, लड़ेंगे! परंतु अगर परेशान हैं तो बीमारी पहले ही लगी हुई है। परेशान होकर नहीं, दृढ़ता से! करेज! वीकनेस के साथ नहीं, कमजोरी के साथ नहीं, साहस के साथ। क्योंकि एक ही समस्या से नहीं लड़ना है। और यह जो जंग है, इसको जीतना है। छोटी-मोटी बैटल्स जो हैं — कभी जीतेंगे, कभी हारेंगे। कोई बात नहीं। परंतु जो वॉर है, उसे नहीं हारना है। कभी नहीं। कभी नहीं।

ये है जी 50 साल का एक्सपीरियन्स थोड़े ही शब्दों में। इनमें से कोई भी चीज आपको अच्छी लगे, अपने जीवन में इस्तेमाल कीजिए। कई लोग कहते हैं, ‘‘जी! हम कोई भी चीज इस्तेमाल नहीं करेंगे, क्योंकि हमको ये बात अच्छी नहीं लगी और ये बात अच्छी नहीं लगी और ये बात अच्छी नहीं लगी।’’

उन लोगों को मेरा यह कहना है कि जब आप सुपरमार्केट में जाते हैं तो पूरा सुपरमार्केट खरीद के ले जाते हैं या वही ले जाते हैं, जो आपको चाहिए ? जो आपकी जरूरत है। ठीक उसी तरीके से यह भी सुपरमार्केट है। यहां बहुत सारी चीजें कही गई हैं। जिसकी आपको जरूरत है, ले जाइए! और जिसकी नहीं है, उसको छोड़ दीजिए।

अभी लोग हैं, ऐसे कहते हैं, ‘‘जी! हम ये नहीं करेंगे, हम वो नहीं करेंगे।’’

हमारा तो यह है कि किसी ने भी कहा हो, किसी ने भी कहा हो — चाहे वो लड़के ने कहा, लड़की ने कहा। हमसे जवान, हमसे वृद्ध! अच्छा है तो हम रख लेंगे। नहीं है, नहीं रखेंगे। ये मतलब थोड़े ही है कि सारा का सारा सुपरमार्केट खरीद करके अपने घर में ले जाना है। फिट भी नहीं होगा। और करेंगे क्या ? तो जो अच्छा लगे, उसको रखो। जो बुरा लगे, कोई बात नहीं। पर अच्छे को रखोगे, तुम्हारे जीवन में भी अच्छाई आएगी।

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