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प्रेम रावत जी द्वारा हिंदी में सम्बोधित (31 मार्च, 2020)
Mar 31, 2020
"आगे बढ़ने के लिए हिम्मत करें। समस्याऐं इतनी बड़ी नहीं हैं कि हम यह भूल जायें कि हर एक समस्या का हल, हम हिम्मत से निकाल सकते हैं। हम आगे बढ़ सकते हैं। जबतक यह स्वांस हमारे अंदर आ रहा है, जा रहा है हमारे पास वह बल है — अभिमान नहीं बल! और सबसे बड़ी चीज हमको डरने की जरूरत नहीं है। सबसे बड़ी चीज!" — प्रेम रावत (31 मार्च, 2020)

प्रेम रावत जी:

भारतवर्ष के सभी श्रोताओं को मेरा बहुत-बहुत नमस्कार!

यह मौका है कुछ सुनने का, कुछ समझने का। क्योंकि इन परिस्थितियों में कई लोग हैं जो मेरे को लिख रहे हैं कि "जी! हमको घबराहट होती है, हमको परेशानी होती है जब देखते हैं कितने लोग मर गए, कितने लोग ये हो रहे हैं, कितने लोग वो हो रहे हैं!"

देखिये! लोग तो लोग हैं, पर सबसे बड़ी बात है कि आपकी जिंदगी में क्या हो रहा है ? एक बात होती है कि हमारे जीवन में आशा हो, निराशा नहीं आशा, होप (Hope), वह बहुत बड़ी बात है क्योंकि इस जीवन में यह होप तो होनी ही चाहिए। यह आशा तो होनी ही चाहिए नहीं तो मनुष्य आगे कैसे बढ़ेगा, आगे कैसे चलेगा! परन्तु क्या यह आशा ऐसी चीजों पर निर्धारित हो, जो सही नहीं हैं या असली नहीं हैं सिर्फ कल्पित हैं। यह ऐसी चीजों पर निर्धारित हो, जो सच है और ऐसा सच, छोटा-मोटा सच नहीं, ऐसा सच — जो सच था, है और रहेगा। परिस्थिति की तो इसमें बात ही नहीं आती है। जबतक तुम इस जीवन में हो, जबतक तुम जिंदा हो — वो जो दो दीवाल हैं, जिनकी मैं बात करता हूँ, उनके बीच में हो, तबतक तुम्हारा सच क्या है ?

अब यह परिस्थिति पहले नहीं थी, अब है और आगे भी नहीं रहेगी। बदलना तो है ही इसको, परन्तु तुम्हारा सच क्या है, जिस सच से — जिस सच को जानकर के, जिस सच को महसूस करके तुम्हारे जीवन में आशा बने, आशा आये और ऐसी आशा हो, जो ऐसे सच पर निर्धारित हो, जो कभी बदलता नहीं है। और वह सच तुम्हारे लिए क्या है ?

वह सच तुम्हारे लिए, इस स्वांस का आना-जाना है। जब तक यह स्वांस तुम्हारे अंदर आ रहा है, जा रहा है तुम्हारे पास सब कुछ है। और जो तुम्हारे पास नहीं भी है उसको भी तुम पा सकते हो, जब तक यह स्वांस तुम्हारे अंदर आ रहा है, जा रहा है। यह स्वांस इस जीवन में सबसे बड़ी चीज है, क्योंकि इसके बिना तुम कुछ भी नहीं हो। जब तक यह है — जबतक यह आ रही है, जबतक यह जा रही है, तुम्हारे रिश्ते हैं; तुम्हारे नाते हैं; तुम्हारी सारी दुनिया है; तुम्हारे काम-काज हैं, तुम्हारा घर है; तुम्हारे पास जो कुछ भी, जो कुछ भी है, वह इसलिए है क्योंकि यह स्वांस तुम्हारे अंदर आ रहा है, जा रहा है। और जब यह स्वांस नहीं रहेगा, तब तुम्हारे पास कुछ नहीं रहेगा। वह है असली कुछ नहीं, जबतक यह आ रहा है, जा रहा है तुमको अपने जीवन में यह महसूस करने की जरूरत नहीं है कि मैं दुर्भागी हूं या नहीं!

अब देखिये! मैं कई बार चर्चा करता हूँ महाभारत की, रामायण की। अब अगर रामायण को ही देखा जाए, भगवान राम के जीवन को देखा जाए तो जब वह पैदा हुए तब से और जब विश्वामित्र उनको लेने के लिए आये और वह विश्वामित्र के साथ गए उनको सीखाने के लिए और विश्वामित्र ही उनको ले गए थे सीता के स्वयंवर में। जब शादी हुई, सभी भाइयों की शादी हुई — लक्ष्मण की भी, शत्रुघ्न की भी, भरत की भी, भगवान राम की भी, तो सबकुछ देखकर के — सारे तारे, सितारे, सबकुछ, ग्रहण सबकुछ देखकर के वह समय रखा गया कि जब उनकी शादी होगी। सबसे शुभ समय! परन्तु वह हुआ नहीं, सबके लिए, सबके लिए। भगवान राम चले गए, सीता चली गयी, लक्ष्मण चले गए वनवास — चौदह वर्ष का वनवास। वह भी छोटी-मोटी बात नहीं होती। और इधर लक्ष्मण की भी शादी हो रखी थी और कहते हैं कि उनके साथ तो ऐसा हुआ कि उन्होंने ऐसा वर माँगा — लक्ष्मण ने कहा, "मैं सो नहीं सकता, क्योंकि मेरे को देखभाल करनी है — भगवान राम की, सीता की।" तो अपनी पत्नी से कहा कि, "तू मेरे लिए सो!" और उसने कहा, “ठीक रहेगा कि मैं सोती रहूंगी तो मेरे को तुम्हारी याद नहीं आएगी।”

तो ऐसी-ऐसी चीजें हुईं। क्या भगवान राम को दुःख नहीं हुआ, जब लक्ष्मण को बाण लगा ? बिलकुल दुःख हुआ! तो यह सब दुःख-सुख, उस कहानी में अगर देखा जाए उनके सारी जो — रामायण में जो वर्णन है, उसमें देखा जाए, तो यही कहा जा रहा है कि यह सुख-दुःख तो आते रहते हैं। परन्तु सबसे बड़ी बात है कि तुम अपने जीवन में, जबतक तुम जीवित हो कुछ कर सकते हो, हर एक चीज के बारे में कुछ कर सकते हो, फिर मैं उदाहरण दे रहा हूँ वही रामायण का — तो भगवान राम जंगल में हैं, वनवास में हैं। मरीचि आता है और हिरन के रूप में आता है। सीता ने हिरन को देखा, सुंदर हिरन है।

भगवान राम ने कहा "ठीक है! मैं तेरे लिए इस हिरन को मारकर लाता हूँ।" और अगर, भगवान राम ने कहा कि "अगर यह मरीचि है, यह माया है उसकी, तो कम से कम इसको मार कर उसको तो खत्म कर दूंगा और इसकी खाल जो है, सीता को दूंगा।"

तो वह भी चल दिए, वह चल दिए। इधर आया रावण कि "मेरे को खाना दो!" और कहते हैं कि सीता अच्छा खाना बनाती थी, तो सीता ने जो कुछ था वह उसको दिया और जाने से पहले लक्ष्मण ने — क्योंकि मरीचि ने ऐसी आवाज लगाई कि भगवान राम बोल रहे हैं —"बचाओ, बचाओ, बचाओ!"

तो सीता ने कहा, "तुम जाओ। बचाओ भगवान राम को, क्या हो गया है, देखो क्या हुआ है।"

तो लक्ष्मण ने कहा, "नहीं, मेरे को नहीं जाना है, मैं तो यहीं रहूंगा।"

कहा, "नहीं! तुम जाओ।"

तब उसने रेखा बनायी और कहा, "इसके पार मत जाना, इसके पार मत जाना। इसके पार जाओगे तो यह जंगल है, इसके इधर रहोगे तो तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगा।"

तो जब रावण आया भिक्षा मांगी, तो सीता ने उस रेखा के पीछे से ही उनको खाना दिया। तो रावण ने कहा, "यह कैसा दान दे रही है तू, यह जो रेखा है इसके इधर आ।"

तो यह सब हो रहा है किसके साथ ? भगवान राम के साथ, लक्ष्मण के साथ, सीता के साथ और किस परिस्थिति में हो रहा है, जब उनको वनवास मिला हुआ है। तो मतलब एक तो वनवास — एक तो उनका राज्याभिषेक होना था, वह तो हुआ नहीं। उसके बाद उनको वनवास मिला। वनवास में दिक्कतें ही दिक्कतें और दिक्कतों के बीच में यह सब कुछ जाल। जैसे कि यह समझिये कि जो बुरा है वह अभी तक खत्म नहीं हुआ है उनका और बुरा होना है। सीता की चोरी कर ली रावण ने। वह और भी दुःखी हुए, और भी दुःखी हुए। और अभी दुःख का, पूरा जो भी दुःख है वह अभी पूरी तरह से उनको नहीं मिला है, अभी और मिलेगा। कब मिलेगा ? एक तो सीता भी — एक तो उनका राज्याभिषेक होना था, वह गया। दूसरी बात, उनको वनवास मिला। उसके बाद सीता की चोरी हो गयी। एक नहीं उसके बाद और भी हुआ। फिर क्या हुआ ?

लक्ष्मण जिससे कि उनको बहुत प्रेम था, लक्ष्मण से भगवान राम को — उसको बाण लगा लड़ाई में। मतलब, एक के बाद एक, एक के बाद एक, एक के बाद एक, एक के बाद एक। परन्तु देखने की बात यह है कि उन्होंने उन परिस्थितयों में क्या किया ?

उन परिस्थितयों में भी उन्होंने एक फौज तैयार की, एक सेना तैयार की। किसकी सेना, कैसी सेना, कैसी सेना ?

बंदरों की और भालुओं की सेना। बंदरों की और भालुओं की सेना तैयार की। जहां वह पुल नहीं बना सकते थे, वहां पुल बनाया। और पत्थर को तैरा करके, उस पर राम-राम लिख करके उसका पुल बनाया और लंका में, उस द्वीप में प्रवेश किया।

अब लोग इसको हर एक तरीके से लेते हैं। परन्तु कितनी हिम्मत की बात है, कितनी हिम्मत की बात है। और कितनी बार ऋषि-मुनियों ने, जब भगवान राम दुःखी हो जाते थे — जब लड़ाई हो रही है, यह सबकुछ हो रहा है, दुःखी हो जाते थे, रोते थे। तब ऋषि-मुनि उनको समझाते थे कि "नहीं, नहीं, नहीं! आप दुःखी मत होइये, आपको दुःखी होने की जरूरत नहीं है। आप तो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं।" मतलब, भगवान राम अपने को नहीं देख रहे हैं कि "मैं भगवान, मैं विष्णु का अवतार हूँ। वह देख रहे हैं कि मैं भी एक मनुष्य हूँ और जिसको मैं चाहता हूँ, वह, यह रावण उसको चोरी करके ले गया।" अगर यह सारी कहानी को देखा जाए, यह सारे दृष्टान्त को देखा जाए, तो यह तो स्पष्ट है कि कितनी हिम्मत की भगवान राम ने! और उस हिम्मत से क्या हुआ ?

उस हिम्मत से आशा आयी, निराशा नहीं, आशा आयी। और क्या हम इसको सुनकर, इसको पढ़कर, क्या इतना भी नहीं जान सकते हैं कि हम भी अपने जीवन में ऐसे हिम्मत करें। आगे बढ़ने के लिए हिम्मत करें। जो हमारे पास समस्या आती है, वह समस्या इतनी बड़ी नहीं है कि हम यह भूल जायें कि हर एक समस्या का हल, अगर हम हिम्मत करें तो हम निकाल सकते हैं। हम आगे बढ़ सकते हैं। जबतक यह स्वांस हमारे अंदर आ रहा है, जा रहा है हमारे पास वह बल है — अभिमान नहीं बल! और सबसे बड़ी चीज हमको डरने की जरूरत नहीं है। सबसे बड़ी चीज!

लेकिन जब मनुष्य डरने लगता है, तो सारी चीजें उसके लिए बंद होने लगती हैं। फिर वह, जो उजाला है, उसको देख नहीं पाता। जो चीज असली है, उसको समझ नहीं पाता। और उसके लिए सारी चीजें ऐसी हो जाती हैं कि "अब क्या होगा, अब क्या होगा, अब क्या होगा, अब क्या होगा, अब क्या होगा ?" समय तो उसी गति से निकल रहा है। समय की गति नहीं बदलती। पर उसको लगता है कि "अब तो गए, अब तो गए, अब तो गए, अब तो गए, अब तो गए।" और वह ऐसे काम करने लगता है जिससे कि कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा। तो अपना समय बर्बाद करने लगता है और जब समय बर्बाद करने लगता है मनुष्य, तो ऐसी चीज है समय कि जब समय बर्बाद होने लगता है, तो कुछ नहीं बचा।

क्योंकि समय को वापिस नहीं बुलाया जा सकता है। वह एक ऐसी चीज है कि अगर वह एक बार बर्बाद हो गयी तो फिर बर्बाद ही रहेगी।

तो समय बर्बाद करने की बात नहीं है, हिम्मत से काम लेने की बात है। कोई ऐसी चीज नहीं है जिसका हल नहीं निकाला जा सकता। आगे बढ़ने की बात है, समझने की बात है। आशा से अपनी जिंदगी को बिताने की बात है। जो कुछ भी आज आप सीख रहे हैं, इस परिस्थिति के होने से, इसको भूल मत जाना, इसको भूल मत जाना। क्योंकि यह याद रखना कि यह परिस्थिति आयी और कितने ही लोग हैं जो इससे डर गए, इससे डर गए। और जब डर गए तो फिर क्या हुआ ? कुछ नहीं हुआ। मतलब, सतर्क रहना, एक चीज से सतर्क रहना, वह बात अलग है। सतर्क रहने की बात अलग है और डरने की बात अलग है। सतर्क तो रहना चाहिए। अगर आप रोड क्रॉस कर रहे हैं, रोड के दूसरी तरफ जा रहे हैं, तो सतर्क तो रहना चाहिए। पर, जैसे ही डर लगेगा आप रुक जाएंगे। रुक जाएंगे, तो फिर गड़बड़ होगी।

तो अभी इस कोरोना वायरस को लेते हुए सतर्क रहना चाहिए। बिलकुल रहना चाहिए। हाथ धोने चाहिए, अपने हाथों से, अपने आँख, नाक, मुँह को छूना नहीं चाहिए। अब यह बात आसान नहीं है। इसके लिए बहुत कोशिश करनी पड़ती है। क्योंकि आदत है कभी यह कर दिया, कभी वह कर दिया, कभी आँख ऐसी हो गयी। जब खुजली होती है तो, खुजली होती है। परन्तु फिर भी कोशिश करनी है कि छुए ना और हाथ साफ रखें। पर आइसोलेट, आइसोलेट, आइसोलेट, आइसोलेट — एकांत में। दूसरी बात, फिर एकांत में करेंगे क्या ? क्योंकि यह मन है, मन तो भाग रहा है सब जगह। मन को तो ताला लगाया नहीं जा सकता। मन तो भाग रहा है, कभी इधर की सोचता है कभी उधर की सोचता है। ऐसी-ऐसी जगह जाना चाहता है, जहां पहले कोई सोचता नहीं था। पर अब मन है, तो मन भाग रहा है, भाग रहा है, भाग रहा है, भाग रहा है, भाग रहा है।

कई बार हम नहीं कहते हैं मन की बात। कई बार कहते भी हैं, पर कई बार नहीं भी कहते हैं मन की बात। पर यह मन है और यह मन भगाएगा। क्योंकि इसका काम है दुनिया में भगाना। दुनिया भर में! इस मन के लिए, इस मन को हवाईजहाज की जरूरत नहीं है। यह अमेरिका में बैठे-बैठे ही हिंदुस्तान पहुँच सकता है। और हिंदुस्तान से अमेरिका एकदम यूं, एकदम यूं! तो यह मन है, कभी कहीं भाग रहा है, कभी कहीं भाग रहा है। कभी किसी चीज की कोशिश कर रहा है, कभी किसी चीज की कोशिश कर रह है। ये अच्छा होगा, वो अच्छा होगा। और सबसे बड़ी बात कि लोग इस मन के पीछे-पीछे भाग रहे हैं — "कोई यहां जा रहा है, कोई वहां जा रहा है, कोई ये कर रहा है, कोई वो कर रहा है।" और ये पागल बना दे आदमी को।

अब कई बार यह बात होती है, जेलों में जाता हूँ मैं जब तो लोग कहते हैं कि — एक बार एक आदमी ने कहा हमसे कि "आपको क्या मालूम, आप तो जेल में रहते ही नहीं हैं, आपको क्या मालूम कैसा है यहां! यहां तो बहुत ही मुश्किल माहौल है, बहुत बुरा माहौल है।" मैं सोचने लगा कि यह जो माहौल बनाया हुआ है, यह जो माहौल है, यह बुरा क्यों है ? जेलों में यह जो माहौल बुरा होता है, यह बुरा क्यों है ? यह बुरा इसलिए तो हो नहीं सकता कि यह सीमेंट जो लगाई हुई है दीवारों में, उससे हो बुरा माहौल। या जो जाली लगाई हुई है उससे हो बुरा माहौल। या जो खिड़की लगाई हुई है उससे हो बुरा। तो कौन सी चीज है जिससे कि जो माहौल है, बुरा है! ठीक है, हम मानते हैं कि बुरा है, पर क्यों बुरा है ? बुरा है तो क्यों बुरा है ? तो सोचा हमने कि कौन सी चीज है भाई ? हम गए हुए हैं जेलों में हमने देखा है, सच में बहुत ही बुरा माहौल होता है वहां। तो क्यों है ?

अरे! वह सरिये की वजह से नहीं है, खिड़कियों की वजह से नहीं है, दीवार की वजह से नहीं हैं, जो सलाखें लगी हुई हैं उसकी वजह से नहीं है। वह अगर बुरा माहौल वहां है, तो इस वजह से है कि वहां के जो लोग हैं, उनकी वजह से है बुरा वहां। फिर बात लोगों पर आती है, मनुष्यों पर आती है कि जो बुरा माहौल उन्होंने बना रखा है, वह उन्होंने बना रखा है। किसी और चीज ने नहीं बना रखा है। एक बार हम गये, हमने देखा, एक चिड़ियां आयी, बैठी और फिर उड़कर चली गयी। मैंने कहा, यह तो जेल में आयी, जब आयी तब भी स्वतंत्र है, अब चली गयी तब भी स्वतंत्र है। इसके लिए जेल का कोई मायने ही नहीं है। परन्तु मनुष्य के लिए है। क्योंकि वह जब जेल के अंदर पहुंच जाता है, तो वह बाहर भागने की कोशिश करता है। कहाँ जाएगा ?

लोग हैं जो सोच रहे हैं कि “अब हम आइसोलेशन में हैं, हम कहीं जा नहीं सकते।” भाई! चाहे आइसोलेशन में हो, चाहे गाइसोलेशन में हो, चाहे किसी चीज में भी हो, "तुम तो तुम हो!" तुम तो तुम्हीं रहोगे, तुम तो नहीं बदलोगे। तुम तो तुम्हीं रहोगे। चाहे तुम यहाँ जाओ, चाहे वहां जाओ। चाहे ये करो, चाहे वो करो, तुम तो तुम्हीं रहोगे!" तो जब तुम, तुम्हीं रहोगे, तो आज अगर आइसोलेशन में भी तुम बैठे हुए हो, तो तुम तो तुम ही हो। तो तुमको यह खुजली जो यहाँ लग रही है, यह क्यों लग रही है ? क्या जरूरत है उसकी ? कोई जरूरत नहीं है।

तो इसीलिए हम हमेशा यह कहते हैं कि जबतक तुम्हारे अंदर यह स्वांस आ रहा है, जा रहा है, इसको समझो, इसकी कदर करो। यह तुम्हारे लिए जीवन ला रहा है, यह तुम्हारे लिए यह समय ला रहा है, जिस समय में तुम फूल सकते हो, फल सकते हो। कोई भी जगह हो, कोई भी जगह हो।

देखो! हमलोग तो जाते हैं , कभी कोई यहां जाता है, कोई वहां जाता है, कोई ये करता है, कोई वो करता है, पर दरअसल में बात यह है भाई, तुम कहीं भी हो, तुम्हारे अंदर वह सारी सृष्टि की रचना करने वाला तुम्हारे अंदर बैठा है। और जबतक वह तुम्हारे अंदर बैठा हुआ है, तुम कहीं भी चले जाओ, कुछ भी कर लो वह तुम्हारे साथ है। तुमको अकेलापन महसूस करने की जरूरत नहीं है। सबसे बड़ी बात। दोस्त कहते हो, हमारे दोस्त नहीं हैं यहां। तुम्हारा एक ऐसा दोस्त है तुम्हारे अंदर कि पूछो मत, पूछो मत। वह ऐसा दोस्त है, ऐसा दोस्त है, ऐसा दोस्त है कि वह सबका दोस्त है। वह जितने प्राणी हैं, जितने कीटाणु हैं, जितने जानवर हैं, जितने मनुष्य हैं, जितने पत्ते हैं, जितने फूल हैं, वह सबका मित्र है। वह तुम्हारे अंदर विराजमान है, जबतक यह स्वांस तुम्हारे अंदर आ रहा है, जा रहा है, वह तुम्हारे अंदर विराजमान है। तुमको अकेलापन क्यों महसूस हो रहा है, क्योंकि उसको नहीं जानते। उसको जानो, उसको समझो।

कई लोग हैं, वही प्रश्न करते हैं कि “अजी! हमने ज्ञान ले लिया, पर हमारा अहंकार अभी नहीं टूटा है।”

देखिये! अगर मेरे सिर में दर्द हो रहा है और मैं एक गोली लूँ, एनासिन (Anacin) की गोली लूँ और उसको खाऊं नहीं, उसको अपनी जेब में डालूं, तो कोई पूछे आपके पास वो एनासिन की गोली, आपने ले ली ?

हां जी! हमने ले ली, अपनी जेब में रख ली। जेब में रखने से आपका सिर दर्द कैसे खत्म होगा ? लोग ज्ञान तो ले लेते हैं, पर उस पर जो अमल करने की बात है, वह नहीं करते। क्या सीखा रहा है — आपका हृदय आपको क्या कह रहा है ? आपका हृदय आपको क्या सीखा रहा है ?

मैं अपने जीवन में आनंद से रहना चाहता हूँ। उसका नाम ही है, सत् चित् आनंद — सत् चित्-चेतना, आनंद। अगर इस चेतना को जो तुम्हारी चेतना है, इसको सत्य के साथ जोड़ो तो क्या मिलेगा, आनंद ही आनंद मिलेगा। कहाँ, कहा है कि उस आनंद के लिए कोई जगह होनी चाहिए या उस आनंद के लिए कोई मंदिर होना चाहिए या उस आनंद के लिए.... ना! वह जो है, जो सत्य है, वह तुम्हारे अंदर है और अभी भी है। जब तुम गुसलखाने जाते हो, तुम्हारे साथ ही जाता है, जब गुसलखाने से निकल कर आते हो तब भी तुम्हारे साथ ही रहता है। जहाँ तुम जाओ, जहाँ, जो कुछ भी तुम करते हो, वह तुम्हारे साथ है।

तो अगर तुमको माहौल जो पसंद नहीं आ रहा है, ऐसा किया हुआ है, तो इसकी वजह और कोई नहीं तुम ही हो। क्योंकि तुम नहीं समझ रहे हो कि तुम्हारे पास क्या खजाना है, तुम नहीं समझ रहे हो कि तुम्हारे पास क्या चीज है! और जब इस चीज को जान जाओगे, जब इस चीज को स्वीकार करने लगोगे, जब इस चीज को महसूस करने लगोगे, वह अपनी जेब से गोली निकाल के जब मुँह में डालोगे, निगलोगे, तब जाकर तुम्हारा सिर का दर्द खत्म होगा। तब जाकर के ये जितने भी चक्कर चलते हैं, जिनसे कि मनुष्य भ्रमित रहता है कि ऐसा क्यों है, ऐसा क्यों है, ऐसा क्यों है! तब जाकर के ये सारी चीजें खत्म होंगी और तब जाकर के तुम सचमुच में असली में स्वतंत्र होगे। और उस स्वतंत्रता — जब हृदय को वह स्वतंत्रता महसूस होगी, तब जाकर तुम्हारे जीवन के अंदर आभार प्रकट होगा। तब तुम्हारे जीवन के अंदर आनंद प्रकट होगा। तब तुम्हारे जीवन के अंदर प्रकाश प्रकट होगा। जब प्रकट होगा फिर आभार और बढ़ेगा। अपने आपको जानो! सबसे बड़ी चीज, चेतना से इस जीवन को जियो। और अपने हृदय के अंदर आभार प्रकट होने दो — तीन चीजें और यह सब कर सकते हैं। यह सब कर सकते हैं।

तो जान करके, पहचान करके अपने आपको, अपने जीवन को सफल करो। और आनंद लो, इस समय में भी मैं कह रहा हूँ कि आनंद ले सकते हो। खुश रहो, खुश रहो! देखो तुम्हारे अंदर यह — तुम परेशान भी हो सकते हो और खुश भी हो सकते हो, और मैं कह रहा हूँ खुश रहो! ठीक है, परिस्थिति तुम्हारे अनुकूल नहीं है, जो तुमको पसंद हो, परन्तु इसका यह मतलब नहीं है कि तुम उस परिस्थिति में भी कोई अच्छी चीज नहीं जान सकते हो। अच्छी चीज तब भी जान सकते हो। अच्छी चीज तुम बाहर तब भी निकाल सकते हो। निकालो अपने जीवन के अंदर और इस चीज को पाओ, जो तुम्हारे पास है। अपना जीवन सफल बनाओ और आनंद से रहो।

कल आपसे फिर बात होगी और तबतक के लिए सभी को मेरा नमस्कार!

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