प्रेम रावत:
नमस्कार! आशा करता हूं आप सब कुशल होंगे।
तो कल रात मैं एक बार फिर से प्रशिक्षण और शांति शिक्षा कार्यक्रम के बारे में सोच रहा था — और मेरे दिमाग में एक बात आई और वह कोई बात नहीं थी बल्कि एक सवाल था — दरअसल एक नहीं, दो सवाल थे। और सवाल यह है "क्या आप एक इंसान के रूप में खुद से खुश हैं ?" मेरे ख्याल से यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण सवाल है।
क्योंकि अगर हम एक इंसान के रूप में खुश नहीं हैं तो फिर यह एक सोची हुई बात है — एक सोची-समझी चीज है। वास्तव में आप कौन हैं, यह एक बिल्कुल अलग बात है; वह एक ऐसी चीज है जिसका हमें एहसास होना चाहिए; जिसकी हमें पहचान होनी चाहिए; जिसकी हमें समझ होनी चाहिए। लेकिन आपको क्या लगता है क्या आप खुद से खुश हैं ? क्योंकि अगर आप खुद से खुश हैं तो फिर आपके लिए यह लॉकडाउन कोई बड़ी बात नहीं है। क्योंकि आप जो हैं उसमें खुश हैं, लेकिन अगर आप अपने आप से खुश नहीं हैं तो फिर आपके लिए यह वाकई बहुत बड़ी बात है। क्योंकि आप जानते ही नहीं कि आप कौन हैं। और क्योंकि आप खुद को नहीं पहचानते तो आप एक अजनबी के साथ हैं। सच में एक अजनबी के साथ। और इस दुनिया में ऐसे कई लोग हैं जो अपनी पूरी जिंदगी एक अजनबी के साथ गुजार देते हैं, किसी ऐसे इंसान के साथ जिसे वह जानते तक नहीं — लेकिन वह आपके साथ हैं, हर दिन और हर पल।
फिर बस एक ही चीज बच जाती है उम्मीद, उम्मीद, उम्मीद, उम्मीद। और आपको उस अजनबी से कुछ ज्यादा ही उम्मीद होती है। दरअसल आप उस अजनबी से उन सभी चीजों की उम्मीद रखते हैं जो उम्मीद लोगों ने आपसे रखी हो। यह दुनिया आपसे बहुत उम्मीद रखती है और जिसके साथ आप रहते हैं उस अजनबी के ऊपर यह सब डाल देते हैं। तो इसका क्या मतलब हुआ ? इसका साधारण-सा मतलब यह है, “अगर आप यह समझ गये हैं कि आप कौन हैं, अगर आप समझते हैं कि आप कौन हैं तो आप खुद के लिए अजनबी नहीं हैं।” और अगर आप खुद से अजनबी नहीं हैं तो आप आसानी से यह कह सकते हैं "हां मैं अपनी जिंदगी में यह चाहता हूं; मैं इस तरह से अपनी जिंदगी जीना चाहता हूं। यह मेरे लिए सही है और यह मेरे लिए सही नहीं है।"
क्योंकि खेल के किसी भी चरण में… मतलब जब आपने स्कूल जाना शुरु किया, तो आपने किंडरगार्टन, के.जी कक्षा से शुरुआत की। फिर आप पहली कक्षा में गए। दूसरी कक्षा में आप कब गए ? जब आपने पहली कक्षा खत्म की। अब आपको लगेगा कि दूसरी कक्षा में जाने का कोई मतलब ही नहीं है, क्योंकि जबतक आप ने अपनी पहली कक्षा खत्म की, तब तक आपको उसकी आदत हो गई। लेकिन आपको रुकना होगा, क्योंकि आप अपना अगला कदम लेने के लिए तैयार हैं।
यह सीढ़ियां चढ़ने जैसा है। जब आप पहले पायदान पर कदम रखते हैं; तब आप अपने पैर वहां तक लाते हैं, फिर एक बार जब वहां होते हैं तब आप अपना दूसरा कदम दूसरे पायदान पर रखते हैं — और फिर तीसरे और चौथे पायदान पर — और इस तरह से आप ऊपर चढ़ते जाते हैं। तो इससे पहले कि आप अपने आप से उम्मीद लगायें, (चाहे वह आपकी खुद की उम्मीद हो तो इससे पहले कि आप अपने आप से उम्मीद लगाएं, चाहे वो आपकी खुद की उम्मीद हो या फिर दुनिया की बनाई हुई उम्मीद हो) आपको यह बात अच्छी तरह समझनी होगी "हां मैं इस स्तर पर आराम से पहुंच गया हूं या अब मैं दूसरे स्तर तक जा सकता हूं।" दूसरे स्तर पर यह क्या है ? खुद को थोड़ा और समझ पाना। तीसरे स्तर पर खुद को थोड़ा और समझना — और यह एक खोज है; यह आपके बाकी के जीवन के लिए खुद को जानने की एक प्रक्रिया है।
क्योंकि आप स्थिर नहीं हैं। आप लगातार बदल रहे हैं; आप स्थिर रहना तो चाहते हैं, पर बदलना नहीं चाहते। और ‘सुकरात’ ने यही कहा था कि अगर आप को सबकुछ मिल जाए (मैं संक्षिप्त में बताता हूं) वह हर चीज जो आप चाहते हैं, तो आप खुश नहीं रह पाएंगे। अगर आपको अपनी मनचाही चीज नहीं मिलती, तो भी आप खुश नहीं रह पाएंगे। और अगर आप जो चाहें वह आपको मिल भी जाए, तो आप खुश नहीं रह पाएंगे। क्योंकि वह बदल जाएगी और बदलाव जिंदगी का नियम है। आपको यह बात पसंद नहीं। आप स्थाई रहना चाहते हैं; आप चाहते हैं सबकुछ थम जाए — और आप उसे उस तरह से देख सकें; आप उसे स्थाई रूप से देख सकें। आप हर चीज को उसके स्थाई रूप में सराहना चाहते हैं।
तो अब यहां आता है वास्तविकता का पूरा मुद्दा। और वास्तविकता क्या है ? मुझे एक सवाल याद आया जो किसी ने मुझसे पूछा था, जब मैं पुर्तगाल में था। और उन्होंने कहा “अगर मुझे यह पता लगाना हो कि मैं कौन हूं” (क्योंकि मैं उन लोगों से इसी बारे में बात कर सकता था) “कि अगर मैं यह पता लगा लूं कि मैं कौन हूं और मैं खुद को पसंद ना आऊँ, तब मैं क्या करूंगा ?" तब मैंने जवाब दिया, जो भी उसका जवाब था; मैं होटल वापस गया — और मैं सोचने लगा। मतलब, “कमाल है मैंने कभी सोचा नहीं था किसी को अपनी खुद की पहचान नहीं होगी…” और ऐसा कहीं नहीं है।
आप कबीर को सुनें या आप कई लोगों ने कितना कुछ कहा है उसे पढ़ें; तो कोई यह नहीं कहता “सुनो खुद को पहचानने में थोड़ा सावधान रहना जरूरी है क्योंकि अगर तुम खुद को जान गए… और क्या हो अगर तुमने जो देखा वह तुम्हें पसंद नहीं आया ?” काफी दिलचस्प है। अद्भुत है। मतलब, “एक मिनट रुको यह संभावना इस व्यक्ति के दिमाग में मौजूद हो सकती है, इस व्यक्ति के मन में आ सकती है। लेकिन यह संभावना कभी भी सामने आई ही नहीं।” क्योंकि पहले से ही लोगों को पता होता है कि जब आप खुद को जान जाते हैं, तो आप जो देखेंगे वह आपको पसंद आएगा ही। और यह एक बहुत ही दिलचस्प बात है। यह जानना बहुत ही आश्चर्यजनक है कि जो है, वह वास्तव में आप हैं और वह बेहतरीन है — बेहद!
अब मान लीजिए, मतलब आपके सामने एक दीवार है — और उसमें एक बड़ा दरवाजा है। और कोई आपसे कहता है "ठीक है मेरे पीछे आओ।" और वह आदमी उस दरवाजे से बाहर निकलता है और वो लोग किसी चीज को देख रहे हैं और वह बहुत ही अद्भुत है। और वो लोग आपसे कह रहे हैं "डरो मत; अंदर आ जाओ!" लेकिन वो लोग आपको यह नहीं बता रहे कि उन्हें क्या दिख रहा है। वो लोग सिर्फ इतना ही कह रहे हैं "अंदर आ जाओ; कोई बात नहीं। सब ठीक है।" लेकिन वो लोग आपको अंदर आने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं, लेकिन प्रोत्साहन के लिए वह यह नहीं कह रहे कि "मुझे यह दिख रहा है; मुझे यह दिख रहा है; मुझे यह दिख रहा है" इसलिए मुझे आश्चर्य हो रहा है ऐसा क्यों। दरअसल मैंने कहीं एक दोहा पढ़ा था वह यह है कि “जब आप अपने इस अनुभव के बारे में बात करते हैं, जब आप खुद को जानने की उस भावना के बारे में बात करते हैं तो ऐसा लगता है कि कोई ऐसा आदमी है जो गूंगा है, जो बोल नहीं सकता, टॉफी खाता हुआ। वह उसका स्वाद ले सकता है — और वह उसका बखूबी मज़ा ले रहा है। लेकिन वो लोग यह नहीं बता रहे कि वह उसका कितना मजा ले रहे हैं और उसका स्वाद कैसा है। वह बस आपको इतना बता रहे हैं "हम्म, यह बहुत बढ़िया है; बहुत मजेदार।"
और यही सबसे जरूरी चीज है। यही कि वास्तविकता, अपने आप में ही बहुत खूबसूरत है। यह अस्तित्व अपने आप में ही बहुत खूबसूरत है। (अब यहां ध्यान दें जरा) यह अस्तित्व अपने आप में ही बहुत खूबसूरत है। यह वास्तविकता अपने आप में ही बहुत खूबसूरत है। आपकी जिन्दगी अपने आप में ही बहुत खूबसूरत है। आपका मन अपने आप में ही बहुत खूबसूरत है।" तो फिर ये बाकी चीजें क्यों आपके आसपास मंडरा रही हैं ? हां, यह हुई काम की बात। याद कीजिए वह पहला सवाल, जो मैंने आपसे पूछा था मैंने पूछा था "क्या आप अपने आप से खुश हैं ?" क्योंकि अगर ऐसा नहीं है तो आप अपने कंधों के ऊपर दूसरों का दिया हुआ उम्मीदों का भार उठाए खड़े हैं।
लेकिन यह समय है खुद को जानने का और बाकी चीजों का नहीं। आपकी अब तक की जिंदगी अपने आसपास की चीजों को समझने में गुजर गई — वो सभी चीजें जो हो रही हैं और हम यही सीखते हैं और हम यही सीखते हैं और हम यही सीखते हैं और मैं यह नहीं कह रहा कि यह गलत है; यह सही या गलत का सवाल नहीं है। इस दुनिया में ऐसी कई चीजें हैं जो हम सीखते हैं — वह अपने आप में बुरी होती हैं। पर वास्तविकता अपने आप में ही बहुत अच्छी है। आप एक इंसान के रूप में, अपने आप में ही बहुत अच्छे हैं और इसीलिए यह अविश्वसनीय रूप से सीखा हुआ व्यवहार है, अविश्वसनीय रूप से सीखा हुआ भारी भरकम व्यवहार जो बाकी लोगों के पास है, जो आपके पास है जिसकी वजह से इस दुनिया में संघर्ष पैदा होता है — टकराव होता है, मनमुटाव होता है। वास्तविकता से नहीं, उस मीठी सच्चाई से नहीं कि आप कौन हैं कि आप में स्वांस कहां से आई कि आप जिंदा हैं कि आपका एक अस्तित्व है।
आप बहुत कम वक्त के लिए मौजूद हैं, लेकिन आप मौजूद हैं और उसमें ही आप खिल उठते हैं — खिल उठते हैं। आप उन सब बातों को जान जाते हैं जिस पर आपने कभी ध्यान नहीं दिया। “यह सच्चाई छिपी हुई क्यों है ? यह खूबसूरती छिपी हुई क्यों है ?” माफ कीजिएगा, यह छिपी हुई नहीं है — हमारी कल्पना में भी यह खूबसूरती छिपी हुई नहीं है। यह खुशी छिपी हुई नहीं है। यह शुद्धता छिपी हुई नहीं है। यह शांति छिपी हुई नहीं है आपने कभी इस पर ध्यान ही नहीं दिया। आपने कभी सोचा ही नहीं कि यह सब मौजूद भी है। किसी ने आपको यह नहीं बताया कि यह सब मौजूद है किसी ने नहीं कहा "यहां आ जाओ, यही वह जगह है जहां वह सारी आश्चर्यजनक चीजें हैं, जो आप में है।" और बस क्या यह इतना आसान है, इतना सरल कि हमें बस इतना ही करना है कि इस पर ध्यान देना है ? और यह खुद को जाहिर करना शुरू कर देगा और बिल्कुल यही योजना है, "हमारे रास्ते से हट जाओ।"
काफी लोग मुझे कहते हैं "मैं शांति की तलाश कर रहा हूं।" और मैं कहता हूं "क्यों नहीं मेरी शुभकामनाएं हैं आपके साथ! आप इस तरह से शांति नहीं पा सकते!" क्योंकि वह पहले से ही आपके पास है। इसलिए आपको इसकी तलाश नहीं करनी चाहिए; आपको इसका मज़ा लेना चाहिए; आपको ध्यान देना चाहिए, यह पहले ही आपके पास है आपके अंदर है। यह तो ऐसे ही हो गया जैसे कोई कह रहा हो "मेरा चश्मा कहां है" — और पता है उनका चश्मा उनके सिर पर ही होता है। कई लोग ऐसा करते हैं और फिर सबसे पूछते रहते हैं "मेरा चश्मा कहां है ?" स्वाभाविक-सी बात है उनकी आंखें नहीं देख पाती कि उनका चश्मा उनके सिर पर है। और अगर कोई आपको अपने सिर पर चश्मे के साथ देखता है — तो उसे लगता है “वह रहा चश्मा, वह देखो, तुम्हारे सिर पर ही है तुम्हारा चश्मा। और तुम हर जगह उसे ढूंढ रहे हो; जब तुम्हारा चश्मा तुम्हारे सिर पर ही है तो क्यों हर जगह उसे ढूंढ रहे हो ?” और उसी तरह हम उस खूबसूरती को ढूंढते रहते हैं जो हमारे अंदर ही होती है। अब दूसरा सवाल जो मैं आपसे करने वाला हूं। मुझे उम्मीद है कि आपको पहले सवाल का जवाब कुछ हद तक मिल गया होगा। लेकिन दूसरा सवाल यह है कि "इस समय हम सब इस लॉकडाउन में हैं जो बहुत अच्छी स्थिति तो नहीं है, लेकिन ऐसी स्थिति में हमारी क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए ?
तो मेरा सवाल यह है “जल्द ही — अंदाज से कह रहा हूं, बहुत जल्द यह सब खत्म हो जाएगा। आपने इससे क्या सीखा होगा ?”
जब मैंने शुरुआत की थी तब “फिर से सबकुछ कायम करने के बारे में था।” आप क्या ठीक करते ? जब आप लॉकडाउन से बाहर निकलेंगे तो क्या आप पहले जैसे रहेंगे ? क्या आप बस इंतजार कर रहे हैं ? आप हर दिन इसके खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं — मेरा मतलब, हर एक दिन ? क्या आप इससे डर रहे हैं ? जबकि मैंने आपसे पहले ही कहा है कि डरने से किसी का भी कुछ अच्छा नहीं होता। बिल्कुल नहीं होता, इससे किसी का भला नहीं होता।" लेकिन आपको कुछ तो करना ही होगा। और इसके लिए बहुत हिम्मत चाहिए कभी-कभी। और अगर मैं यह कह रहा हूं कि इसमें बहुत हिम्मत चाहिए तो यह पूछना बेकार होगा कि आप में हिम्मत है या नहीं। आप में हिम्मत है। आप अपनी जिंदगी में वह कदम उठा सकते हैं; आप आगे बढ़ सकते हैं। और इस चुनौती का सामना करते हुए कह सकते हैं "ठीक है यह वक्त मेरे लिए समय की बर्बादी नहीं है। क्योंकि सच कह रहा हूं कि अगर यह समय की बर्बादी है, तो यह वाकई समय की अच्छी बर्बादी है, बहुत, बहुत, बहुत ज्यादा अच्छी बर्बादी है।” यह सुनने में थोड़ा अजीब है, लेकिन हां, “यह समय की बहुत अच्छी बर्बादी है।”
लेकिन ऐसा नहीं है। ऐसा नहीं हो सकता। मानव जाति के रूप में, हम इस पृथ्वी पर इतिहास रच रहे हैं। हमने एक ऐसी स्थिति का सामना किया जिसके लिए हम तैयार नहीं थे — और बहुत ही कम समय में इस स्थिति ने पूरी दुनिया को घुटनों पर खड़ा कर दिया। यह एक ऐसी चीज है जिसे आप अपनी आंखों से देख भी नहीं पाएंगे। इसे देखने के लिए माइक्रोस्कोप या कुछ और की जरूरत पड़ेगी…. तो यह है हमारी स्थिति और हम क्या कर रहे हैं ?
सरकार इस लॉकडाउन को बढ़ाने के बारे में बात कर रही है, यह कर रही है; वह कर रही है; बहुत कुछ कर रही है। कुछ देश ऐसे होंगे जो इस स्थिति से गुजर चुके होंगे। कुछ द्वीप जो इस स्थिति से गुजर चुके होंगे और वो इससे मुक्त होकर यह कह रहे होंगे "ठीक है; सब ठीक है — लेकिन यहां मत आना।" एक लंबे समय तक यह दुनिया ऐसी नहीं रहेगी, लेकिन अब आपके लिए सही मौका है। आप क्या देखते हैं — इस दौरान आप अपनी जिंदगी में जो बदलाव लाने वाले हैं ? यह आपके लिए कैसे बेहतर साबित होगा जब आप इस स्थिति से बाहर आएंगे ? (आदर्श रूप से सबकुछ ठीक हो जाएगा — और लोग इसके लिए एक वैक्सीन की इजात (ढूंढना) कर लेते हैं। आप यह वैक्सीन ले लेते हैं अब आपको कुछ नहीं हो सकता और अब आप जो चाहे कर सकते हैं, क्योंकि सबकुछ सामान्य हो जाएगा।) क्या आप पहले जैसे ही रहेंगे ?
क्योंकि अगर हम पहले जैसे ही रहेंगे इस पृथ्वी पर रहने वाली मानवजाति में कोई बदलाव नहीं आएगा, जो इस पृथ्वी को सबके साथ बांटते हैं… यह जाहिर-सी बात है कि हम इस दुनिया को सबके साथ बांटते हैं। हम सब बदलाव लाते हैं। हम सब बदलाव लाते हैं। कुछ लोग ऐसे हैं जो पूरी दुनिया से लॉकडाउन में हैं और कहीं बाहर नहीं जा रहे और दूसरे लोगों को संक्रमित होने से बचा रहे हैं। हां, आप अपना किरदार निभा रहे हैं; बखूबी निभा रहे हैं — अब अकेले नहीं रहे। जब आप लॉकडाउन में हैं आप चार-पांच लोगों को सीधे संक्रमित होने से बचाते हैं और फिर हर एक के लिए वह चार और पांच लोग जिन्हें आपने अगर संक्रमित किया होता तो वो और चार पांच लोगों को संक्रमित कर देते और इसी तरह से यह फैलता जाता। तो आप एक नहीं हैं।
तो एक बार सोचिए कि यह कितना शक्तिशाली है कि हमें किन परिस्थितियों में जीना पड़ रहा है। हमारे साथ क्या हो रहा है ? यह कितना शक्तिशाली है — और यह कि हम अकेले भी कैसे फ़र्क ला सकते हैं। हर एक आदमी इसमें फ़र्क ला रहा है; वो लोग जो हमारे लिए आगे खड़े होकर लड़ रहे हैं; अस्पतालों में, वो लोग फ़र्क ला रहे हैं; अस्पताल के कर्मचारी और नर्स वो फ़र्क ला रहे हैं; डॉक्टर्स फ़र्क ला रहे हैं; लोग जो फ़र्क ला रहे हैं। अगर हम इतना बड़ा बदलाव ला सकते हैं तो सोचिए, जब मैं यह कहता हूं — और अक्सर लोग मुझ पर हंसते थे; मुझे यकीन है वो लोग आज भी मुझ पर ऐसे ही हंसेंगे, जब मैं कहता हूं कि "शांति पाना मुमकिन है!" और वो कहते हैं "हां, हां…!"
लेकिन एक उदाहरण देता हूं। शांति पाना मुमकिन है। हम जितना सोचते हैं उससे कहीं ज्यादा शक्तिशाली है। और एक साथ मिलकर हम कुछ भी कर सकते हैं। लेकिन मैंने हमेशा से यही कहा है कि हर एक इंसान अलग है और यह प्रत्येक व्यक्ति की ताकत है जो अंत में बदलाव लाती है। यह कोई एक बड़े लाइट बल्ब की तरह नहीं है बल्कि यह बहुत सारे छोटे-छोटे बल्बों से मिल रही रोशनी है जो बदलाव लाती है। आप दरअसल इन छोटी-छोटी लाइट को असल में रोशनी देता हुआ देख रहे हैं। अपनी आंखों के सामने।
मैं बहुत जल्द ही या एक-दो दिनों में टीपीआरएफ पर एक रिपोर्ट पेश करूंगा कि वह क्या कर रहे हैं — और भारत में आरवीके क्या कर रहा है और प्रेमसागर फाउंडेशन क्या कर रहा है — और लोग इसके लिए कितनी मेहनत कर रहे हैं। यह कोरोना वायरस कि इस परिस्थिति में एक बहुत ही बेहतरीन रिपोर्ट है। मैं जल्द ही आपके सामने उस रिपोर्ट को पेश करूंगा।
तो यह आपके लिए एक अच्छा मौका है अपने आपको अंदर से बदलने का। और तभी मैंने कहा था "क्या आप अपने आप से खुश हैं" — अपने अंदर से हमेशा के लिए बदलने का मौका है, सिर्फ इस हालात के लिए नहीं। बल्कि हमेशा के लिए खुद में बदलाव लाना। और अगर आप खुद को बदल सकते हैं, तो आप अपने आसपास की दुनिया को भी बदल सकते हैं।
तो यह दो सवाल, सोचियेगा जरूर। एक बार इसके बारे में जरूर सोचियेगा। आपका बहुत-बहुत धन्यवाद!