प्रेम रावत:
नमस्कार! आशा करता हूं आप सब ठीक होंगे। और हर एक दिन धीरे-धीरे गुजरता रहा है। और मैं, वाकई यह सोच रहा था कि “मैं आपको ऐसा क्या बताऊं, आपसे ऐसा क्या कहूं बस सोच रहा हूं, जिससे आपका यह वक्त, आपके लिए और भी आसान हो जाए और आप इसका अच्छे से सदुपयोग कर सकें।” क्योंकि सच्चाई जो भी हो, यह बात तो तय है कि कोरोना वायरस के कारण यह वक्त जो अभी हमारे पास है, उस पर कोई रिवाइंड बटन नहीं है। यह वक्त है — और यह उतना ही कीमती है, जितना किसी और काम के लिए होता है। यह उतना ही कीमती है जबकि हमने जन्म लिया था; यह वक्त उतना ही कीमती है जितना एक दशक पहले था, एक साल पहले था। और अब भी, इन सबके बीच ऐसे माहौल में भी यह वक्त बहुत ही कीमती है।
तो मेरा यह सोचना है “हम इस समय का अच्छे से इस्तेमाल कैसे कर सकते हैं ?” — ऐसा कुछ पूरा करने के लिए नहीं जो बाहर है और ना ही किसी मकसद को पूरा करने के लिए, लेकिन खुद के लिए जो हम महसूस करते हैं कि हम सब जो इस स्थिति में हैं हम सोचते हैं कि हम बहुत अच्छे से इसका फायदा उठा लें। यह सिर्फ समय ही नहीं है जिसमें हम बहुत कुछ सोच सकते हैं, कुछ अवधारणा के बारे में, (कुछ हमारी इच्छा के खिलाफ) लॉकडाउन में और भी बहुत कुछ है जो कट रहा है। तो कोरोना वायरस में, लॉकडाउन का एक तरफा परिणाम दुनिया भर में प्रकृति के लिए बहुत ही लाजवाब रहा है। अमेरिका के बड़े-बड़े पार्कों में और सुंदर बागानों में जैसे यहां के योसेमिट और कई तरह के जीव-जंतु वहां पर नजर आ रहे हैं — क्योंकि वहां पर अब लोगों की भीड़ नहीं है — और उन्हें अपने लिए खुली जगह मिल गई है।
किसी दिन मैं एक बहुत ही अच्छी डॉक्यूमेंट्री देख रहा था उसके एक हिस्से में मैंने देखा दिल्ली कितनी खूबसूरत है। और अचानक, मुझे याद आया कि देहरादून में, आसमान इतना नीला और प्यारा दिखता है जितना आमतौर पर हम वैसा आसमान नहीं देख पाते हैं। लेकिन इस कोरोनावायरस के कारण, दिल्ली में भी आजकल आप नीले, खुले आसमान को देख सकते हैं, साफ आसमान को। यह वरदान है सभी जानवरों के लिए। बल्कि यह वरदान है उन सभी चीजों के लिए जो हमारे लिए जरूरी हैं, यह खूबसूरत दिन जिसमें धूप खिली हो, गर्माहट देती हुई। कभी-कभी मैं — मुझे आप स्वेटर पहने हुए देखेंगे और आप जानते हैं “मैं कहां हूं ?” आज मैं यहां कैलिफोर्निया में हूं और साउथ कैलिफोर्निया में बहुत ठंड होती है। वहां का तापमान कभी-कभी इतना गिर जाता है जैसे 65, 66 डिग्री तक, बहुत ही ज्यादा ठंड हो जाती है — और हवा चलती है तो ठंड और भी बढ़ जाती है।
खैर छोड़िए, मुद्दे की बात यह है कि यह समय हमारे लिए वरदान है — बहुत बड़ा वरदान। किसी ने मुझे कुछ तस्वीरें भेजीं फ्रांस से, पेरिस से जहां पर नदी बहुत खूबसूरत दिख रही है क्योंकि उसमें एक भी नाव नहीं है। नदी खामोश है, बिल्कुल खामोश — यहां तक कि बादल का प्रतिबिंब नदी में देख सकते हैं। वैसे जिसने मुझे यह पिक्चर भेजी है वह एक प्रोफेशनल फोटोग्राफर है और यह बहुत खूबसूरत है। बहुत अनोखी है।
तो मेरा पॉइंट यह है कि मैं यह कहना चाह रहा हूं कि हम सब मनुष्य होने के नाते जो करना है वह करते हैं, जो भी हमारी दिनचर्या है “रोज़मर्रा के काम, रोज़मर्रा की चीजें” (मैं यहां शौचालय जाने की बात नहीं कर रहा हूं) लेकिन जैसे आप हर सुबह अपने काम पर जाते हैं, गाड़ी लेते हैं, ऑफिस जाते हैं, वहां पहुंचकर गाड़ी पार्क करते हैं। फिर शाम को ऑफिस से वापस घर आते हैं। बस यही हर दिन और फिर कभी-कभी “खाने के लिए कहीं बाहर जाओ, इस काम के लिए बाहर जाओ, तो कभी उस काम के लिए।” ये सब वो काम है जो हमें करने ही हैं और जब इन चीजों से छुट्टी मिलती है तो सबकुछ शांत हो जाता है; सबकुछ ठहर-सा जाता है।
इसका यह परिणाम होता है (और शायद हमें भी पता नहीं चलता) कि हर दिन हम जो काम करते हैं, जो हमारे लिए जरूरी हैं उन सबका प्रकृति पर कितना गहरा असर होता है। बहुत गहरा असर होता है। तो अगर आप इस प्रकृति को देखें, एक इकोसिस्टम की तरह — और खुद को एक नए रूप में देखें, जिसने अभी-अभी प्रवेश किया हो, जो बर्बाद कर रहा है, सबकुछ बर्बाद कर रहा है — तो आपको आज की परिस्थिति का अच्छी तरह से अंदाजा हो जाएगा कि क्या बर्बाद हुआ है। क्योंकि कुछ बर्बादी तो जरूर हो रही है। तो मैं जिस बारे में बात कर रहा हूं उसका इससे क्या ताल्लुक है ? तो मैं यह बता दूं कि क्या ताल्लुक है — वो यह कि हमारी जिंदगी में, हमारी बेहतरीन प्रकृति भी है जो शामिल होना चाहती है, जो स्वांस लेना चाहती है।
हम जो भी अपनी जिंदगी में करते हैं या जो हम तय करते हैं कि हमें करना जरूरी है, छोटी-छोटी चीजें, रोज़मर्रा की चीजें जो हमें लगता है कि हमारे लिए बहुत ही जरूरी हैं। वह कुछ और नहीं बल्कि एक शोर है… जो किसी को पसंद नहीं आता; तब एक बहुत ही खूबसूरत चीज होती है; कुछ खूबसूरत चीजें सामने आती हैं; बहुत सारी खूबसूरत चीजें उभरकर सामने आती हैं; चिड़िया चहचहाने लगती हैं; वैसे जीव जो स्वभाव से बहुत शर्मीले होते हैं; वो बाहर दिखाई देने लगते हैं। और आपको माहौल में एक स्फूर्ति नजर आने लगती है; और इसे ही कहते हैं खूबसूरती!
जब मैंने दिल्ली की उन तस्वीरों को देखा तो मैं हैरान रह गया। क्योंकि मैंने कई सालों से दिल्ली को कभी इतना सुंदर नहीं देखा। एक पायलट होने के नाते, मैंने भारत में जहाज चलाया है और हम लोगों को बाहर बहुत ही बेकार दिखता है, कुछ भी ठीक से नहीं दिखता, चाहे आप प्लेन से आ रहे हों या हेलीकॉप्टर से आ रहे हों। जबतक हम दिल्ली से बाहर नहीं निकल जाते, मतलब थोड़ा पूर्व की तरफ यानि दिल्ली से बाहर तब जाकर आसमान थोड़ा साफ दिखता है। लेकिन अभी इन दिनों दिल्ली की खूबसूरती देखकर लगता है कि "वाह यह वाकई बहुत खूबसूरत है। शायद हम ही कुछ ऐसा कर रहे हैं जिससे इसकी खूबसूरती कम होती जा रही है।" अगर देखा जाए तो बहुत नुकसान हो रहा है, बर्बादी हो रही है। दिल्ली में इतना प्रदूषण है आप जानते हैं, दिल्ली में कितना प्रदूषण है, इस वजह से कम उम्र में लोगों की मौत हो रही है और बच्चों की सेहत पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है।
अगर हम इन सब चीजों पर ध्यान दें, यह सब जो हम अपने रोज़मर्रा की जिंदगी में करते हैं, बिना सोचे समझे, बिना यह सोचे कि हमारी जिंदगी में इसका क्या असर होगा… और अगर हम यह सब छोड़ दें — “और हम यह करेंगे; ऐसा करेंगे, हमें यह सब ख्याल आएंगे, तो हमें थोड़ी-सी राहत मिलेगी।” लेकिन इसका परिणाम क्या है ? खुद को नहीं पहचानने का क्या परिणाम हो सकता है ? अपने आपको न जानने का क्या परिणाम हो सकता है ? यह तो अपने अस्तित्व को मैला करने के जैसा है, उसकी पवित्रता को मैला करने जैसा है और ये सारी चीजें हमें बहुत उलझा देती हैं, परेशान कर देती हैं।
क्योंकि अभी इस कोरोना वायरस के कारण यह “करो या मरो” जैसे हालात नहीं हैं; यह कुछ ऐसा है "नहीं आप ऐसा नहीं कर सकते — आपको अलगाव में ही रहना है, नहीं तो आप बीमार हो सकते हैं।" और वो सारे सवाल "ओह आपके काम का क्या होगा ? काम पर नहीं जा रहे क्या;” और आप कहते हैं "अरे नहीं, नहीं, नहीं, नहीं” आप अपने काम पर ना जाएं। आराम से रहें। काम से कहीं ज्यादा जरूरी है आपके लिए जिंदा रहना।
मैं आपको क्या सलाह दे सकता हूं ? मैं यह सलाह दे सकता हूं कि आपको स्वस्थ रहना जरूरी है — सिर्फ शरीर से ही नहीं, बल्कि मन से भी। अपने अंदर से इन सब चीजों का असर खुद पर नहीं होने देना है। जो हम खुद ही उत्पन्न कर रहे हैं। लेकिन अपनी खुशी का एहसास यह होना जरूरी है, उसे पहचानना जरूरी है, खुशी को जानना जरूरी है, खुशी को जानना जरूरी है। तो हम कभी-कभी सोचते हैं "यह ऐसा क्यों है; यह वैसा क्यों है; क्यों, क्यों, क्यों, मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है; मेरे साथ वैसा क्यों हो रहा है ?" लेकिन हमने कभी यह नहीं देखा, यह नहीं सोचा कि हमने खुद के लिए अपने वातावरण को कितना दूषित कर दिया है — अपने अंदर हमने खुद की कई धारणाएं बनाकर खुद को भी दूषित कर दिया है।
धारणा कुछ भी हो सकती है, छोटी से छोटी भी। हमारे विचार भी छोटे-छोटे हो सकते हैं उस कंबोडिया की लड़की की तरह (यह बहुत साल पहले की बात है; अब तो वह काफी बड़ी हो गई होगी) उस वक्त वह लड़की स्कूल जाया करती थी —और एक दिन वह बहुत दुखी थी, क्योंकि उसका फोन खो गया था।
मैं उस प्रदूषण की बात कर रहा हूं। यह होता है खुद को दूषित करना। उसे इतनी-सी बात पर हताश नहीं होना चाहिए था। उसे इस बात को भूलकर आगे बढ़ जाना चाहिए था। लेकिन यह उसके लिए जरूरी था, उसके लिए यह बहुत ही जरूरी था, क्योंकि वह इससे अपने दोस्तों से बात कर सकती थी। यह सब उसमें आखिर आया कहां से ? जाहिर-सी बात है, वह जन्म से ही उसके साथ नहीं था। वह अपने दोस्तों के बारे में उतना नहीं सोचती थी; वह अपने उन दोस्तों के बारे में ज्यादा जानती भी नहीं थी, लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं हम अपने मन में ऐसे विचार आने देते हैं जिसकी वजह से हमारा मन भी दूषित हो जाता है, लेकिन हमें इस बात का पता भी नहीं चल पाता क्योंकि हर दिन हम इस बात को साबित करते रहते हैं “हमें इन चीजों की जरूरत है।” हर दिन हम यह साबित करते हैं कि “ये चीजें हमारे लिए कैसे जरूरी हैं” — जबकि हमारे लिए ज्यादा जरूरी यह है कि हमें इस चीज की समझ हो, हमें एक इंसान होने के नाते पवित्र मन रखना चाहिए।
हम समाज में रहते हैं — और मेरा विश्वास कीजिए मैं अपने समाज को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं कर रहा हूं; मैं जानता हूं हमारे समाज में एक से एक अच्छी चीजें भी की गई हैं। कितनी सारी बीमारियों का इलाज ढूंढा गया है, कितनी तकनीकी वृद्धि हुई है, कितनी सारी चीजें की गई हैं। मेरे कहने का मतलब है अगर हम एक रेगिस्तान में 100 डिग्री गर्मी में भी हों, तब भी हम अंदर से ठंडे रह सकते हैं। मतलब, इन सब चीजों की दाद देता हूं। लेकिन इन सबके साथ हमने और भी ऐसी चीजों को अपने समाज में आने दिया है जो हमें नुकसान पहुंचा रहे हैं, देखा जाए तो हमें चोट पहुंचा रहे हैं और हमने इस बात पर कभी ध्यान नहीं दिया “ये चीजें हमें कैसे नुकसान पहुंचा रही हैं; इन चीजों का हम पर क्या असर पड़ रहा है ?”
एक समाज के नाते हां, हमने काफी कुछ हासिल किया है, लेकिन हमारे यहां जेल में कई लोग भरे पड़े हैं — और ये लोग किसी दूसरे ग्रह से नहीं आए हैं, मंगल ग्रह या चांद से तो नहीं आए हैं यह वो लोग हैं जो हमारे ही समाज से हैं। तो यह क्या है फिर ?
सुलैमान के बारे में एक कहानी है। एक बार एक राजा के सामने एक चोर को पेश किया गया और राजा ने उससे पूछा "उसका जुर्म क्या है ?" तो उसने कहा "यह ब्रेड चुरा रहा था।" राजा ने चोर से कहा कि "तुम ब्रेड क्यों चुरा रहे थे ?" तो चोर ने कहा कि "मेरे पास खाने के लिए कुछ नहीं था। मैं बहुत भूखा था और जब मुझे यह ब्रेड दिखा तो मैं उसे लेने के लिए खुद को रोक नहीं पाया।"
तो राजा ने कहा "तुमने जो किया वह बहुत ही गलत था। तुम्हें इसकी सजा मिलेगी। तुम्हें 100 कोड़े मारे जाएंगे, 100 कोड़े।" यह सुनकर चोर रोने लगा। तब सुलैमान ने कहा "मत रो; कोई बात नहीं।” ये कोड़े तुम्हें नहीं मारे जा रहे। ये कोड़े उन लोगों को मारे जा रहे हैं, जिन्होंने तुम्हें भूखा रहने पर मजबूर किया।"
इसलिए सुलैमान को एक चतुर राजा माना जाता था। हमारी इस छोटी-सी दुनिया में जो कुछ भी होता है, हम उसका हिस्सा होते हैं। और कुछ ही समय में… आप यह जान जाते हैं कि एक आदमी की भी, सिर्फ एक आदमी की भी क्या अहमियत है हमारी जिंदगी में। अगर अलगाव में एक आदमी, मान लीजिए अगर आपके परिवार में 50 लोग हैं और एक-एक सदस्य अलगाव में है और अगर उनमें से कोई भी इस अलगाव को नहीं मानता है और बाहर निकल जाता है — और अब वह संक्रमित हो जाता है — तो हो सकता है आप नहीं जानते वह संक्रमित हो सकता है। सब लोग उस एक आदमी से डरकर रहेंगे, बचकर रहेंगे। “यही है एक की शक्ति।”
मैंने इस बात को एक शक्ति के बारे में लोगों को बहुत समझाने की कोशिश की, लेकिन मुझे लगता है मैं कामयाब नहीं हो पाया — लेकिन इस कोरोना वायरस ने मेरे लिए यह कर दिया। एक की शक्ति अब सबको साफ-साफ समझ में आने लगी है। ऐसा ही होता है क्या हमें जागरूक होने पर इस तरह की ट्रेजडी की जरूरत पड़ेगी ? ऐसा नहीं होना चाहिए — हमें जागरूक होने के लिए ट्रेजडी की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए; इस ट्रेजडी से हमें सीख मिलनी चाहिए; इस ट्रेजडी से हमें यह कहना चाहिए कि "हां मैं यह जिम्मेदारी लेता हूं; मैं जिम्मेदार हूं! और मैं कुछ ना कुछ कर सकता हूं।" हां, कर सकते हैं! हां, आप कुछ ना कुछ जरूर कर सकते हैं।
मेरा मतलब, अब यह कोरोना वायरस को ही ले लीजिए यह एक तरफ का है। एक बार मैं जब लखनऊ में था — बहुत पहले; मैं उस समय काफी छोटा ही था। मैं एक महल देखने गया था और वह महल लखनऊ के नवाब का था। और मुझे किसी ने एक कहानी सुनाई थी, जो सच थी। तो उस महल में, निज़ाम नृत्य देख रहे थे अपने महल में — मधुर संगीत चल रहा था और वह नर्तकियों को नाचता हुआ देख रहे थे… तभी उसके पहरेदार अंदर आए और कहा कि "निज़ाम आपको यहां से निकलना चाहिए क्योंकि हमें अंग्रेजों की सेना आती हुई दिखाई दे रही है; यहां से धूल उड़ती हुई नजर आ रही है; खतरा मंडरा रहा है।" तो उसने कहा "नहीं चिंता मत करो; कोई बात नहीं।"
थोड़ी देर बाद उन्होंने फिर से निज़ाम से कहा "यहां से निकलने में ही आपकी भलाई है। अंग्रेजों की सेना सर तक आ गई है, दरवाजे तक आ गई है।" और वह कहता है "अहह! तुम लोग परेशान मत हो; कोई खतरा नहीं है। तुम लोग जानते ही हो वह खतरा टल जाएगा; सबकुछ ठीक हो जाएगा।" थोड़ी देर बाद उन्होंने फिर से निज़ाम से कहा "यहां से अब आपको निकलना ही चाहिए। अंग्रेजों की सेना महल के मुख्य द्वार तक आ गई है।" निज़ाम कहता है "तुम लोग जाओ!" कुछ देर बाद पहरेदार फिर से आए और निज़ाम से कहा "वो लोग आपके कमरे में प्रवेश करने वाले हैं!" तब जाकर निज़ाम ने अपने नौकर को ढूंढा। उसे आवाज लगाई और कहा "मेरे जूते लेकर आओ!"
लेकिन नौकर तो था ही नहीं — वह तो कब का भाग चुका था। तो निज़ाम बाहर भागा। अंग्रेजों ने उसे पकड़ लिया और बंदी बना लिया। निज़ाम ने अंग्रेजों से कहा "अगर मैंने सिर्फ जूते पहने होते तो तुम लोग मुझे कभी पकड़ नहीं पाते।" कहा जाता है कि यह एक सच्ची कहानी है। वह निज़ाम वाकई इतना जिद्दी था, इतना ही जिद्दी था, इतना ही जिद्दी था।
वैसे ही यह चीज, यह कोरोना वायरस पहले से ही अपने आने की दस्तक दे चुका था। लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। यह चीन में शुरू हुआ; किसी ने ध्यान नहीं दिया। पता है पहली बार ऐसा नहीं हुआ है; पहले सार्स हुआ; फिर मर्स भी हुई (जो ऊंट में हुई थी); स्वाइन फ़्लू हुआ; फिर बर्ड फ़्लू हुआ। तो हम सबको पहले से ही पता था “कुछ तो इस तरह का होने वाला है।” इबोला का प्रकोप, मेरा मतलब इन सबसे हमें अंदेशा हो जाना चाहिए था कि कुछ ना कुछ मुसीबत आने वाली है। हमें कई बार संकेत मिला, चेतावनी मिली कि इस तरह की विपदा हम पर आने वाली है। लेकिन हमने अपनी जिद की वजह से क्या किया ? कुछ नहीं। हमने नजरअंदाज कर दिया। हमने इन चीजों पर ध्यान ही नहीं दिया। तो हमने किस चीज पर ध्यान दिया ? हमें हर दिन कुछ पैसे कमाने के लिए बाहर निकलना पड़ा। बिल्कुल भी नहीं! आपको क्या लगता है हम जो इतने पैसे जमा कर रहे हैं वह अपने साथ ऊपर ले जाने वाले हैं ? कोई भी ऐसा नहीं कर सकता, जिसका धन दौलत उसके साथ ऊपर जाता है।
परिणाम ? इसका परिणाम यह है कि हम कितने लोगों को खो रहे हैं। यह कितने दुख की बात है, बिल्कुल चकित कर देने वाली बात है कि इतने सारे लोग व्यर्थ में अपनी जान गवां रहे हैं। इन लोगों को मरने से बचाया जा सकता है। लेकिन यह हमारी जिद है जिसमें हमें आने वाली मुसीबत को देखने से रोक दिया। यह वही जिद है जो आपको बाहर से आने वाली मुसीबत को देखने नहीं दे रही और यह वही अहंकार है जो आपको अपने अंदर देखने से भी रोक रहा है। या आप 100 साल जीने वाले हैं तब भी यह अहंकार आपके पास जो 36,500 दिन है उसे देखने नहीं दे रहा। वह आपको इन सब चीजों का आभास करने से रोक रहा है।
यह अहंकार आपको यह देखने से रोक रहा है कि आप कितने सुरक्षित हैं; कमजोर हैं। आप वैसे नहीं हैं, यह आप जानते हैं, आप तो ठोस लोहे के बने हैं। फिर भी आप एक इंसान हैं और जबतक आप इस पृथ्वी पर हैं आप एक इंसान के रूप में ही हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके हाथ में क्या है, आपके हाथ में मशीनगन है या आपके हाथ में तीर-धनुष है, कुछ भी है — इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। आप एक इंसान हैं और आप में जरा-सा भी अहंकार या जिद नहीं होनी चाहिए जो आपको आपकी इंसानियत, आपका दोष, आप खुद जो हैं, आप जैसे हैं, उसे देखने से आपको रोकता हो।
आप समझ रहे हैं, यह सोचने वाली बात है। ऐसा नहीं है कि आपको बाहर जाकर कोई बटन दबाना है। आप जानते हैं कि ऐसा कोई बटन बाहर सड़क पर नहीं है जिसे आप जाकर दबायें। नहीं, यह सिर्फ एक जागरूकता है; इसी को जागरूकता कहते हैं — यह सब छोटी-छोटी चीजें हैं जो हमारे अंदर हो रही हैं; जैसे एक पहेली सुलझने लगती है। सामने एक तस्वीर है और यह तस्वीर बहुत सारी पहेलियों के टुकड़ों में बंटी रहती है। आप इसे देखकर यह नहीं बता सकते कि यह तस्वीर किसकी है, इसके टुकड़ों को देखकर भी नहीं। आप इन टुकड़ों को जोड़कर पहेली को सुलझाने की कोशिश करते हैं, जिनमें कुछ टुकड़े जुड़ तो जाते हैं, लेकिन कुछ जुड़ नहीं पाते। जब इस तस्वीर में सारी पहेलियों के टुकड़े एक साथ रखते हैं, (बिना जोर-जबर्दस्ती के) तब एक तस्वीर बनती है। आप यह तस्वीर देखेंगे और शायद बहुत ही आनंदित होंगें।
यह छोटी-छोटी जागरूकता हममें होनी चाहिए जिससे हमारा जीवन परिपूर्ण होगा। मैं यह नहीं कहना चाह रहा हूं। मैं यहां दुख और दर्द के बारे में बात नहीं कर रहा हूं; मैं यहां सिर्फ अंदरूनी खुशी और परिपूर्णता की बात कर रहा हूं। एक इंसान होने के नाते वह हर चीज जिसे हम हासिल करना चाहते हैं, उस हर ख़्वाहिश को हम हमेशा पूरा नहीं कर सकते। अगर हम अपना इतिहास देखें तो हमें हमेशा अपने अहंकार और जिद की वजह से हार माननी पड़ी है। हमारे साथ सबकुछ इतना अच्छा हो रहा था — और आखिरकार अंत में क्या हुआ, यह महामारी मुसीबत बनकर आ गई। क्या हम यह चाहते थे ? क्या हम इतिहास के पन्नों में इस तरह से जाने जाएंगे ? या हम इस तरह जाने जाएंगे : “यह इंसान कितने अद्भुत थे। इन्होंने एकजुट होकर सबकुछ किया; इन सभी लोगों ने एक अच्छी तैयारी की थी।” जब हमारे पास सबकुछ होता है — अच्छे दिन होते हैं, तब वक्त होता है कि अपने बुरे समय के लिए, अकाल के लिए, सूखे के लिए, किसी भी आने वाली मुसीबत के लिए आप पूरी तरह से अपनी तैयारी करके रखें। लेकिन जब पूरी मानवता लालच में डूबी हुई हो और आने वाले मुसीबत को नहीं देख पा रही, तब दुर्भाग्य से हमें भी यही कहना होगा, जो निज़ाम ने कहा था "मेरे पास अगर जूते होते तो तुम मुझे कभी नहीं पकड़ पाते।" मेरा मतलब मुझे वह कहानी अभी भी याद है। मैंने पूछा “क्या वो सच में था ?” हाँ, ऐसे होते थे लोग; जो वाकई जिद्दी और अहंकारी होते थे।
इस अहंकार से हमें कुछ नहीं मिला। यह अहंकार — यह तुच्छ-सी चीज, आंखों से न दिखने वाला यह वायरस हमारी जिंदगी में अपनी नाक अड़ा रहा है और हमसे कह रहा है "अब बताओ तुम अब क्या करोगे ?"
हम इसकी दया पर पल रहे हैं, डॉक्टर्स की दया पर, ये डॉक्टर्स मेहनत कर रहे हैं। मेडिकल कोर, मेडिकल स्टाफ कड़ी मेहनत कर रहे हैं और हमें उन सभी संसाधनों की मदद से जिस पर हमें हमेशा से गर्व है। तबतक जबतक सब ठीक न हो जाए इन सब पर हमें गर्व है। तो क्या अंततः हमने इतिहास के लिए यह रचा है ? अगर हमने इतिहास के लिए यह सोच रखा है तो मैं आपको बता दूं कि एक और संभावना है। और वह संभावना परिपूर्ण होने के बारे में है; सफल होने के बारे में है। और ये कहे "नहीं उन लोगों ने कुछ सीखा। वो लोग इसके लिए खड़े हुए, एक अच्छी चीज के लिए। वो लोग खुद को समझ पाए। उन लोगों ने अपने जीवन को जागरूक होकर जीना सीखा और उन्होंने दिल से सबको धन्यवाद दिया।" हो सकता है कि यह मुमकिन हो और ऐसा होना मुमकिन है।
स्वस्थ रहें; सुरक्षित रहें; बने रहें। आपसे बाद में बात करता हूं। धन्यवाद!