लॉकडाउन — अठाईसवां दिन

प्रेम रावत के साथ (हिंदी में अनुवादित)
Apr 17, 2020
"अच्छा करने की, खुश रहने की, शान्ति में बने रहने की मूलभूत चाह ही आपको पूर्ण बनाती है - आपकी कमियों के होने के बावजूद भी!" — प्रेम रावत / प्रेम रावत जी "पीस एजुकेशन प्रोग्राम" की वीडियो श्रृंखला को प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहे हैं। इस दौरान आपके लिए उनके पूर्व प्रकाशित अंग्रेजी लॉकडाउन वीडियो जो हिंदी में अनुवादित है, प्रस्तुत हैं।

प्रेम रावत:

सबको नमस्कार! उम्मीद है आप सब ठीक हैं और सुरक्षित हैं।

तो आज कुछ सवालों के जवाब दूंगा मैं — और पहला सवाल है कार्मे मोंटेयो से। और सवाल यह है "आपने इंसान की असली प्रकृति की बात की है। आपने समझाना बीच में छोड़ दिया था” — मैं शायद बह गया और कुछ सोचने लगा। “तब से मेरे हृदय में यही बात है कि आप क्या बता रहे थे। क्या आप इस बात को बता पाएंगे ?"

एक व्यक्ति की असली प्रकृति — यह एक दिलचस्प सवाल है। क्योंकि हम इतना कुछ देखते हैं आसपास जो कि है, जिसे हम प्रकृति मान लेते हैं — बुरा, लालची, गुस्सा और ये सभी चीजें प्रभाव डालती हैं कि कैसे एक व्यक्ति को हम देखते हैं। लेकिन क्या हो अगर ये सब हटा दिया जाए और जो रह जाए वह हो केवल एक व्यक्ति की असली प्रकृति, उस इंसान की ? तो अब मैं क्या बात कर रहा हूं “मैं हवा में बात कर रहा हूं या कुछ सच्चाई की बात ?”

तो यहां संभावना क्या है; पहले यह समझते हैं। जी हां, गुस्सा तो है ही — लेकिन वहीं गुस्से का विपरीत भी है और वह क्या है कि व्यक्ति में वह क्या बसता है ? अपनापन, प्यार, समझ — और इसका जवाब होगा "हां, ये सब भी एक व्यक्ति में बसता है।” और फिर डर क्या है ? यह डर, अब इसका विपरीत भी एक व्यक्ति के भीतर ही है जो है हिम्मत।

देखिए — जब एक बच्चे को देखते हैं; एक बच्चा जिसका मन बिल्कुल साफ है, जिसने ये बुरी बातें नहीं सीखी हैं, फिर वह बच्चा एक बिल्कुल ध्यान केन्द्रित तरह से रहता है और वह एकाग्र रहता है उस स्थिति में वह खुश रहने की कोशिश करता है, संतुष्ट रहता है। और सिर्फ तभी रोता है जब कुछ गलत होता है। और जब कुछ सही हो, तो बच्चा नहीं रोता। जब बच्चा देखना चाहता है, जब वह उस उम्र में आते हैं, जब वह खोज करते हैं। तो वह अपनी खुशी एक कमाल की ताकत से दिखाते हैं उस खोजने की उम्र में कुछ लेने की कोशिश में, किसी चीज को पकड़ने के लिए। लेकिन हां, उसी चीज को पाने की खुशी में। तो मेरे लिए, जब हम देखना शुरू करते हैं उन विशेषताओं को — जो फिर वह व्यवहार, वह प्रकृति, एक व्यक्ति की असली प्रकृति में जो होंगी वो सारी बातें, वो सारी चीजें।

एक व्यक्ति आगे बढ़ेगा, हर पल जब वह बढ़ सकता है, पूर्ण होने के लिए और उन सरलता वाली बातों के लिए। उन बातों की ओर जाने में, यह देखने में और सराहना करने में। क्योंकि जब आप सराहना करने लगते हैं, इससे आपको बदले में कुछ मिलता है।

जब आप बैठकर समुद्र के किनारे लहरों को एक ताल में आता हुआ देखते हैं और जाते हुए और आते हुए और जाते हुए… उनको जोड़ों में देखते हैं, तो एक अवकाश लेने जैसा होता है, फिर एक और जोड़ा आता है। फिर बीन बजाने वालों के नृत्य की तरह, वह लहरों पर आते हैं… और जब भी मुझे एक मौका मिलता है यह देखने का, मुझे यह कमाल का लगता है। क्योंकि यही तो है, “वाह, हर चीज एक-दूसरे के समय को समझकर उसके अनुसार ही चलती है।” तो फिर यह होगी इंसानी प्रकृति, उसके समक्ष झुक जाना जिससे आप जीत नहीं सकते। जिसे जीतना नहीं है, वह झुक जाता है, देता है, बदलता नहीं है — और यह बहुत अच्छा है। आप बड़ी लहरों को आता देखते हैं — खासकर उत्तरी कैलिफोर्निया में, लहरों के बड़े-बड़े झुंड आते हैं — बिना रुके हुए आते हैं और यह बिना रुकावट चल रहे है और यह पत्थरों से टकराते हैं। और आप देखते हैं कभी-कभी जब आप ऊपर हैं तो, दो, तीन सौ फीट पर ऊपर से ये लहरें आपको छूना चाहती हैं। जैसे कि वाह, यह कमाल की ताकत — बिना झुके हुए, बहुत, बहुत ताकतवर — और यह पानी, यह पानी की ताकत। और दोनों में बहस चल रही है। अंत में पानी जीत जाएगा। और हम यह कई जगहों पर देख सकते हैं। पर जबतक यह नहीं होता, यह वहीं रहता है

इंसान की असली प्रकृति होगी करुणामय। यह होगी खुशी को खोजना। एक इंसान द्वारा सुंदरता पहचान पाना और हर चीज के समय को समझना और उसके सामने झुकना जिसे वह बदल नहीं सकता। यह जानना कि कब झुकना है, कब नहीं झुकना — एक पेड़ की तरह। वह वहीं पर है। लेकिन वह जानता है कि जब हवा चलनी शुरू हो जाती है, अगर वह वहां पर रहना चाहता है तो उसे झुकना होगा। अगर वह वहीं रहना चाहता है। और यह एक कला है; यह है प्रकृति की असली कला — पूरी प्रकृति में। किसी पर कुछ भी हावी नहीं होता।

यह पहले की बात है, यह संरक्षण की पूरी बात — और महाभारत के समय में भी यह बात थी, जब अर्जुन का सपना है और जंगल के सभी जानवर कहने आते हैं कि "सुनिए, तुम बहुत अच्छे शिकारी हो, तुम हमें खत्म कर रहे हो — यहां से कृपया चले जाओ! कहीं और जाओ।" और यह जो बात है कि "हां, इंसान हमें खत्म कर देंगे..,” यह हमारी प्रकृति में नहीं है; उससे हमें कोई लाभ नहीं होगा। हमें लाभ मिलेगा उन चीजों का ख्याल रखने से और देखने से कि ये चीजें बढ़ती रहें हमेशा।

तो, असल में, इंसान की असली प्रकृति होगी एक बहुत ही आम, करुणा से पूर्ण, समझ से पूर्ण। और जिसकी मदद हो सके, उसकी मदद करना — और उसके समक्ष झुकना, जिसे कोई मदद नहीं चाहिए। तो उम्मीद है (मैंने आसानी से समझाने की कोशिश तो की है आपको), उम्मीद है मदद मिलेगी। मैं ऐसे ही देखता हूं इंसानी प्रकृति को। बिल्कुल, जी हां, किसी भी तरह से सोच लें, मैं इंसान की बुरी प्रकृति को नहीं बता रहा हूं; लेकिन वह भी मौजूद है। पर मैं क्या कर रहा हूं, जब मैं बुरी प्रकृति को बताता हूं, मैं इंसान की अच्छी प्रकृति को भी अपनाता हूं। और ऐसा ही है।

यह भी अपनाया जाना चाहिए इसको हमें बढ़ावा देना चाहिए, बुरी बातों को नहीं। हम बुरी बातों को फैलाना जानते हैं। हम इसमें माहिर हैं। हम ऐसा इतने वर्षों से करते ही आए हैं, हम बन चुके हैं बहुत, बहुत ही अच्छे और बहुत, बहुत ही अच्छे बुराई को लेकर बढ़ाने में। कभी कभी हम अच्छाई को भूल ही जाते हैं।

और यह कि अच्छाई को सामने कैसे लाएं ? यह आसान है — आप एक बच्चे में अच्छाई कैसे उभारते हैं ? आप उस बच्चे को अपने साथ खोज की प्रक्रिया में साथ ले चलें, और यह नहीं कि उन्हें बैठकर बस यह बताएं कि क्या करना है और क्या नहीं करना है और यही सब बातें। उन्हें समाधान ढूंढने दें; उन्हें जवाब ढूंढने दीजिये। अगर आप उन पर भरोसा करते हैं — इसमें थोड़ा समय लगता है — लेकिन एक बार वह समझ गए कि आपको भरोसा है, फिर वह सही बात जरूर करेंगे, फिर वह सही सलाह देंगे आपको, अपने लिए भी साफ-समझ की बात। तो उम्मीद है कि मैंने आपकी मदद की है।

तो एक और सवाल है काला न्यूजीलैंड से — यह है, "मैं रोज के कार्य में वर्तमान में कैसे रहूँ ? क्या मुझे इसके प्रति काम करना होगा या यह अपने आप हो जायेगा ?" अब इसमें भी बहुत सुंदरता है।

अगर आप सचेतना से जी रहे होते — और इसका प्रयोग वर्षों से करते आए होते, यह आपकी प्रकृति का हिस्सा बन गए होते। लेकिन, अब हमने किस ओर कार्य किया है — और शायद, शायद हमारी दुनिया ऐसी है कि हमें विकल्प नहीं मिला है — लेकिन हमें अचेतना में जीना और कार्य करना है। और अब अचेत होकर जीना हमारी प्रकृति में आ गया है। अगर हम सचेतना से जीना चाहते हैं, हमें अभ्यास करके उसे अपनी प्रकृति में लाना होगा, अभ्यास, अभ्यास और अभ्यास और अभ्यास और अभ्यास। हमें एक लंबा समय लगा वर्षों, वर्षों, वर्षों का अभ्यास, जब बेहोशी में हम जीते रहे थे। अब सचेत जीने में भी थोड़ा अभ्यास लगेगा ही।

पर बिल्कुल, सचेत जीवन में एक इनाम छुपा हुआ है। और इसका यह मतलब होता है। ऐसा नहीं कि… हर एक रोज, मुझे लगता है सभी का एक लक्ष्य होता है जैसे कि, “मुझे उस स्तर पर जाना है, मुझे उस जगह तक पहुंचना है।” लेकिन जीवन में कुछ बातें होती हैं जहां सीमाएं नहीं होती हैं। आप जीवन में हर रोज सचेत जीने की कोशिश करते हैं, थोड़ा और थोड़ा और थोड़ा और थोड़ा। आप कामयाबी अपनाते हैं और विफलता को भी साथ ही अपनाते हैं यह है सचेतना से जीना। यह सिर्फ कामयाबी के बारे में नहीं, यह होगा कामयाबी और विफलता दोनों को अपनाना। फिर सचेत जीवन सही लगने लगता है आपको।

अगर कोई यह हासिल करना चाहता है, वह “प्रिंटर” की बात, एक पिक्चर प्रिंट करता है जिसमें "हां, ओके, एक दिन आप परफेक्ट होंगे।" नहीं, समझिये कि आप परफेक्ट ही हैं। और यह परफेक्ट होने की कोई परिभाषा नहीं है, जो किसी और ने बनाई हो जो आपको परफेक्ट बनाती हो। आपको परफेक्ट क्या बनाता है, आपकी कमियों और साथ ही मूलभूत इच्छा के साथ कुछ अच्छा करने की कोशिश, कुछ खुश रहने की कोशिश, शांति में रहने की, यह आपको पूर्ण बनाता है; यह आपको परफेक्ट बनाता है — आपकी कमियों के साथ भी। इसलिए उम्मीद है कि आपको मेरे इस जवाब से मदद मिलेगी, क्योंकि यह ऐसा ही है मेरे विचारों में।

एक और सवाल भेजा है, एना रोजालीस ने, "अपने भीतर शांति कैसे रखें जब हम देखते हैं कि बाकियों को दूसरों की तबाही का लाभ मिल रहा है — हम एक हैं और तबाह हो रहे हैं ?"

तो अब यह दिलचस्प सवाल है — क्योंकि यह सच है। एक प्रणाली बनाई गई है जिसमें कुछ लोगों में बाकियों से ज्यादा ताकत है। यह एक, सिर्फ एक रात में नहीं हुआ है; यह हुआ धीरे, धीरे, धीरे, धीरे — हम लोगों को सशक्त करते रहे; हमने उन्हें बहुत ताकत दे दी।

हमने अधिकारियों को बहुत ताकत दी। फिर उन्होंने ताकत का इस्तेमाल करके कुर्सी दोबारा लेनी चाही ताकि जो कोई भी हो कुर्सी हासिल करने में मदद करे — उनसे थोड़ा और ताकतवर ही सही। है ना ?

तो ऐसे लोग हैं जो सरकार में होने की वजह से ताकतवर हैं; फिर वो लोग हैं जो उनसे ज्यादा ताकतवर हैं — और वो लोग उन लोगों को कुर्सी जीतने में मदद करते हैं और वो उनकी मदद करते हैं बदले में ताकतवर बने रहने में। इसलिए अचानक से एक दौड़ की तरह ही — और उस दौड़ में, बाकी सभी प्रतिभागी निकलते जाएंगे। और बस वही अंत में रह जाएंगे, जो एक-दूसरे की मदद करेंगे ताकतवर रहने में। और बाकी सारी आबादी; उनको भूल जाइये; वह पीछे रह जाएंगे।

लेकिन इसे देखते क्यों नहीं, इस तरह कि “ये ऐसा कैसे बना ?” आसान है। यह ऐसा कैसे बन गया ? क्योंकि हमने ध्यान देना छोड़ दिया — हमने वह ताकत छोड़ दी और उनके हाथों में सौंप दी। हमने कहा "इसके साथ चलो। मुझे परेशान नहीं होना; मुझे अपना जीवन चाहिए — मैं व्यस्त हूं! मैं बहुत व्यस्त हूं। अपने परिवार का ख्याल रखने में, अपनी स्थिति बेहतर करने में; मुझे इससे परेशान नहीं होना है — तुम इसे ले लो; तुम लेकर आगे चलो; इस ताकत से जो करना चाहते हो वो करो।” अब इसका नतीजा है ये सब। और जब नुकसान होता है, आपने देखा कैसे। दुनिया की हालत जरा आप देखिये!

यहां इससे यह पता चलता है — जिसमें वह लोगों को दिखाते हैं; जो जमा करते हैं, एक शो आता है ऐसा जमा करते हुए। वो इकठ्ठा करते हैं और इकट्ठा और इकट्ठा और ऐसी हालत हो जाती है जहां आप उनके घर में घुस भी नहीं सकते, क्योंकि वहां पर इतना कुछ सामान इकट्ठा हो जाता है और इकट्ठा होता रहता है।

कुछ लोग ऐसा करते हैं, बस, वो पैसे के साथ करते हैं ये सब; वो जमा करते हैं। जब भी कोई धोखा होता है, कोई भ्रष्टाचार का मामला है, कोई रिश्वत दी जाती है, रिश्वत में क्या होता है ? इसमें एक गरीब व्यक्ति की जेब से पैसे लेकर, (उसके मुंह से छीनकर) किसी ऐसे को देना जिसे उसकी जरूरत नहीं है, जिसे उसकी सराहना भी नहीं है। तो हम इस दुनिया में क्या देखते हैं… नहीं देख सकते — मतलब कि खासकर, अब अगर आप अपने शहर में देखें, आप साफ नीला आसमान देखेंगे, सबकुछ जो कमाल का है… और अगली बार, जब चीजें साधारण हो जाएं, (अगर कभी होती हैं तो) और आकाश प्रदूषण से भरा हुआ है, भगवान को दोष मत दीजिएगा। क्योंकि वह हमारा किया होगा। बिल्कुल, हमारा किया-धरा होगा।

आपको लगता है धरती पर काफी खाना नहीं उगता है ? जी नहीं, धरती पर इतना खाना उगता है कि हम सबका पेट आसानी से भर सकते हैं। अगर कोई भूखा रहता है, यह किसकी गलती से होता है ? यह हमारी गलती से होता है। और ध्यान रहे — मैं कह रहा हूं, “हमारी।” यह उसकी गलती नहीं, यह उनकी गलती नहीं, यह उनकी नहीं। यह हमारी गलती है सबकी।

तो हां, जो आप कह रहे हैं यह बिल्कुल ठीक बात है। हमने यह होने दिया है। हमने इसकी आज्ञा दी है।

जब अगली बार एक मौका हाथ लगे, कोई मौका सामने आये तो उसके बारे में सोचें, दोबारा सोचें। हम इसे कैसे छोड़े ? हम बेवकूफों की तरह टीवी के सामने बैठते हैं, — सब दिमाग में जाने देते हैं, सब कूड़ा… मैं उन्हें कहता हूं "ब्रेन डिगर्ज़।" यह हर रोज दिमाग में घुसते हैं — और वो बताते हैं, कोशिश करते हैं कि "यह सही है और वह सही है; वो थोपते हैं अपनी बातें हम पर।"

बहुत समय पहले की बात है एक चैनल होता था — सिर्फ एक। और यही चैनल न्यूज़ एजेंसी इस्तेमाल करती थीं और फिर इसी से न्यूज़ आगे जाती थीं — कोई कॉमेंट्स नहीं होते थे। और आप ड्रामा, जो भी होता था वह देखते थे, चाहे जो भी हो। और यह बहुत ही बोरिंग चीजें हुआ करती थीं। और अगली बात जो आपके सामने है; वह वही फुटेज आप देख रहे हैं; जो एडिट की हुई है या बदली हुई है; यह चमकाई हुई है और इसे कुछ और ही बना दिया है…।

हर रोज सुबह बैठकर फैसला लेते हैं और सोचते हैं कि उनके अनुसार खबर क्या होनी चाहिए, क्या खबर है क्या नहीं। अगर उसमें कुछ दुर्घटना है। तो अचानक से ही आप बैठे हैं और आपको वह दिखती रहेगी — दुर्घटना, दुर्घटना, दुर्घटना, दुर्घटना।

किसी ने मुझे किसी और का एक लिंक भेजा जिसने एक यूट्यूब चैनल शुरू किया हुआ है कहीं पर, जहां सिर्फ अच्छी खबरें ही आती हैं। अब अच्छी खबर हो या बुरी हो — मेरा मतलब, दुर्घटना तो होनी ही है। (क्योंकि हम ही बनाते हैं उन्हें।) तो आप चाहते हैं सच्चा, ईमानदार सुझाव; सत्य जानना चाहते हैं आप — और आप एक टीवी को देखकर कहते हैं कि "यह है सत्य।" अब वह एक बुरा दिन होगा। आपको ऐसे सत्य कभी नहीं मिलेगा। आपको सत्य किसी ऐसे कागज के टुकड़े से नहीं मिलेगा जो आपने पकड़ा हुआ है। जिसे चमकाया हुआ है जो कि दूसरों की सोच के तले दबा हुआ है। और जितना ज्यादा सोच है, उतना ही ज्यादा खोजना और खोजना और वह कुछ लेकर बस खोजने लग जाते हैं — एक अच्छी कहानी बना देते हैं, सुनने में अच्छी लगती है, देखने में मजेदार बना देते हैं वो लोग। और मान लीजिए मेरी बात, जो कुछ भी है सिर्फ पैसा कमाने के लिए ही किया जा रहा है। यही उनकी प्राथमिकता होती है। और वो कमाते भी हैं; वो पैसा कमाते हैं।

तो दोबारा, यह इस बात पर आ जाता है कि जिस दुनिया में हम रहते हैं, अगर आपको इसके बारे में कुछ पसंद नहीं, ऐसा नहीं कि यह आपको दिया गया है। हमने यह परिस्थिति बनाई है; हमने यह बनाई है स्थिति। तो उम्मीद है कि इससे मदद मिलेगी। (पता नहीं कैसे), पर हां, और मैं बस वह बता रहा हूं जो मैं देखता हूं, बस इतना ही…।

यह भेजा है शुभम ने, इंडिया, दिल्ली से, "कभी-कभी इस लॉकडाउन से, छोटी-छोटी बातों में मैं परेशान और गुस्सा हो जाता हूं, इरिटेट हो जाता हूं। कैसे सबकुछ संभालूं ?"

मैं सोचता हूं क्या आप लॉकडाउन से पहले भी परेशान होते थे — क्योंकि मुझे थोड़ा शक़ है कि यह परेशानी काफी समय से चलती आ रही है — अब यह बस नजर ज्यादा आ रही है आपको, क्योंकि आप लॉकडाउन में हैं उस स्थिति में हैं दोबारा और दोबारा।

और परेशानी संभालना — आप परेशान हो सकते हैं। कोई बात नहीं यह सचेतना का हिस्सा है; यही तो है इसका मतलब — हां, आप बहुत परेशान हो सकते हैं। और चीजें आपको परेशान करेंगी। केवल आपको खुद से बस यही पूछना होगा कि “क्या आप परेशान होना चाहते भी हैं ?”

तो अगर चीजें आपको परेशान कर रही हैं, तो वो सब चीजें नियंत्रण में हैं, आप नहीं। उनका नियंत्रण चल रहा है। अगर आप परेशान नहीं होना चाहते, फिर आपको नियंत्रण रखना होगा, उन बातों को नहीं। तो आपको जीवन पर नियंत्रण रखना होगा। और यही करना होगा इसमें — जीवन पर नियंत्रण पाएं, अपने जीवन पर।

तो उम्मीद है आप सुरक्षित रहेंगे, सेहतमंद रहेंगे, अच्छे से — और सबसे जरूरी बात, सचेत रहेंगे। धन्यवाद!

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