प्रेम रावत:
सबको नमस्कार! मैं हूं प्रेम रावत। भरोसा नहीं हो रहा कि इन ब्रॉडकास्ट का चौथा दिन आ गया है। मुझे उम्मीद है कि जो भी हैं आपको अच्छा लग रहा होगा। आज मैं आपसे बात करूंगा “कृतज्ञता के बारे में।”
तो पता है मैं सोचता हूं कि लोग कहेंगे “क्या ? आप कृतज्ञता के बारे में क्यों बता रहे हैं। मेरा मतलब, इसे देखिए जानते हैं यह दुनिया अनिश्चितता, इसका अर्थशास्त्र आपको नहीं पता कि कल क्या होगा। नेता भी नहीं जानते हैं। पूरा देश परेशान है; समाज परेशान है। तो ऐसा क्या है जिसका हम धन्यवाद करें इस वक्त।”
अब इस बात को शुरू करें सबसे पहले कल आपने देखा होगा कि — कल के वीडियो में मैं नहीं दिख रहा था बस पिक्चर्स थीं रुकी हुई। तो क्या हुआ था ?
तो मैंने सोचा मैं कुछ बेहतर करने की कोशिश करूं। और अब (मुझे नहीं पता कि आपको पता भी है) मैं फोन से ही रिकॉर्ड कर रहा हूं — और यहां कोई बड़ा सेटअप नहीं है। बस एक छोटा-सा ट्राइपॉड है, मेरा फोन — पीछे की पिक्चर साफ की है और बस यहां खड़ा हूं कोई रोशनी नहीं है; यह सुबह की रोशनी है बस!
तो क्या हुआ था ? अब यह हुआ था कि यहां फोन के पीछे वाला बेहतर लेंस इस्तेमाल करने के लिए मैंने फोन को घुमा दिया ताकि खुद को ना देख पाऊं — और बिल्कुल जानते हैं इसमें जो भी सॉफ्टवेयर इन्होंने डाला है, यह एक चेहरा पहचान कर नहीं कहता, “ओके मैं यहीं फोकस करूंगा।”
इसे खत्म करके मैंने फुटेज को देखा और यह थी, "वाह! यह क्या हो गया! यह फोकस से बाहर था, अच्छा नहीं था। पर मैंने जो कहा था वह उसी वक्त था, उसी क्षण में था।
फिर पहले तो — पहले मैंने भी वही किया, “हे भगवान, यह बहुत बुरा हुआ! और यह क्यों हुआ और ऐसी ही बातें।” कुछ आएगा और आपको परेशान करेगा जैसे कि “आप कैसे कर सकते हैं।” “यह तो बेवकूफी की बात थी” और ऐसे ही बातें।
और फिर मैंने उसके बारे में सोचा और कहा "देखिए! यह तो हो चुका है आपने कुछ बहुत ही अच्छा कहा है। आपके हृदय से निकला था और इसका लाभ उठाइए।” तो मैंने वह भेज दी — और मैंने कहा, "इसमें बस कुछ पिक्चर लगाकर चला दें” क्योंकि मैं दोबारा नहीं कह पाऊंगा; ऐसा नहीं कि स्क्रिप्ट से पढ़ रहा हूँ; यह सब इसी वक्त कहता हूं मैं।
और यह हमेशा मुझे एक कहानी याद दिलाता है, महाभारत के बाद महाभारत की महाजंग खत्म हुई। कृष्ण बात करने गए अर्जुन के साथ और कहा "मुझे बताओ सब ठीक है!"
तो अर्जुन ने कहा — "जी हां! सबकुछ ठीक है। वनवास में रहने से तो अच्छा ही है जंगल में रहने से, मैं अब महल में हूं और सबकुछ ठीक है।”
और फिर कृष्ण बोले — "तो मैं तुम्हारे लिए कुछ कर सकता हूं ?"
तो अर्जुन ने कहा — "अब असल में वह जो ज्ञान आपने मुझे युद्धभूमि में दिया था, मैं लगभग भूल गया हूं और वह काफी मुश्किल समय था। तो क्या आप मुझे वह सब दोबारा बता सकते हैं ?”
और कृष्ण बोले, “जानते हो! उसी वक्त मेरे मन में आया था वह सब! मुझे नहीं पता अगर मैं वह याद कर पाऊंगा की नहीं” — लेकिन जो भी उन्होंने अर्जुन के लिए उस ज्ञान का एक अंश उन्होंने अर्जुन को बता दिया और वह कहलाती है "अनुगीता” — “छोटी गीता!"
तो ऐसी बात है जैसे कि “मैं इस फुटेज को फेंक दूं ?” या मैंने जो कहा था वह अच्छा था; मेरे हृदय से गया था; बहुत ही शुद्ध था, तो उसी वक्त आया था और मैंने रख लिया उसको। मैं शुक्रगुज़ार हूं कि वह हुआ। मैं खुश नहीं कि मैंने गलती कर दी। और कैमरे से गलती हुई और फोन से भी यह हुआ पर मुझे खुशी है — उस बात पर नहीं जो होनी थी, पर नहीं हुई। पर मैं उसके लिए खुश नहीं हूं, मैं खुश हूं कि हृदय से क्या निकला या जो महसूस किया और आपसे सचेत जीवन की बात कर पाया। क्योंकि “सचेतना से जीना” इसी का नाम है।
सबकुछ देखना जो आसपास है इस दुनिया में है जो भी हो रहा है वह समझना। क्योंकि आप से मतलब है आपके अस्तित्व से वह जुड़ा हुआ है, क्योंकि जो आप देखते हैं, अपनी आंखों से देखते हैं, जो देखते हैं अपने दृष्टिकोण से देखते हैं जो भी आपके साथ हुआ है वह सबकुछ आपके नज़रिये का हिस्सा बन जाता है।
अब कोई हमेशा पहाड़ ही देखता हो, तो वह पहाड़ को देखकर ज्यादा खुश नहीं होंगे। कोई ऐसा जो पहाड़ नहीं देखता हो, वह समुद्र के किनारे रहता हो वह पहाड़ को देखकर बहुत खुश होते हैं, जैसे कि "वाह! देखो यह पहाड़ है वहां पर!" और इसके विपरीत कोई ऐसा जो समुद्र के पास रहता है और वह कहता है कि "अच्छा यह रहा समुद्र!" और कोई जो समुद्र के पास नहीं रहता है या फिर वह रेगिस्तान में रहता है और वह समुद्र देखे तो कहे, वाह! यह देखो समुद्र!"
सबका अलग नज़रिया होता है। हर कोई बात को समझने में बिलकुल अलग होता है और इसलिए यह जीवन एक जैसा नहीं होता। यह बहुत-बहुत भिन्न है। आप कैसे समझते हैं, आप कैसे देखते हैं!
तो आसान है जैसे कि — एक बार मैं जेल गया था और यह ऑस्ट्रेलिया में था, वॉल्सटन जेल में और वहां के कैदी उनमें से एक, जब सवाल-जवाब का वक्त आया तो उसने कहा कि "आपको कैसे पता आप तो जेल में रहते नहीं हैं। आप क्या जानते हैं इसके बारे में!"
और उसके बारे में मैं काफी सोचता हूं और जैसे कि “हां जीवन में उसका नज़रिया, आजादी क्या है इन सभी बातों के साथ मुझसे बिल्कुल अलग होगा।” पर ऐसा ही है और मैं सबकुछ एक जैसा करने की कोशिश नहीं कर रहा। मैं नहीं कहता यह सब ऐसा होना चाहिए, जो तज़ुर्बा आपको जीवन में मिला है वैसा ही बाकियों को मिलेगा। नहीं! वह अलग होगा और इसलिए क्योंकि वह अलग है। कृतज्ञता भी अलग होगी सबके लिए हर व्यक्ति का धन्यवाद देने का तरीका अलग ही होगा — क्योंकि तज़ुर्बा अलग-अलग है।
तो अगर आप सचेत जीवन जीते हैं, आपको खुद को जानने का महत्व पता चल जाएगा और फिर जब खुद को जान जाएंगे और जीवन सचेत ढंग से जीयेंगे सबकुछ अलग होगा। आपकी कृतज्ञता अलग होगी, क्योंकि अब आप उसे अलग ढंग से देखते हैं। आप उसे पहले की भांति नहीं देख रहे और वह कृतज्ञता एक फल की तरह है जो एक अच्छा पेड़ उसे उगाता है। सचेत जीवन एक फूल की तरह है और आपका अस्तित्व एक सुंदर से पेड़ की तरह है — और यह फलता है और फिर जब सचेत जीवन जीयेंगे आप एक उद्देश्य पूरा कर पाएंगे और अपने आपको जानने का उद्देश्य पूरा होगा और जब आप खुद को जानेंगे बहुत ज्यादा कृतज्ञता आएगी और वही है फल और फिर आप फल को साझा करेंगे। आप कृतज्ञता साझा करेंगे आप जिसके लिए कृतज्ञ हैं!
तो क्या आप कोरोना वायरस के लिए शुक्रगुज़ार हैं — मुझे नहीं लगता, मुझे नहीं लगता कोई भी इसके लिए धन्यवाद दे रहा है। पर, आप किसी और चीज के लिए कृतज्ञ हो सकते हैं — और वह है कि आपके पास मौका है, आपके पास एक संभावना है, सोचने की, समझने की, बताने की, महसूस करने, और देखने की।
और देखिए — यही जरूरी है कि आप यह कर सकते हैं और यह कृतज्ञता कितनी ज्यादा जरूरी है ? क्योंकि देखिए “कृतज्ञता” का क्या मतलब होता है — कृतज्ञता का मतलब आप उस फल को लेते हैं। आपका हृदय भरा हुआ है। आप अभिव्यक्त करते हैं; महसूस कर सकते हैं; आप समझ सकते हैं और इसलिए कृतज्ञता इतनी अहम है, क्योंकि कृतज्ञता के बिना कृतज्ञता सेहत मापने का एक तरीका है। अगर आप देखें, अगर आप वह फल लेते हैं — "वाह! अच्छा है, बहुत अच्छा।” सेहतमंद हो जाएंगे। और अगर नहीं तो कुछ कमी हो गई है कुछ ठीक नहीं है; शायद सराहना नहीं है। यहां पर शायद समझते नहीं खुद को जानने का मतलब। शायद आप खुद को नहीं जानते — और खुद को जानने की अहमियत क्योंकि मैं देख सकता हूं कि घर पर बंद होने से और आप बाहर नहीं जा रहे दूसरों से दूर हैं क्यों और हम “सामाजिक जंतु” तो हैं ही। ओके! आप टीवी देख सकते हैं, आप एक हद तक ही देख सकते हैं। लेकिन अभी या बाद में यहां होंगे बस आप और आप ही — सिर्फ आप!
मैं टीवी को देख रहा था, जब किसी ने कहा कि "ओह! एक व्यक्ति था एक देश के अंदर और उसे जेल में डाल दिया, बीवी बच्चों के साथ और वह भी तीन दिनों के लिए और चौथे दिन वह भाग गया।" वह यह झेल नहीं पाया। पर, जब आप झेल नहीं पाते, सच में वह झेल नहीं सकते जो सच में आपके ही अंदर है, वरना अगर खुद से खुश हैं आप संतुष्ट हो सकते हैं काफी हद तक किसी भी स्थिति में। लेकिन जब खुद से संतुष्ट नहीं होते फर्क़ नहीं पड़ता कि किस परिस्थिति में हैं!
आप असंतुष्टि में ही रहेंगे और खुद को जानना बस इतना ही है। जीवन को सचेतना से जीना जरूरी है, क्योंकि देख पायें, आप सोच पायें तोहफे को समझना; तोहफे को लेना जो आपको मिला है यही तो है सचेत जीवन में — जैसे मैं बोलता हूं पर हां, जो भी, आपके भीतर जो भी है, वह लें ताकि अस्तित्व बड़ा हो सके “जिंदा रहने में।”
और अगर आप यह कर पाते हैं, तो “वाह!” आप सच में समझ लेंगे कि मतलब क्या है इस सबका, इस सबका — आप देखिए कभी-कभी “यह अच्छे फोटोग्राफर हैं” और यह व्यक्ति अच्छा फोटोग्राफर क्यों है ? क्योंकि जो भी होता है वह उसे असल में पकड़ लेते हैं। वह असल में कहानी को दिखा पाते हैं। क्या आपने अपनी कहानी बना ली ? क्या आपने अस्तित्व को थाम लिया ? क्या आप यहां होने का मतलब समझ पाए ? और शायद हर रोज के काम में सभी चीजें जो जीवन में चलती हैं हम सब नहीं समझ पाते। क्योंकि हम ऐसे सोचने में व्यस्त हैं, लेकिन आपके पास एक मौका है उन सभी व्यस्त रखने वाली बातों को ना करने का और बस कुछ और करने का। इसके विपरीत कुछ सोचने का वक्त, जानने का, ध्यान लगाने का, समझने का और इस अस्तित्व की अहमियत को समझना; जीवन में खुशी की अहमियत को जानना; जीवन में स्पष्टता होने की अहमियत को समझना; एक भरा हुआ हृदय होने की अहमियत; जीवन में शांति होने की अहमियत; वह भावना होने की अहमियत जिसमें लगे कि आप पूर्ण हो गए हैं। हर वह पल जब आप जीवित हैं आप उसका पूरा लाभ उठा रहे हैं — इस तोहफे का लाभ! और यह — जब सबकुछ साथ में आता है, जब सारी उलझन खत्म होती है छोटे-छोटे तरीके से जब साथ आते हैं फिर आती है कृतज्ञता और यह बात कि आप अस्तित्व के लिए धन्यवाद दें कि आप जीवन के लिए धन्यवाद कहें — वाह! कितनी अच्छी है इससे बेहतर और क्या हो सकता है ? हर एक दिन जो आता है उसके लिए धन्यवाद देना! इससे बेहतर क्या हो सकता है ? हर घंटे के लिए आप शुक्रगुजार हों! इससे बेहतर और क्या हो सकता है! हर स्वांस के साथ ताकि आप पूर्ण होना महसूस कर सकें, भरे हुए, इससे बेहतर क्या हो सकता है ?
तो मैं और कुछ नहीं सोच सकता जो इससे बेहतर हो, क्योंकि वह करिश्मा, सराहना वह और बढ़ जाती है। महानता, सराहना के बिना छुपी हुई रहती है, अधूरी रहती है और हालांकि यह सुंदर है, हालांकि यह कमाल की है यह हमेशा रहेगी। हर सितारा, रेत का हर टुकड़ा, इस दुनिया में सब कुछ, हर रोज सूरज का चमकना, बादल आते हैं; बारिश आती है। सूरज की रोशनी होती है; गर्मी आती है; सर्दी जाती है; सर्दी आती है। फिर पतझड़, सभी मौसम, सबकुछ और फिर — आपके मौसम, आप समझें कि आप में बहुत कुछ है; समझिये कि आप में भी एक ब्रह्मांड है। आप ब्रह्मांड की सराहना करें। आप ब्रह्मांड को देखकर, सितारों को देखकर, आप चांद को देखते हैं, आप सूरज को देखते हैं और आप अपने सूरज को देखते हैं। हृदय की रोशनी को भी अपने चांद को देखते हैं, अपने सितारों को देखते हैं, अपना ब्रह्मांड देखते हैं।
आप देखिए! वह खुशी जो हृदय में नाचती है, वह संगीत जो भीतर चलता रहता है; वह नृत्य जो आप में चलता है; वह खेल जो भीतर चलता है; वह पिक्चर जो चलती है, जिसमें आप ही सितारे हैं — वाह!
जैसा कि बाहर है और हमारे पास कैमरा है और साथ ही स्टीरियो उपकरण है और हम सबकुछ रख लेना चाहते हैं। यह कमाल की रिकॉर्डिंग है और हम सुनना चाहते हैं उसे फिर से और फिर से…
पर, फिर भी आप ही अपना कैमरा हैं, आप भीतर के ब्रह्मांड का इकलौता कैमरा हैं। और अगर आप समझ पाएं, अगर आप सराहना करें फिर कृतज्ञता आएगी। जैसे कि आप सुंदर संगीत सुनते हैं और नृत्य करना चाहते हैं और उसे पसंद करते हैं आप हंसते हैं, उसमें खो जाते हैं और अच्छा महसूस करते हैं — तो जब आप अंदरूनी ब्रह्मांड को समझेंगे तो ऐसा ही होगा। यही तो है कृतज्ञता — यह वहां सब जीवित हो जाता है। और मैं कहता जाऊंगा शायद लेकिन मुद्दा है कि अगर आपने तज़ुर्बा किया है; अगर आपने कभी भी तज़ुर्बा किया है, चाहे छोटा ही सही फिर आप जानते हैं मैं क्या कह रहा हूं! अगर नहीं किया तो यह समझ नहीं आएगा — फिर इस बात का कोई मतलब नहीं है।
जो भी, मुझे उम्मीद है आपने premrawat.com पर सवाल भेजे हैं — और बिल्कुल अगर आप टाइमलेस टुडे पर सवाल भेजना चाहें। वह भी ठीक है, वह मुझे मिल जाएंगे।
तो मुझे उन सवालों का इंतजार है। कई ऐसे सवाल हैं जो मुझे भेजे जा चुके हैं, लेकिन मैंने सोचा दोबारा, यह अनोखा समय है और इस परिस्थिति में लोगों के अलग-अलग सवाल हो सकते हैं, तो मैं अपनी पूरी क्षमता के हिसाब से उनका जवाब देना चाहता हूं।
तो सबसे अहम बात जो होगी दोस्तों कि, सेहतमंद रहें — आराम से रहें और सुरक्षित यह सबसे जरूरी है! जी हां!
तो बहुत-बहुत धन्यवाद — आपसे फिर मिलूंगा!